आज के अखबारों में भारत की इफ्तार पार्टी में पाकिस्तान ने मेहमानों को रोका, सुरक्षा के नाम पर मेहमानों से बदसुलूकी की गई और भारत ने इसपर कड़ी आपत्ति जताई जैसी खबर प्रमुखता से छपी है। इंडियन एक्सप्रेस ने इस खबर के साथ 'एक्सप्लेन्ड' में बताया है कि यह 'जैसे को तैसा' वाली कार्रवाई लगती है। भारत ने 23 मार्च को पाकिस्तान नेशनल डे के मौके पर ऐसा ही किया था। अखबार ने लिखा है कि बिश्केक में 13-14 जून को होने जा रहे शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन के मद्देनजर सबकी नजर इस बात पर है कि दोनों देश, नरेन्द्र मोदी के दोबारा प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद, नए सिरे से संबंधों की शुरुआत करते हैं कि नहीं।
इस मामले में उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि जैसे को तैसा की नीति मूर्खतापूर्ण है। उन्होंने कहा है कि अब मामला 1-1 से यह बराबर हो गया है और दोनों देशों को इस विवाद को यही खत्म कर आगे बढ़ना चाहिए। इस तरह, खबर यह है कि पाकिस्तान ने जो किया वह जवाबी कार्रवाई है। अक्लमंदी नहीं है और इसे खत्म कर दिया जाना चाहिए। यह भी कि मामला 1-1 से बराबर हो गया है। लेकिन अपने अखबारों की खबर और शीर्षक पढ़ने लायक हैं। किसी ने यह नहीं बताया है कि पाकिस्तान की कार्रवाई जवाबी है और इस चक्कर में उमर अब्दुल्ला के बयान को प्राथमिकता नहीं दी गई है और खबरों को स्पष्ट करने का इंडियन एक्सप्रेस जैसा रिवाज अन्य अखबारों में नहीं है तो इसकी उम्मीद करना भी बेकार है।
जवाबी कार्रवाई की यह खबर शायद इसी कारण कुछ अखबारों में पहले पन्ने पर प्रमुखता से नहीं है। द टेलीग्राफ ने लिखा है कि मंगलवार को दिल्ली में पाकिस्तानी दूतावास की पार्टी में लगभग ऐसा ही किया गया था और यह पाकिस्तान के नेशनल डे सेलीब्रेशन के मौके पर जो किया गया था उसका लगभग दोहराव है। टेलीग्राफ की खबर बताती है कि इस संबंध में भारतीय उच्चायोग ने एक विस्तृत बयान जारी किया है और लगता है ज्यादातर अखबारों ने उसे जस का तस छाप दिया है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि पाकिस्तान की तैयारी पूरी थी और जिस होटल में इफ्तार पार्टी रखी गई थी उसके बाहर कारों को हटाने के लिए फोर्क लिफ्ट थे जो हाल के वर्षों में पहली बार किया गया है।
इंडियन एक्सप्रेस, टाइम्स ऑफ इंडिया में यह खबर सेकेंड लीड है। जबकि हिन्दुस्तान टाइम्स में यह खबर पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर भी नीचे है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने लिखा है कि इससे पहले पाकिस्तान ने दिल्ली में पाकिस्तानी उच्चायोग पर आयोजित पार्टी में भारतीय अधिकारियों पर ऐसा ही करने का आरोप लगाया था। तब पाकिस्तान ने आधिकारिक विरोध नहीं जताया था पर इतवार को ऐसी जवाबी कार्रवाई की जिसे भारतीय मिशन ने अतिथियों को परेशान करने और धमकाने का ऐसा मामला कहा है जैसा पहले कभी नहीं हुआ। मेरा मानना है कि पाकिस्तान उच्चायोग ने अगर इफ्तार पार्टी के मेहमानों को परेशान करने की शिकायत की थी तो आज की खबर में इसका उल्लेख होना ही चाहिए। आइए देखें हिन्दी अखबारों ने इसे कैसे छापा है।
