उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के करीबी और समाजवादी चिंतक फ्रैंक हुजूर को मिले सरकारी बंगले को जबरन खाली करवा दिया है। लखनऊ के दिलकुशा कॉलोनी में उनको बंगला बी-5 आवंटित किया गया था। जहां वह अपनी किताबों और 38 बिल्लियों के साथ रहते थे। राज्य संपत्ति विभाग फोर्स के साथ वहां पहुंची और जबरन बंगला खाली कराया गया। फ्रैंक हुजूर की किताबों को भी बाहर फेंक दिया गया।
हालांकि बताया जा रहा है कि फ्रैंक हुजूर प्रतिमाह इस बंगले का किराया चुकाते थे ताकि कोई सरकारी बंगले के दुरूपयोग का आरोप न लगाए। समाजवादी चिंतक के साथ हुई इस घटना का विरोध अब सोशल मीडिया पर भी शुरू हो गया है। मनोज यादव नाम के फेसबुक यूजर्स ने एक लंबी पोस्ट लिखी है जिसमें दावा किया गया है कि फ्रैंक प्रतिमाह इस बंगले का किराया चुका रहे थे। बंगले को बलपूर्व खाली कराया गया है। सरकार कलम और किताबों से डर रही है। नीचे पढ़िए पूरा पोस्ट-
''समाजवादी फ्रैंक हुजूर की किताबें रोड पर फेंकी गई......
किताबों की बुलंद आवाज होती है और कलम की धार शमशीर से भी तेज होती है किताबों से डरती है सरकार, किताबें कितनी सशक्त आवाज होती हैं, किताबों को निकालने के लिए पुलिस लगानी पड़ रही है। योगी सरकार को, कलम लेकर फ्रैंक हुजूर इतने ताकतवर हो गए हैं कि उनको निकालने के लिए पूरी लखनऊ का प्रशासनिक अमला योगी के निर्देश पर एक समाजवादी विचारक चिंतक लेखक का बलपूर्वक घर खाली करा रही है कितनी डरती है कलम और किताबों से संघी सरकार..
आज दिलकुशा कॉलोनी लखनऊ स्थित समाजवादी विचारक चिंतक और लेखक और विश्व विख्यात साहित्यकार प्रैंक हुजूर का बंगला खाली कराने के लिए लखनऊ पुलिस का पूरा लाव लश्कर के साथ उनके आवास के सभी सामानों को बाहर निकालकर सड़क पर फेंक दिया।
फ्रैंक हुजूर के पास एक सूटकेस कपड़े के अलावा पूरे आवास में सिर्फ और सिर्फ समाजवादी चिंतन धारा की पुस्तकें लोहिया अंबेडकर जयप्रकाश नारायण मधु लिमए आचार्य नरेंद्र देव का साहित्य के अलावा कुछ नहीं था उन किताबों को सड़कों पर फेंक दिया गया है। जब मैंने यह तस्वीर देखा तो लगा की दुनिया में सबसे मजबूत और सशक्त आवाज किताबों की है क्योंकि किताबों से और कलम से हर समय काल का शासक डरता है।
उसी का नतीजा है कि संघ अपनी विचारधारा के विपरीत समाजवादी चिंतन धारा की साहित्यकार का आवास जबरदस्ती बिना कोई पूर्व सूचना और नोटिस के खाली करा रहा है और साथ ही अपने विरोधियों को कुचलने और उनकी वैचारिक की को दबाने के लिए किस हद तक संघ पोषित सरकारे काम कर रही है। दलित पिछड़े व अल्पसंख्यक तबके के लोगों को देखना चाहिए आज फ्रैक हुजूर का आवास खाली हो रहा है कल अन्य वंचित तबके के लोगों का भी आवास खाली होगा जो सरकार के खिलाफ या सरकार की नीतियों के खिलाफ मुखर है।
सनद रहे कि फ्रैंक हुजूर अपने आवास का 24000 प्रतिमाह किराया दे रहे थे कोई बाद मे यह न कहे कि सरकारी आवास का दुरुपयोग कर रहे थे।
दलित पिछड़े व अल्पसंख्यक तबके के नेताओं सामाजिक कार्यकर्ताओं नौकरी करने वाले धन पशु और चुनाव लड़ने वाले बड़े पैसे वाले लोगों से मैं कहना चाहता हूं कि तुम अपने चुनाव लड़ने के लिए हजारों करोड़ रूपया भले ही खर्च कर सकते हो लेकिन अपने विचारधारा और अपनी विचारधारा को सजों के रखने वाले एक व्यक्ति का तुम आवास नहीं बचा सके यह तुम्हारे पूरे सामाजिक चिंतन तुम्हारे धन और तुम्हारे वजूद पर मुझे कोफ्त होती है। और लखनऊ में उसे एक आवास उपलब्ध नहीं करा सके।
फ्रैंक हुजूर साहब आप का संघर्ष और जिजीविषा हम लोगों को प्रेरित करती रहेगी और आप की इस लड़ाई में हम साथ हैं।''
हालांकि बताया जा रहा है कि फ्रैंक हुजूर प्रतिमाह इस बंगले का किराया चुकाते थे ताकि कोई सरकारी बंगले के दुरूपयोग का आरोप न लगाए। समाजवादी चिंतक के साथ हुई इस घटना का विरोध अब सोशल मीडिया पर भी शुरू हो गया है। मनोज यादव नाम के फेसबुक यूजर्स ने एक लंबी पोस्ट लिखी है जिसमें दावा किया गया है कि फ्रैंक प्रतिमाह इस बंगले का किराया चुका रहे थे। बंगले को बलपूर्व खाली कराया गया है। सरकार कलम और किताबों से डर रही है। नीचे पढ़िए पूरा पोस्ट-
''समाजवादी फ्रैंक हुजूर की किताबें रोड पर फेंकी गई......
