भाजपा की आलोचना करने पर पुरस्कार की सूची से हटाया गया प्रोफेसर का नाम

Written by Sabrangindia Staff | Published on: March 11, 2019
केंद्र और राज्य की भाजपा नेतृत्व वाली सरकारों की आलोचना करना एक प्रोफेसर को महंगा पड़ गया. प्रोफेसर ने आरोप लगाया है कि भाजपा की सरकार की आलोचना करने पर उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से मिलने वाले पुरस्कार की लिस्ट से उसका नाम हटा दिया गया है.



समाचार वेबसाइट द वायर की रिपोर्ट के मुताबिक, लखनऊ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रविकांत ने सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर भाजपा नेतृत्व वाली केंद्र और राज्य सरकारों की नीतियों के खिलाफ पोस्ट लिखा था. रविकांत हिंदी के सहायक प्रोफेसर हैं. राज्य कर्मचारी साहित्य संस्था द्वारा प्रतिवर्ष दिए जाने वाले रमन लाल अग्रवाल पुरस्कार के लिए उन्हें नामित किया गया था. राज्य कर्मचारी साहित्य संस्था राज्य द्वारा शासित सरकारी अधिकारियों का एक समूह है.

1996 में स्थापित यह संस्था हिंदी में लिखने वाले प्रतिष्ठित साहित्यकारों प्रतिवर्ष 25 से अधिक पुरस्कार देता है. हाल ही में इसने दो गैर हिंदी भाषी कवियों या उपन्यासकारों को भी पुरस्कार देना शुरू कर दिया. इनमें से अधिकांश पुरस्कार राज्य सरकार द्वारा प्रायोजित हैं.

रविकांत को इस महीने के अंत तक यह पुरस्कार मिलना था. लेकिन 6 मार्च को फोन करके उन्हें जानकारी दी गई कि उनका नाम इस सूची से हटा दिया गया है. संस्था ने उन्हें बताया कि नई दिल्ली स्थित एनजीओ ह्यूमन एंड एनिमल क्राइम कंट्रोल एसोसिएशन के मुख्य प्रबंध निदेशक शैलेंद्र सिंह ने उनके फेसबुक पोस्ट पर आपत्ति जताई.

बकौल रविकांत, ‘मुझे 17 मार्च 2019 को यह पुरस्कार मिलने वाला था. पत्र में मेरे फेसबुक पोस्ट का जिक्र किया गया है जिससे मुझे लगता है कि भाजपा नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश और केंद्र सरकार के खिलाफ आलोचनात्मक टिप्पणियां लिखने के कारण मुझे सजा दी गई है.’

उन्होंने कहा, ‘वह हिंदी पत्रिका अदहन में सांप्रदायिकता के खिलाफ एक कॉलम लिखते हैं. पिछले साल राजकमल प्रकाशन ने मेरी दो पुस्तकों आजादी और राष्ट्रवाद और आज के आईने में राष्ट्रवाद को प्रकाशित किया था. दोनों किताबें बेस्टसेलर्स थीं.’

उन्होंने कहा, ‘इसलिए मेरे राजनीतिक विचार सार्वजनिक हैं. मुझे आश्चर्य इस बात का है कि संस्था ने एक ऐसे व्यक्ति की शिकायत पर मेरा पुरस्कार रद्द कर दिया जिसका साहित्य या सामाजिक विज्ञान की दुनिया से कोई लेना-देना नहीं है.’ इस मामले पर साहित्य संस्था के महासचिव दिनेश चंद्र अवस्थी ने कहा कि राजनीतिक विवाद से बचने के लिए रविकांत के पुरस्कार को निरस्त किया गया.

उन्होंने कहा, ‘हमें प्रोफेसर से कोई व्यक्तिगत शिकायत नहीं है लेकिन जब उनके नामांकन के खिलाफ आपत्तियां उठाई गईं, तो हमारी समिति ने उनका पुरस्कार रद्द करने का फैसला किया.’ उन्होंने कहा, ‘हम सभी सरकारी कर्मचारी हैं. हम एक पुरस्कार को लेकर कोई विवाद नहीं चाहते हैं.’

उन्होंने आगे कहा कि संस्था जो अन्य पुरस्कार देती है उसमें यह ऐसा पुरस्कार है जो निजी तौर पर वित्त पोषित है. रमन अग्रवाल लखनऊ के मशहूर कवि हैं. उनके बेटे ने पिछले साल इस पुरस्कार की शुरुआत की थी और इसे हमारे मंच से दिया जाता है. उन्होंने कहा, ‘इलाहाबाद के हिंदी कवि श्लेष गौतम को अब इस पुरस्कार के लिए चुना गया है.’

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