दैनिक भास्कर में, चार कॉलम का फ्लैग शीर्षक है, “पाकिस्तानी अधिकारियों ने सुरक्षा जांच के बहाने कार्यक्रम में जाने से रोका” और चार कॉलम की लीड खबर का दो लाइन का शीर्षक है, इस्लामाबाद में भारतीय उच्चायोग की इफ्तार पार्टी में मेहमानों से बदसलूकी। इंट्रो है, खबर का इंट्रो है, भारतीय उच्चायुक्त बोले - ऐसी डराने वाली रणनीति गहरी निराशाजनक। इतने सब के साथ तीन कॉलम का एक और शीर्षक है, अनजान नंबरों से फोन कर अंजाम भुगतने की धमकी भी दी। इसके नीचे तीन सिंगल कॉलम की खबर हैं। पहली तो वही जो शीर्षक है, दूसरी खबर है, भारत ने विरोध दर्ज करवाया, जांच की मांग और तीसरी खबर है, उमर बोले - जैसे को तैसा की नीति कारगर नहीं। मुख्य खबर में नहीं लिखा है कि भारत में भी ऐसा हो चुका है - मंगलवार को और उससे पहले भी।
नवभारत टाइम्स में यह खबर लीड है। तीन कॉलम में तीन लाइन का शीर्षक है, इस्लामाबाद में भारत की इफ्तार पार्टी से पाक को लगी मिर्ची। खबर में आरोप तो हैं पर यह नहीं लिखा है कि भारत में भी ऐसा हो चुका है। उमर अब्दुल्ला के बयान को इसमें जोड़ दिया गया है जबकि भारतीय उच्चयुक्त के बयान, "यह हरकत राजनयिक आचरण के खिलाफ है। पाक अधिकारियों ने सभ्य बर्ताव के सभी मानकों को तोड़ा है। साझा रिश्तों पर असर पड़ेगा" को उनकी तस्वीर के साथ प्रमुखता से छापा गया है। दो कॉलम का एक और शीर्षक है, "पहले फोन पर धमकाया, फिर पार्टी में।
हिन्दुस्तान में यह खबर पांच कॉलम में लीड है। शिकायतें सारी हैं पर यह नहीं बताया गया है कि भारत में भी ऐसा हो चुका है। एक नहीं, दो बार। और तो और मुख्य खबर के साथ अखबार में उमर अब्दुल्ला का बयान भी नहीं है जबकि मानता नहीं शीर्षक से अखबार ने तारीखवार तीन घटनाओं का विवरण दिया है जब पाकिस्तान ने भारतीय राजनयिकों के साथ आपत्तिजनक व्यवहार किया। अखबार ने पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता, फरहतुल्ला बाबर के आरोप को भी प्रमुखता से छापा है कि सुरक्षा बलों ने उनसे कहा कि इफ्तार पार्टी तो रद्द हो गई है।
नवोदय टाइम्स ने इस खबर को सेकेंड लीड बनाया है। खबर को अनावश्यक तरजीह नहीं दी है और रूटीन खबर की तरह पेश किया है। मुख्यशीर्षक से लेकर, मेहमानों से माफी मांगने और उमर अब्दुल्ला के बयान को सामान्य ढंग से प्रस्तुत किया गया है। पर भारत में भी ऐसा हुआ था - कुछ ही दिन पहले औऱ मार्च में भी - यह खबर में नहीं है। हो सकता है इसका कारण यह हो कि इस अखबार ने (और दूसरों ने भी) एजेंसी की खबर लगाई है और एजेंसी की खबर में इसका जिक्र नहीं हो इसलिए भारत की घटना का जिक्र रह गया है। पर यह बहाना हो सकता है क्षम्य नहीं है।
