आजादी के बाद एक देश एक चुनाव से ही शुरुआत हुई थी। पर आयाराम-गयाराम की राजनति से लेकर राजभवनों में खेली जाने वाली राजनीति का नतीजा यह रहा कि चुनाव आगे पीछे हो गया। पहले की व्यवस्था का लाभ पहले के सत्तारूढ़ दल ने उठाया। अब जो दल सत्तारूढ़ है वह अपना लाभ क्यों ना सोचे। सारा राजनीति उसे खेल का हिस्सा है और इसके तहत तय योजना के अनुसार मशहूर मौसम विज्ञानी, राम विलास पासवान का राज्यसभा में जाना तय है। वंशवाद का विरोध करते हुए नरेन्द्र मोदी ने पासवान के भाई-बच्चों के जीतने का इंतजाम कर दिया था और अब बुजुर्ग हो रहे राम विलास पासवान ने राज्यसभा में जगह मांगी थी। इसलिए, केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी के मुखिया राम विलास पासवान सोमवार को पटना में बिहार विधान सभा में एनडीए के उम्मीदवार के रूप में राज्यसभा के लिए नामांकन दाखिल करेंगे।
दूसरी ओर, राहुल गांधी को अमेठी से हराने की व्यवस्था के तहत राज्यसभा सदस्य स्मृति ईरानी राज्य सभा की सदस्य रहते हुए लोकसभा चुनाव लड़कर जीत चुकी हैं और राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। अमित शाह के मामले में भी ऐसा ही है। अब इन दो सीटों पर उपचुनाव होंगे। और सरकार एक देश एक चुनाव पर चर्चा कर रही है, समिति बनी है। बिहार में बच्चे मर रहे हैं तो आईसीयू में रिपोर्टर को नहीं घुसना चाहिए। मरने का क्या है, बच्चे हैं मरते रहते हैं। जून में बिहार के अगस्त में उत्तर प्रदेश के .... चलता रहेगा।
मैं विषयांतर हो गया। एक देश एक चुनाव की बात हो रही है और इस बार अकेले उत्तर प्रदेश के 11 विधायक सांसद बन गए हैं। और इनमें आठ भारतीय जनता पार्टी के हैं। अगर बार-बार चुनाव कराने में पैसे खर्च होते हैं, बचाना है तो आप अपनी ओर से कोशिश शुरू कर देंगे या कानून बनने का इंतजार करेंगे? भाजपा को पता था कि उसे 300 से ज्यादा सीटें मिल रही हैं (यह भाजपा ने ही कहा है) फिर भी उसने आठ ऐसे विधायकों को लोकसभा चुनाव लड़ाया जो जीत गए। पर मुद्दा एक देश एक चुनाव है।
यह सब तब हुआ जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2017 से ही लगातार इस बात पर जोर दे रहे हैं कि देश में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जाने चाहिए। बीजेपी के उपाध्यक्ष विनय सहस्त्रबुद्धे ने प्रधानमंत्री को 'एक देश, एक चुनाव' पर हुई कथित पब्लिक डिबेट की रिपोर्ट भी सौंपी है। यह अलग बात है कि इन तैयारियों और जीत के भरोसे के साथ एक देश एक चुनाव के प्रति आस्था के बावजूद, उत्तर प्रदेश सरकार में सहकारिता मंत्री मुकुट बिहारी वर्मा को अंबेडकरनगर से लोकसभा चुनाव का उम्मीदवार बनाया गया था पर वे बसपा के रीतेश पांडे से हार गए।
यही नहीं, मुद्दा लोकसभा-विधानसभा चुनाव साथ कराने का है। लेकिन इसे 'एक देश एक चुनाव' कहा जा रहा है। क्यों? इस बारे में कुछ कहने की जरूरत नहीं है। तथ्यों से इतनी घटतोली कौन रोक सकता है। पर सच यही है कि अगर केंद्र सरकार (असल में भाजपा) की यह इच्छा पूरी भी हो जाए तो एक देश में लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा के चुनाव मौजूदा सात चरणों की जगह पांच या दस चरण में हो जाएं पर होते रहेंगे और कई बार होंगे। यह अलग बात है कि इसे कम करने के लिए जो प्रस्ताव हैं वो कम नहीं हैं। हालांकि इससे भाजपा को फायदा होगा, कैसे क्या यह बताने की जरूरत नहीं है। क्योंकि ऐसा नहीं होता तो भाजपा क्यों माथा पच्ची करती।
एक देश एक चुनाव की योजना के पांच बिन्दु इस प्रकार हैं। 1. देश में एक साथ चुनाव कराने से अविश्वास प्रस्ताव और सदन भंग करने जैसे मामलों में भी मदद मिलेगी। 2. सदन में अविश्वास प्रस्ताव लाते हुए विपक्षी पार्टियों को अगली सरकार के समर्थन में विश्वास प्रस्ताव भी लाना जरूरी होगा। यह समय से पहले सदन भंग होने की स्थिति को टालने के लिए है। 3. उपचुनाव की स्थिति में दूसरी जगह रहने वाले व्यक्ति को विजेता घोषित किया जा सकता है, अगर किसी कारणवश सीट खाली होती है। (यह नेताओं को मिलने वाली एक और सुविधा होगी)। 4. चुनावों से जनता को होने वाली परेशानी की आलोचना की गई है। एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश का आधार यही है। और यह काम 2019 में ही शुरू होना था। आधा अभी और आधा 2021 में जब बाकी राज्यों में विधानसभा चुनाव कराए जाने की योजना थी।
