फ़िरोज़ाबाद की एक स्थानीय अदालत ने पुलिस द्वारा दायर की गई क्लोज़र रिपोर्ट का निपटारा करते हुए पांच मौतों के मामले में 'शिकायत मामले' दर्ज करने का आदेश दिया है।
45 वर्षीय शफीक का शोक संतप्त परिवार।
फ़िरोज़ाबाद (उत्तर प्रदेश)/नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के फ़िरोज़ाबाद में 20 दिसंबर, 2019 को नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के विरोध में हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान मारे गए सात लोगों में से पांच के परिवारों को एक उम्मीद की किरण दिखाई दी है। एक स्थानीय अदालत द्वारा राज्य पुलिस द्वारा दायर की गई क्लोजर रिपोर्ट के निपटारे के बाद 'शिकायत मामले' दर्ज किए जाने के बाद न्याय की उम्मीद जगी है।
इस प्रक्रिया में, शिकायत या तो मौखिक या लिखित रूप से मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज की जाती है, जो पहले शिकायतकर्ता और गवाहों की जांच करता है। यदि न्यायिक अधिकारी इस बात से संतुष्ट है कि जांच के साथ-साथ शिकायत अपराध का खुलासा करती है, तो वे अपराध का संज्ञान लेते है। इसके बाद, अभियुक्तों/संदिग्धों को मुक़दमे के दौरान तलब किया जाता है।
अदालत का यह आदेश, परिवारों के वकीलों द्वारा घटना के एक साल बाद दायर पुलिस की क्लोजर रिपोर्ट को चुनौती देने के बाद आया है। जिस रिपोर्ट में उन आरोपों को खारिज किया गया था कि पुलिस द्वारा सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने से सभी सात लोगों की मौत हो गई थी, पुलिस ने अपनी अंतिम रिपोर्ट में कहा था कि वे तब मारे गए थे जब "बदमाशों" ने आंदोलन के दौरान अंधाधुंध गोलीबारी की थी।
पुलिस ने क्लोजर रिपोर्ट में कहा था कि “.... सीएए/एनआरसी के खिलाफ हजारों लोग जमा हुए थे। इस बीच, विरोध हिंसक हो गया और बदमाशों ने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। एक बदमाश ने गोली चलाई और वह लगी... अथक प्रयासों के बावजूद, उस (हत्यारे का) पता नहीं चल सका, पुलिस के इस कथन को पीड़ित परिवारों ने "एक विचित्र और बेशर्म झूठ" करार दिया था।
सात मामलों में से, पुलिस ने केवल एक मामले में चार्जशीट दायर की थी, जिसमें 12 पुरुषों (सभी मुस्लिम) पर कथित रूप से एक राशिद (भारतीय दंड संहिता की धारा 304ए) की लापरवाही से मौत का आरोप लगाया गया था। सभी आरोपी जमानत पर बाहर हैं।
माथे पर चोट लगने से विकलांग और कश्मीरी गेट क्षेत्र के निवासी राशिद (27) की मौके पर ही मौत हो गई थी। उसकी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से पता चलता है कि उसकी मौत पत्थर की चोट से हुई है। हालांकि, प्रत्यक्षदर्शियों और उनके परिवार के सदस्यों और वकील का आरोप है कि उन्हें पुलिस ने गोली मारी थी।
छह अंतिम रिपोर्टों में से, एसोसिएशन ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (एपीसीआर) ने पांच का विरोध करते हुए, अधिवक्ता सगीर खान ने अदालत को बताया कि पुलिस अधीक्षक सर्कल अधिकारी, (शहर) की उपस्थिति में पुलिस की गोली लगने से सात लोगों की मौत हो गई थी। मजिस्ट्रेट और संबंधित स्टेशन हाउस अधिकारी खान ने आरोप लगाया कि पुलिस अधीक्षक के आदेश के बाद ही पुलिस ने गोलीबारी शुरू की थी।