राजस्थान पत्रिका के साथ नवोदय टाइम्स ने भी मानसून पूर्व कम बारिश की खबर को लीड बनाया है और बताया है कि 65 साल में दूसरी बार ऐसी स्थिति है। नवोदय टाइम्स ने इसे, 65 साल में दूसरा सबसे बड़ी प्रा मानसून सूखा लिखा है। पाकिस्तानी उच्चायोग की खबर राजस्थान पत्रिका ने सात लाइन के तीन कॉलम में छापी है। शीर्षक है, "पाक : इफ्तार से भगाए गए भारतीय मेहमान"। अखबार ने अपने न्यूज नेटवर्क की खबर छापी है और इसमें लिखा है, इस दौरान भारतीय अफसरों और पाकिस्तान के सुरक्षा अधिकारियों के बीच नोंकझोंक की भी खबर है। वैसे तो उमर अब्दुल्ला का बयान और पुरानी घटनाओं का जिक्र इस खबर में भी नहीं है पर इन खबरों से आप अनुमान लगा सकते हैं कि क्या हुआ होगा।
इसके मुकाबले दैनिक जागरण में यह खबर छह कॉलम में लीड है और अमर उजाला में तीन कॉलम की लीड का शीर्षक दो लाइन का है। अमर उजाला ने उमर अब्दुल्ला के बयान को 'शर्मनाक बयान' के तहत छापा है और यहां भी एजेंसी की खबर है तथा उसमें भारत में हुई ऐसी घटनाओं का उल्लेख नहीं है। जागरण में उमर अब्दुल्ला का बयान नहीं दिखा। मुख्य खबर के साथ प्रमुखता से तो नहीं ही छपा है। अखबार ने मुख्य खबर के साथ एक लंबाई की तीन छोटी-छोटी खबरें छापी हैं - उच्चायोग ने कराया विरोध, सामान्य से ज्यादा थी सुरक्षा और पाकिस्तानी नेता भी हुए परेशान। इस खबर में भी नहीं बताया गया है कि भारत में भी ऐसा हो चुका है।
अखबार ने बताया है, इफ्तार पार्टी में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और राष्ट्रपति आरिफ अल्वी को भी आमंत्रित किया गया था। हालांकि वे कार्यक्रम में नहीं पहुंचे। उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान में भारतीयों के साथ बदसुलूकी की घटनाएं आम हैं। वहां जाने वाले सैलानी हो या फिर पाकिस्तान में तैनात भारतीय राजनयिक। राजनयिकों और उनके परिवारों को तो बाजार में खरीदारी के दौरान खुफिया एजेंसी आइएसआइ के लोगों के कोप को ङोलना पड़ता है। हालांकि इस संबंध में विरोध जताने पर पाकिस्तान सरकार की ओर से रटा रटाया जवाब मिलता है कि वह इस मामले की जांच कराएगा। अखबार ने इसे इस्लामाबाद डेटलाइन से प्रेस ट्रस्ट की खबर बता कर छापा है।
ये तो हुई उस खबर की चर्चा जो अखबारों में छपी है। इनमें 65 साल में दूसरी बार इतनी कम बारिश की खबर भी शामिल है जो दो ही अखबारों में लीड है। पर एक खबर ऐसी भी है जो मुझे किसी भी अखबार में पहले पन्ने पर नहीं दिखी। आपको याद होगा कि देश के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई पर एक आरोप लगा था और तब मुख्य न्यायाधीश ने कहा था कि यह उन्हें फंसाने की चाल है। आज टेलीग्राफ ने पहले पन्ने पर एक खबर छापी है जिसमें कहा गया है कि साजिश के दावे की जांच की जरूरत है। देश की ज्यादातर संवैधानिक संस्थाओं की ऐसी-तैसी की खबरों के बीच, ऐसा चुनाव से पहले सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पर आरोप लगना, उसकी जांच होना और जांच में यह पाया जाना कि साजिश के आरोप में दम है – कोई साधारण खबर नहीं है। पर क्या आपके अखबार ने इस खबर को आवश्यक महत्व दिया? नोट कर लीजिए की अखबारों का खेल खबरों को अनावश्यक तूल देना ही नहीं है, अच्छी-भली खबर को पूरी तरह गोल कर देना भी है। मेरी नजर ऐसी खबरों पर रहेगी। पढ़ते रहिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक व मीडिया समीक्षक हैं।)
