विवादित जमीन पर रामलला का अधिकार, मस्जिद के लिए वैकल्पिक 5 एकड़ जमीन: सुप्रीम कोर्ट

Written by Sabrangindia Staff | Published on: November 9, 2019
अयोध्या बाबरी मस्जिद भूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने शनिवार को अपना फैसला सुनाया। कोर्ट ने अपने फैसले में रामलला विराजमान को विवादित जमीन सौंपने का आदेश दिया। वहीं मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में पांच एकड़ की वैकल्पिक जमीन देने का फैसला दिया। शीर्ष कोर्ट ने आदेश दिया कि  3-4 महीने में राम मंदिर निर्माण के लिए एक ट्रस्ट बनाया जाए। इससे पहले कोर्ट ने जमीन पर निर्मोही अखाड़े और सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा खारिज कर दिया। सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी ने कहा कि हम फैसले का स्वागत करते हैं लेकिन हम संतुष्ट नहीं हैं। आगे क्या किया जा सकता है, इस पर हम विचार करेंगे।




सीजेआई रंजन गोगोई ने सुनवाई करते हुए कहा कि फैसले आस्था, विश्वास और दावे के आधार पर नहीं दिए जा सकते। ऐतिहासिक दस्तावेज दिखाते हैं, हिंदुओं का विश्वास है कि अयोध्या भगवान राम का जन्मस्थान है, यह निर्विवाद है। पांच जजों की इस पीठ में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस एसए बोबड़े, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर शामिल हैं। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 16 अक्टूबर को 40 दिनों की मैराथन सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसके सबूत हैं कि राम चबूतरा, सीता रसोई पर अंग्रेजों के आने से पहले हिंदू पूजा करते थे। रिकॉर्ड में सबूत दिखाते हैं कि विवादित स्थल के बाहर हिंदू पूजा करते थे। कोर्ट ने कहा कि मस्जिद मुस्लिमों द्वारा छोड़ी नहीं गई थी। हिंदुओं ने राम चबूतरे पर पूजा करना जारी रखा लेकिन उन्होंने गर्भगृह पर भी दावा किया।

कोर्ट ने कहा कि हिंदुओं का विश्वास है कि भगवान राम का जन्म गुंबद के नीचे के स्‍थान में हुआ था। उनकी धार्मिक भावनाएं जुड़ी हुई हैं। मुस्लिम इसे बाबरी मस्जिद कहते हैं। हिंदुओं का यह विश्वास कि भगवान राम का अयोध्या में जन्म हुआ था, यह निर्विवाद है। आस्था निजी मामला है। चीफ जस्टिस ने कहा कि कोर्ट को आस्था और विश्वास को स्वीकार करना चाहिए। कोर्ट को बैलेंस बनाना चाहिए।

कोर्ट ने कहा कि विवादित ढांचा इस्लामिक मूल का ढांचा नहीं था। बाबरी मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनाई गई थी। मस्जिद के नीचे जो ढांचा था, वह इस्लामिक ढांचा नहीं था। कोर्ट ने कहा कि ढहाए गए ढांचे के नीचे एक मंदिर था, इस तथ्य की पुष्टि आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) कर चुका है। पुरातात्विक प्रमाणों को महज एक ओपिनियन करार दे देना एएसआई का अपमान होगा। हालांकि, एएसआई ने यह तथ्य स्थापित नहीं किया कि मंदिर को गिराकर मस्जिद बनाई गई।

सीजेआई ने कहा कि बाबरी मस्जिद मीर बाकी द्वारा बनवाई गई। धर्मशास्त्र के क्षेत्र में जाना कोर्ट के लिए सही नहीं होगा। शिया वक्फ बोर्ड की 1946 की फैजाबाद कोर्ट की याचिका खारिज हुई।

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