उन्होंने अदालत को बताया कि, “जांचकर्ताओं या जांच एजेंसियों ने जानबूझकर स्पष्ट और निष्पक्ष जांच नहीं की। परिणामस्वरूप, आवेदक को न्याय से वंचित होना पड़ा”।
अदालत भी स्पष्ट रूप से पुलिस की जांच से असंतुष्ट थी और उसने पांच मामलों में फिर से जांच और शिकायत दर्ज करने का आदेश दिया है।
"आवेदक द्वारा लगाए गए आरोपों और तथ्यों के बीच एक विरोधाभास नज़र आता है। इन हालात में, अदालत को शिकायतकर्ताओं और गवाहों के बयानों की जांच करने का अधिकार है। तथ्यों एवं परिस्थितियों को देखते हुए विरोध याचिका को परिवाद प्रकरण के रूप में दर्ज करना उचित लगता है। इसलिए, अंतिम रिपोर्ट का निपटारा किया जाता है और विरोध याचिका को एक अनुपालक मामले के रूप में दर्ज किया जाता है, “अदालत ने मई, जुलाई और सितंबर में पारित अपने आदेश में इसका उल्लेख किया है।
अकेले लड़ाई लड़ रहे खान ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, "सात मौतों में से छह मामलों में अंतिम रिपोर्ट और एक में चार्जशीट दायर की गई थी। जब हमने तत्कालीन मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष छह क्लोजर रिपोर्ट में से पांच के खिलाफ विरोध याचिका दायर की, तो उन्होंने पांच मामलों में से एक और अनुपालन वाले मामलों की फिर से जांच करने का आदेश दिया।”
खान ने कहा कि मृतक परिवारों में से एक ने "अदालत में लिखित रूप में अंतिम रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया है"।
जांच में गड़बड़ी, शिकायतकर्ताओं का 'उत्पीड़न'
शफीक (45) के मामले में फिर से जांच का आदेश दिया गया था, जिनकी 26 दिसंबर, 2019 को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में इलाज के दौरान मृत्यु हो गई थी।
उनके भाई और शिकायतकर्ता निसार के अनुसार, जैसे ही हिंसा भड़की, शफीक यह जानने के लिए की मसरूर गंज की उन गलियों की तरफ कि उनके भाई कहीं उस नैनी चौराहा के पास अपने नवनिर्मित दूसरे घर के सामने तो नहीं खड़े हैं, जहां प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़प हो रही थी।
निसार ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, "एक पुलिस की गोली उनके सिर के बाईं ओर घुस गई और विपरीत दिशा से निकल गई।" उनका इलाज आगरा के एक निजी अस्पताल में किया गया, जिसके बाद में उन्हें सफदरजंग अस्पताल रेफर कर दिया गया था।
निसार ने आगे आरोप लगाया कि मामले को आगे बढ़ाने के लिए पुलिस उन्हें और उनके परिवार को परेशान कर रही है। “जिस दिन अदालत ने फिर से जांच का आदेश दिया, पुलिस ने मुझे उठाया और अपना बयान बदलने के लिए मुझे मजबूर करने की पूरी कोशिश की। मुझे लंबे समय तक हिरासत में रखा गया और अदालत के सख्त आदेश के बाद ही रिहा किया गया।”
16 वर्षीय सानिया की मां रानी ने कहा कि, जिसका पति शफीक मृतकों में से एक है, ने न्याय की उम्मीद छोड़ दी है। “जब हत्यारे जांचकर्ता हैं, तो कोई निष्पक्ष जांच या न्याय की उम्मीद कैसे कर सकता है? मुझे सिस्टम से कोई उम्मीद नहीं है।”
"मेरी एकमात्र प्राथमिकता मेरी बेटी का स्वास्थ्य और शिक्षा है, जो गंभीर पीठ दर्द से परेशान है।"
सानिया ने अपने पिता को इस हिंसा खो दिया, जो एक चूड़ी कारखाने में दिहाड़ी मजदूर थे, उस वक़्त वह नौवीं कक्षा में थीं। अपने पिता के डॉक्टर बनने के सपने को पूरा करने के लिए, उसने अगले साल एमबीबीएस में प्रवेश पाने के लिए राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा देने के लिए 12 वीं कक्षा में भौतिकी, रसायन विज्ञान और जीव विज्ञान का विकल्प चुना था।
