UAPA को ख़त्म करने के लिए चर्चा और मांग को लेकर पीयूसीएल और 100 से ज्यादा संगठनों ने 3 दिन की ऑनलाइन बैठक, 20 से 22 जनवरी के बीच रखी। 13 राज्यों की प्रस्तुति में से 21 जनवरी को असम, महाराष्ट्र, कर्नाटक, पंजाब व हरियाणा व केरल, कुल 5 राज्यों की प्रस्तुती की गई। 20 जनवरी को 3 राज्य, दिल्ली, AP, तेलंगाना की प्रस्तुति हुई थी और इसमें देश भर से अनेकों नामचीन वकील, कार्यकर्ता, बुद्धिजीवी, पत्रकार, महिला अधिकार कार्यकर्ता, छात्र आदि शामिल हुए।
इन सभी प्रस्तुतियों के ज़रिए, निरंकुश राज्यों का भयावह चित्र सामने उभरा है। एक कागज़ का टुकड़ा, यूट्यूब पर सार्वजनिक तौर पर मौजूद वीडियो की सीडी या पेन ड्राइव, एक कथित ईमेल, कोई भी किताब, कोई बैनर, कोई नारा, किसी संगठन का सदस्य होने का आरोप, शांतिपूर्ण आंदोलन में शामिल होना … किसी को भी गैरकानूनी गतिविधियाँ रोकथाम कानून (यूएपीए) का अभियुक्त बना सकता है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) इनकी जांच कर सकती है। यही नहीं, यूएपीए का इस्तेमाल ग़रीबों, वंचितों, आदिवासियों, दलितों, अल्पसंख्यकों, वैचारिक और राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ़ हो रहा है। टाडा और पोटा का इस्तेमाल कोई हिंसक घटना के आरोपितों के खिलाफ़ होता था। यूएपीए के फंदे में कोई भी आ सकता है। और तो और, अदालतों में जज जैसे ही आरोप के साथ यूएपीए लगा देखते हैँ तो जमानत ही नहीं देते। लोग सालों से जेल में बंद पड़े हैं।
सभी का मानना था की इस कानून को वापस लेने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है।
कर्नाटक में नाबालिग भी यूएपीए के तहत बंद हैं
कर्नाटक पीयूसीएल के राजेन्द्रन ने बताया कि राज्य में यूएपीए के तहत केस का कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है। हालांकि पिछले साल अगस्त में डीजे हरहल्ली में पैगम्बर के कथित आपत्तिजनक कार्टून की प्रतिक्रिया में हुई हिंसा के मामले में 180 लोग यूएपीए के तहत बंदी हैं। उन्होंने बताया कि नागरिकों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का एक दल दस दिनों की जांच के बाद इस नतीजे पर पहुंचा कि यह हिंसा सोशल मीडिया पोस्ट की प्रतिक्रिया और पुलिस की कार्रवाई में देरी की वजह से हुई। इस हिंसा में पुलिस की फायरिंग से चार लोग मारे भी गये।
उन्होंने कहा कि कानून-व्यवस्था की समस्या या दंगे की घटना को आतंकवादी गतिविधि में बदल दिया गया। यूएपीए का इस्तेमाल ज्यादातर अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ किया जा रहा है। इससे स्थानीय लोगों का विश्वास पूरी तरह हिल गया है।
दूसरी ओर, वकील उस्मान ने कहा कि जिसने व्हाट्सएप या फेसबुक पोस्ट डाली उसे तो जमानत मिल गयी लेकिन हिंसा के आरोप में गिरफ्तार किसी को जमानत मिली। वकील बसवा कुनाले ने बताया कि डीजे हरहल्ली केस में 12 से 18 साल के कई नाबालिग बच्चों को भी पकड़ा गया है। यही नहीं, जिनकी उम्र 19 बतायी जा रही, उनकी उम्र का भी कोई सुबूत नहीं है। उनके मुताबिक इनमें कई नाबालिग हैं। ये गिरफ़्तार बच्चे केवल तमाशबीन थे या ट्यूशन पढ़कर आ रहे थे या उधर से गुजर रहे थे। मैत्रेयी कृष्णन ने जोड़ा कि यूएपीए का मनमाना इस्तेमाल हो रहा है।
