न्यू इंडिया में भटकाव की राजनीति और जातियों के हिसाब से चुप्पी तोड़ते लोग

Written by Navnish Kumar | Published on: October 13, 2020
रेप हो जाये। हत्या हो जाये। पीड़ित की लाश को रातों रात पेट्रोल डालकर जला दिया जाए। परिवार को धमकाया जाए। संस्कारी सरकार की पुलिस लाठियां भांजे। पर जनता का कर्तव्य है कि वो चुप रहे। उसके बोलने से विकास में बाधा आ सकती है।



यही तो नया भारत है। लोकतंत्र में राजतंत्र का सुख। राजा एकोहम्। लोकतंत्र होता तो राय ली जाती मंत्री से, विपक्ष से, विद्वान से, मतैक्य न होने पर भी उस मत को भी सुन कर प्रश्रय दिया जाता, लेकिन यह तो प्रजा पर हुकूमत करने वाला क्रूर शासन है तो उसकी प्रशंसा में न उठने वाली आवाज देशद्रोही है। 

विपक्ष स्वतंत्र संस्थानों की बात करें तो सत्तापक्ष षड्यंत्र रचने की। राहुल गांधी ने कहा हैं कि किसी देश का विपक्ष एक ढ़ांचे के तहत काम करता है। प्रेस, न्यायिक व्यवस्था, लोगों की आवाज़ उठाने वाली संस्थाएं उस ढ़ांचे का हिस्सा होते हैं। उस पूरे ढ़ांचे पर BJP का नियंत्रण है। विपक्ष को कमज़ोर कहना ठीक नहीं। मुझे फ़्री प्रेस और संस्थान दीजिए ये सरकार टिक नहीं पाएगी।

विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सीएम की षड्यंत्र की थ्योरी भी कम दिलचस्प नहीं हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ‘राजनीतिक रोटियां सेंकने’ और ‘षडयंत्र’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया हैं। तो ऐसा लगा मानो वह विपक्ष के विरुद्ध राजनीतिक बयान दे रहे हों। मगर, कुछ ही घंटों में यह साफ हो गया कि सीएम योगी का यह बयान, बयान-भर नहीं था, बल्कि विपक्ष की घेराबंदी की पृष्ठभूमि थी। 

दिल्ली शाहीनबाग की तरह, मुख्यमंत्री द्वारा हाथरस में भी विदेशी फंडिंग, पीएफआई जैसे ‘पाकिस्तान परस्त संगठनों की सक्रियता’ व नक्सली कनेक्शन के बयान दिए जाते है। जिससे उपजे आक्रोश को नारों की ज़ुबान देकर भड़काने की कोशिश सत्ताधारी दल के मंत्री, सांसद और नेता करने लगे हैं। 

तो... बगैर षड्यंत्र जाने, बिना साजिश को समझे, पकड़े और साजिश से परस्पर गुंथे तारों को जोड़े बयान दिये अ रहे हैं। कम से कम, पुलिस का ‘खुलासा’ तो इसी ओर इशारा कर रहा हैं?। 100 करोड़ की फंडिंग के दावों की हवा तो ईडी ने ही निकालकर रख दी हैं। 

इसके बाद भी, पुलिस के आला अधिकारी, बीजेपी नेता व बीजेपी की आईटी सेल खुलेआम कह रहे हैं कि हाथरस में कोई बलात्कार नहीं हुआ। इसी तरह योगी सरकार दोनों पक्ष का नार्को टेस्ट कराने की घोषणा कर पीड़ित पक्ष पर ही दबाव बना रही है। 

यही नहीं, हाथरस से बीजेपी के पूर्व विधायक राजवीर सिंह पहलवान के घर जातीय पंचायत में भी यही राग अलापा जाता हैं कि बलात्कार हुआ ही नहीं। इसके साथ कॉल डिटेल, जेल से चिट्ठी लिखने और आरोपियों के सवालों से पीड़िता के चरित्र हनन का पूरा सिलसिला ही चल निकला हैं।यानी साजिश मामला दबाने व पीड़ित परिवार के ख़िलाफ़ हैं?।

