धराशायी होते रेत के महल और कल्पना की उड़ान

Written by Sanjay Kumar Singh | Published on: October 12, 2020
रिया चक्रवर्ती के खिलाफ पूरा जोर लगा लिया गया कुछ नहीं मिला। गिरफ्तारी से रिया और उसके परिवार का जो नुकसान हुआ हो एनसीबी और सरकार के साथ मीडिया का जो हुआ वह कम बुरा नहीं है। और अब पता चल रहा है कि रिया के खिलाफ बोलने वाली पड़ोसन सीबीआई के सामने अपने दावे की पुष्टि नहीं कर पाई। रिया के वकील अपना काम कर रहे हैं और हिसाब बराबर हो ना हो, सरकार कैसे काम कर रही है यह साफ होता जा रहा है। 



ऐसे में हाथरस मामले को जिस ढंग से हैंडल किया गया वह प्रशासनिक नालायकी के अलावा कुछ नहीं है। उसमें विदेशी साजिश की कहानी गढ़ना और बचकाना है। मार दिए जाने के डर से सार्वजनिक रूप से रोना एक बात है और अधिकार मिलने पर किसी को फंसाने और किसी को बचाने के लिए बचपना करना बिल्कुल अलग है। ठीक है कि बानर सेना पर नियंत्रण आसान नहीं है पर बानर सेना को क्या इशारा किया गया था वह दिख रहा है और उसे रोकने की कितनी कोशिश हुई यह भी। 

ऐसे में नक्सली भाभी करार दी गई डॉ राजकुमारी बंसल के बारे में जानना रीट्वीट, शेयर और फॉर्वार्ड करने वालों के लिए दिलचस्प होगा। पेश है Pankaj Chaturvedi की पोस्ट का संबंधित हिस्सा : वे जबलपुर के सुभाषचंद बोस मेडिकल कालेज में फमोकोलोजी की Demonstrator सहायक प्राध्यापक के समकक्ष पद पर कार्यरत हैं , उन्होंने जबलपुर से एमबीबीएस और इंदौर से फोरेंसिक साइंस में एम डी किया, उनके पति भी निश्चेतक में एम डी हैं और मेडिकल कालेज में ही हैं , उनका बेटा भी फोरेंसिक साइंस में एम डी है । डॉ बंसल कई सामाजिक संगठनों से जुडी हैं ।

फॉरेन्सिक साइंस से जुडी होने के कारण उनका अध्ययन का विषय था कि किस तरह बलात्कार के केस को ओनर किलिंग में बदला जाता है , वे बाकायदा कालेज से छुट्टी ले कर गयीं थीं , पहले ही दिन हाथरस में लड़की के घर वालों ने उन्हें अपने साथ रुकने को कहा क्योंकि वहां आ रही भीड़, उठ रहे सवालों के जवाब देने में वे सक्षम नहीं थे।

तनिक सोचें, मेडिकल कालेज के एक प्रोफ़ेसर यदि ठेठ गाँव में एक कमरे के मकान में किसी के साथ रुकती है तो उसके विषय के प्रति समर्पण को समझना जरुरी है।

इधर लापरवाही सहित कई आरोपों में घिरी उत्तर प्रदेश पुलिस की सौ करोड़ के विदेशी फंड से दंगे सहित अधिकाँश कल्पनाएँ झूठी साबित हुयीं तो अचानक नक्सल एंगल कुलबुलाया और डॉ राजकुमारी बंसल को नक्सल बना दिया। उन्होंने कहा, 'मेरा पीड़ित परिवार से कोई रिश्ता नहीं है। मैं केवल इंसानियत के नाते हाथरस पीड़ित के घर गई थी।'

डॉ राजकुमारी बंसल ने बताया, ' उनको अच्छा लगा कि हमारे समाज की एक लड़की इतने दूर से आई है, तो उन्होंने वहीं रुक जाने को कहा था। जिसके बाद में वहीं रुक गई। मैं पीड़ित परिवार की आर्थिक मदद करना चाहती थी।'

एसआईटी की जांच पर सवाल खड़ा करते हुए डॉ बंसल ने कहा कि पहले सबूत वह पेश करें। वहीं, बोलना और आरोप लगाना बहुत आसान होता है।
डॉ बंसल ने कहा कि एक फॉरेंसिक एक्सपर्ट होने के नाते वे पीड़िता के इलाज से संबंधित दस्तावेज जांचना चाहती थी, लेकिन उन्हें दस्तावेज देखने नहीं मिले। उन्होंने कहा कि हाथरस की घटना ने उन्हें अंदर से झकझोर दिया था। लिहाजा पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने की लड़ाई में साथ देने ही वे हाथरस पहुंची थी।राजकुमारी बंसल ने लगाया अपने फोन की टैपिंग का आरोप, जबलपुर सायबर सेल में शिकायत दर्ज कराई|

विडम्बना है कि बगैर किसी स्वार्थ के किसी के कहीं पहुँचने पर हम शक करते हैं और अपने दिमाग में दर्ज पूर्व नियोजित धारणाओं के साथ उस पर लेबल थोप देते हैं , यह सामजिक विग्रह और सह अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा है और इसका दुष्परिणाम समूचे समाज को जल्द भोगना होगा। 

सबसे बड़ी बात हमारी जांच एजेंसियां पहले ही कुछ लोगों को आरोपी मान लेती हैं, फिर उनके इर्द गिर्द कहानी और फर्जी तथ्य गढ़ती हैं, उसके बाद बगैर पुष्टि के उसे मीडया के माध्यम से बदनाम कर देती हैं। सबसे शर्मनाक तो टीवी मीडिया है जो सनसनी की गिरफ्त में गैर जिम्मेदाराना, तथ्यहीन और नीच हो गया है।

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