शांतिपूर्ण आंदोलनकारी अखिल गोगोई और उनके साथियों का दमन
कृषक मुक्ति संग्राम समिति के अखिल गोगोई पिछले एक साल से जेल में हैं। उन पर यूएपीए के कार्रवाई हुई है और एनआईए जांच कर रही है। वहां के वकील राहुल सेंसुआ ने बताया कि अखिल काफ़ी समय से असम के लोगों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। नागरिकता संशोधन कानून बनने के पहले से ही वे इसके खिलाफ आवाज उठा रहे थे। कानून बनने के बाद जब इसके विरोध में अभियान शुरू हुआ तो अखिल अलग-अलग जिलों में आयोजित सभाओं में हिस्सा ले रहे थे। इसी दौरान अखिल को गिरफ्तार किया गया। उनका मामला एनआईए को दे दिया गया।
उन्होंने बताया कि असम में अखिल गोगोई से पहले लोकतांत्रिक रूप से आंदोलन कर रहे किसी के खिलाफ यूएपीए नहीं लगाया था। दिसम्बर 2019 से वह जेल में हैं। एनआईए की अदालत और हाईकोर्ट से उनकी जमानत रद हो गयी। जमानत के मामले में सुप्रीम कोर्ट का साफ निर्देश है, इसके बावजूद यूएपीए के तहत गिरफ्तार लोगों को जमानत नहीं मिल रही है।
बेदब्रता कृषक मुक्ति संग्राम समिति के छात्र मुक्ति संघर्ष से जुड़े हैँ। उन्होंने कि हमारे संगठन को हर सरकार में दमन झेलना पड़ रहा है। हमारे सदस्य को हर जिले में आज भी प्रताड़ित किया जा रहा है।
अदालतें जमानत नहीं दे रहीं
महाराष्ट्र में यूएपीए की चर्चा शुरू करते हुए मशहूर वकील मिहिर देसाई ने कहा कि आज हम भीमा कोरेगाँव मामले में गिरफ्तार लोगों की बात नहीं करेंगे। हम आज दिल्ली यूनिवर्सिटी के शिक्षक और यूएपीए के तहत गिरफ़्तार साईंबाबा की बात करेंगे जो 90 फीसदी विकलांग हैं। हाईकोर्ट से भी उन्हें क्लिनिकल जमानत नहीं मिली है। वे सालों से जेल में है।
वकील वहाब खान ने एक कश्मीरी फारूक नाइकू के केस की जानकारी दी और बताया कि इस युवक को एक सीडी, पेन ड्राइव, ईमेल और नकली नोट चलाने के आरोप में पकड़ा गया। जिस सीडी के बिना पर उसे यूएपीए में गिरफ़्तार किया गया, उस सीडी में मौजूद सब कुछ यू-ट्यूब पर मौजूद है। मीडिया के लोग वही क्लिप इस्तेमाल कर रहे हैं। मगर उस पर यूएपीए का केस हो गया है। उस पर आरोप लगा कि हिज्बुल मुजाहिदीन से उसका जुड़ाव था। कई साल बाद उसे जमानत मिली।
मुम्बई में 2006 में बम विस्फोट के मामले में 13 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। इन पर यूएपीए और मकोका लगा। इन सबमें सिर्फ एक नौजवान अब्दुल वहीद शेख बरी हुआ। उसने बताया कि हम पर यूएपीए लगाया गया और हमें आतंकी संगठनों का सदस्य बताया गया। हम पर मकोका लगाया गया। मेरे खिलाफ मेरे ही रिश्तेदार को खड़ा कर दिया गया। नौ साल बाद मैं बरी हुआ। इससे पहले मैंने कई बार अलग-अलग अदालतों में जमानत की अपील की लेकिन कहीं से जमानत नहीं मिली।
मुझे टॉर्चर किया गया। मेरे साथ एक व्यक्ति थे। उनको भी टॉर्चर किया गया। उनके शरीर पर निशान थे। अस्पताल ने भी इन जख्मों को रिकॉर्ड किया। फिर भी जज नहीं माने। पुलिस ने उसका कथित कुबूलनामा पेश किया और उसे सज़ा हो गयी। बहुत दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि जज भी हमें आतंकवादी तरह देखते थे। वासुदेवन ने मुम्बई के बिजली कम्पनियों के साथ काम करने वाले ठेका मजदूरों के खिलाफ यूएपीए के तहत कार्रवाई करने के बारे में बताया। गिरफ्तार मजदूरों में से कुछ को हाईकोर्ट से बेल तो मिली। अब इन्हें काम नहीं मिल रहा है।
