नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती नजरबंद हैं। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा मुफ्ती की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई हुई। अदालत ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन से सवाल किया कि महबूबा मुफ्ती को कबतक हिरासत में रखा जा सकता है? अदालत ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन को अपना रूख स्पष्ट करने को कहा है। अदालत ने यह भी पूछा कि क्या महबूबा मुफ्ती की हिरासत को आगे बढ़ाया जा सकता है। अदालत ने इल्तिजा की संशोधित याचिका पर केंद्र पर एक सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा है। इस मामले में अगली सुनवाई 15 अक्टूबर को होगी। अदालत ने यह भी कहा कि उनकी हिरासत हमेशा के लिए नहीं हो सकती है।
श्रीनगर के जिला मजिस्ट्रेट ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने हलफनामे में कहा है, याचिकाकर्ता को पहले हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना चाहिए था। उन्होंने अपील की कि याचिका खारिज होनी चाहिए क्योंकि उपलब्ध उपाय के रूप में महबूबा अपने प्रतिनिधित्व के साथ सलाहकार बोर्ड से संपर्क कर सकती हैं। महबूबा को सार्वजनिक व्यवस्था के खिलाफ कार्य करने से रोकने के लिए हिरासत में लिया गया। हिरासत के लिए आधार पर्याप्त सामग्री और आधार मौजूद हैं।
इल्तिजा ने अपनी याचिका में अदालत को बताया कि जेल में कैद मुफ्ती को उनसे नहीं मिलने दिया जा रहा है। इस पर कोर्ट ने इल्तिजा और उसके भाई को हिरासत में महबूबा से मिलने की अनुमति दी है। हालांकि राजनीतिक नेताओं से मिलने आदि के लिए महबूबा की अनुमति के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सामान्य अनुमति नहीं दी जा सकती है, लेकिन वह संबंधित अधिकारियों को आवेदन कर सकते हैं।
इल्तिजा ने अदालत से आग्रह किया था कि उनकी मां को राजनीतिक गतिविधियां शुरू करने की इजाजत दी जाए। उन्होंने कहा कि उनकी मां एक राजनीतिक पार्टी की अध्यक्ष हैं। इसलिए उन्हें अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करने करने दिया जाए। उन्हें अपने लोगों, पार्टी के पदाधिकारियों, कार्यकर्ताओं और आम लोगों से मिलने-बातचीत करने की छूट दी जाए। बता दें कि महबूबा को पांच अगस्त 2019 को हिरासत में लिया गया था। इसके बाद इसी साल फरवरी में उन्हें पीएसए के तहत बंदी बना लिया गया। इल्तिजा ने कहा कि उन्होंने अपनी मां को पीएसए के तहत बंदी बनाए जाने के फैसले को अदालत में चुनौती दी थी।
अब बुधवार को उन्होंने संशोधन याचिका दायर की। इसमें उन्होंने अपील की है कि सर्वोच्च अदालत जम्मू कश्मीर प्रशासन को निर्देश दे कि महबूबा मुफ्ती से उनके परिवार के लोगों और रिश्तेदारों को हफ्ते में पांच दिन मिलने का मौका दिया जाए। इसके अलावा उनके घर का लैंडलाइन फोन बहाल किया जाए। नई याचिका में कहा गया है कि बंदी बनाए जाने के लिए जारी डोजियर बेकार, असंवैधानिक और आधारहीन है। कानून का दुरुपयोग करते हुए जन सुरक्षा अधिनियम की धारा 83 की उपधारा 3 बी का भी उल्लंघन किया गया है।
श्रीनगर के जिला मजिस्ट्रेट ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने हलफनामे में कहा है, याचिकाकर्ता को पहले हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना चाहिए था। उन्होंने अपील की कि याचिका खारिज होनी चाहिए क्योंकि उपलब्ध उपाय के रूप में महबूबा अपने प्रतिनिधित्व के साथ सलाहकार बोर्ड से संपर्क कर सकती हैं। महबूबा को सार्वजनिक व्यवस्था के खिलाफ कार्य करने से रोकने के लिए हिरासत में लिया गया। हिरासत के लिए आधार पर्याप्त सामग्री और आधार मौजूद हैं।
इल्तिजा ने अपनी याचिका में अदालत को बताया कि जेल में कैद मुफ्ती को उनसे नहीं मिलने दिया जा रहा है। इस पर कोर्ट ने इल्तिजा और उसके भाई को हिरासत में महबूबा से मिलने की अनुमति दी है। हालांकि राजनीतिक नेताओं से मिलने आदि के लिए महबूबा की अनुमति के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सामान्य अनुमति नहीं दी जा सकती है, लेकिन वह संबंधित अधिकारियों को आवेदन कर सकते हैं।
इल्तिजा ने अदालत से आग्रह किया था कि उनकी मां को राजनीतिक गतिविधियां शुरू करने की इजाजत दी जाए। उन्होंने कहा कि उनकी मां एक राजनीतिक पार्टी की अध्यक्ष हैं। इसलिए उन्हें अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करने करने दिया जाए। उन्हें अपने लोगों, पार्टी के पदाधिकारियों, कार्यकर्ताओं और आम लोगों से मिलने-बातचीत करने की छूट दी जाए। बता दें कि महबूबा को पांच अगस्त 2019 को हिरासत में लिया गया था। इसके बाद इसी साल फरवरी में उन्हें पीएसए के तहत बंदी बना लिया गया। इल्तिजा ने कहा कि उन्होंने अपनी मां को पीएसए के तहत बंदी बनाए जाने के फैसले को अदालत में चुनौती दी थी।
अब बुधवार को उन्होंने संशोधन याचिका दायर की। इसमें उन्होंने अपील की है कि सर्वोच्च अदालत जम्मू कश्मीर प्रशासन को निर्देश दे कि महबूबा मुफ्ती से उनके परिवार के लोगों और रिश्तेदारों को हफ्ते में पांच दिन मिलने का मौका दिया जाए। इसके अलावा उनके घर का लैंडलाइन फोन बहाल किया जाए। नई याचिका में कहा गया है कि बंदी बनाए जाने के लिए जारी डोजियर बेकार, असंवैधानिक और आधारहीन है। कानून का दुरुपयोग करते हुए जन सुरक्षा अधिनियम की धारा 83 की उपधारा 3 बी का भी उल्लंघन किया गया है।