नई दिल्ली। विश्व बैंक के पूर्व अर्थशास्त्री और भारत सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु ने अर्थव्यवस्था की स्थिति को लेकर खुलकर अपनी बात रखी है। बसु ने कहा कि बीते सत्तर वर्षों में भारत ने जो कमाया था वो अब गंवा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि उत्तर प्रदेश में बीते दो तीन सालों में सामाजिक ताना बाना बिगड़ा है। उन्होंने राज्य में धार्मिक उन्माद बढ़ने पर भी चिंता जताई।

इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन डेवलपमेंट की चर्चा में कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर कौशिक बसु और योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोटेंक सिंह अहलूवालिया ने अपने विचार रखे। इस चर्चा में उन्होंने राजनीतिक सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक मुद्दों पर विस्तार से बात की।
कौशिक बसु कहते हैं कि हम सब कोरोना के हालात को दुनियाभर में देख रहे हैं। लेकिन हमें ये भी देखना चाहिए पहले भी ऐसे कई मौके आए हैं। 1968 में आए हॉन्ग-कॉन्ग फ्लू से करीब 10 लाख लोगों की मौत हुई थी, 1958 में एशियाई फ्लू आया उससे 15 से 20 लाख लोगों की मौत हुई, 1980 में स्पेशिन फ्लू आया ये भी बहुत बड़ा फ्लू था। तो इस लिहाज से ये समझना होगा कि दुनिया ने ऐसे कई झटके देखे हैं। फर्क ये है कि तब सोशल मीडिया नहीं था, तब हर दो मिनट में खबर नहीं मिलती थी। तो आज पल-पल की खबरों के कारण डर का माहौल ज्यादा है और ये बात समस्या को और बड़ा बना रही है।
कौशिक बसु ने 1990 के बाद की भारत की ग्रोथ स्टोरी पर बात करते हुए कहा कि 2003 से लेकर 2008 तक भारत की ग्रोथ रेट में लगातार तेजी देखने को मिली लेकिन भारत की ग्रोथ रेट पिछले सालों में लगातार तेजी से गिरी है। साल 2016-17 में भारत की ग्रोथ रेट 8.2% थी, जो 2019-20 में गिरकर 4.2% पर आ गई थी। लेकिन अब कोरोना संकट के बाद अनुमान लगाया जा रहा है कि ये गिरकर -5.8% पर आ चुकी है। जो कि चिंता का विषय है। बसु ने इसके पीछे के कारणों पर आगे विस्तार से बात की है।
कोरोना संक्रमण के बाद एक बहुत ही शॉर्ट नोटिस पर भारत में लॉकडाउन लगाया गया, उसके बाद सरकार के पास कोई प्लान नहीं था कि नौकरीपेशा लोगों का क्या होगा, दिहाड़ी मजदूरी करने वालों का क्या होगा। कौशिक बसु कहते हैं कि इस दौरान सरकार की नीतियों में कमी है। कोरोना संकट के बाद प्रधानमंत्री ने जिस पैकेज की घोषणा की थी। जब ऐलान हुआ तो बहुत खुशी हुई कि इतना बड़ा पैकेज सरकार दे रही है लेकिन जब पूरी तस्वीर सामने आई तो निराशा हुई।
सरकार को अब नए नोट छापने के बारे में सोचना चाहिए। मैं इसके पक्ष में इसलिए हूं क्योंकि हम एक विशेष परिस्थिति से गुजर रहे हैं। हां ये सही है कि इसकी वजह से महंगाई बढ़ सकती है लेकिन सतर्कता बरतते हुए ये किया जा सकता है। अब सरकार को चीजों पर नियंत्रण कम करना चाहिए। नई टैक्स नीति लानी चाहिए जिसमें अमीरों पर टैक्स लगाइए और गरीबों को उसका फायदा दीजिए।
कौशिक कहते हैं कि भारत में संस्थाओं की स्थिति खराब हो रही है। अगर ये ऐसे ही चलता रहा तो ये भारत के लिए अच्छा नहीं होगा। अर्थव्यवस्था की कामयाबी के लिए भरोसे की जरूरत होती है। लेकिन बांटने और नफरत की राजनीति से हम अपना ही नुकसान कर रहे हैं, भरोसा जो सफलता की बुनियाद है उसे धक्का पहुंच रहा है।
जब तक लोग असुरक्षित महसूस करते हैं तब तक वो निवेश नहीं करते। निवेश का सीधा संबंध समाज में भरोसे से है। तो निवेश में जो भयानक गिरावट हुई है उसके पीछे भरोसे में गिरावट भी एक बड़ा कारण है। पिछले दिनों में आम लोगों में असुरक्षा का भाव आया है और उनका भरोसा टूटा है।
