दंगाइयों के नाम खुला पत्र

Written by Shashi Shekhar | Published on: February 27, 2020
मेरे प्यारे दंगाई भाई,
मुझे नहीं मालूम, आज सुबह तुम्हें घर पर खाने को क्या मिला, लेकिन इतना मालूम है कि 2500 कैलोरी तो नहीं ही मिला होगा. कहां से मिलेगा? तुम पढ-लिख कर भी अभी कमा नहीं पा रहे हो. तुम्हारे पिता मेहनत कर घर चला रहे होंगे. तुम्हारी पढाई-अपनी दवाई-बेटी की सगाई के बाद इतना पैसा कहां बचा होगा कि तुम्हें वो विटामिन बी12, ओमेगा 3 फैटी एसिड युक्त भोजन करा सके. बेचारे खुद भी नहीं कर पा रहे होंगे. फिर भी जब तुम हवा में दस किलो का तलवार लहराते हो, तो मुझे तुम्हारी ऊर्जा से रश्क होता है.



अच्छा तो तुम दीन-धर्म बचाना चाहते हो. वैसे इसमें गलत क्या है? लेकिन, तुम्हे अपने धर्म की कसम, दीन का हवाला है, सच बताना. तुम अपने पिता की आज्ञा से ही दंगा करने निकलते हो ना? मुझे उम्मीद है तुम इस नेक काम के लिए अपनी मां का आशीर्वाद ले कर ही घर से निकलते होगे? अब भला जो अपनी मां का, पिता का सम्मान नहीं करेगा, वो अपने दीन-धर्म का सम्मान क्या खाक करेगा? इसलिए, मैं मान लेता हूं कि तुम अपने माता-पिता की आज्ञा से ही हाथ में तलवार ले कर घर से बाहर निकलते होगे.

अच्छा, तुमसे किसने कहा कि देश खतरे में है, दीन खतरे में है? नेता जी ने. अच्छा, तो उन्होंने तुमसे ये भी कहा होगा कि ये जो तुम्हारी जहालत है, किसी एक ख़ास कौम की वजह से है. वे तुम्हारा संसाधन हडप लेते है. अपने नेता जी के घर में गए हो कभी? कभी ड्राइंग रूम में बैठो हो उनके. चाय पी है कभी उनके ड्राइंग रूम में. एकाध बार कोशिश करो. सच पता चल जाएगा कि किसने तुम्हारे हिस्से का संसाधन लूटा है? खैर, अभी तुम मेरी बात नहीं समझोगे. तुम वहीं करो, जो तुम्हें अभी सही लग रहा है.

और बताओ, सब कुशल मंगल है न घर पर. शादी हो गई है. बच्चे हैं. अगर हैं, तो तुम ठीक ही कर रहे हो. अपने बच्चे का मुस्तकबिल संवार रहे हो, तलवार लहरा कर. एक काम करना, अपने जीते-जी न सब ठीक कर के जाना. क्या है कि मसला टुकडों में बचा रहेगा तो तुम्हारे बच्चे को भी आज से 20 साल बाद तलवार लहराना पडेगा. तो सब आज ही ठीक कर दो. एक झटके में तमाम मुश्किलों का समाधान दे जाओ. ताकि, तुम्हारी आने वाली संतति कम से कम खुशहाल जीवन जी सके...हमारा-तुम्हारा क्या है?

और हाँ,
मैं तुम्हारी निराशा समझता हूं. मुझे यकीन है कि तुमने पूरी कोशिश की होगी या अभी भी कर रहे होगे कि एक अदद सरकारी नौकरी मिल जाए. लेकिन, क्या करें, सरकारी नौकरी है नहीं. बेहतर प्राइवेट नौकरी मिले, इस लायक पढाई की नहीं. मजदूरी करना नहीं चाहते हो. कोई बात नहीं. तो कम से कम पकौडा व्यापार के बारे में ही सोच लेते? अब तो सरकार ने भी इसे महत्व देना शुरु कर दिया है. परिवार को थोडी आर्थिक मदद मिल जाती?

(लेखक पत्रकार हैं)

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