इस मामले में उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि जैसे को तैसा की नीति मूर्खतापूर्ण है। उन्होंने कहा है कि अब मामला 1-1 से यह बराबर हो गया है और दोनों देशों को इस विवाद को यही खत्म कर आगे बढ़ना चाहिए। इस तरह, खबर यह है कि पाकिस्तान ने जो किया वह जवाबी कार्रवाई है। अक्लमंदी नहीं है और इसे खत्म कर दिया जाना चाहिए। यह भी कि मामला 1-1 से बराबर हो गया है। लेकिन अपने अखबारों की खबर और शीर्षक पढ़ने लायक हैं। किसी ने यह नहीं बताया है कि पाकिस्तान की कार्रवाई जवाबी है और इस चक्कर में उमर अब्दुल्ला के बयान को प्राथमिकता नहीं दी गई है और खबरों को स्पष्ट करने का इंडियन एक्सप्रेस जैसा रिवाज अन्य अखबारों में नहीं है तो इसकी उम्मीद करना भी बेकार है।
जवाबी कार्रवाई की यह खबर शायद इसी कारण कुछ अखबारों में पहले पन्ने पर प्रमुखता से नहीं है। द टेलीग्राफ ने लिखा है कि मंगलवार को दिल्ली में पाकिस्तानी दूतावास की पार्टी में लगभग ऐसा ही किया गया था और यह पाकिस्तान के नेशनल डे सेलीब्रेशन के मौके पर जो किया गया था उसका लगभग दोहराव है। टेलीग्राफ की खबर बताती है कि इस संबंध में भारतीय उच्चायोग ने एक विस्तृत बयान जारी किया है और लगता है ज्यादातर अखबारों ने उसे जस का तस छाप दिया है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि पाकिस्तान की तैयारी पूरी थी और जिस होटल में इफ्तार पार्टी रखी गई थी उसके बाहर कारों को हटाने के लिए फोर्क लिफ्ट थे जो हाल के वर्षों में पहली बार किया गया है।
इंडियन एक्सप्रेस, टाइम्स ऑफ इंडिया में यह खबर सेकेंड लीड है। जबकि हिन्दुस्तान टाइम्स में यह खबर पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर भी नीचे है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने लिखा है कि इससे पहले पाकिस्तान ने दिल्ली में पाकिस्तानी उच्चायोग पर आयोजित पार्टी में भारतीय अधिकारियों पर ऐसा ही करने का आरोप लगाया था। तब पाकिस्तान ने आधिकारिक विरोध नहीं जताया था पर इतवार को ऐसी जवाबी कार्रवाई की जिसे भारतीय मिशन ने अतिथियों को परेशान करने और धमकाने का ऐसा मामला कहा है जैसा पहले कभी नहीं हुआ। मेरा मानना है कि पाकिस्तान उच्चायोग ने अगर इफ्तार पार्टी के मेहमानों को परेशान करने की शिकायत की थी तो आज की खबर में इसका उल्लेख होना ही चाहिए। आइए देखें हिन्दी अखबारों ने इसे कैसे छापा है।