अपने मृत बेटे को न्याय दिलाने के लिए बहादुरी से लड़ते हुए मोहम्मद मोबीन (48) आखिरकार सितंबर में कैंसर से जंग हार गए। नगला कोठी मोहल्ला निवासी मोबीन का बड़ा बेटा मुकीम (21) भी कथित तौर पर पुलिस फायरिंग में मारा गया था। एक चूड़ी फर्म में काम करने वाला दिहाड़ी मजदूर, परिवार की आय का एकमात्र स्रोत था।
मोबीन के इलाज के लिए परिवार को अपना छोटा सा घर औने-पौने दाम पर बेचना पड़ा। मुकीम की मां शम्सुन बेगम और उनके चार किशोर बेटे-बेटियों को अगले कुछ दिनों में घर खाली करना है।
अन्याय और कठिनाइयों के बावजूद बेगम टूटी नहीं। "पुलिस द्वारा प्रताड़ित" किए जाने के बावजूद, वह "अपने बेटे के हत्यारों" को न्याय के कटघरे में लाने की लड़ाई लड़ने के लिए दृढ़ संकल्पित है।
उसने न्यूज़क्लिक को अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने की कोशिश करते हुए बताया कि “पुलिस मुझे परेशान कर रही है। रात के अंधेरे में वर्दीधारी पुरुषों का एक जत्था मेरे घर में घुस आया और मेरे बच्चों पर हमला किया। मुझे पुरुष पुलिसकर्मियों ने उठाया और बिना किसी कारण के पुलिस स्टेशन ले आए। लेकिन मैं हार नहीं मानूंगी। मैं अपने पति और बेटे की मौत को बेकार नहीं जाने दूंगी।"
शिकायत दर्ज होने के बाद, बेगम को अपने बयान दर्ज कराने के लिए अगले महीने अदालत में पेश होना होगा।
कथित तौर पर पुलिस फायरिंग में आजाद नगर निवासी नई अबदी (23) की भी मौत हो गई थी। पुलिस की क्लोजर रिपोर्ट के खिलाफ उसके वकील की विरोध याचिका को अदालत ने स्वीकार करने के बाद, उसके पिता यामीन (52) को 7 जनवरी को एक मजिस्ट्रेट के सामने अपना बयान दर्ज कराना है।
नगला मुल्ला गांव का हारून (23) अपने पिता के कैंसर से मरने के बाद 10 लोगों के अपने परिवार का एकमात्र कमाने वाला था। पेशे से मवेशी व्यापारी, वह अपनी भैंस बेचने के लिए टूंडला के पास पचोखरा बाजार गया था।
मामले में शिकायतकर्ता उनके चाचा मोहम्मद शोएब ने आरोप लगाया कि, “शाम के करीब 4.30 बजे थे जब उन्हें नैनी चौराहा के पास पुलिस फायरिंग में गोली लग गई थी।”
शोएब ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, “गोली उसकी ठुड्डी में लगी और विपरीत दिशा से निकल गई। वह इतना साहसी था कि उसने उस हालत में भी मुझे फोन करके सूचित किया कि वह पुलिस फायरिंग में घायल हो गया है।"
“हमें वह बेहोशी की हालत में मिला हमने उसे जिला अस्पताल और बाद में आगरा मेडिकल कॉलेज ले गए, लेकिन दोनों जगहों पर उसे इलाज नहीं मिला। हम उसे आगरा के कम से कम छह अस्पतालों में ले गए, लेकिन उनमें से किसी ने भी उसका इलाज नहीं किया, नतीजतन जहां उनकी मृत्यु हो गई।”
शोएब ने आरोप लगाया कि उनकी लिखित शिकायत जिसमें हारून की मौत पुलिस फायरिंग में हुई थी, को पुलिस ने स्वीकार नहीं किया है, जिन्होंने कथित तौर पर धमकी दी और कोरे कागज पर हस्ताक्षर करवाए थे।
उन्होंने आगे आरोप लगाया कि, “पुलिस ने मेरी शिकायत के आधार पर प्राथमिकी दर्ज करने से इनकार कर दिया, जिसमें मैंने घटनाओं का सटीक क्रम बताया था। उन्होंने मुझे खाली कागजों पर हस्ताक्षर करने और जाने के लिए कहा, "उन्होंने एक पुलिस वाले पर याद करते हुए आरोप लगाया जिसने कहा था कि, 'यदि आप तुरंत नहीं जाते हैं तो आप सभी को मुकदमों में फंसा दिया जाएगा।"
