2 अक्टूबर 2018 को गुजरात के दांडी से शुरू हुई 'संविधान सम्मान यात्रा' 26 राज्यों से होकर शनिवार को यूपी के सहारनपुर पंहुची. यहां अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन के कार्यकारी अध्यक्ष एवं नगर विधायक सहारनपुर संजय गर्ग और महासचिव अशोक चौधरी इस यात्रा में शामिल लोगों का स्वागत किया। यूनियन की उपमहासचिव सुश्री रोमा ने महिला सशक्तिकरण पर रोशनी डालते हुए सुकालो तथा यात्रा में शामिल अन्य महिलाओं के साथ भारती राय चौधरी को श्रद्धाजंली अर्पित की. यात्रा में शामिल गुजरात से आये कृष्ण कान्त ने यात्रा का ब्यौरा दिया और कहा कि यह यात्रा केन्द्र सरकार द्वारा संविधान पर हो रहे कुठाराघात के खिलाफ एक राष्ट्रव्यापी विरोध है.
इस यात्रा में शामिल मीरा संघ मित्रा ने कहा कि यह यात्रा 10 दिसम्बर 2018 को दिल्ली के जन्तर-मन्तर पर समाप्त होगी जहां आपका स्वागत है। मंच संचालक मुन्नी लाल ने संविधान की प्रस्तावना को पढ़ते हुए बाबा साहेब भीमराव अम्बेड़कर की इस आशा का उल्लेख किया कि एक न एक दिन हमारा समाज जरूर जागरूक होगा।
विधायक संजय गर्ग ने यात्रा में शामिल सभी लोगों का स्वागत करते हुए कहा कि यह यात्रा इंसानियत, भाईचारे, समानता और समान अधिकारों को प्राप्त करने के महान उदेदश्यों को लेकर निकली देश की आजादी के बाद की दूसरी सबसे बडी लडाई है। इसमें संविधान में दिए गए बुनियादी अधिकारों को प्राप्त करने के लिये पूरे देश से बडी तादात में लोग शामिल हो रहे हैं। उन्होंने अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन द्वारा अधिकारों को प्राप्त करने की लडाई लडने वालों के तौर पर सुकालो गौंण्ड का उदाहरण सभा के सामने रखा और बताया कि किस प्रकार भ्रष्ट और दमनकारी सत्ताधारी टोला अधिकार मांगने वालों को प्रताड़ित कर रहा है।
संजय गर्ग ने कहा कि हर जोर-जुल्म के बाद भी सुकालो जैसी कार्यकर्ता सत्ता के सामने नहीं झुकती, बहन सुकालो को बिना किसी जुर्म के 5 महीने सख्त जेल काटनी पड़ी जिसमें उसने अपनी फर्जी गिरफ्तारी के विरोध में 5 महीने तक ही खाना छोडे रखा और आखिरकार प्रशासन को उनकी विरोध शक्ति के आगे झुकना पड़ा. उन्होंने सुश्री रोमा का यह वाक्य भी दोहराया कि महिला शक्ति के बिना कोई लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती. उन्होंने अरूंधती घुरू और एस.आर दारापुरी के साथ मिलकर सशक्त महिला के रूप में युनियन की साथी सुकालो को सम्मानित किया। उन्होंने कहा कि आजाद भारत में समुदायों द्वारा संरक्षित वन्य सम्पदा को प्राईवेट कम्पनीयों को बेचा जा रहा है और समुदायों को ही वन्य अधिकार से वंचित किया जा रहा है.
विधायक संजय गर्ग ने कहा कि 70 साल बाद जो वनाधिकार कानून 2006 में बनाया गया था और जो 2008 में लागू किया गया उस पर पूंजीपतियों के इशारे पर आज भी सरकार किसी तरह का अमल नहीं कर रही है और आदिवासी आज भी अपने वनाधिकार के लिए भटकते फिर रहे हैं। विदेशियों के इशारे पर आदिवासियों दलितों और वनगुजरों को लगातार उजाड़ा जा रहा है।
संजय गर्ग ने कहा कि हद ही हो गई है कि पिछले चार साल में सरकार सभी संवैधानिक संस्थान जैसे संसद, सुप्रीम कोर्ट रिजर्व बैंक आदि को लगातार तोड़ने की कोशिश कर रही है अखबारों और देश के समस्त मीडिया का गला घोंट रही है। उन्होंने जोर देकर कहा कि वर्तमान सत्ताधारी हमें छदम मुद्दों में उलझाना चाहते हैं मगर हम धर्म जाति और सम्प्रदाय में विभाजित नहीं होंगे क्योंकि इसमें उलझाकर ही वे हमें शिक्षा रोजगार स्वास्थ्य और अन्य संवैधानिक अधिकारों से वंचित कर रहे हैं।
नर्मदा बचाओ आन्दोलन से जुड़ी मेधा पाटेकर जी ने अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन को सलाम पेश करते हुए कहा कि संविधान कोई कुरान, पुराण, मनुस्मृति या बाईबिल नहीं है, जब तक देश का हर नागरिक इसको समझकर इसका सम्मान नहीं करेगा तब तक यह संविधान मात्र एक कागज का टुकड़ा है इसे पढ़कर और समझकर ही हम अपने अधिकारों की लडाई लड सकते हैं। भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है पाकिस्तान की तरह एक धार्मिक देश नहीं और यह पहचान हमें हमारा संविधान ही देता है इसलिए हमें अपनी पहचान और इसकी रक्षा करनी होगी। यह यात्रा इसी जिम्मेदारी को याद दिलाने का एक सक्रिय जन आन्दोलन है। जन सभा में उपस्थित सोनभद्र से राजकुमारी, दिल्ली से उमेश बाबू एव सहारनपुर से मुन्नी लाल, का0 नईम काला, चाणुराम, जयप्रकाश व अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन के 300 महिला व पुरूष साथी रहे।