किताबों की बुलंद आवाज होती है और कलम की धार शमशीर से भी तेज होती है किताबों से डरती है सरकार, किताबें कितनी सशक्त आवाज होती हैं, किताबों को निकालने के लिए पुलिस लगानी पड़ रही है। योगी सरकार को, कलम लेकर फ्रैंक हुजूर इतने ताकतवर हो गए हैं कि उनको निकालने के लिए पूरी लखनऊ का प्रशासनिक अमला योगी के निर्देश पर एक समाजवादी विचारक चिंतक लेखक का बलपूर्वक घर खाली करा रही है कितनी डरती है कलम और किताबों से संघी सरकार..
आज दिलकुशा कॉलोनी लखनऊ स्थित समाजवादी विचारक चिंतक और लेखक और विश्व विख्यात साहित्यकार प्रैंक हुजूर का बंगला खाली कराने के लिए लखनऊ पुलिस का पूरा लाव लश्कर के साथ उनके आवास के सभी सामानों को बाहर निकालकर सड़क पर फेंक दिया।
फ्रैंक हुजूर के पास एक सूटकेस कपड़े के अलावा पूरे आवास में सिर्फ और सिर्फ समाजवादी चिंतन धारा की पुस्तकें लोहिया अंबेडकर जयप्रकाश नारायण मधु लिमए आचार्य नरेंद्र देव का साहित्य के अलावा कुछ नहीं था उन किताबों को सड़कों पर फेंक दिया गया है। जब मैंने यह तस्वीर देखा तो लगा की दुनिया में सबसे मजबूत और सशक्त आवाज किताबों की है क्योंकि किताबों से और कलम से हर समय काल का शासक डरता है।
उसी का नतीजा है कि संघ अपनी विचारधारा के विपरीत समाजवादी चिंतन धारा की साहित्यकार का आवास जबरदस्ती बिना कोई पूर्व सूचना और नोटिस के खाली करा रहा है और साथ ही अपने विरोधियों को कुचलने और उनकी वैचारिक की को दबाने के लिए किस हद तक संघ पोषित सरकारे काम कर रही है। दलित पिछड़े व अल्पसंख्यक तबके के लोगों को देखना चाहिए आज फ्रैक हुजूर का आवास खाली हो रहा है कल अन्य वंचित तबके के लोगों का भी आवास खाली होगा जो सरकार के खिलाफ या सरकार की नीतियों के खिलाफ मुखर है।
सनद रहे कि फ्रैंक हुजूर अपने आवास का 24000 प्रतिमाह किराया दे रहे थे कोई बाद मे यह न कहे कि सरकारी आवास का दुरुपयोग कर रहे थे।
दलित पिछड़े व अल्पसंख्यक तबके के नेताओं सामाजिक कार्यकर्ताओं नौकरी करने वाले धन पशु और चुनाव लड़ने वाले बड़े पैसे वाले लोगों से मैं कहना चाहता हूं कि तुम अपने चुनाव लड़ने के लिए हजारों करोड़ रूपया भले ही खर्च कर सकते हो लेकिन अपने विचारधारा और अपनी विचारधारा को सजों के रखने वाले एक व्यक्ति का तुम आवास नहीं बचा सके यह तुम्हारे पूरे सामाजिक चिंतन तुम्हारे धन और तुम्हारे वजूद पर मुझे कोफ्त होती है। और लखनऊ में उसे एक आवास उपलब्ध नहीं करा सके।
फ्रैंक हुजूर साहब आप का संघर्ष और जिजीविषा हम लोगों को प्रेरित करती रहेगी और आप की इस लड़ाई में हम साथ हैं।''