पिछले प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह ने मुझे अपनी सरकार में बतौर चीफ इकनॉमिक एडवाइजर नियुक्त किया। वो जानते थे कि मैं किसी भी पार्टी से नहीं हूं और मैं उनकी सरकार और नीतियों को लेकर आलोचनात्मक भी था। लेकिन उनके लिए सबसे अहम ये था कि मैं उनके सामने कितने आइडिया लाता हूं।
कौशिक बताते हैं कि '2011 का एक वाकया मुझे याद आता है कि मैंने एक अखबार में लेख लिखा कि भारत का भ्रष्टाचार निरोधी कानून संशोधित किया जाना चाहिए। मैंने तर्क किया कि रिश्वत देने वाले को सजा नहीं होनी चाहिए सिर्फ रिश्वत लेने वाले अधिकारी/कर्मचारी को सजा होनी चाहिए। मेरे इस विचार पर काफी बवाल हुआ। कई लोगों ने तब के प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री को पत्र लिखे और सलाह दी कि इनको सरकार से बाहर किया जाना चाहिए। तब मुझे एक टीवी चैनल पर अपने विचार रखने के लिए बुलाया गया, मैंने सोचा कि टीवी पर जाने से पहले मुझे प्रधानमंत्री से पूछना चाहिए।'
'मैंने मनमोहन सिंह को फोन किया। प्रधानमंत्री ने कहा मैंने आपके विचार अखबार में पढ़े लेकिन मैं आपसे इस मामले में असहमत हूं। मैंने उनसे तर्क करने की कोशिश की लेकिन प्रधानमंत्री से कितनी देर तर्क किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि भले ही मैं आपसे असहमत हूं लेकिन आपको अपने विचार अभिव्यक्त करना ही चाहिए। एडवाइजर का काम है कि वो ज्यादा से ज्यादा आइडिया सुझाए। तो आप टीवी पर जाने के लिए आजाद हैं और अपने विचार रखे।'
कौशिक कहते हैं कि वो मेरे लिए बहुत यादगार क्षण थे। भारत को इस तरह की घटनाओं के लिए गर्व होना चाहिए। भारत को एक खुला समाज होना चाहिए, जहां पर अलग-अलग तरह के विचारों पर चर्चा हो। ये बहुत बढ़िया उदाहरण है कि मनमोहन सिंह कैसे सही मायनों में एक मजबूत और आत्मविश्वास से भरे हुए नेता थे। वो विचारों की विविधता का सम्मान करते थे।

इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन डेवलपमेंट की चर्चा में कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर कौशिक बसु और योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोटेंक सिंह अहलूवालिया ने अपने विचार रखे। इस चर्चा में उन्होंने राजनीतिक सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक मुद्दों पर विस्तार से बात की।
कौशिक बसु कहते हैं कि हम सब कोरोना के हालात को दुनियाभर में देख रहे हैं। लेकिन हमें ये भी देखना चाहिए पहले भी ऐसे कई मौके आए हैं। 1968 में आए हॉन्ग-कॉन्ग फ्लू से करीब 10 लाख लोगों की मौत हुई थी, 1958 में एशियाई फ्लू आया उससे 15 से 20 लाख लोगों की मौत हुई, 1980 में स्पेशिन फ्लू आया ये भी बहुत बड़ा फ्लू था। तो इस लिहाज से ये समझना होगा कि दुनिया ने ऐसे कई झटके देखे हैं। फर्क ये है कि तब सोशल मीडिया नहीं था, तब हर दो मिनट में खबर नहीं मिलती थी। तो आज पल-पल की खबरों के कारण डर का माहौल ज्यादा है और ये बात समस्या को और बड़ा बना रही है।
कौशिक बसु ने 1990 के बाद की भारत की ग्रोथ स्टोरी पर बात करते हुए कहा कि 2003 से लेकर 2008 तक भारत की ग्रोथ रेट में लगातार तेजी देखने को मिली लेकिन भारत की ग्रोथ रेट पिछले सालों में लगातार तेजी से गिरी है। साल 2016-17 में भारत की ग्रोथ रेट 8.2% थी, जो 2019-20 में गिरकर 4.2% पर आ गई थी। लेकिन अब कोरोना संकट के बाद अनुमान लगाया जा रहा है कि ये गिरकर -5.8% पर आ चुकी है। जो कि चिंता का विषय है। बसु ने इसके पीछे के कारणों पर आगे विस्तार से बात की है।