एक और तस्वीर वायरल हो रही, जिस में पीछे पुलिस खड़ी है और जो पीड़ित परिवार की मदद में आने वालों को सरेआम धमकी दे रहा है। जिस तरह दिल्ली दंगे से ठीक पहले दिल्ली पुलिस के सामने कपिल मिश्रा बयान दे रहे हैं।

पीड़ित पक्ष से मुलाक़ात व सहानुभूति जताने वालों के लिए मानदंड अलग है। उनके लिए धारा 144 है, महामारी एक्ट है, पुलिस की लाठियां हैं।

यही नहीं, जिस तरह सत्ताधारी दल अपने प्रतिस्पर्धी दलों को ‘देश विरोधी’ बताता है। उसी तरह मीडिया का एक धड़ा अपने प्रतिस्पर्धी मीडिया को साजिशकर्ताओं से मिला हुआ, दंगे भड़काने वाला और योगी-मोदी सरकार के ख़िलाफ़ साजिश करने वाला बता रहा हैं। 
  
पुलिस और उसके ‘खुलासे’ का भी अजीबोगरीब पैटर्न है। पहले जब पुलिस कोई खुलासा करती थी तो अभियुक्त सामने होता था, सबूत सामने होते थे और पूरी स्टोरी व उससे जुड़े एक-एक तार सामने होते थे। अब ऐसा नहीं है। अब हुक्मरान पहले बयान देते हैं। उस बयान के हिसाब से केस दर्ज होता है। पुलिस का ‘खुलासा’ होता है।

इसके बाद 'खुलासे" का राजनीतिक तौर पर और फिर मीडिया के द्वारा मनमाफिक इस्तेमाल होता हैं। सरकार और पुलिस के इस खुलासे का डंका मीडिया पीटता है। मीडिया को सबूत नहीं चाहिए। यह बाइट मीडिया है। सरकार ने बोला। पुलिस ने बोला। दोनों की बाइट है। हो गई साजिश। हो गया भंडाफोड़। 

यह सब तब है जब सब जानते हैं कि यह आम बलात्कार का केस नहीं है, जिसकी किसी अन्य केस से तुलना हो। यह दबंग पड़ोसी जिसका जातीय अभिमान बयान बनकर सामने है कि वे दलितों से दूरी बनाकर रहते हैं, बलात्कार कैसे कर सकते हैं! मानो छुआछूत बलात्कार की वजह नहीं सुरक्षा की गारंटी हो!।

महत्वपूर्ण यह भी हैं कि नार्को टेस्ट और ये जांच पीड़ित परिवार को झूठा बताने के लिए है या फिर अभियुक्तों के ख़िलाफ़ सबूत जुटाने के लिए। कुल मिलाकर देंखे तो पूरी जांच ही सवालों के घेरे में है। तो पीड़िता से हमदर्दी रखने वालों के लिए मुश्किल यह है कि कहीं उन्हें भी किसी साजिश का हिस्सा न क़रार दिया जाए।

बहरहाल, जांच सीबीआई को चली गईं हैं जिसने हत्या व गैंगरेप की धाराओं में रिपोर्ट दर्ज कर ली हैं। वहीं हाईकोर्ट में स्वत: संज्ञान मामले में पीड़िता के परिजनों ने सुरक्षा, मामला अन्य राज्य में ट्रांसफर करने, डीएम पर धमकाने व पुलिस पर शुरू से ही सही काम न करने के आरोप लगाते हुए, सीबीआई जांच पूरी होने तक रिपोर्ट को गोपनीय रखे जाने की मांग की हैं।

सुप्रीम कोर्ट 15 अक्तूबर को सुनवाई करेगा लेकिन आरोप-प्रत्यारोप की 'न्यू इंडिया' की भटकाव की राजनीति के बीच, जांच का पूरा हश्र देखना बाकी हैं तो उससे भी अहम नये युवा व संस्कारी भारत में लोगों की चुप्पी, जातियों के हिसाब से टूटते देखना भी कम दिलचस्प नहीं हैं। 

खैर.. बलरामपुर व झांसी आदि के लिए भी तो संवेदनाएं चाहिए। क्योंकि...

हाथरस से कैमरे लौट चुके है...
लाइव थम चुका है...
शोर नहीं सन्नाटा है...
घर की दहलीज़ पर मॉं रो रही है..
गॉंव में सिर्फ एक लड़की कम है....!।

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