एक मलयाली हिंदू का ऐलान - न तो गाय हमारी माता और न हिंदुत्व से नाता

Written by रामचंद्र अलुरी | Published on: April 8, 2017

यह स्टोरी सबरंगइंडिया को व्हाट्सअप पर इसके एक पाठक ने भेजी है।



सत्ता में बैठे कुछ अज्ञानी कट्टरपंथियों को अखंड भारत के मिथक और उत्तर के वर्चस्व के आगे झुकने से मना करने मलयालियों को निशाना बनाने से पहले कुछ चीजों को समझ लेना चाहिए।

सबसे पहले तो यह जान लें कि केरल के हिंदू गाय को माता के रूप में नहीं पूजते हैं। हां हमारे यहां स्टार के मंदिरों की तरह ही शिव मंदिरों में नंदी की मूर्ति जरूर मिलेगी। सबरीमाला और गुरूवयुर के मायने हमारे लिए हरिद्वार और अयोध्या से कहीं ज्यादा है।

हमारे मुख्य त्योहार ओणम और विशु हैं दिवाली या नवरात्रि नहीं। हम होली, भाई दूज, करवा चौथ या राखी नहीं मनाते हैं। हां क्रिसमस और ईद हमारी जिंदगी का एक अहम हिस्सा जरूर हैं।

कुछ पक्के, धार्मिक केरलवासी संपूर्ण शाकाहारी हैं। कुछ लोग अपनी पसंद से शाकाहार करते हैं। हममें से ज्यादातर लोग बीफ, चिकन, मटन, बत्तख और अन्य दूसरे तरह के मांस खाते हैं। मछली केरल के खान-पान का एक जरूरी हिस्सा है। चूंकि कुछ उत्तर भारतीय गाय की पूजा करते हैं इसलिए केरल के हिंदुओं से इसकी पूजा करने की उम्मीद लगाना बेमानी है। हमसे बीफ खाना छोड़ने की उम्मीद मत पालिये।

भैंस का मीट भारत में कहीं भी प्रतिबंधित नहीं है। लेकिन दिल्ली और हिंदू सेना जैसे कुछ संगठनों ने जानबूझ कर मलयालियों के स्वाभिमान को चोट पहुंचाने की योजना बनाई है। बहरहाल हम सिर्फ इतना जानते हैं कि हम मलयाली हैं। हमारी भाषा मलयालम है। न तो हिंदी और न ही हिंदुत्व से हमारा कोई मतलब है।

केरल में इस्लाम और ईसाइयत का प्रसार शांतिपूर्ण तरीके से हुआ है और जो लोग इन धर्मों में विश्वास रखते हैं वे हमारी इस बहुसांस्कृतिक समाज का ही हिस्सा हैं। केरल में आपको मंदिर, मस्जिद और चर्च तीनों एक ही जगह एक ही लाइन में मिल जाएंगे। हजारों सालों से इनमें सह-अस्तित्व का संबंध है।

आप उत्तर भारत पर मुगलों और अन्य हमलावरों के हमलों की कहानियों को अपने पास ही रखें। केरल के कोडुनगलुर में भारत की सबसे पुरानी मस्जिद 629 ईस्वी में बनाई गई थी।

हमारा यहूदियों, अरब के लोगों, चीनियों और कई दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के साम्राज्यों से 2000 वर्ष पुराना कारोबारी संबंध रहा है। हमने हॉलैंड के लोगों को कोलाचल में हराया था।

त्रावणकोर और कोच्चि ब्रिटिश भारत के हिस्से नहीं थे। वे स्वतंत्र राज्य थे। भारत को आजादी मिलने से पहले ही त्रिवेंद्रम में त्रावणकोर की अपनी चुनी हुई विधानसभा थी। थी।

आरएसएस और इसकी जैसी अन्य प्रतिगामी ताकतों को समझ लेना चाहिए कि हम हिंदुत्व के एजेंडे के आगे झुकने वाले लोगों में नहीं हैं। हम एक धर्मनिरपेक्ष संघीय गणराज्य के हिस्से हैं। हम कभी भी किसी हिंदू राष्ट्र के हिस्से नहीं हो सकते।

--एक स्वाभिमानी मलयाली हिंदू

रामचंद्र अलुरी सर्वाधिक प्रसारित अखबार मातृभूमि के सह-संपादक हैं। वह मलयालयम साहित्य के जाने-माने नाम हैं। वह एक समर्पित मलयाली हिंदू हैं।
 
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