राजसमन्द के निहितार्थ

Written by मुजाहिद नफ़ीस | Published on: December 30, 2017
राजसमन्द जो कि 1991 में उदयपुर जिले से अलग होकर नया जिला बना। इस जिले की आबादी 11,56,597 है जिसमे 5,81,339 पुरुष और 5,75,258 महिलाएं हैं। यहाँ 12.81% अनुसूचित जाति और 13.90% अनुसूचित जनजाति के लोग हैं, यहाँ 80.90% लोग मार्जिनल वर्कर सीमान्त मजदूर Marginal Workers हैं जो केवल 3-6 महीने ही नियमित रूप से काम पाते हैं। यहाँ की साक्षरता दर 63.14% है, बाल लिंग अनुपात (0-6) 903 है। राजसमन्द शहर को राजनगर के नाम से भी जाना जाता है, यहाँ की आबादी 67,798 है जिसमे मुस्लिम 9.54% ईसाई 0.29% और जैन 5.63% हैं।



यहाँ की ज़मीन में चांदी, जिंक, लेड आदि खनिज पाए जाते हैं, और यहाँ मार्बल, ग्रेनाईट, लाइम स्टोन भारी मात्रा में पाया जाता है। राजसमन्द उदयपुर से 67 किलोमीटर की दूरी पर है, एवं राज्य की राजधानी जयपुर से 336 किलोमीटर पर स्तित है। उदयपुर से राजसमन्द के 67 किलोमीटर का रास्ता सड़क के दोनों तरफ़ मार्बल स्टोन की बड़ी बड़ी दुकानों को देखते हुए ही कट जाता है। ये जिला अपनी धार्मिक पहचान व विश्व प्रसिद्ध हल्दीघाटी को भी अपने में समेटे है। अब समझने की ज़रुरत है कि यहाँ पर बाहर से आये हुए मजदूर की इतने निर्मम ढंग से हत्या क्यों की गई?

ऊपर मैंने जो आंकड़े व जिले की प्रष्टभूमि दी है वो इसको स्पष्ट करता है कि ये जगह ही क्यों चुनी गयी। राजसमन्द जिले में अनुसूचित जाति, जनजाति की कुल आबादी लगभग 26% है और मुस्लिम केवल 2.91% ही हैं। ये कांड उस समय हुआ जब गुजरात में विधानसभा चुनाव चल रहे थे और 22 सालों से सत्ता में रही वर्तमान सरकार को सबसे मुश्किल दौर से गुज़रना पड़ रहा था, ये इसलिए भी था कि भाजपा के मुख्य सूत्रधार नरेन्द्र मोदी जी अब गुजरात से बाहर हैं, उनके बिना गुजरात पर पकड़ कमज़ोर है और प्रशासन अस्तव्यस्त है। गुजरात में पटेलों का आरक्षण आन्दोलन, ओबीसी का आन्दोलन, दलित उत्पीड़न के ख़िलाफ़ उना आन्दोलन और शुरूआती दौर में अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा अपने हकों के लिए आन्दोलन शुरू हुआ है।

