सनक की सीमा होती है लेकिन जेर बोलसोनारो के सनक की कोई सीमा नहीं

Published on: June 3, 2020
"मुझे हर मौत का अफसोस है लेकिन यह तो सभी की नियति है"- जेर बोलसोनारो, राष्ट्रपति, ब्राज़ील



ब्राज़ील में कोविड-19 से संक्रमित मरीज़ों की संख्या 5 लाख से अधिक हो गई है। मरने वालों की संख्या 31,000 से अधिक हो चुकी है। यह मुल्क एक सनकी राजनेता और भावनात्मक मुद्दों पर उकसाने वाली राजनीति का साथ देने का ख़मियाज़ा भुगत रहा है। राष्ट्रपति जेर बोलसनारो को भारत के गणतंत्र दिवस पर मेहमान बनाकर बुलाया गया था। लेकिन इस नेता की राजनीति और वचनों में एक भी लक्षण ऐसे नहीं हैं जो एक लोकतांत्रिक देश के गणतांत्रिक उत्सव में मेहमान के तौर पर बुलाया जाता।

ब्राज़ील में बोलसोनारे के समर्थक सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। विगत रविवार। बोलसोनारे हेलिकाप्टर से प्रदर्शनकारियों के ऊपर उड़ान भरता है और उनका अभिवादन करता है और उत्साह बढ़ाता है। फिर ज़मीन पर उतर कर पुलिस के घोड़े पर सवार हो जाता है। मास्क नहीं लगाता है। देह से दूरी का त्याग कर समर्थकों से हाथ मिलाता है। सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ नारे लगाता है। नारा लगता है कि कोर्ट के खिलाफ सेना कार्रवाई करे। यह नेता कोरोना के संक्रमण को मामूली फ्लू बताता है और इसे लेकर बनाए गए नियमों का मज़ाक उड़ाता है।

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि उन लोगों की जांच की जाए और पूछताछ की जाए जो फेक न्यूज़ फैला रहे हैं। लोगों को निजी रुप से टारगेट कर रहे हैं। इनमें बोलसोनारे के समर्थक 6 सांसद हैं और राज्य की विधायिका के 2 सदस्य भी हैं। कुछ उद्योगपति भी हैं। इस फैसले के खिलाफ़ बोलसोनारो सड़क पर उतर आया है और सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ नारे लगा रहा है।

ब्रीज़ील में लोकतंत्र ख़तरे में हैं। लेकिन लोगों के दिलों में इसका जज्बा बचा हुआ है। इसलिए बोलसोनारो के विरोधी भी सड़क पर मुकाबला कर रहे हैं। अदालत में ऐसे जज बचे हुए हैं जो फैसला ले रहे हैं। तभी तो स्वास्थ्य मंत्री ने इस्तीफा दे दिया उसके पहले एक और स्वास्थ्य मंत्री को बोलसोनारो ने निकाल दिया दोनों कोविड-19 को लेकर बोलसोनारे के रवैये से असहमत थे। यानि कुछ मंत्रियों में दम है जो उसका विरोध कर सकते हैं।

ब्राज़ील में कोरोना पहले अमीरों की बस्ती में फैला। अब ग़रीबों के इलाके में फैल गया है। शायद ग़रीब मरेंगे तो हेडलाइन छोटी हो जाएगी। मुझे पढ़ते हुए एक बात समझ में आई। कि अब इस संक्रमण को ग़रीबों के इलाके में ठेल दिया जा रहा है। ताकि वहां लोग इसे भाग्य का खेल समझ कर स्वीकार कर लें। ग़रीब इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाएं वैसे भी नहीं होती हैं। लोग मर जाते हैं और वे समझ भी नहीं पाते कि अस्पताल का न होना, डाक्टर का न होना मौत के कारणों में से एक है। इसके बाद खेल शुरू होगा शहरों को खाली कर अस्पतालों के बचे खुचे संसाधनों को अमीरों के लिए बचा कर रखना। एक बड़ा उद्योगपति इससे संक्रमित हो जाए और कुछ हो जाए तो हंगामा मच जाएगा। सौ गरीब मर जाएंगे तो व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी में मैसेज फार्वर्ड होने लगेगा कि साल में मलेरिया से 2 लाख और टीबी से इतने लाख लोग मर जाते हैं तो कोविड-19 से 40,000 ही मरे हैं। इतना हंगामा क्यों हैं। आप इन बातों को भारत के संदर्भ में भी देख सकते हैं। अभी नहीं तो कुछ दिनों बाद आपको यही देखना पड़ेगा।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड-19 के इलाज में मलेरिया की दवा को ख़तरनाक बताया है। मगर ट्रंप भारत से यह दवा लेकर ब्राज़ील को दे रहे हैं। भारत खुद इस दवा को प्रचारित नहीं कर रहा है मगर इसकी सप्लाई को कूटनीतिक सफलता बता रहा है। बोलसोनारो मलेरिया की इस दवा की वकालत करता है। राज्यों के गवर्नर से कई तरह के अंकुश लगाए हैं लेकिन बोलसोनारे उनका विरोध करता है। कहता है कि किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं लगना चाहिए।

यूनिवर्सिटी आफ वाशिंगटन ने चेतावनी दी है कि अगस्त तक सवा लाख लोग मर जाएंगे। इसके बाद भी ब्राज़ील का राष्ट्रपति लापरवाह है। ब्राजील की आबादी 21 करोड़ से अधिक है। यहां सभी के लिए इलाज मुफ्त है। मगर अस्पताल भीतर से खोखला है। भारत की तरह। अस्पतालों में आई सी यू बेड तक नहीं है। ग़रीब इलाकों में तो स्वास्थ्य सुविधाओ का कोई ढांचा ही नहीं है। ऐसे में जब लोग मर रहे हैं तब बोलसोनारो कहता है कि कोविड-19 की परवाह मत करो। मास्क मत पहनो। ये मामूली फ्लू है। उसके समर्थक कम नहीं हैं। सनकी नेता के पीछे हमेशा समर्थकों की भरमार होती है।

नोट- गार्जियन अख़बार के टॉम फिलिप, अलजज़ीरा के जिहान अब्दल्ला, और ब्लूमबर्ग अखबार से हमने सारी जानकारी ली है।

- रवीश कुमार (वरिष्ठ पत्रकार)
 

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