दैनिक भास्कर में, चार कॉलम का फ्लैग शीर्षक है, “पाकिस्तानी अधिकारियों ने सुरक्षा जांच के बहाने कार्यक्रम में जाने से रोका” और चार कॉलम की लीड खबर का दो लाइन का शीर्षक है, इस्लामाबाद में भारतीय उच्चायोग की इफ्तार पार्टी में मेहमानों से बदसलूकी। इंट्रो है, खबर का इंट्रो है, भारतीय उच्चायुक्त बोले - ऐसी डराने वाली रणनीति गहरी निराशाजनक। इतने सब के साथ तीन कॉलम का एक और शीर्षक है, अनजान नंबरों से फोन कर अंजाम भुगतने की धमकी भी दी। इसके नीचे तीन सिंगल कॉलम की खबर हैं। पहली तो वही जो शीर्षक है, दूसरी खबर है, भारत ने विरोध दर्ज करवाया, जांच की मांग और तीसरी खबर है, उमर बोले - जैसे को तैसा की नीति कारगर नहीं। मुख्य खबर में नहीं लिखा है कि भारत में भी ऐसा हो चुका है - मंगलवार को और उससे पहले भी।
नवभारत टाइम्स में यह खबर लीड है। तीन कॉलम में तीन लाइन का शीर्षक है, इस्लामाबाद में भारत की इफ्तार पार्टी से पाक को लगी मिर्ची। खबर में आरोप तो हैं पर यह नहीं लिखा है कि भारत में भी ऐसा हो चुका है। उमर अब्दुल्ला के बयान को इसमें जोड़ दिया गया है जबकि भारतीय उच्चयुक्त के बयान, "यह हरकत राजनयिक आचरण के खिलाफ है। पाक अधिकारियों ने सभ्य बर्ताव के सभी मानकों को तोड़ा है। साझा रिश्तों पर असर पड़ेगा" को उनकी तस्वीर के साथ प्रमुखता से छापा गया है। दो कॉलम का एक और शीर्षक है, "पहले फोन पर धमकाया, फिर पार्टी में।
हिन्दुस्तान में यह खबर पांच कॉलम में लीड है। शिकायतें सारी हैं पर यह नहीं बताया गया है कि भारत में भी ऐसा हो चुका है। एक नहीं, दो बार। और तो और मुख्य खबर के साथ अखबार में उमर अब्दुल्ला का बयान भी नहीं है जबकि मानता नहीं शीर्षक से अखबार ने तारीखवार तीन घटनाओं का विवरण दिया है जब पाकिस्तान ने भारतीय राजनयिकों के साथ आपत्तिजनक व्यवहार किया। अखबार ने पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता, फरहतुल्ला बाबर के आरोप को भी प्रमुखता से छापा है कि सुरक्षा बलों ने उनसे कहा कि इफ्तार पार्टी तो रद्द हो गई है।
नवोदय टाइम्स ने इस खबर को सेकेंड लीड बनाया है। खबर को अनावश्यक तरजीह नहीं दी है और रूटीन खबर की तरह पेश किया है। मुख्यशीर्षक से लेकर, मेहमानों से माफी मांगने और उमर अब्दुल्ला के बयान को सामान्य ढंग से प्रस्तुत किया गया है। पर भारत में भी ऐसा हुआ था - कुछ ही दिन पहले औऱ मार्च में भी - यह खबर में नहीं है। हो सकता है इसका कारण यह हो कि इस अखबार ने (और दूसरों ने भी) एजेंसी की खबर लगाई है और एजेंसी की खबर में इसका जिक्र नहीं हो इसलिए भारत की घटना का जिक्र रह गया है। पर यह बहाना हो सकता है क्षम्य नहीं है।
राजस्थान पत्रिका के साथ नवोदय टाइम्स ने भी मानसून पूर्व कम बारिश की खबर को लीड बनाया है और बताया है कि 65 साल में दूसरी बार ऐसी स्थिति है। नवोदय टाइम्स ने इसे, 65 साल में दूसरा सबसे बड़ी प्रा मानसून सूखा लिखा है। पाकिस्तानी उच्चायोग की खबर राजस्थान पत्रिका ने सात लाइन के तीन कॉलम में छापी है। शीर्षक है, "पाक : इफ्तार से भगाए गए भारतीय मेहमान"। अखबार ने अपने न्यूज नेटवर्क की खबर छापी है और इसमें लिखा है, इस दौरान भारतीय अफसरों और पाकिस्तान के सुरक्षा अधिकारियों के बीच नोंकझोंक की भी खबर है। वैसे तो उमर अब्दुल्ला का बयान और पुरानी घटनाओं का जिक्र इस खबर में भी नहीं है पर इन खबरों से आप अनुमान लगा सकते हैं कि क्या हुआ होगा।
