प्रशांत भूषण के बहाने...

Written by कनक तिवारी | Published on: August 17, 2020
सुप्रीमकोर्ट के भीष्म पितामह रहे, शताब्दी पुरुष और देश के लगभग सबसे बड़े, विख्यात और दीर्घकालीन जनवादी न्यायविद कृष्ण अय्यर को भी अवमानना के कानून ने काटने की कोशिश की। केरल उच्च न्यायालय के रजत जयंती समारोह में रिटायर हो चुके जज कृष्ण अय्यर ने उल्लेख किए थेः-



(1) इस देश में ईसा मसीह तो सूली पर चढ़ रहे हैं और जल्लाद न्यायपालिका की कृपा से बच रहे हैं। (2) एक अंदरूनी जानकार होने के कारण मैं बहुत सी बातें खुलकर नहीं कह रहा हूं। (3) हमारा न्यायिक अप्रोच कई बार सभ्य बर्ताव से पृथक हो जाता है। (4) साफ साफ कहूं तो भारतीय न्यायपालिका अस्तित्वहीन ही हो गई है।

हाईकोर्ट में जस्टिस सुब्रमण्यम पोट्टी और जस्टिस परिपूर्णन की बेंच ने साफ किया कि जस्टिस कृष्ण अय्यर भारतीय न्याय व्यवस्था के शलाका पुरुष के रूप में क्रियाशील, प्रतिष्ठित और स्थापित हैं। ऐसा कहते समय यह न समझा जाए कि दोनों जज उनसे प्रभावित होकर फैसला करेंगे। उनकी टिप्पणियों को पारदर्शी ईमानदार आलोचना के दायरे में रखा जा सकता हैै। अदालतें अपवाद नहीं हैं कि कोई उनका मूल्यांकन नहीं कर सकता। प्रजातांत्रिक न्यायपालिका को विपरीत टिप्पणियों से घबराकर घबराहट महसूस नहीं होनी चाहिए। समझना होगा व्यक्ति किस मकसद से टिप्पणी कर रहा है। 

जज कृष्ण अय्यर के मुताबिक भारत में न्यायिक सक्रियता पर प्रोफेसर साठे से बेहतर किताब अन्य बुद्धिजीवी ने नहीं लिखी है। उन्होंने कहा है ‘‘कोई व्यक्ति कहता है कि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार है तो उसके खिलाफ अदालत की अवमानना का मामला कैसे बनता है? लोगों को अधिकार है कि वे स्वतंत्र न्यायपालिका चाहें। तो उन्हें यह भी अधिकार है कि वे भ्रष्ट न्यायपालिका नहीं चाहें। क्या न्यायपालिका में काली भेड़ें नहीं हैं? न्यायपालिका में करप्शन नहीं होना चाहिए। जज का चरित्र ही न्यायपालिका की रीढ़ की हड्डी है।‘‘

(कनक तिवारी के फेसबुक वॉल से साभार)

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