हारून की मां नईम फात्मा ने रोते हुए कहा कि, हारून से जुड़ी कुछ यादें साझा करते हुए भावुक हो गईं। “सुबह से ही गड़बड़ी चल रही थी। मैंने उसे बाजार नहीं जाने को कहा था। उन्होंने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा कि चिंता मत करो क्योंकि वह जल्द ही लौट आएगा। मेरा बेटा कभी नहीं लौटा।”
20 दिसंबर, 2019 को फरोजाबाद के नैनी चौराहा के पास कथित रूप से पुलिस फायरिंग में मारे गए अपने 26 वर्षीय बेटे हारून के बारे में पूछने पर नईम फातिमा फूट-फूट कर रो पड़ती हैं।
यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें न्याय की उम्मीद है, फातमा ने कहा, "यह एक दूर का सपना है क्योंकि पुलिस अपने द्वारा किए गए अपराध को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। देखते हैं कि अदालत क्या करती है।"
शिकायत केस दर्ज होने के बाद शोएब को भी कोर्ट के सामने बयान देना है।
मसरूर गंज के रहने वाले अबरार (32) को पीठ में गोली लगी थी। उनका भी कथित तौर पर आगरा के जिला अस्पताल और सरकारी मेडिकल कॉलेज में इलाज नहीं किया गया। उन्हें दिल्ली के अपोलो अस्पताल ले जाया गया, जहां उनकी मौत हो गई थी। उनका शिकायत मामला भी उनके पिता एजाज के बयान दर्ज करने के लिए सूचीबद्ध है, जो शिकायतकर्ता हैं।
मृतक नबीजान (23) के पिता मोहम्मद अय्यूब ने कथित तौर पर पुलिस की अंतिम रिपोर्ट को लिखित स्वीकृति दी थी। हालांकि, उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया कि उन्हें अपनी ओर से दायर ऐसे किसी हलफनामे की जानकारी नहीं है।
मोहम्मद अय्यूब के 22 वर्षीय बेटे नबीजान को 20 दिसंबर, 2019 को जुमे की नमाज़ के बाद काम पर लौटते समय एक गोली लगी थी।
"मैं पुलिस के उस दावे को कैसे स्वीकार कर सकता हूं कि मेरे बेटे को उन्होंने नहीं मारा?" उन्होंने आरोप लगाया कि पहले लिए गए उनके हस्ताक्षर का "पुलिस द्वारा दुरुपयोग" किया जा सकता है।
चोटों के बावजूद कोई रिपोर्ट दर नहीं की गई
एडवोकेट खान ने आगे आरोप लगाया कि पुलिस की गोलीबारी में कई लोगों को चोटें आईं, लेकिन कहीं उन्हें झूठे मुकदमों में फंसा न दिया जाए इस डर से पुलिस में शिकायत दर्ज नहीं कराई गई।
पुलिस का इनकार
कोर्ट द्वारा क्लोजर रिपोर्ट का निपटारा करने और शिकायत के मामले दर्ज करने के बारे में पूछे जाने पर कोई भी पुलिस कर्मी रिकॉर्ड पर कुछ कहने को तैयार नहीं दिखा।
एक पुलिस अधिकारी ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए न्यूज़क्लिक को बताया कि “एक पेशेवर पुलिस बल के रूप में, हमने बिना किसी पक्षपात के निष्पक्ष जांच की है। पुलिस द्वारा अन्य प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने और उनकी मौत का कारण बनने वाले उपद्रवियों का पता लगाने में विफल रहने के बाद अंतिम रिपोर्ट दर्ज की गई थी।"
"चूंकि यह एक बड़ी और हिंसक भीड़ थी, इसलिए हथियारबंद लोगों का पता लगाना संभव नहीं था। हमने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की, लेकिन कामयाब नहीं हुए।'
जब शिकायतकर्ताओं के कथित उत्पीड़न और पीड़ितों को उनके इशारे पर चिकित्सा सहायता से वंचित करने के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने इसे "बिना किसी आधार वाला" आरोप करार दिया।