इसके मुकाबले दैनिक जागरण में यह खबर छह कॉलम में लीड है और अमर उजाला में तीन कॉलम की लीड का शीर्षक दो लाइन का है। अमर उजाला ने उमर अब्दुल्ला के बयान को 'शर्मनाक बयान' के तहत छापा है और यहां भी एजेंसी की खबर है तथा उसमें भारत में हुई ऐसी घटनाओं का उल्लेख नहीं है। जागरण में उमर अब्दुल्ला का बयान नहीं दिखा। मुख्य खबर के साथ प्रमुखता से तो नहीं ही छपा है। अखबार ने मुख्य खबर के साथ एक लंबाई की तीन छोटी-छोटी खबरें छापी हैं - उच्चायोग ने कराया विरोध, सामान्य से ज्यादा थी सुरक्षा और पाकिस्तानी नेता भी हुए परेशान। इस खबर में भी नहीं बताया गया है कि भारत में भी ऐसा हो चुका है।
अखबार ने बताया है, इफ्तार पार्टी में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और राष्ट्रपति आरिफ अल्वी को भी आमंत्रित किया गया था। हालांकि वे कार्यक्रम में नहीं पहुंचे। उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान में भारतीयों के साथ बदसुलूकी की घटनाएं आम हैं। वहां जाने वाले सैलानी हो या फिर पाकिस्तान में तैनात भारतीय राजनयिक। राजनयिकों और उनके परिवारों को तो बाजार में खरीदारी के दौरान खुफिया एजेंसी आइएसआइ के लोगों के कोप को ङोलना पड़ता है। हालांकि इस संबंध में विरोध जताने पर पाकिस्तान सरकार की ओर से रटा रटाया जवाब मिलता है कि वह इस मामले की जांच कराएगा। अखबार ने इसे इस्लामाबाद डेटलाइन से प्रेस ट्रस्ट की खबर बता कर छापा है।
ये तो हुई उस खबर की चर्चा जो अखबारों में छपी है। इनमें 65 साल में दूसरी बार इतनी कम बारिश की खबर भी शामिल है जो दो ही अखबारों में लीड है। पर एक खबर ऐसी भी है जो मुझे किसी भी अखबार में पहले पन्ने पर नहीं दिखी। आपको याद होगा कि देश के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई पर एक आरोप लगा था और तब मुख्य न्यायाधीश ने कहा था कि यह उन्हें फंसाने की चाल है। आज टेलीग्राफ ने पहले पन्ने पर एक खबर छापी है जिसमें कहा गया है कि साजिश के दावे की जांच की जरूरत है। देश की ज्यादातर संवैधानिक संस्थाओं की ऐसी-तैसी की खबरों के बीच, ऐसा चुनाव से पहले सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पर आरोप लगना, उसकी जांच होना और जांच में यह पाया जाना कि साजिश के आरोप में दम है – कोई साधारण खबर नहीं है। पर क्या आपके अखबार ने इस खबर को आवश्यक महत्व दिया? नोट कर लीजिए की अखबारों का खेल खबरों को अनावश्यक तूल देना ही नहीं है, अच्छी-भली खबर को पूरी तरह गोल कर देना भी है। मेरी नजर ऐसी खबरों पर रहेगी। पढ़ते रहिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक व मीडिया समीक्षक हैं।)