“राम ने रावण से भी शिक्षा लेने को सही बताया है। सिंह साहब तो फिर भी सज्जन आदमी हैं...”
हमारी मानसिक स्थिति का अंदाजा इस बात से लगा सकते है कि हमें एक औसत भाषण (नामग्याल) भी ऐतिहासिक लग जाता है। उस भाषण की खासियत सिर्फ इतनी थी की उसमें हर बात के लिए कांग्रेस को दोषी ठहराया गया। तो, आजकल आलम ये है कि एक रिक्शे वाले से कांग्रेस को 100 गाली दिलवाइए, उसका वीडियो बना कर यूट्यूब पर डालिए, 4-5 लाख व्यू मिलना तय है। इसके बाद, चाहे तो वो रिक्शावाला भी खुद को देश का सबसे निडर, भरोसेमंद और विश्वसनीय पत्रकार का तमगा दे कर चमक सकता है।
ये बैकग्राउंडर इसलिए कि “मुसलमान” नामक एनिस्थेसिया से हम जिस कदर नीमबेहोश हो गए है, हमें पता ही नहीं कि हम कहाँ जा रहे है? हमारी मानसिक दुर्दशा की इंतहा देखिए कि हम 370 से इसलिए खुश हुए जा रहे है कि “मियां सब” का इलाज हो रहा है। हम अपनी आर्थिक दुर्दशा (मंदी) के लिए सरकार से इसलिए सवाल नहीं पूछ रहे है कि हमें लगता है कि हमारी इस दुर्दशा के लिए भी “मियां” सब की बढ़ती जनसंख्या ही जिम्मेदार है। भले हम अपने 100 करोड़ की आबादी को दोष न दे। ये तो समाज का हाल है। एक शब्द में कहे तो समाज ही सैडिस्टिक पर्सनाल्टी डिसॉर्डर से ग्रसित बना दिया गया है।
लेकिन, राजनीति, खास कर सत्ताधारी दल की राजनीति किस दिशा में जा रही है? भाजपा का मौजूदा शीर्ष नेतृत्व ने अपनी सरकार की पहचान शॉक ट्रीटमेंट देने वाले की बना ली है। इस आशा में कि लोगों को ये सब अच्छा लगेगा। लग भी रहा है। लेकिन, काम के नाम पर क्या हो रहा है? आज इनके पास ढंग का एक अर्थशास्त्री तक नहीं है, जो सही सलाह तक दे सके। जो थे, भाग गए, भगा दिए गए।
पिछले 5 साल नेहरू ने काम नहीं करने दिया, अब कश्मीर है, चिदंबरम है, वाड्रा बाकी है। ठीक है, ये सब भी करिए, लेकिन काम? काम की बात करते ही तमाम तरह के “काम” सामने आ जाते है। मसलन, सरकार कहेगी कि सरकार का काम बिजनेस करना नहीं है। इसलिए, रेलवे का भी निजीकरण होगा, बीसएनएल को डूबा दिया जाएगा। मदर नेचर से प्रेम करने वाले पीएम के रहते जंगलों को बर्बाद करने का ठेका अडानी को दे दिया जाएगा। आदि-आदि-आदि।
चलिए, मान लिया कि सरकार बिजनेस न करे। लेकिन, जो बिजनेस कर रहे है, उनकी हालत तो ठीक कीजिए, उनकी पुकार तो सुनिए। आखिर आपका कौन सा मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस मॉडल है, जहा टेक्सटाइल असोसियेशन को अपना दुखड़ा विज्ञापन दे कर बताना पड़ता है। ये कौन सा इज ऑफ डूइंग बिजनेस मॉडल है, जहां 5 रुपये का बिस्कुट और 50 रुपये का कच्छा तक नहीं बिक पा रहा है। सड़के लगातार बन रही है, जनता के पैसे खर्च कर के और आर्थिक हालात ये है कि आटो सेक्टर को 35 फीसदी तक का बिक्री नुकसान उठाना पड़ रहा है।