उना के दलित उत्पीड़न के विरोध के प्रतिरोध में हुए आन्दोलन में दलितों के साथ मुसलमानों नें बढ़ चढ़ कर भागीदारी ली। इस भागीदारी से राज्य में एक नए राजनितिक समीकरण की सम्भावना बनी, जिसमे दलित-मुस्लिम गठजोड़ के नए समीकरण से भाजपा परेशान होने लगी। राजसमन्द में हुई घटना के पात्रों को देखें तो पता चलेगा कि घटना का शिकार बाहर से आया हुआ मुस्लिम मजदूर था जो राजसमन्द में छत की सटरिंग का काम करता था और मूल बंगाल का निवासी था, तथा शिकारी वहीं का एक स्थानीय दलित। स्वाभाविक है कि जब घटना को इतने वीभत्स रूप से अंजाम दिया जाएगा और उसका विडियो भी बनाया जाएगा तो स्थानीय मुलिम डर जायेंगे व दलित भी हिन्दुत्व की छतरी के नीचे आ जायेंगे। इससे आने वाले चुनाव में फायदा लिया जा सकेगा। मारने वाला व्यक्ति जो दलित है उसकी विडियो में भाषा को अगर ध्यान से सुने तो ये भाषा राजसमन्द के इलाकों में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा नहीं है। उसने आत्मसमर्पण से पूर्व विडियो को मंदिर में शूट किया है वहीं उसने लम्बा सा तिलक भी लगाया हुआ है। आम तौर पर दलितों की दिनचर्या ऐसी नहीं होती। इसको बोलने से पहले काफी ट्रेनिंग दी गयी गई है जिसमे दलित के मन में साम्प्रदायिकता का ज़हर ठूस ठूंस कर भरा गया है। इस घटना को सुनियोजित रूप से अंजाम दिया गया है, जिसका सबूत है, कातिल के समर्थन में लाखों लोग सड़कों पर अचानक आ जाना, उसका केस लड़ने के लिए दिल्ली से वकील और केस खर्च के लिए उसके अकाउंट में सीधे लाखों रूपये जमा हो जाना इत्यादि, इन सब से पता चलता है कि इसके पीछे कोई संगठन है। इस घटना का एक और लक्ष्य दलितों और मुस्लिम के स्वाभाविक गठजोड़ को कमज़ोर करना भी है, जैसा कि अतिवादियों नें गुजरात में हुए दंगों में किया था।

जब एक दलित किसी मुस्लिम को मारेगा तो मुखर दलित संघठन इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देंगे, ऐसा हुआ भी किसी भी बड़े दलित नेता नें इस घटना के विरोध में राजसमन्द का दौरा नहीं किया, इससे  मुसलमानों से एक दूरी होगी जिसका इस्तेमाल वे आने वाले राजस्थान विधानसभा चुनाव में करेंगे, क्योकि वहां भी मौजूदा सरकार की हालत बहुत खस्ता है। राजसमन्द कांग्रेस के बड़े नेता श्री सी.पी.जोशी का गृह जनपद है, यहीं से वे पिछला चुनाव सिर्फ 1 वोट से हार गए थे जिसके चलते वो मुख्यमंत्री पद से चूक गए थे। उन्होंने भी सार्वजानिक रूप से इस घटना के प्रति गंभीरता नहीं दिखाई।

इस घटना को अगर हम राजनीतिक रूप से देखें तो पाएंगे कि अब पूरे देश में दलितों को मुसलमानों के विरुद्ध साम्रदायिक रंग देकर उनको लड़ाया जायेगा क्योकि ये गठजोड़ राजस्थान, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, मध्य प्रदेश व गुजरात के कुछ इलाकों में चुनावी राजनीति पर असर डालेगा। इसलिए सांप्रदायिक शक्तियों के लिए ज़रूरी है कि इन दो को अलग कर दें तो देश की सत्ता पर आसानी से व लम्बे समय के लिए रहा जा सकता है।

इस घटना नें राजस्थान के मुस्लिमों को डरा दिया है, प्रशासन भी मुस्लिम समाज के नेताओं को लगातार समझा रहे हैं कि वो कोई प्रदर्शन ना करें। अतिवादी संगठन अपने मकसद में सफल होते हुए दिख रहे हैं क्योकि कोई राजनितिक दल इसपर नहीं बोल रहा है, मुस्लिम समाज भी डरा सहमा हुआ है। इन सबके बीच इस केस का क्या होगा ये चिंता का विषय है।

अप्ल्संख्यकों पर हमले, वोटों की खातिर मुख्यधारा की पार्टियों की चुप्पी, देश के ताने बाने को लगातार कमज़ोर कर रही है, वहीं देश धार्मिक आधार पर प्रथम/ द्वितीय दर्जे की नागरिकता के गर्त में जाता हुआ दिखाई दे रहा है। अगर मुख्य धारा के राजनितिक दलों नें इस को नहीं रोका तो बहुत जल्दी ही हमारे भारत को हिटलर शासित जर्मनी या  इजराइल बनने में बहुत देर नहीं लगेगी।

*(लेखक गुजरात में अल्पसंख्यक अधिकारों के लिए काम करते हैं व राजसमन्द जाकर, घटना का अध्ययन करके आये हैं। संपर्क- 09328416230, nafeesmujahid43@gmail.com)

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