एडवोकेट जगदीश मेश्राम विदर्भ में आदिवासियों को कानूनी मदद देने का काम कर रहे हैं। जगदीश के मुताबिक विदर्भ में यूएपीए उन लोगों पर लगाया जाता है जो सरकार के खिलाफ़ बोलते हैं, खदान का विरोध करते हैं, आदिवासियों के लिए काम करते हैं, कार्यकर्ता हैं। गढ़चिरौली के गरीब आदिवासियों पर नक्सली होने का आरोप लगाकर यूएपीए के तहत गिरफ़्तारी हो जाती है। यही नहीं, निचली अदालतों में जज जैसे ही आरोप के रूप में नक्सली या यूएपीए लगा देखते हैँ तो जमानत ही नहीं देते।
पंजाब में ज़रा ज़रा सी बात पर लगा यूएपीए
लम्बे समय से पंजाब-हरियाणा में मानवाधिकारों के उल्लंघन के विरोध में आवाज़ उठाने वाले वकील राजविंदर सिंह बैंस ने कहा कि पंजाब में 16 हजार से ज्यादा फ़र्जी एनकाउंटर करने के बाद भी जब पुलिस बच जाती है, तो मेरी समझ में नहीं आता कि आखिर यूएपीए की जरूरत क्यों है? टाडा और पोटा में हिंसा की घटना का होना ज़रूरी था। यह हिंसा की घटना के लिए आरोपितों पर इस्तेमाल होता था। यह क़ानून तो टाडा और पोटा से भी आगे निकल गया।
राजविंदर सिंह बैंस ने कहा, यूएपीए के तहत कुछ नहीं चाहिए। कोई घटना हो, इसकी भी आवश्यकता नहीं है। सिर्फ कागज का एक टुकड़ा चाहिए। सिर्फ किसी संगठन के सदस्य होने के नाते किसी पर यूएपीए लग सकता है। यूएपीए में हम जैसे वकील या पत्रकार आसानी से फँस सकते हैं। दस्तावेजों को देखना, पढ़ना हमारा काम है। मगर हमें इसी वजह से फँसाया जा सकता है। इसीलिए हम इतने बड़े पैमाने पर वकीलों-पत्रकारों-मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को जेल में देख रहे हैं। उन्होंने पंजाब हरियाणा में इस क़ानून के मनमाने इस्तेमाल के कई दिलचस्प किस्से भी सुनाये। देश के खिलाफ युद्ध करने की तैयारी के आरोप में तीन नौजवानों को आजीवन कारावास हो गया। उनके पास से सिर्फ कुछ कागजात और कुछ लाख रुपये मिलने के आरोप थे।
केरल में विरोधियों के खिलाफ इस्तेमाल
केरल की हालत का जिक्र करते हुए एडवोकेट मधुसूदन केएस ने कहा कि यूएपीए के दुरुपयोग का मसला नहीं है बल्कि बात तो इसके इस्तेमाल की होनी चाहिए। इसका इस्तेमाल विरोधियों को चुप कराने के लिए किया जा रहा है। इसका इस्तेमाल हर पार्टी कर रही है। यहां सामान्य तौर पर यूएपीए में जेल जाने वाले लोग पांच साल से कम जेल में नहीं रहे हैं। ताहा फजल के केस का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि बैनर पर नारा लिखना या नारा लगाना या कोई कागज होना ही यूएपीए के तहत कार्यवाही के लिए काफ़ी है।
शाइना पीए ने बताया कि माओवादी संगठन के नेताओं की मदद करने का आरोप में कैसे उन्हें और उनके पति को यूएपीए के तहत गिरफ़्तार किया। उन्हें साढ़े तीन साल जेल में रहना पड़ा। उनके पति और कुछ लोग छह साल से जेल में है। अरोपपत्र अब तक दाखिल नहीं किये गये हैं। इन पर यह भी आरोप है कि ये चुनाव बहिष्कार की बात करते हैं। इनके दो वकील भी यूएपीए के तहत गिरफ़्तार किये गये हैं। इनका केस तो अब तक शुरू नहीं हुआ है।
पीयूसीएल केरल के पौरान ने कहा कि वाम फ्रंट ने वादा किया था कि जब वे सत्ता में आयेंगे तो यूएपीए के तहत दायर मामलों की समीक्षा करेंगे। यह तो नहीं हुआ बल्कि इसके उलट यूएपीए के तहत दायर मामले बढ़ गये। उन्होंने बताया कि सूचना के अधिकार के तहत यूएपीए के तहत दायर मामलों की जानकारी माँगी गयी लेकिन कोई सूचना नहीं मिली। हमने अपने तरीके से 114 केस के बारे में जानकारी इकट्ठा की।