Courtesy: Newsclick
45 वर्षीय शफीक का शोक संतप्त परिवार।
फ़िरोज़ाबाद (उत्तर प्रदेश)/नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के फ़िरोज़ाबाद में 20 दिसंबर, 2019 को नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के विरोध में हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान मारे गए सात लोगों में से पांच के परिवारों को एक उम्मीद की किरण दिखाई दी है। एक स्थानीय अदालत द्वारा राज्य पुलिस द्वारा दायर की गई क्लोजर रिपोर्ट के निपटारे के बाद 'शिकायत मामले' दर्ज किए जाने के बाद न्याय की उम्मीद जगी है।
इस प्रक्रिया में, शिकायत या तो मौखिक या लिखित रूप से मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज की जाती है, जो पहले शिकायतकर्ता और गवाहों की जांच करता है। यदि न्यायिक अधिकारी इस बात से संतुष्ट है कि जांच के साथ-साथ शिकायत अपराध का खुलासा करती है, तो वे अपराध का संज्ञान लेते है। इसके बाद, अभियुक्तों/संदिग्धों को मुक़दमे के दौरान तलब किया जाता है।
अदालत का यह आदेश, परिवारों के वकीलों द्वारा घटना के एक साल बाद दायर पुलिस की क्लोजर रिपोर्ट को चुनौती देने के बाद आया है। जिस रिपोर्ट में उन आरोपों को खारिज किया गया था कि पुलिस द्वारा सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने से सभी सात लोगों की मौत हो गई थी, पुलिस ने अपनी अंतिम रिपोर्ट में कहा था कि वे तब मारे गए थे जब "बदमाशों" ने आंदोलन के दौरान अंधाधुंध गोलीबारी की थी।
पुलिस ने क्लोजर रिपोर्ट में कहा था कि “.... सीएए/एनआरसी के खिलाफ हजारों लोग जमा हुए थे। इस बीच, विरोध हिंसक हो गया और बदमाशों ने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। एक बदमाश ने गोली चलाई और वह लगी... अथक प्रयासों के बावजूद, उस (हत्यारे का) पता नहीं चल सका, पुलिस के इस कथन को पीड़ित परिवारों ने "एक विचित्र और बेशर्म झूठ" करार दिया था।
सात मामलों में से, पुलिस ने केवल एक मामले में चार्जशीट दायर की थी, जिसमें 12 पुरुषों (सभी मुस्लिम) पर कथित रूप से एक राशिद (भारतीय दंड संहिता की धारा 304ए) की लापरवाही से मौत का आरोप लगाया गया था। सभी आरोपी जमानत पर बाहर हैं।
माथे पर चोट लगने से विकलांग और कश्मीरी गेट क्षेत्र के निवासी राशिद (27) की मौके पर ही मौत हो गई थी। उसकी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से पता चलता है कि उसकी मौत पत्थर की चोट से हुई है। हालांकि, प्रत्यक्षदर्शियों और उनके परिवार के सदस्यों और वकील का आरोप है कि उन्हें पुलिस ने गोली मारी थी।
छह अंतिम रिपोर्टों में से, एसोसिएशन ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (एपीसीआर) ने पांच का विरोध करते हुए, अधिवक्ता सगीर खान ने अदालत को बताया कि पुलिस अधीक्षक सर्कल अधिकारी, (शहर) की उपस्थिति में पुलिस की गोली लगने से सात लोगों की मौत हो गई थी। मजिस्ट्रेट और संबंधित स्टेशन हाउस अधिकारी खान ने आरोप लगाया कि पुलिस अधीक्षक के आदेश के बाद ही पुलिस ने गोलीबारी शुरू की थी।
उन्होंने अदालत को बताया कि, “जांचकर्ताओं या जांच एजेंसियों ने जानबूझकर स्पष्ट और निष्पक्ष जांच नहीं की। परिणामस्वरूप, आवेदक को न्याय से वंचित होना पड़ा”।
