यह कविता उन्नाव पर नहीं चुनाव पर है..

Written by Ravish Kumar | Published on: July 30, 2019
यह कविता उन्नाव पर नहीं चुनाव पर है



इन दिनों सब चुप हो जाते हैं 
चुप्पी का कारण भी बताते हैं 
बस नज़रों को ज़रा सा तेज़ कर लेते हैं 
थोड़ा झुका भी लेते हैं 
इतना सा कारण बताते हैं 
क्यूंकि कोई विकल्प भी नहीं है 
राहुल गाँधी में दम ही नहीं है 
यह बताने के बाद डिस्कवरी चैनल देखते हैं
जिस पर यह ख़बर नहीं आती है 
लोग तिरंगा लेकर निकले थे कठुआ में 
बलात्कारियों की रिहाई के लिए 
जिस पर यह ख़बर नहीं आती कि पुलवामा में 
40 जवान उड़ा दिए गए आतंकी हमले में 
उनकी ताबूत पर रखा गया था तिरंगा 
जिसे लेकर लोग बचाने निकले थे बलात्कारियों को 
लोगों का कोई कसूर नहीं था 
क्यूंकि उनके सामने और कोई विकल्प नहीं था 
राहुल गाँधी में दम नहीं था 
यह बताने के बाद डिस्कवरी चैनल देखते हैं
जिस पर यह ख़बर नहीं आती है 
उन्नाव की उस लड़की के पिता को मार दिया गया 
जिसका बलात्कार हुआ था 
महीनों बलात्कारी को पुलिस हाथ न लगा सकी 
एक दिन जब डिस्कवरी पर नया शो आ रहा था 
लड़की की कार के सामने ट्रक आ रहा था 
उसकी माँ की हत्या कर दी जाती है 
उसके वकील की हत्या कर दी जाती है 
बलात्कारी को बचाने के लिए इस बार तरीक़ा बदला है 
कठुआ में तिरंगा लेकर निकले थे 
उन्नाव में ट्रक लेकर निकले थे 
उन्नाव की उस लड़की के लिए 
वो घायल है 
वो बचेगी कोई नहीं जानता 
वो बचेगी तो किस दुख से मरेगी 
बलात्कार की पीड़ा से 
या 
माँ बाप के मार दिए जाने के ग़म से
लोगों की चुप्पी का जवाब कितना सरल है 
कभी तिरंगा है तो कभी ट्रक है 
इस लिए लोग अब घरों से नहीं निकलते हैं 
वे इन दिनों डिस्कवरी चैनल देखते हैं 
आख़िर कौन सा चैनल देखें 
और कोई विकल्प भी तो नहीं है 
यह प्रसून जोशी की कविता नहीं है 
वैसे जोशी जी अब भी लिखते तो हैं 
जब भी लिखनी होती है 
कविता के ख़िलाफ़ कविता 
चिट्ठी के ख़िलाफ़ चिट्ठी 
वो लिख सकते थे एक क्रन्तिकारी गीत 
मगर और कोई विकल्प भी नहीं है 
राहुल गाँधी में दम ही नहीं है
चुप रहने के ये दो बहाने नहीं हैं 
हमारे समय के क्रन्तिकारी गीत हैं 
अब बलात्कार की शिकार लडकियां 
देश की बेटियां नहीं होती हैं 
क्यूंकि और कोई विकल्प भी नहीं है

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