(द्वारा जारी: PUCL महासचिव वी सुरेश)
इन सभी प्रस्तुतियों के ज़रिए, निरंकुश राज्यों का भयावह चित्र सामने उभरा है। एक कागज़ का टुकड़ा, यूट्यूब पर सार्वजनिक तौर पर मौजूद वीडियो की सीडी या पेन ड्राइव, एक कथित ईमेल, कोई भी किताब, कोई बैनर, कोई नारा, किसी संगठन का सदस्य होने का आरोप, शांतिपूर्ण आंदोलन में शामिल होना … किसी को भी गैरकानूनी गतिविधियाँ रोकथाम कानून (यूएपीए) का अभियुक्त बना सकता है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) इनकी जांच कर सकती है। यही नहीं, यूएपीए का इस्तेमाल ग़रीबों, वंचितों, आदिवासियों, दलितों, अल्पसंख्यकों, वैचारिक और राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ़ हो रहा है। टाडा और पोटा का इस्तेमाल कोई हिंसक घटना के आरोपितों के खिलाफ़ होता था। यूएपीए के फंदे में कोई भी आ सकता है। और तो और, अदालतों में जज जैसे ही आरोप के साथ यूएपीए लगा देखते हैँ तो जमानत ही नहीं देते। लोग सालों से जेल में बंद पड़े हैं।
सभी का मानना था की इस कानून को वापस लेने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है।
कर्नाटक में नाबालिग भी यूएपीए के तहत बंद हैं
कर्नाटक पीयूसीएल के राजेन्द्रन ने बताया कि राज्य में यूएपीए के तहत केस का कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है। हालांकि पिछले साल अगस्त में डीजे हरहल्ली में पैगम्बर के कथित आपत्तिजनक कार्टून की प्रतिक्रिया में हुई हिंसा के मामले में 180 लोग यूएपीए के तहत बंदी हैं। उन्होंने बताया कि नागरिकों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का एक दल दस दिनों की जांच के बाद इस नतीजे पर पहुंचा कि यह हिंसा सोशल मीडिया पोस्ट की प्रतिक्रिया और पुलिस की कार्रवाई में देरी की वजह से हुई। इस हिंसा में पुलिस की फायरिंग से चार लोग मारे भी गये।
उन्होंने कहा कि कानून-व्यवस्था की समस्या या दंगे की घटना को आतंकवादी गतिविधि में बदल दिया गया। यूएपीए का इस्तेमाल ज्यादातर अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ किया जा रहा है। इससे स्थानीय लोगों का विश्वास पूरी तरह हिल गया है।
दूसरी ओर, वकील उस्मान ने कहा कि जिसने व्हाट्सएप या फेसबुक पोस्ट डाली उसे तो जमानत मिल गयी लेकिन हिंसा के आरोप में गिरफ्तार किसी को जमानत मिली। वकील बसवा कुनाले ने बताया कि डीजे हरहल्ली केस में 12 से 18 साल के कई नाबालिग बच्चों को भी पकड़ा गया है। यही नहीं, जिनकी उम्र 19 बतायी जा रही, उनकी उम्र का भी कोई सुबूत नहीं है। उनके मुताबिक इनमें कई नाबालिग हैं। ये गिरफ़्तार बच्चे केवल तमाशबीन थे या ट्यूशन पढ़कर आ रहे थे या उधर से गुजर रहे थे। मैत्रेयी कृष्णन ने जोड़ा कि यूएपीए का मनमाना इस्तेमाल हो रहा है।
शांतिपूर्ण आंदोलनकारी अखिल गोगोई और उनके साथियों का दमन