लेकिन, राजनीतिक संवेदनाहीनता की पराकाष्ठा देखिए कि देश के पीएम दिल्ली में भाषण देते हैं कि जिनकी दलाली नहीं चल रही है, वही रोजगार का शोर मचा रहे है। ये राजनीतिक निष्ठुरता आखिर आती कहाँ से है? पीएम मोदी आरएसएस के प्रचारक रहे हैं। देश घूमा है उन्होने। उनको पता है कि दिल्ली देश नहीं है। असली देश तो गांवों में है। वहाँ के लोगों की हालत, क्रय शक्ति का घटता स्तर तो पता लगाना चाहिए उनको। वे दूसरे टर्म पीएम बने है। कम से कम 10 साल पीएम रहेगे ही। ये भी कोई कम बड़ी उपलब्धि नहीं है। फिर भी वे क्यों डरते है आरोप लगाने वालो से, सवाल पूछने वालो से। ये लोकतन्त्र है। यहा अभिमान से नहीं अपनेपन से देश चलता है। सवाल पूछने वाले भी उनके अपने ही है।
सर, देश से बड़ा कुछ नहीं। और देश का सीधा-सरल मतलब है, देश के 130 करोड़ लोगा। बाकी, राष्ट्रों का भूगोल तो बदलता ही रहता है। 70 साल पहले का भारतीय भूगोल आज के जैसा नहीं था। तो देश के लोगों की चिंता कीजिए। पैसा-कौड़ी का इंतजाम कीजिए। क्या है कि खाली पेट भजन तक नहीं होता, व्यक्ति पूजा कब तक चलेगा?
अंतिम और महत्वपूर्ण बात, फिलहाल डॉक्टर मनमोहन सिंह से बेहतर कोई अर्थशास्त्री भाजपा वालों के पास नहीं है। टैम बैम सुब्रमणीयन स्वामी है, लेकिन वे स्पोयलड जीनियस है। तो मोदी सर, प्लीज जाइए, जा कर सिंह साहब से मिलिए, कुछ टिप्स लीजिए। चाहे तो काली-अंधेरी रात में मिलिए, चाहे तो दिन के उजाले में। अपने अभिमान को किनारे रखिए। देश से बड़ा कुछ नहीं होता। भारतीय संस्कृति में राम ने रावण से भी शिक्षा लेने को सही बताया है। सिंह साहब तो फिर भी सज्जन आदमी हैं...
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
हमारी मानसिक स्थिति का अंदाजा इस बात से लगा सकते है कि हमें एक औसत भाषण (नामग्याल) भी ऐतिहासिक लग जाता है। उस भाषण की खासियत सिर्फ इतनी थी की उसमें हर बात के लिए कांग्रेस को दोषी ठहराया गया। तो, आजकल आलम ये है कि एक रिक्शे वाले से कांग्रेस को 100 गाली दिलवाइए, उसका वीडियो बना कर यूट्यूब पर डालिए, 4-5 लाख व्यू मिलना तय है। इसके बाद, चाहे तो वो रिक्शावाला भी खुद को देश का सबसे निडर, भरोसेमंद और विश्वसनीय पत्रकार का तमगा दे कर चमक सकता है।
ये बैकग्राउंडर इसलिए कि “मुसलमान” नामक एनिस्थेसिया से हम जिस कदर नीमबेहोश हो गए है, हमें पता ही नहीं कि हम कहाँ जा रहे है? हमारी मानसिक दुर्दशा की इंतहा देखिए कि हम 370 से इसलिए खुश हुए जा रहे है कि “मियां सब” का इलाज हो रहा है। हम अपनी आर्थिक दुर्दशा (मंदी) के लिए सरकार से इसलिए सवाल नहीं पूछ रहे है कि हमें लगता है कि हमारी इस दुर्दशा के लिए भी “मियां” सब की बढ़ती जनसंख्या ही जिम्मेदार है। भले हम अपने 100 करोड़ की आबादी को दोष न दे। ये तो समाज का हाल है। एक शब्द में कहे तो समाज ही सैडिस्टिक पर्सनाल्टी डिसॉर्डर से ग्रसित बना दिया गया है।
लेकिन, राजनीति, खास कर सत्ताधारी दल की राजनीति किस दिशा में जा रही है? भाजपा का मौजूदा शीर्ष नेतृत्व ने अपनी सरकार की पहचान शॉक ट्रीटमेंट देने वाले की बना ली है। इस आशा में कि लोगों को ये सब अच्छा लगेगा। लग भी रहा है। लेकिन, काम के नाम पर क्या हो रहा है? आज इनके पास ढंग का एक अर्थशास्त्री तक नहीं है, जो सही सलाह तक दे सके। जो थे, भाग गए, भगा दिए गए।
