केंद्र सरकार की वन नीति के खिलाफ "इज्जत से जीने का अधिकार अभियान" ने मोर्चा खोलने की तैयारी कर ली है। इज्जत से जीने का अधिकार अभियान ने ऐलान किया कि आगामी 17 नवंबर 2019 को देश भर के राज्य की राजधानियों और अन्य शहरों में केंद्र सरकार की आदिवासी और अन्य परम्परागत वन निवासियों के खिलाफ बनाई जा रही जन विरोधी नीतियों के खिलाफ जुलुस निकाला जायेगा।
उल्लेखनीय है कि इज्जत से जीने का अधिकार अभियान आदिवासियों और जंगलवासियों का एक राष्ट्रीय मंच है। अभियान से जुड़े हुए संगठनों के द्वारा लगभग दस राज्यों में जुलुस निकाले जाएंगे।
2019 में केंद्र की सत्ताधारी पार्टी भाजपा ने दो बड़े नीतिगत कदम उठाए जिससे 10 करोड़ से ज्यादा जंगल में रहने वाले आदिवासियों और अन्य वन निवासियों के परंपरागत हक़ खतरे में आ गए हैं। अंग्रेज़ों के ज़माने से आज तक किसी भी सरकार ने वन अधिकार पर इतना व्यापक हमला नहीं किया है जितना भाजपा सरकार करना चाह रही है।
10 मार्च 2019 को केंद्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों को एक पत्र द्वारा भारतीय वन कानून में संशोधन करने के लिए एक प्रस्ताव भेजा था। इस प्रस्ताव के अनुसार वन विभाग को अधिकार दिया जायेगा कि वे वन रक्षा के नाम पर गोली चला सकते हैं और अगर वे स्पष्ट करते हैं कि गोली कानून के अनुसार चलाई गई है तो उनके ऊपर कोई कार्यवाही नहीं होगी (धारा 66 (2))।
अगर प्रस्तावित संशोधन, कानून बन जायेगा तो वन विभाग के कर्मचारी किसी भी आदिवासी या वन निवासी का अधिकार पैसे दे कर खत्म कर सकेंगे। बिना वारंट गिरफ्तार या छापे मार सकेंगे और किसी भी आदिवासी या जंगलवासी की सम्पति को जब्त कर सकेंगे। अगर वन विभाग किसी व्यक्ति पर आरोप लगाएगा और कहेगा कि उसके पास आपराधिक सामान था तो ऐसी दशा में उस व्यक्ति को खुद साबित करना पड़ेगा कि वह निर्दोष है। अगर यह प्रस्ताव कानून बन जाएगा तो, कानून का राज जंगलों में से खत्म हो जायेगा। रेंजर या DFO के कहने पर किसी को भी पकड़ा जा सकेगा या गोली भी मारी जा सकेगी। जंगल में रहने वाले लोगों के कोई भी हक़-अधिकार नहीं बचेंगे। इज्जत से जीने का अधिकार अभियान के लोगों ने कहा, "हमारा शक है कि इस संशोधन के जरिए जंगल वासियों को हटाकर वन क्षेत्र निजी कंपनियों को अपार मुनाफा कमाने के लिए सौंपा जाने की योजना है।"
2017 से फरवरी 2019 तक केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में वन अधिकार कानून के खिलाफ चल रही याचिका में खामोश रही, जिससे कोर्ट में याचिकाकर्ताओं के झूठ का जवाब देने के लिए कोई भी आवाज़ नहीं उठाया गई। जिसकी वजह से विगत 13 फरवरी को कोर्ट ने लाखों परिवारों की बेदखली करने को आदेश दिया मगर देश भर में आंदोलन होने के बाद सरकार कोर्ट में फिर से जाने के लिए मज़बूर हुई तब भी उन्होंने न्यायपीठ से यह माँग नहीं की कि उक्त आदेश वापस लिया जाए। सरकार ने सिर्फ माँग की कि आदेश को कुछ समय के लिए स्थगित किया जाए। आज तक आदेश स्थगित अथवा पेंडिंग में। 12 सितम्बर को फिर से इस याचिका में सुनवाई हुई थी और केंद्र सरकार फिर से गैर हाजिर रही। याद रखने की बात है कि देश के किसी भी प्रदेश में वन अधिकार कानून का सही कार्यान्वयन होते नहीं देखा गया है।
