आखिर हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के लिए इतने उतावले क्यों हैं ट्रंप?

Written by Girish Malviya | Published on: April 8, 2020
ट्रम्प के सरेआम धमकाने के कुछ घण्टे बाद ही सुबह यह खबर आ गई कि भीगी बिल्ली बने मोदी जी ने तुरंत ही हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन ड्रग को निर्यात करने की अनुमति दे दी। लेकिन इस घटना से एक आश्चर्यजनक बात और हुई कि शेयर बाजार जो पिछले एक महीने से गिरने के रोज नए रिकार्ड तोड़ रहा था वह अचानक आज उछल गया।



दरसअल बाजार वो देखता है जो बड़े बड़े पोलिटिकल विशेषज्ञ भी नही देख पाते, बाजार को असलियत पता है कि इसके पीछे आखिर खेल क्या चल रहा है। आखिर ट्रम्प को किसी खास ड्रग की क्या जरूरत महसूस हो रही है जो उसके लिए इतनी अधीरता दर्शा रहे हैं कि धमकी तक दे रहे हैं।  जबकि दूसरे देश जो कोरोना से प्रभावित है उन्होंने कभी कुछ नही कहा।

इसके पीछे के राज का खुलासा एक अमेरिकी अखबार ने किया है। दरअसल न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार अगर हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन को दुनियाभर में कोरोना के इलाज के लिए अनुमति मिलती है तो उससे ये दवा बनाने वाली कंपनियों को बहुत फायदा होगा। ऐसी ही एक कंपनी में डोनाल्ड ट्रंप का शेयर है। साथ ही उस कंपनी के बड़े अधिकारियों के साथ डोनाल्ड ट्रंप के गहरे रिश्ते हैं। हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन ड्रग को पश्चिमी देशों में प्लाकेनिल ब्रांड के नाम से बेचा जाता है। अमेरिकी अखबार ने लिखा है कि डोनाल्ड ट्रंप का फ्रांस की दवा कंपनी सैनोफी को लेकर व्यक्तिगत फायदा है। कंपनी में ट्रंप का शेयर भी है। ये कंपनी हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा को प्लाकेनिल ब्रांड के नाम से बाजार में बेचती है।

भारत में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के अधिक उत्पादन की वजह यह है कि मलेरिया जैसी खतरनाक बीमारी से लड़ने में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन बेहद कारगर दवा है। भारत में हर साल बड़ी संख्या में लोग मलेरिया की चपेट में आते हैं। इसलिए भारतीय दवा कंपनियां बड़े स्तर पर इसका उत्पादन करती हैं। दुनिया के 11 देशों में कुल मलेरिया मरीज़ों के 70 फ़ीसदी केस पाए जाते हैं, और इन देशों में भारत का नाम टॉप 5 में शामिल है।

भारत में हर साल एक करोड़ 80 लाख लोग मलेरिया से पीड़ित होते हैं। इसके रोकधाम के लिए भारत सरकार द्वारा कई योजनाएं चलाई जाती है प्रत्येक जिला स्तर पर एक मलेरिया अधिकारी तक की नियुक्ति की जाती है, मलेरिया से भारत के सबसे प्रभाविक राज्यों में ओडिशा, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश। महाराष्ट्र, त्रिपुरा और मेघालय शामिल हैं। इसके अलावा नार्थ ईस्ट के कई राज्य और यूपी बिहार के तराई क्षेत्र में भी मलेरिया के रोगियों की संख्या ज्यादा है।

ऐसे में भारत इस दवाई का बड़े पैमाने पर उत्पादन करता है जिन भी स्वास्थ्यकर्मीयो को इन प्रदेशो में मलेरिया मुक्त बनाने की जिम्मेदारी दी जाती है उन्हें ये दवाई बांटने को कहा जाता है

भारत मे इस वक़्त इस दवाई के बेहद शॉर्टेज चल रही है इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि पिछले महीने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने ICMR द्वारा गठित नेशनल टास्क फोर्स ने मलेरिया की दवा हाइड्रॉक्सी-क्लोरोक्वीन को कोविड-19 के इलाज के लिए मंजूरी दी है। जो लोग इसे ओवर हाइप दवाई बता रहे हैं वो भी यह तथ्य ध्यान पूर्वक पढ़ ले कि आईसीएमआर के महानिदेशक बलराम भार्गव ने स्वंय यह कहा है कि कोरोना वायरस के संदिग्ध या पुष्ट मामलों को देख रहे स्वास्थ्यकर्मियों और पुष्ट मरीजों के संपर्क में अति जोखिम वाले लोगों को हाइड्रॉक्सी-क्लोरोक्वीन दी जानी चाहिए। उनकी गाइड लाइन के हिसाब से 400 मिलीग्राम की दवा दिन में दो बार दी जाए। इसके बाद 400 मिलीग्राम सप्ताह में एक बार 7 हफ्ते तक दिया जाए

जिस संख्या कोविड 19 के मामले सामने निकल कर आ रहे हैं उस लिहाज से भारत मे इसकी कमी पहले से ही महसूस की जा रही हैं।।।। इंदौर का दवा बाजार सेंट्रल इंडिया में दवाइयों के थोक विक्रेताओं का सबसे बड़ा बाजार है यहां के केमिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष विनय बाकलीवाल के मुताबिक, थोक बाजारों में क्लोराक्वीन के फॉर्मूलेशन नहीं मिल रहे हैं। अधिकतर काउंटरों पर अब ये मिलना बंद हो गई है। लिहाजा रिटेलर्स को भी उपलब्ध नहीं हो पा रहा है, जिससे रिटेलर्स में इसकी नाराजगी देखी जा रही है यानी साफ है कि घर मे दाने नही है और मोदी जी भुनाने नही बल्कि बाँटने चले है।

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