कृषक मुक्ति संग्राम समिति के अखिल गोगोई पिछले एक साल से जेल में हैं। उन पर यूएपीए के कार्रवाई हुई है और एनआईए जांच कर रही है। वहां के वकील राहुल सेंसुआ ने बताया कि अखिल काफ़ी समय से असम के लोगों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। नागरिकता संशोधन कानून बनने के पहले से ही वे इसके खिलाफ आवाज उठा रहे थे। कानून बनने के बाद जब इसके विरोध में अभियान शुरू हुआ तो अखिल अलग-अलग जिलों में आयोजित सभाओं में हिस्सा ले रहे थे। इसी दौरान अखिल को गिरफ्तार किया गया। उनका मामला एनआईए को दे दिया गया।
उन्होंने बताया कि असम में अखिल गोगोई से पहले लोकतांत्रिक रूप से आंदोलन कर रहे किसी के खिलाफ यूएपीए नहीं लगाया था। दिसम्बर 2019 से वह जेल में हैं। एनआईए की अदालत और हाईकोर्ट से उनकी जमानत रद हो गयी। जमानत के मामले में सुप्रीम कोर्ट का साफ निर्देश है, इसके बावजूद यूएपीए के तहत गिरफ्तार लोगों को जमानत नहीं मिल रही है।
बेदब्रता कृषक मुक्ति संग्राम समिति के छात्र मुक्ति संघर्ष से जुड़े हैँ। उन्होंने कि हमारे संगठन को हर सरकार में दमन झेलना पड़ रहा है। हमारे सदस्य को हर जिले में आज भी प्रताड़ित किया जा रहा है।
अदालतें जमानत नहीं दे रहीं
महाराष्ट्र में यूएपीए की चर्चा शुरू करते हुए मशहूर वकील मिहिर देसाई ने कहा कि आज हम भीमा कोरेगाँव मामले में गिरफ्तार लोगों की बात नहीं करेंगे। हम आज दिल्ली यूनिवर्सिटी के शिक्षक और यूएपीए के तहत गिरफ़्तार साईंबाबा की बात करेंगे जो 90 फीसदी विकलांग हैं। हाईकोर्ट से भी उन्हें क्लिनिकल जमानत नहीं मिली है। वे सालों से जेल में है।
वकील वहाब खान ने एक कश्मीरी फारूक नाइकू के केस की जानकारी दी और बताया कि इस युवक को एक सीडी, पेन ड्राइव, ईमेल और नकली नोट चलाने के आरोप में पकड़ा गया। जिस सीडी के बिना पर उसे यूएपीए में गिरफ़्तार किया गया, उस सीडी में मौजूद सब कुछ यू-ट्यूब पर मौजूद है। मीडिया के लोग वही क्लिप इस्तेमाल कर रहे हैं। मगर उस पर यूएपीए का केस हो गया है। उस पर आरोप लगा कि हिज्बुल मुजाहिदीन से उसका जुड़ाव था। कई साल बाद उसे जमानत मिली।
मुम्बई में 2006 में बम विस्फोट के मामले में 13 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। इन पर यूएपीए और मकोका लगा। इन सबमें सिर्फ एक नौजवान अब्दुल वहीद शेख बरी हुआ। उसने बताया कि हम पर यूएपीए लगाया गया और हमें आतंकी संगठनों का सदस्य बताया गया। हम पर मकोका लगाया गया। मेरे खिलाफ मेरे ही रिश्तेदार को खड़ा कर दिया गया। नौ साल बाद मैं बरी हुआ। इससे पहले मैंने कई बार अलग-अलग अदालतों में जमानत की अपील की लेकिन कहीं से जमानत नहीं मिली।
मुझे टॉर्चर किया गया। मेरे साथ एक व्यक्ति थे। उनको भी टॉर्चर किया गया। उनके शरीर पर निशान थे। अस्पताल ने भी इन जख्मों को रिकॉर्ड किया। फिर भी जज नहीं माने। पुलिस ने उसका कथित कुबूलनामा पेश किया और उसे सज़ा हो गयी। बहुत दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि जज भी हमें आतंकवादी तरह देखते थे। वासुदेवन ने मुम्बई के बिजली कम्पनियों के साथ काम करने वाले ठेका मजदूरों के खिलाफ यूएपीए के तहत कार्रवाई करने के बारे में बताया। गिरफ्तार मजदूरों में से कुछ को हाईकोर्ट से बेल तो मिली। अब इन्हें काम नहीं मिल रहा है।
