अडानी समूह ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड में संशोधित नेटिव टाइटल एक्ट के जरिये कार्मिकेल कोयला खदानों का अधिग्रहण करना चाहता है। स्थानीय लोग ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट तट पर अडानी की इस परियोजना के खिलाफ अदालत में जाने को तैयार हैं।
ऑस्ट्रेलिया में अडानी समूह की ओर से कोयला खनन परियोजना के अधिग्रहण की कोशिशों का विरोध धीमा नहीं पड़ा है। क्वींसलैंड में दुनिया के सबसे बड़ी कोयला खनन परियोजनाओं में से एक के खिलाफ संघर्ष करने वाली वांगन एंड जागालिंगऊ (डब्ल्यू एंड जे) पारंपरिक भू-स्वामी परिषद ने सरकार को साफ चेतावनी दी है कि वह ऐसी किसी भी कोशिश का पुरजोर विरोध करेगी। परिषद ने कहा है कि वह संशोधित नेटिव टाइटल एक्ट को आगे बढ़ने नहीं देगी। इस संशोधित प्रस्ताव के जरिये भारत के प्रमुख कारोबारी समूहों में से एक अडानी ग्रुप कार्मिकेल कोयला खदानों का अधिग्रहण करना चाहता है। ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट तट पर अडानी की इस परियोजना के खिलाफ परिषद अदालत में लड़ेगी। (https://envirojustice.org.au/sites/default/files/files/Submissions%20and%20reports/The_Adani_Brief_by_Environmental_Justice_Australia.pdf)
डब्ल्यूएंडजे के प्रवक्ता एड्रियन बरगब्बा ने कहा, अडानी समूह हमारे लोगों की जमीन के इस्तेमाल के लिए जिस घरेलू समझौते (आईएलयूए) को पेश कर रहा है वह बिल्कुल गैरकानूनी है। हमने धोखाधड़ी भरे इस सौदे के खिलाफ निर्णायक कदम उठाने का फैसला किया ताकि इस फर्जी समझौते को खत्म किया जाए। हम फेडरल कोर्ट में अब निर्णायक कदम उठाने जा रहे हैं।
बरागब्बा ने कहा, हमने नेशनल नेटिव टाइटिल ट्रिब्यूनल में सबूत पेश कर दावा किया है कि अडानी ने खदानों के लिए डब्ल्यूएंडजे के साथ कोई समझौता नहीं किया है। दरअसल इन खदानों में काम शुरू होने से बड़े पैमाने पर तबाही मचेगी। इससे पूरा प्राकृतिक क्षेत्र की तस्वीर ही बदल जाएगी। देशज लोगों की पुरानी जमीन और पर्यावरण खत्म हो जाएगा। जल स्त्रोत खत्म हो जाएंगे और स्थानीय परंपरा और संस्कृति का विनाश हो जाएगा।
बरागब्बा ने कहा, हम तीन बार भारतीय खनन कारोबारी समूह अडानी के सौदे से इनकार कर चुके हैं। अब वे बैकफुट पर हैं। पिछली बार वह (अडानी समूह) अपनी फरियाद लेकर क्वीसलैंड रिसोर्सेज काउंसिल एंड फेडरल अटार्नी जनरल के पास गए। उन्होंने नेटिव टाइटिल एक्ट ‘अडानी संशोधन’ की मांग रखी।
बरागब्बा का दावा किया कि उनके संगठन को पता चला है कि अडानी ने इस कानून में संशोधन कराने की कोशिश की। देश में संसाधन महकमे से जुड़े पूर्व मंत्री इयान मेकफारलेन ने अडानी के साथ टाउंसिवले में बिजनेस ब्रेकफास्ट करने का दावा किया। इयान मेकफारलेन का कहना था कि उन्होंने केनबरा में एक प्रभावशाली दोस्त से अडाणी का काम कराने को कहा था।
डब्लयूएंडजे के वकील कॉलिन हार्डी ने कहा कि अडानी और माइनिंग इंडस्ट्री एक संकट का माहौल पैदा करने की कोशिश कर रही है ताकि फेडरल सरकार हड़बड़ी में उनके हित में नेटिव टाइटिल एक्ट में बदलाव कर दे।
नेटिव टाइटल एक्ट के मुताबिक इससे जुड़े रजिस्टर्ड सदस्यों को आईएलयूए पर हस्ताक्षर करना जरूरी है। यह नेटिव टाइटिल समूह और अन्य लोगों के बीच जमीन और पानी के इस्तेमाल पर होने वाला स्वैच्छिक समझौता है। कोई भी परिवर्तन इसी समझौते के तहत होगा। उद्योग समूह की ओर से बुलाए गई एक बैठक में कुछ सदस्यों ने आईएलयूए पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था। यही वजह है कि अडानी समूह इस कानून में संशोधन कराना चाहता है।
इस बीच मेलबर्न स्थित गैर लाभकारी कानूनी संगठन एनवायरनमेंटल जस्टिस ऑस्ट्रेलिया (ईजेए) ने आस्ट्रेलिया सरकार को अडानी की ओर से भेजे गए ब्रीफ के विश्लेषण के बाद कहा कि अडानी के प्रोजेक्ट को जिस तरह कुछ संस्थाएं फाइनेंस करने के लिए आगे आई हैं, उससे उनकी वित्तीय साख को धक्का लग सकता है।
ईजीए के वकील और रिपोर्ट को लिखने वाले एरियन विलकिनसन ने कहा कि भारत के अडानी समूह का अंतरराष्ट्रीय रिकार्ड चिंता पैदा करता है। उनका रिकार्ड उन्हें ऑस्ट्रेलिया में कारोबार करने देने के मामले में सवाल पैदा करता है।
रिपोर्ट में पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले अडानी समूह के कई कदमों का जिक्र किया गया है। इनमें कोयला ढोने वाले अडानी के एक जहाज से मुंबई तट पर कोयला और तेल रिसने का उदाहरण दिया गया है। इससे पर्यटन को तो नुकसान पहुंचा ही समुद्री पर्यावरण भी प्रदूषित हुआ। अडानी को इसके एवज में 9,75000 ऑस्ट्रेलियाई डॉलर का हर्जाना देना पड़ा।
अडानी समूह पर बगैर पर्यावरण अनुमति लिए भारत में हजीरा पोर्ट का निर्माण शुरू कर दिया था। इससे स्थानीय पारिस्थितिकी का तो नुकसान हुआ ही। स्थानीय मछुआरों के रोजगार पर भी नकारात्मक असर पड़ा। कोर्ट को पारिस्थितिकी तंत्र को बरकरार रखने के लिए अडानी समूह पर हर्जाना लगाना पड़ा।