उधर, एक भाजपा नेता एक व्यक्ति एक पद से भी संतुष्ट नहीं हैं। बेंगलुरु में कडुगोडी वॉर्ड के पार्षद एस मुनीस्वामी अब सांसद बन गए हैं। उनका कहना है कि वह अपने पार्षद का पद नहीं छोड़ेंगे क्योंकि कर्नाटक म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन ऐक्ट 1976 में इस बारे में कुछ नहीं लिखा है। लो, कल्ल लो बात। मेरा देश बदल रहा है। बदलकर रहेगा। 2024 में नहीं तो 2029 में।
दूसरी ओर, राहुल गांधी को अमेठी से हराने की व्यवस्था के तहत राज्यसभा सदस्य स्मृति ईरानी राज्य सभा की सदस्य रहते हुए लोकसभा चुनाव लड़कर जीत चुकी हैं और राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। अमित शाह के मामले में भी ऐसा ही है। अब इन दो सीटों पर उपचुनाव होंगे। और सरकार एक देश एक चुनाव पर चर्चा कर रही है, समिति बनी है। बिहार में बच्चे मर रहे हैं तो आईसीयू में रिपोर्टर को नहीं घुसना चाहिए। मरने का क्या है, बच्चे हैं मरते रहते हैं। जून में बिहार के अगस्त में उत्तर प्रदेश के .... चलता रहेगा।
मैं विषयांतर हो गया। एक देश एक चुनाव की बात हो रही है और इस बार अकेले उत्तर प्रदेश के 11 विधायक सांसद बन गए हैं। और इनमें आठ भारतीय जनता पार्टी के हैं। अगर बार-बार चुनाव कराने में पैसे खर्च होते हैं, बचाना है तो आप अपनी ओर से कोशिश शुरू कर देंगे या कानून बनने का इंतजार करेंगे? भाजपा को पता था कि उसे 300 से ज्यादा सीटें मिल रही हैं (यह भाजपा ने ही कहा है) फिर भी उसने आठ ऐसे विधायकों को लोकसभा चुनाव लड़ाया जो जीत गए। पर मुद्दा एक देश एक चुनाव है।
यह सब तब हुआ जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2017 से ही लगातार इस बात पर जोर दे रहे हैं कि देश में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जाने चाहिए। बीजेपी के उपाध्यक्ष विनय सहस्त्रबुद्धे ने प्रधानमंत्री को 'एक देश, एक चुनाव' पर हुई कथित पब्लिक डिबेट की रिपोर्ट भी सौंपी है। यह अलग बात है कि इन तैयारियों और जीत के भरोसे के साथ एक देश एक चुनाव के प्रति आस्था के बावजूद, उत्तर प्रदेश सरकार में सहकारिता मंत्री मुकुट बिहारी वर्मा को अंबेडकरनगर से लोकसभा चुनाव का उम्मीदवार बनाया गया था पर वे बसपा के रीतेश पांडे से हार गए।
यही नहीं, मुद्दा लोकसभा-विधानसभा चुनाव साथ कराने का है। लेकिन इसे 'एक देश एक चुनाव' कहा जा रहा है। क्यों? इस बारे में कुछ कहने की जरूरत नहीं है। तथ्यों से इतनी घटतोली कौन रोक सकता है। पर सच यही है कि अगर केंद्र सरकार (असल में भाजपा) की यह इच्छा पूरी भी हो जाए तो एक देश में लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा के चुनाव मौजूदा सात चरणों की जगह पांच या दस चरण में हो जाएं पर होते रहेंगे और कई बार होंगे। यह अलग बात है कि इसे कम करने के लिए जो प्रस्ताव हैं वो कम नहीं हैं। हालांकि इससे भाजपा को फायदा होगा, कैसे क्या यह बताने की जरूरत नहीं है। क्योंकि ऐसा नहीं होता तो भाजपा क्यों माथा पच्ची करती।
एक देश एक चुनाव की योजना के पांच बिन्दु इस प्रकार हैं। 1. देश में एक साथ चुनाव कराने से अविश्वास प्रस्ताव और सदन भंग करने जैसे मामलों में भी मदद मिलेगी। 2. सदन में अविश्वास प्रस्ताव लाते हुए विपक्षी पार्टियों को अगली सरकार के समर्थन में विश्वास प्रस्ताव भी लाना जरूरी होगा। यह समय से पहले सदन भंग होने की स्थिति को टालने के लिए है। 3. उपचुनाव की स्थिति में दूसरी जगह रहने वाले व्यक्ति को विजेता घोषित किया जा सकता है, अगर किसी कारणवश सीट खाली होती है। (यह नेताओं को मिलने वाली एक और सुविधा होगी)। 4. चुनावों से जनता को होने वाली परेशानी की आलोचना की गई है। एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश का आधार यही है। और यह काम 2019 में ही शुरू होना था। आधा अभी और आधा 2021 में जब बाकी राज्यों में विधानसभा चुनाव कराए जाने की योजना थी।
उधर, एक भाजपा नेता एक व्यक्ति एक पद से भी संतुष्ट नहीं हैं। बेंगलुरु में कडुगोडी वॉर्ड के पार्षद एस मुनीस्वामी अब सांसद बन गए हैं। उनका कहना है कि वह अपने पार्षद का पद नहीं छोड़ेंगे क्योंकि कर्नाटक म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन ऐक्ट 1976 में इस बारे में कुछ नहीं लिखा है। लो, कल्ल लो बात। मेरा देश बदल रहा है। बदलकर रहेगा। 2024 में नहीं तो 2029 में।