अभियान के लोगों ने बताया कि भोपाल, रायपुर, मुंबई, गढ़चिरोली, भुबनेश्वर, उदयपुर, देहरादून, गांधीनगर और अन्य शहरों में प्रदर्शन किया जायेगा और 21 नवंबर को भूमि-वन अधिकार आंदोलन के बैनर तले दिल्ली में भी एक बड़ा प्रदर्शन किया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि इज्जत से जीने का अधिकार अभियान आदिवासियों और जंगलवासियों का एक राष्ट्रीय मंच है। अभियान से जुड़े हुए संगठनों के द्वारा लगभग दस राज्यों में जुलुस निकाले जाएंगे।
2019 में केंद्र की सत्ताधारी पार्टी भाजपा ने दो बड़े नीतिगत कदम उठाए जिससे 10 करोड़ से ज्यादा जंगल में रहने वाले आदिवासियों और अन्य वन निवासियों के परंपरागत हक़ खतरे में आ गए हैं। अंग्रेज़ों के ज़माने से आज तक किसी भी सरकार ने वन अधिकार पर इतना व्यापक हमला नहीं किया है जितना भाजपा सरकार करना चाह रही है।
10 मार्च 2019 को केंद्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों को एक पत्र द्वारा भारतीय वन कानून में संशोधन करने के लिए एक प्रस्ताव भेजा था। इस प्रस्ताव के अनुसार वन विभाग को अधिकार दिया जायेगा कि वे वन रक्षा के नाम पर गोली चला सकते हैं और अगर वे स्पष्ट करते हैं कि गोली कानून के अनुसार चलाई गई है तो उनके ऊपर कोई कार्यवाही नहीं होगी (धारा 66 (2))।
अगर प्रस्तावित संशोधन, कानून बन जायेगा तो वन विभाग के कर्मचारी किसी भी आदिवासी या वन निवासी का अधिकार पैसे दे कर खत्म कर सकेंगे। बिना वारंट गिरफ्तार या छापे मार सकेंगे और किसी भी आदिवासी या जंगलवासी की सम्पति को जब्त कर सकेंगे। अगर वन विभाग किसी व्यक्ति पर आरोप लगाएगा और कहेगा कि उसके पास आपराधिक सामान था तो ऐसी दशा में उस व्यक्ति को खुद साबित करना पड़ेगा कि वह निर्दोष है। अगर यह प्रस्ताव कानून बन जाएगा तो, कानून का राज जंगलों में से खत्म हो जायेगा। रेंजर या DFO के कहने पर किसी को भी पकड़ा जा सकेगा या गोली भी मारी जा सकेगी। जंगल में रहने वाले लोगों के कोई भी हक़-अधिकार नहीं बचेंगे। इज्जत से जीने का अधिकार अभियान के लोगों ने कहा, "हमारा शक है कि इस संशोधन के जरिए जंगल वासियों को हटाकर वन क्षेत्र निजी कंपनियों को अपार मुनाफा कमाने के लिए सौंपा जाने की योजना है।"
2017 से फरवरी 2019 तक केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में वन अधिकार कानून के खिलाफ चल रही याचिका में खामोश रही, जिससे कोर्ट में याचिकाकर्ताओं के झूठ का जवाब देने के लिए कोई भी आवाज़ नहीं उठाया गई। जिसकी वजह से विगत 13 फरवरी को कोर्ट ने लाखों परिवारों की बेदखली करने को आदेश दिया मगर देश भर में आंदोलन होने के बाद सरकार कोर्ट में फिर से जाने के लिए मज़बूर हुई तब भी उन्होंने न्यायपीठ से यह माँग नहीं की कि उक्त आदेश वापस लिया जाए। सरकार ने सिर्फ माँग की कि आदेश को कुछ समय के लिए स्थगित किया जाए। आज तक आदेश स्थगित अथवा पेंडिंग में। 12 सितम्बर को फिर से इस याचिका में सुनवाई हुई थी और केंद्र सरकार फिर से गैर हाजिर रही। याद रखने की बात है कि देश के किसी भी प्रदेश में वन अधिकार कानून का सही कार्यान्वयन होते नहीं देखा गया है।
अभियान के लोगों ने बताया कि भोपाल, रायपुर, मुंबई, गढ़चिरोली, भुबनेश्वर, उदयपुर, देहरादून, गांधीनगर और अन्य शहरों में प्रदर्शन किया जायेगा और 21 नवंबर को भूमि-वन अधिकार आंदोलन के बैनर तले दिल्ली में भी एक बड़ा प्रदर्शन किया जाएगा।