अदालत भी स्पष्ट रूप से पुलिस की जांच से असंतुष्ट थी और उसने पांच मामलों में फिर से जांच और शिकायत दर्ज करने का आदेश दिया है।
"आवेदक द्वारा लगाए गए आरोपों और तथ्यों के बीच एक विरोधाभास नज़र आता है। इन हालात में, अदालत को शिकायतकर्ताओं और गवाहों के बयानों की जांच करने का अधिकार है। तथ्यों एवं परिस्थितियों को देखते हुए विरोध याचिका को परिवाद प्रकरण के रूप में दर्ज करना उचित लगता है। इसलिए, अंतिम रिपोर्ट का निपटारा किया जाता है और विरोध याचिका को एक अनुपालक मामले के रूप में दर्ज किया जाता है, “अदालत ने मई, जुलाई और सितंबर में पारित अपने आदेश में इसका उल्लेख किया है।
अकेले लड़ाई लड़ रहे खान ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, "सात मौतों में से छह मामलों में अंतिम रिपोर्ट और एक में चार्जशीट दायर की गई थी। जब हमने तत्कालीन मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष छह क्लोजर रिपोर्ट में से पांच के खिलाफ विरोध याचिका दायर की, तो उन्होंने पांच मामलों में से एक और अनुपालन वाले मामलों की फिर से जांच करने का आदेश दिया।”
खान ने कहा कि मृतक परिवारों में से एक ने "अदालत में लिखित रूप में अंतिम रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया है"।
जांच में गड़बड़ी, शिकायतकर्ताओं का 'उत्पीड़न'
शफीक (45) के मामले में फिर से जांच का आदेश दिया गया था, जिनकी 26 दिसंबर, 2019 को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में इलाज के दौरान मृत्यु हो गई थी।
उनके भाई और शिकायतकर्ता निसार के अनुसार, जैसे ही हिंसा भड़की, शफीक यह जानने के लिए की मसरूर गंज की उन गलियों की तरफ कि उनके भाई कहीं उस नैनी चौराहा के पास अपने नवनिर्मित दूसरे घर के सामने तो नहीं खड़े हैं, जहां प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़प हो रही थी।
निसार ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, "एक पुलिस की गोली उनके सिर के बाईं ओर घुस गई और विपरीत दिशा से निकल गई।" उनका इलाज आगरा के एक निजी अस्पताल में किया गया, जिसके बाद में उन्हें सफदरजंग अस्पताल रेफर कर दिया गया था।
निसार ने आगे आरोप लगाया कि मामले को आगे बढ़ाने के लिए पुलिस उन्हें और उनके परिवार को परेशान कर रही है। “जिस दिन अदालत ने फिर से जांच का आदेश दिया, पुलिस ने मुझे उठाया और अपना बयान बदलने के लिए मुझे मजबूर करने की पूरी कोशिश की। मुझे लंबे समय तक हिरासत में रखा गया और अदालत के सख्त आदेश के बाद ही रिहा किया गया।”
16 वर्षीय सानिया की मां रानी ने कहा कि, जिसका पति शफीक मृतकों में से एक है, ने न्याय की उम्मीद छोड़ दी है। “जब हत्यारे जांचकर्ता हैं, तो कोई निष्पक्ष जांच या न्याय की उम्मीद कैसे कर सकता है? मुझे सिस्टम से कोई उम्मीद नहीं है।”
"मेरी एकमात्र प्राथमिकता मेरी बेटी का स्वास्थ्य और शिक्षा है, जो गंभीर पीठ दर्द से परेशान है।"
सानिया ने अपने पिता को इस हिंसा खो दिया, जो एक चूड़ी कारखाने में दिहाड़ी मजदूर थे, उस वक़्त वह नौवीं कक्षा में थीं। अपने पिता के डॉक्टर बनने के सपने को पूरा करने के लिए, उसने अगले साल एमबीबीएस में प्रवेश पाने के लिए राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा देने के लिए 12 वीं कक्षा में भौतिकी, रसायन विज्ञान और जीव विज्ञान का विकल्प चुना था।