कोरोना संक्रमण के बाद एक बहुत ही शॉर्ट नोटिस पर भारत में लॉकडाउन लगाया गया, उसके बाद सरकार के पास कोई प्लान नहीं था कि नौकरीपेशा लोगों का क्या होगा, दिहाड़ी मजदूरी करने वालों का क्या होगा। कौशिक बसु कहते हैं कि इस दौरान सरकार की नीतियों में कमी है। कोरोना संकट के बाद प्रधानमंत्री ने जिस पैकेज की घोषणा की थी। जब ऐलान हुआ तो बहुत खुशी हुई कि इतना बड़ा पैकेज सरकार दे रही है लेकिन जब पूरी तस्वीर सामने आई तो निराशा हुई।
सरकार को अब नए नोट छापने के बारे में सोचना चाहिए। मैं इसके पक्ष में इसलिए हूं क्योंकि हम एक विशेष परिस्थिति से गुजर रहे हैं। हां ये सही है कि इसकी वजह से महंगाई बढ़ सकती है लेकिन सतर्कता बरतते हुए ये किया जा सकता है। अब सरकार को चीजों पर नियंत्रण कम करना चाहिए। नई टैक्स नीति लानी चाहिए जिसमें अमीरों पर टैक्स लगाइए और गरीबों को उसका फायदा दीजिए।
कौशिक कहते हैं कि भारत में संस्थाओं की स्थिति खराब हो रही है। अगर ये ऐसे ही चलता रहा तो ये भारत के लिए अच्छा नहीं होगा। अर्थव्यवस्था की कामयाबी के लिए भरोसे की जरूरत होती है। लेकिन बांटने और नफरत की राजनीति से हम अपना ही नुकसान कर रहे हैं, भरोसा जो सफलता की बुनियाद है उसे धक्का पहुंच रहा है।
जब तक लोग असुरक्षित महसूस करते हैं तब तक वो निवेश नहीं करते। निवेश का सीधा संबंध समाज में भरोसे से है। तो निवेश में जो भयानक गिरावट हुई है उसके पीछे भरोसे में गिरावट भी एक बड़ा कारण है। पिछले दिनों में आम लोगों में असुरक्षा का भाव आया है और उनका भरोसा टूटा है।
पिछले प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह ने मुझे अपनी सरकार में बतौर चीफ इकनॉमिक एडवाइजर नियुक्त किया। वो जानते थे कि मैं किसी भी पार्टी से नहीं हूं और मैं उनकी सरकार और नीतियों को लेकर आलोचनात्मक भी था। लेकिन उनके लिए सबसे अहम ये था कि मैं उनके सामने कितने आइडिया लाता हूं।
कौशिक बताते हैं कि '2011 का एक वाकया मुझे याद आता है कि मैंने एक अखबार में लेख लिखा कि भारत का भ्रष्टाचार निरोधी कानून संशोधित किया जाना चाहिए। मैंने तर्क किया कि रिश्वत देने वाले को सजा नहीं होनी चाहिए सिर्फ रिश्वत लेने वाले अधिकारी/कर्मचारी को सजा होनी चाहिए। मेरे इस विचार पर काफी बवाल हुआ। कई लोगों ने तब के प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री को पत्र लिखे और सलाह दी कि इनको सरकार से बाहर किया जाना चाहिए। तब मुझे एक टीवी चैनल पर अपने विचार रखने के लिए बुलाया गया, मैंने सोचा कि टीवी पर जाने से पहले मुझे प्रधानमंत्री से पूछना चाहिए।'
'मैंने मनमोहन सिंह को फोन किया। प्रधानमंत्री ने कहा मैंने आपके विचार अखबार में पढ़े लेकिन मैं आपसे इस मामले में असहमत हूं। मैंने उनसे तर्क करने की कोशिश की लेकिन प्रधानमंत्री से कितनी देर तर्क किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि भले ही मैं आपसे असहमत हूं लेकिन आपको अपने विचार अभिव्यक्त करना ही चाहिए। एडवाइजर का काम है कि वो ज्यादा से ज्यादा आइडिया सुझाए। तो आप टीवी पर जाने के लिए आजाद हैं और अपने विचार रखे।'
कौशिक कहते हैं कि वो मेरे लिए बहुत यादगार क्षण थे। भारत को इस तरह की घटनाओं के लिए गर्व होना चाहिए। भारत को एक खुला समाज होना चाहिए, जहां पर अलग-अलग तरह के विचारों पर चर्चा हो। ये बहुत बढ़िया उदाहरण है कि मनमोहन सिंह कैसे सही मायनों में एक मजबूत और आत्मविश्वास से भरे हुए नेता थे। वो विचारों की विविधता का सम्मान करते थे।