एडवोकेट जगदीश मेश्राम विदर्भ में आदिवासियों को कानूनी मदद देने का काम कर रहे हैं। जगदीश के मुताबिक विदर्भ में यूएपीए उन लोगों पर लगाया जाता है जो सरकार के खिलाफ़ बोलते हैं, खदान का विरोध करते हैं, आदिवासियों के लिए काम करते हैं, कार्यकर्ता हैं। गढ़चिरौली के गरीब आदिवासियों पर नक्सली होने का आरोप लगाकर यूएपीए के तहत गिरफ़्तारी हो जाती है। यही नहीं, निचली अदालतों में जज जैसे ही आरोप के रूप में नक्सली या यूएपीए लगा देखते हैँ तो जमानत ही नहीं देते।
पंजाब में ज़रा ज़रा सी बात पर लगा यूएपीए
लम्बे समय से पंजाब-हरियाणा में मानवाधिकारों के उल्लंघन के विरोध में आवाज़ उठाने वाले वकील राजविंदर सिंह बैंस ने कहा कि पंजाब में 16 हजार से ज्यादा फ़र्जी एनकाउंटर करने के बाद भी जब पुलिस बच जाती है, तो मेरी समझ में नहीं आता कि आखिर यूएपीए की जरूरत क्यों है? टाडा और पोटा में हिंसा की घटना का होना ज़रूरी था। यह हिंसा की घटना के लिए आरोपितों पर इस्तेमाल होता था। यह क़ानून तो टाडा और पोटा से भी आगे निकल गया।
राजविंदर सिंह बैंस ने कहा, यूएपीए के तहत कुछ नहीं चाहिए। कोई घटना हो, इसकी भी आवश्यकता नहीं है। सिर्फ कागज का एक टुकड़ा चाहिए। सिर्फ किसी संगठन के सदस्य होने के नाते किसी पर यूएपीए लग सकता है। यूएपीए में हम जैसे वकील या पत्रकार आसानी से फँस सकते हैं। दस्तावेजों को देखना, पढ़ना हमारा काम है। मगर हमें इसी वजह से फँसाया जा सकता है। इसीलिए हम इतने बड़े पैमाने पर वकीलों-पत्रकारों-मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को जेल में देख रहे हैं। उन्होंने पंजाब हरियाणा में इस क़ानून के मनमाने इस्तेमाल के कई दिलचस्प किस्से भी सुनाये। देश के खिलाफ युद्ध करने की तैयारी के आरोप में तीन नौजवानों को आजीवन कारावास हो गया। उनके पास से सिर्फ कुछ कागजात और कुछ लाख रुपये मिलने के आरोप थे।
केरल में विरोधियों के खिलाफ इस्तेमाल
केरल की हालत का जिक्र करते हुए एडवोकेट मधुसूदन केएस ने कहा कि यूएपीए के दुरुपयोग का मसला नहीं है बल्कि बात तो इसके इस्तेमाल की होनी चाहिए। इसका इस्तेमाल विरोधियों को चुप कराने के लिए किया जा रहा है। इसका इस्तेमाल हर पार्टी कर रही है। यहां सामान्य तौर पर यूएपीए में जेल जाने वाले लोग पांच साल से कम जेल में नहीं रहे हैं। ताहा फजल के केस का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि बैनर पर नारा लिखना या नारा लगाना या कोई कागज होना ही यूएपीए के तहत कार्यवाही के लिए काफ़ी है।
शाइना पीए ने बताया कि माओवादी संगठन के नेताओं की मदद करने का आरोप में कैसे उन्हें और उनके पति को यूएपीए के तहत गिरफ़्तार किया। उन्हें साढ़े तीन साल जेल में रहना पड़ा। उनके पति और कुछ लोग छह साल से जेल में है। अरोपपत्र अब तक दाखिल नहीं किये गये हैं। इन पर यह भी आरोप है कि ये चुनाव बहिष्कार की बात करते हैं। इनके दो वकील भी यूएपीए के तहत गिरफ़्तार किये गये हैं। इनका केस तो अब तक शुरू नहीं हुआ है।
पीयूसीएल केरल के पौरान ने कहा कि वाम फ्रंट ने वादा किया था कि जब वे सत्ता में आयेंगे तो यूएपीए के तहत दायर मामलों की समीक्षा करेंगे। यह तो नहीं हुआ बल्कि इसके उलट यूएपीए के तहत दायर मामले बढ़ गये। उन्होंने बताया कि सूचना के अधिकार के तहत यूएपीए के तहत दायर मामलों की जानकारी माँगी गयी लेकिन कोई सूचना नहीं मिली। हमने अपने तरीके से 114 केस के बारे में जानकारी इकट्ठा की।
(द्वारा जारी: PUCL महासचिव वी सुरेश)