अपने मृत बेटे को न्याय दिलाने के लिए बहादुरी से लड़ते हुए मोहम्मद मोबीन (48) आखिरकार सितंबर में कैंसर से जंग हार गए। नगला कोठी मोहल्ला निवासी मोबीन का बड़ा बेटा मुकीम (21) भी कथित तौर पर पुलिस फायरिंग में मारा गया था। एक चूड़ी फर्म में काम करने वाला दिहाड़ी मजदूर, परिवार की आय का एकमात्र स्रोत था।
मोबीन के इलाज के लिए परिवार को अपना छोटा सा घर औने-पौने दाम पर बेचना पड़ा। मुकीम की मां शम्सुन बेगम और उनके चार किशोर बेटे-बेटियों को अगले कुछ दिनों में घर खाली करना है।
अन्याय और कठिनाइयों के बावजूद बेगम टूटी नहीं। "पुलिस द्वारा प्रताड़ित" किए जाने के बावजूद, वह "अपने बेटे के हत्यारों" को न्याय के कटघरे में लाने की लड़ाई लड़ने के लिए दृढ़ संकल्पित है।
उसने न्यूज़क्लिक को अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने की कोशिश करते हुए बताया कि “पुलिस मुझे परेशान कर रही है। रात के अंधेरे में वर्दीधारी पुरुषों का एक जत्था मेरे घर में घुस आया और मेरे बच्चों पर हमला किया। मुझे पुरुष पुलिसकर्मियों ने उठाया और बिना किसी कारण के पुलिस स्टेशन ले आए। लेकिन मैं हार नहीं मानूंगी। मैं अपने पति और बेटे की मौत को बेकार नहीं जाने दूंगी।"
शिकायत दर्ज होने के बाद, बेगम को अपने बयान दर्ज कराने के लिए अगले महीने अदालत में पेश होना होगा।
कथित तौर पर पुलिस फायरिंग में आजाद नगर निवासी नई अबदी (23) की भी मौत हो गई थी। पुलिस की क्लोजर रिपोर्ट के खिलाफ उसके वकील की विरोध याचिका को अदालत ने स्वीकार करने के बाद, उसके पिता यामीन (52) को 7 जनवरी को एक मजिस्ट्रेट के सामने अपना बयान दर्ज कराना है।
नगला मुल्ला गांव का हारून (23) अपने पिता के कैंसर से मरने के बाद 10 लोगों के अपने परिवार का एकमात्र कमाने वाला था। पेशे से मवेशी व्यापारी, वह अपनी भैंस बेचने के लिए टूंडला के पास पचोखरा बाजार गया था।
मामले में शिकायतकर्ता उनके चाचा मोहम्मद शोएब ने आरोप लगाया कि, “शाम के करीब 4.30 बजे थे जब उन्हें नैनी चौराहा के पास पुलिस फायरिंग में गोली लग गई थी।”
शोएब ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, “गोली उसकी ठुड्डी में लगी और विपरीत दिशा से निकल गई। वह इतना साहसी था कि उसने उस हालत में भी मुझे फोन करके सूचित किया कि वह पुलिस फायरिंग में घायल हो गया है।"
“हमें वह बेहोशी की हालत में मिला हमने उसे जिला अस्पताल और बाद में आगरा मेडिकल कॉलेज ले गए, लेकिन दोनों जगहों पर उसे इलाज नहीं मिला। हम उसे आगरा के कम से कम छह अस्पतालों में ले गए, लेकिन उनमें से किसी ने भी उसका इलाज नहीं किया, नतीजतन जहां उनकी मृत्यु हो गई।”
शोएब ने आरोप लगाया कि उनकी लिखित शिकायत जिसमें हारून की मौत पुलिस फायरिंग में हुई थी, को पुलिस ने स्वीकार नहीं किया है, जिन्होंने कथित तौर पर धमकी दी और कोरे कागज पर हस्ताक्षर करवाए थे।
उन्होंने आगे आरोप लगाया कि, “पुलिस ने मेरी शिकायत के आधार पर प्राथमिकी दर्ज करने से इनकार कर दिया, जिसमें मैंने घटनाओं का सटीक क्रम बताया था। उन्होंने मुझे खाली कागजों पर हस्ताक्षर करने और जाने के लिए कहा, "उन्होंने एक पुलिस वाले पर याद करते हुए आरोप लगाया जिसने कहा था कि, 'यदि आप तुरंत नहीं जाते हैं तो आप सभी को मुकदमों में फंसा दिया जाएगा।"