पिछले 5 साल नेहरू ने काम नहीं करने दिया, अब कश्मीर है, चिदंबरम है, वाड्रा बाकी है। ठीक है, ये सब भी करिए, लेकिन काम? काम की बात करते ही तमाम तरह के “काम” सामने आ जाते है। मसलन, सरकार कहेगी कि सरकार का काम बिजनेस करना नहीं है। इसलिए, रेलवे का भी निजीकरण होगा, बीसएनएल को डूबा दिया जाएगा। मदर नेचर से प्रेम करने वाले पीएम के रहते जंगलों को बर्बाद करने का ठेका अडानी को दे दिया जाएगा। आदि-आदि-आदि।
चलिए, मान लिया कि सरकार बिजनेस न करे। लेकिन, जो बिजनेस कर रहे है, उनकी हालत तो ठीक कीजिए, उनकी पुकार तो सुनिए। आखिर आपका कौन सा मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस मॉडल है, जहा टेक्सटाइल असोसियेशन को अपना दुखड़ा विज्ञापन दे कर बताना पड़ता है। ये कौन सा इज ऑफ डूइंग बिजनेस मॉडल है, जहां 5 रुपये का बिस्कुट और 50 रुपये का कच्छा तक नहीं बिक पा रहा है। सड़के लगातार बन रही है, जनता के पैसे खर्च कर के और आर्थिक हालात ये है कि आटो सेक्टर को 35 फीसदी तक का बिक्री नुकसान उठाना पड़ रहा है।
लेकिन, राजनीतिक संवेदनाहीनता की पराकाष्ठा देखिए कि देश के पीएम दिल्ली में भाषण देते हैं कि जिनकी दलाली नहीं चल रही है, वही रोजगार का शोर मचा रहे है। ये राजनीतिक निष्ठुरता आखिर आती कहाँ से है? पीएम मोदी आरएसएस के प्रचारक रहे हैं। देश घूमा है उन्होने। उनको पता है कि दिल्ली देश नहीं है। असली देश तो गांवों में है। वहाँ के लोगों की हालत, क्रय शक्ति का घटता स्तर तो पता लगाना चाहिए उनको। वे दूसरे टर्म पीएम बने है। कम से कम 10 साल पीएम रहेगे ही। ये भी कोई कम बड़ी उपलब्धि नहीं है। फिर भी वे क्यों डरते है आरोप लगाने वालो से, सवाल पूछने वालो से। ये लोकतन्त्र है। यहा अभिमान से नहीं अपनेपन से देश चलता है। सवाल पूछने वाले भी उनके अपने ही है।
सर, देश से बड़ा कुछ नहीं। और देश का सीधा-सरल मतलब है, देश के 130 करोड़ लोगा। बाकी, राष्ट्रों का भूगोल तो बदलता ही रहता है। 70 साल पहले का भारतीय भूगोल आज के जैसा नहीं था। तो देश के लोगों की चिंता कीजिए। पैसा-कौड़ी का इंतजाम कीजिए। क्या है कि खाली पेट भजन तक नहीं होता, व्यक्ति पूजा कब तक चलेगा?
अंतिम और महत्वपूर्ण बात, फिलहाल डॉक्टर मनमोहन सिंह से बेहतर कोई अर्थशास्त्री भाजपा वालों के पास नहीं है। टैम बैम सुब्रमणीयन स्वामी है, लेकिन वे स्पोयलड जीनियस है। तो मोदी सर, प्लीज जाइए, जा कर सिंह साहब से मिलिए, कुछ टिप्स लीजिए। चाहे तो काली-अंधेरी रात में मिलिए, चाहे तो दिन के उजाले में। अपने अभिमान को किनारे रखिए। देश से बड़ा कुछ नहीं होता। भारतीय संस्कृति में राम ने रावण से भी शिक्षा लेने को सही बताया है। सिंह साहब तो फिर भी सज्जन आदमी हैं...
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)