इस यात्रा में शामिल मीरा संघ मित्रा ने कहा कि यह यात्रा 10 दिसम्बर 2018 को दिल्ली के जन्तर-मन्तर पर समाप्त होगी जहां आपका स्वागत है। मंच संचालक मुन्नी लाल ने संविधान की प्रस्तावना को पढ़ते हुए बाबा साहेब भीमराव अम्बेड़कर की इस आशा का उल्लेख किया कि एक न एक दिन हमारा समाज जरूर जागरूक होगा।
विधायक संजय गर्ग ने यात्रा में शामिल सभी लोगों का स्वागत करते हुए कहा कि यह यात्रा इंसानियत, भाईचारे, समानता और समान अधिकारों को प्राप्त करने के महान उदेदश्यों को लेकर निकली देश की आजादी के बाद की दूसरी सबसे बडी लडाई है। इसमें संविधान में दिए गए बुनियादी अधिकारों को प्राप्त करने के लिये पूरे देश से बडी तादात में लोग शामिल हो रहे हैं। उन्होंने अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन द्वारा अधिकारों को प्राप्त करने की लडाई लडने वालों के तौर पर सुकालो गौंण्ड का उदाहरण सभा के सामने रखा और बताया कि किस प्रकार भ्रष्ट और दमनकारी सत्ताधारी टोला अधिकार मांगने वालों को प्रताड़ित कर रहा है।
संजय गर्ग ने कहा कि हर जोर-जुल्म के बाद भी सुकालो जैसी कार्यकर्ता सत्ता के सामने नहीं झुकती, बहन सुकालो को बिना किसी जुर्म के 5 महीने सख्त जेल काटनी पड़ी जिसमें उसने अपनी फर्जी गिरफ्तारी के विरोध में 5 महीने तक ही खाना छोडे रखा और आखिरकार प्रशासन को उनकी विरोध शक्ति के आगे झुकना पड़ा. उन्होंने सुश्री रोमा का यह वाक्य भी दोहराया कि महिला शक्ति के बिना कोई लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती. उन्होंने अरूंधती घुरू और एस.आर दारापुरी के साथ मिलकर सशक्त महिला के रूप में युनियन की साथी सुकालो को सम्मानित किया। उन्होंने कहा कि आजाद भारत में समुदायों द्वारा संरक्षित वन्य सम्पदा को प्राईवेट कम्पनीयों को बेचा जा रहा है और समुदायों को ही वन्य अधिकार से वंचित किया जा रहा है.
विधायक संजय गर्ग ने कहा कि 70 साल बाद जो वनाधिकार कानून 2006 में बनाया गया था और जो 2008 में लागू किया गया उस पर पूंजीपतियों के इशारे पर आज भी सरकार किसी तरह का अमल नहीं कर रही है और आदिवासी आज भी अपने वनाधिकार के लिए भटकते फिर रहे हैं। विदेशियों के इशारे पर आदिवासियों दलितों और वनगुजरों को लगातार उजाड़ा जा रहा है।
संजय गर्ग ने कहा कि हद ही हो गई है कि पिछले चार साल में सरकार सभी संवैधानिक संस्थान जैसे संसद, सुप्रीम कोर्ट रिजर्व बैंक आदि को लगातार तोड़ने की कोशिश कर रही है अखबारों और देश के समस्त मीडिया का गला घोंट रही है। उन्होंने जोर देकर कहा कि वर्तमान सत्ताधारी हमें छदम मुद्दों में उलझाना चाहते हैं मगर हम धर्म जाति और सम्प्रदाय में विभाजित नहीं होंगे क्योंकि इसमें उलझाकर ही वे हमें शिक्षा रोजगार स्वास्थ्य और अन्य संवैधानिक अधिकारों से वंचित कर रहे हैं।
नर्मदा बचाओ आन्दोलन से जुड़ी मेधा पाटेकर जी ने अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन को सलाम पेश करते हुए कहा कि संविधान कोई कुरान, पुराण, मनुस्मृति या बाईबिल नहीं है, जब तक देश का हर नागरिक इसको समझकर इसका सम्मान नहीं करेगा तब तक यह संविधान मात्र एक कागज का टुकड़ा है इसे पढ़कर और समझकर ही हम अपने अधिकारों की लडाई लड सकते हैं। भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है पाकिस्तान की तरह एक धार्मिक देश नहीं और यह पहचान हमें हमारा संविधान ही देता है इसलिए हमें अपनी पहचान और इसकी रक्षा करनी होगी। यह यात्रा इसी जिम्मेदारी को याद दिलाने का एक सक्रिय जन आन्दोलन है। जन सभा में उपस्थित सोनभद्र से राजकुमारी, दिल्ली से उमेश बाबू एव सहारनपुर से मुन्नी लाल, का0 नईम काला, चाणुराम, जयप्रकाश व अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन के 300 महिला व पुरूष साथी रहे।