नई दिल्ली। नगालैंड के साथ शांति समझौता एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है। यह समझौता एक बार फिर पटरी से उतरता हुआ नजर आ रहा है। दरअसल नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड-इसाक मुईवाह (एनएससीएन-आईएम) ने शुक्रवार को कहा कि सात दशकों पुराने हिंसक आंदोलन का सम्मानजनक समाधान बिना झंडे और संविधान के मुमकिन नहीं है।

संगठन के महासचिव टी मुईवाह ने कहा कि नगाओं का अपना झंडा और संविधान है और उन्हें यह सरकार से नहीं चाहिए। मुईवाह ने कहा, ‘नगा लोग भारत के साथ संप्रभु अधिकारों को साझा करते हुए सह-अस्तित्व में रहेंगे, जैसा कि फ्रेमवर्क एग्रीमेंट में स्वीकृत और परिभाषित किया गया, लेकिन वो भारत के साथ विलय नहीं करेंगे।’
एनएससीएन-आईएम प्रमुख ने कहा, ‘नगा लोगों ने कभी भी न तो भारत के संघ और न ही उसके संविधान को स्वीकार किया है हालांकि इतिहास कभी भी इस तथ्य की बात नहीं करेगा। आने वाले दिनों में भी हम उन्हें स्वीकार नहीं करेंगे।’
मुईवाह ने कहा, ‘आप मान्यता दें या न दें, हमारे पास अपना झंडा और संविधान है। झंडा और संविधान हमारी संप्रभुता की निशानी है और नगा राष्ट्रीयता का प्रतीक है। नगाओं को अपना झंडा और संविधान रखना ही चाहिए।’
मुईवाह ने यह दावा किया कि नगा और भारतीय इतिहास, नस्ल, पहचान, संस्कृति, भाषा, भूगोल, राजनीतिक अवधारणा और विश्वास के मामले में भिन्न-भिन्न थे, इसलिए आम बैठक में एक बिंदु खोजने की आवश्यकता थी ताकि दोनों का अस्तित्व दो संस्थाओं के रूप में एक साथ रह सके।
गौरतलब है कि उत्तर पूर्व के सभी उग्रवादी संगठनों का अगुवा माने जाने वाला एनएससीएन-आईएम अनाधिकारिक तौर पर सरकार से साल 1994 से शांति प्रक्रिया को लेकर बात कर रहा है।
सरकार और संगठन के बीच औपचारिक वार्ता वर्ष 1997 से शुरू हुई। नई दिल्ली और नगालैंड में बातचीत शुरू होने से पहले दुनिया के अलग-अलग देशों में दोनों के बीच बैठकें हुई थीं।
18 साल चली 80 दौर की बातचीत के बाद अगस्त 2015 में भारत सरकार ने एनएससीएन-आईएम के साथ अंतिम समाधान की तलाश के लिए रूपरेखा समझौते (फ्रेमवर्क एग्रीमेंट) पर हस्ताक्षर किए गए।
एनएससीएन-आईएम के महासचिव थुलिंगलेंग मुईवाह और वार्ताकार आरएन रवि ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में तीन अगस्त, 2015 को इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।
तीन साल पहले केंद्र ने एक समझौते (डीड ऑफ कमिटमेंट) पर हस्ताक्षर कर आधिकारिक रूप से छह नगा राष्ट्रीय राजनीतिक समूहों (एनएनपीजी) के साथ बातचीत का दायरा बढ़ाया था।
अक्टूबर 2019 में आधिकारिक तौर पर इन समूहों के साथ हो रही शांति वार्ता खत्म हो चुकी है, लेकिन नगालैंड के दशकों पुराने सियासी संकट के लिए हुए अंतिम समझौते का आना अभी बाकी है।
मुईवाह ने शुक्रवार को कहा, ‘दशकों पुराने आंदोलन के समाधान के लिए 2015 में सह-अस्तित्व और साझा-संप्रभुता के सिद्धांत के आधार पर भारत सरकार के साथ फ्रेमवर्क एग्रीमेंट पर सहमति बनी थी।’
उन्होंने दावा किया कि इस एग्रीमेंट में भारत सरकार ने नगाओं की संप्रभुता को मान्यता दी थी। समझौते में संप्रभु सत्ता साझा करने वाली दो संस्थाओं के समावेशी शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का उल्लेख किया गया था।
मुईवाह ने यह भी दावा किया कि नगालैंड के राज्यपाल और बातचीत में मध्यस्थ की भूमिका निभाने वाले आरएन रवि ने 31 अक्टूबर 2019 को कहा था, ‘हम आपके झंडे और संविधान का सम्मान करते हैं। हम यह नहीं कहते कि भारत सरकार उन्हें खारिज करती है, लेकिन हमें इन पर जल्दी फैसला लेना होगा।’