हारून की मां नईम फात्मा ने रोते हुए कहा कि, हारून से जुड़ी कुछ यादें साझा करते हुए भावुक हो गईं। “सुबह से ही गड़बड़ी चल रही थी। मैंने उसे बाजार नहीं जाने को कहा था। उन्होंने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा कि चिंता मत करो क्योंकि वह जल्द ही लौट आएगा। मेरा बेटा कभी नहीं लौटा।”
20 दिसंबर, 2019 को फरोजाबाद के नैनी चौराहा के पास कथित रूप से पुलिस फायरिंग में मारे गए अपने 26 वर्षीय बेटे हारून के बारे में पूछने पर नईम फातिमा फूट-फूट कर रो पड़ती हैं।
यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें न्याय की उम्मीद है, फातमा ने कहा, "यह एक दूर का सपना है क्योंकि पुलिस अपने द्वारा किए गए अपराध को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। देखते हैं कि अदालत क्या करती है।"
शिकायत केस दर्ज होने के बाद शोएब को भी कोर्ट के सामने बयान देना है।
मसरूर गंज के रहने वाले अबरार (32) को पीठ में गोली लगी थी। उनका भी कथित तौर पर आगरा के जिला अस्पताल और सरकारी मेडिकल कॉलेज में इलाज नहीं किया गया। उन्हें दिल्ली के अपोलो अस्पताल ले जाया गया, जहां उनकी मौत हो गई थी। उनका शिकायत मामला भी उनके पिता एजाज के बयान दर्ज करने के लिए सूचीबद्ध है, जो शिकायतकर्ता हैं।
मृतक नबीजान (23) के पिता मोहम्मद अय्यूब ने कथित तौर पर पुलिस की अंतिम रिपोर्ट को लिखित स्वीकृति दी थी। हालांकि, उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया कि उन्हें अपनी ओर से दायर ऐसे किसी हलफनामे की जानकारी नहीं है।
मोहम्मद अय्यूब के 22 वर्षीय बेटे नबीजान को 20 दिसंबर, 2019 को जुमे की नमाज़ के बाद काम पर लौटते समय एक गोली लगी थी।
"मैं पुलिस के उस दावे को कैसे स्वीकार कर सकता हूं कि मेरे बेटे को उन्होंने नहीं मारा?" उन्होंने आरोप लगाया कि पहले लिए गए उनके हस्ताक्षर का "पुलिस द्वारा दुरुपयोग" किया जा सकता है।
चोटों के बावजूद कोई रिपोर्ट दर नहीं की गई
एडवोकेट खान ने आगे आरोप लगाया कि पुलिस की गोलीबारी में कई लोगों को चोटें आईं, लेकिन कहीं उन्हें झूठे मुकदमों में फंसा न दिया जाए इस डर से पुलिस में शिकायत दर्ज नहीं कराई गई।
पुलिस का इनकार
कोर्ट द्वारा क्लोजर रिपोर्ट का निपटारा करने और शिकायत के मामले दर्ज करने के बारे में पूछे जाने पर कोई भी पुलिस कर्मी रिकॉर्ड पर कुछ कहने को तैयार नहीं दिखा।
एक पुलिस अधिकारी ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए न्यूज़क्लिक को बताया कि “एक पेशेवर पुलिस बल के रूप में, हमने बिना किसी पक्षपात के निष्पक्ष जांच की है। पुलिस द्वारा अन्य प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने और उनकी मौत का कारण बनने वाले उपद्रवियों का पता लगाने में विफल रहने के बाद अंतिम रिपोर्ट दर्ज की गई थी।"
"चूंकि यह एक बड़ी और हिंसक भीड़ थी, इसलिए हथियारबंद लोगों का पता लगाना संभव नहीं था। हमने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की, लेकिन कामयाब नहीं हुए।'
जब शिकायतकर्ताओं के कथित उत्पीड़न और पीड़ितों को उनके इशारे पर चिकित्सा सहायता से वंचित करने के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने इसे "बिना किसी आधार वाला" आरोप करार दिया।
Courtesy: Newsclick