सिंधु घाटी सभ्यता का आदर्श समाज

Written by महेंद्र नारायण सिंह यादव | Published on: September 19, 2016
अनेक लोग ऐसा मानते हैं कि आदर्श या यूटोपियन समाज एक असंभव चीज है, लेकिन वास्तव में प्राचीन काल में अनेक समूह ऐसे रहे हैं जहाँ न किसी तरह का विवाद होता था और न ही कोई राजा या प्रजा जैसी बात होती थी। यहाँ तक कि ईसा पूर्व 2600 से ईसापूर्व 1900 के बीच फली-फूली सिंधु घाटी सभ्यता में भी हथियार, युद्ध या असमानता के कोई निशान नहीं मिलते।
 
The Indus Lost Civilizations

द इंडस: लॉस्ट सिविलाइज़ेशंस के लेखक एंड्र्यू रॉबिंसन ने न्यू साइंटिस्ट पत्रिका में अपने लेख में विस्तार से इस बारे में लिखा है।
 
सिंधु साम्राज्य करीब सिंधु नदी से लेकर अरब सागर और गंगा तक करीब दस लाख वर्ग मील के दायरे में फैला था। इसकी आबादी विश्व की आबादी का करीब दस प्रतिशत थी और इसके लोग नदी किनारे उपजाऊ जमीन पर रहना पसंद करते थे।
 
1920 के दशक तक इनके बारे में कोई जानकारी नहीं थी, लेकिन इसके बाद के अनुसंधान में इसके पूर्ण विकसित सभ्यता होने के बारे में जानकारी मिली। अब तक पाकिस्तान और पश्चिमोत्तर भारत में हजारों सिंधु बस्तियाँ होने का पता चला है।
 
इन बस्तियों में तरह-तरह की इमारतें, सुंदर डिजाइनों वाले आभूषण तो मिलते हैं, लेकिन किसी तरह के हथियार, या सैन्य उपकरण नहीं मिलते।
 
रॉबिंसन कहते हैं कि पुरातत्वविदों को इंसानी लड़ाई का केवल एक चित्रण मिला है, और वो भी आंशिक रूप से पौराणिक कथाओं का दृश्य है जिसमें कोई बकरी के सींगों वाली कोई देवी है जिसका शरीर बाघिन जैसा है।
 
युद्ध में व्यापक रूप से इस्तेमाल होने वाले घोड़े का भी कोई चित्रण नहीं मिलता।

सिंधु घाटी सभ्यता की खोज के करीब 100 साल होने को आए लेकिन अब तक उसमें किसी राजसी महल या भव्य मंदिर तक नहीं मिला है।
 
रॉबिंसन का मानना है कि सिंधु घाटी सभ्यता को समझने के लिए उसकी लिपि को समझना ज़रूरी है। 1920 से लेकर अब तक इसके कई प्रयास किए जा चुके हैं। इस सभ्यता के सारे रहस्य लिपि के समझे जाने से ही खुल सकते हैं। वैसे अभी तक जो सामने आया है, उसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि सिंधु घाटी सभ्यता एक आदर्श या यूटोपियन समाज की प्रतीक रही है।

 

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