2015 में केंद्र सरकार के साथ हुए समझौता मसौदे के बाद यह पहली बार है जब मुईवाह ने यह कहा है कि अलग झंडे और संविधान को लेकर वे कोई समझौता नहीं करेंगे।

संगठन के महासचिव टी मुईवाह ने कहा कि नगाओं का अपना झंडा और संविधान है और उन्हें यह सरकार से नहीं चाहिए। मुईवाह ने कहा, ‘नगा लोग भारत के साथ संप्रभु अधिकारों को साझा करते हुए सह-अस्तित्व में रहेंगे, जैसा कि फ्रेमवर्क एग्रीमेंट में स्वीकृत और परिभाषित किया गया, लेकिन वो भारत के साथ विलय नहीं करेंगे।’
एनएससीएन-आईएम प्रमुख ने कहा, ‘नगा लोगों ने कभी भी न तो भारत के संघ और न ही उसके संविधान को स्वीकार किया है हालांकि इतिहास कभी भी इस तथ्य की बात नहीं करेगा। आने वाले दिनों में भी हम उन्हें स्वीकार नहीं करेंगे।’
मुईवाह ने कहा, ‘आप मान्यता दें या न दें, हमारे पास अपना झंडा और संविधान है। झंडा और संविधान हमारी संप्रभुता की निशानी है और नगा राष्ट्रीयता का प्रतीक है। नगाओं को अपना झंडा और संविधान रखना ही चाहिए।’
मुईवाह ने यह दावा किया कि नगा और भारतीय इतिहास, नस्ल, पहचान, संस्कृति, भाषा, भूगोल, राजनीतिक अवधारणा और विश्वास के मामले में भिन्न-भिन्न थे, इसलिए आम बैठक में एक बिंदु खोजने की आवश्यकता थी ताकि दोनों का अस्तित्व दो संस्थाओं के रूप में एक साथ रह सके।
गौरतलब है कि उत्तर पूर्व के सभी उग्रवादी संगठनों का अगुवा माने जाने वाला एनएससीएन-आईएम अनाधिकारिक तौर पर सरकार से साल 1994 से शांति प्रक्रिया को लेकर बात कर रहा है।
सरकार और संगठन के बीच औपचारिक वार्ता वर्ष 1997 से शुरू हुई। नई दिल्ली और नगालैंड में बातचीत शुरू होने से पहले दुनिया के अलग-अलग देशों में दोनों के बीच बैठकें हुई थीं।
18 साल चली 80 दौर की बातचीत के बाद अगस्त 2015 में भारत सरकार ने एनएससीएन-आईएम के साथ अंतिम समाधान की तलाश के लिए रूपरेखा समझौते (फ्रेमवर्क एग्रीमेंट) पर हस्ताक्षर किए गए।
एनएससीएन-आईएम के महासचिव थुलिंगलेंग मुईवाह और वार्ताकार आरएन रवि ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में तीन अगस्त, 2015 को इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।
तीन साल पहले केंद्र ने एक समझौते (डीड ऑफ कमिटमेंट) पर हस्ताक्षर कर आधिकारिक रूप से छह नगा राष्ट्रीय राजनीतिक समूहों (एनएनपीजी) के साथ बातचीत का दायरा बढ़ाया था।
अक्टूबर 2019 में आधिकारिक तौर पर इन समूहों के साथ हो रही शांति वार्ता खत्म हो चुकी है, लेकिन नगालैंड के दशकों पुराने सियासी संकट के लिए हुए अंतिम समझौते का आना अभी बाकी है।
मुईवाह ने शुक्रवार को कहा, ‘दशकों पुराने आंदोलन के समाधान के लिए 2015 में सह-अस्तित्व और साझा-संप्रभुता के सिद्धांत के आधार पर भारत सरकार के साथ फ्रेमवर्क एग्रीमेंट पर सहमति बनी थी।’
उन्होंने दावा किया कि इस एग्रीमेंट में भारत सरकार ने नगाओं की संप्रभुता को मान्यता दी थी। समझौते में संप्रभु सत्ता साझा करने वाली दो संस्थाओं के समावेशी शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का उल्लेख किया गया था।
मुईवाह ने यह भी दावा किया कि नगालैंड के राज्यपाल और बातचीत में मध्यस्थ की भूमिका निभाने वाले आरएन रवि ने 31 अक्टूबर 2019 को कहा था, ‘हम आपके झंडे और संविधान का सम्मान करते हैं। हम यह नहीं कहते कि भारत सरकार उन्हें खारिज करती है, लेकिन हमें इन पर जल्दी फैसला लेना होगा।’
2015 में केंद्र सरकार के साथ हुए समझौता मसौदे के बाद यह पहली बार है जब मुईवाह ने यह कहा है कि अलग झंडे और संविधान को लेकर वे कोई समझौता नहीं करेंगे।