आज का ज़माना कुछ अजीब ही है। काफी पढ़ने लिखने वाले अब मीडिया के द्वारा समझाने लगे हैं कि कैसे CAA, NPR, NRC गरीबों, दलितों, महिलाओं के लिए खतरनाक होगा।
शायद उन्हें याद नहीं, या एहसास नहीं, की वर्षों से तीनों शस्त्र गरीबों पर बरसाए जा रहे हैं। और मेहनतकशों को इनके बारे में कहीं ज़्यादा जानकारी और अनुभव है।
मिसाल के तौर पर NPR का अनुभव होता है जब सरकारी लोग, अक्सर पुलिस के साथ, गरीब बस्तियों में घूमते हैं "सर्वे" करने और घरों पर निशान लगाने। जो पूछने की हिम्मत करता है उसको समझाते हैं, "ये तुम्हारी भलाई के लिए है, सरकार कुछ देने वाली है।"
उसके बाद चलता है NRC का दौर। सरकारी अफसर सर्वे की सूची बनाकर उसमें "योग्यता" को चिन्हित करते हैं - किसके पास क्या कागज़ है, और वो परिवार या व्यक्ति किसी तय तारीख (cut-off date) और शर्तों के मुताबिक लाभ पाने के लिए "योग्य" है या नहीं। और इस सब में अफसर की चलती है, कौनसे कागज़ात को मानेगा, किस तारीख को पास करेगा, इत्यादि।
और जब "योग्य" परिवारों की सूची छप जाती है, तब आरम्भ होता है CAA का वक़्त। जिसमें जितने भी अयोग्य घोषित किये गए हैं, वे सरकारी दफ्तरों का चक्कर लगाना शुरू करते हैं - कभी इस अफसर को वो कागज़ दिखाते हैं, कभी उस अफसर को ये कागज़ दिखाते हैं। कुछ अदालत में अपनी अर्ज़ी डालते हैं तो मान्यवर जज साहब वापस उन्हें अफसर के पास की भेज देते हैं, यह कहकर कि, "नीति के अनुसार उचित कार्यवाही करो"! और आखिर में गरीब को यही समझ में आता है कि "उचित" का मतलब होता है अफसर को वो कागज़ दिखाने का जो सब जानते हैं, मानते भी हैं - गांधीजी का नोट।
और जो भी इस व्यवस्था के खिलाफ बोलने की, आवाज़ उठाने की, सामने अड़े रहने की, कोशिश करता है उसे लाठी मार कर, बुलडोज़र से घर गिराकर, गिरफ्तार कर, झूठे केसों में बरसों उलझाकर, काम से निकाल कर, कभी कभी गैस और गोली का कड़वा प्रसाद देकर, रास्ते से हटा दिया जाता है। तब कुछ पढ़े लिखे लोग साथ खड़े होने आते हैं, बाकी अखबार का पन्ना पलट जाते हैं।
यही है NPR-NRC-CAA की अनदेखी दास्ताँ। पढ़े लिखे मध्यम वर्ग को पहले कभी इसका अभ्यास नही हुआ है, आज शायद पहली बार अपनी ज़िन्दगी में हो रहा है।
इसलिए गरीबों, शोषितों को समझाने के पहले, क्या बेहतर नहीं होगा खुद ही समझ लें कि इसके पहले गरीबों ने, खास तौर से महिलाओं ने, कैसे इन हमलों को झेला है और बार बार टूटी हुई ज़िन्दगी को कैसे दोबारा संवारा है?
शायद उन्हें याद नहीं, या एहसास नहीं, की वर्षों से तीनों शस्त्र गरीबों पर बरसाए जा रहे हैं। और मेहनतकशों को इनके बारे में कहीं ज़्यादा जानकारी और अनुभव है।
मिसाल के तौर पर NPR का अनुभव होता है जब सरकारी लोग, अक्सर पुलिस के साथ, गरीब बस्तियों में घूमते हैं "सर्वे" करने और घरों पर निशान लगाने। जो पूछने की हिम्मत करता है उसको समझाते हैं, "ये तुम्हारी भलाई के लिए है, सरकार कुछ देने वाली है।"
उसके बाद चलता है NRC का दौर। सरकारी अफसर सर्वे की सूची बनाकर उसमें "योग्यता" को चिन्हित करते हैं - किसके पास क्या कागज़ है, और वो परिवार या व्यक्ति किसी तय तारीख (cut-off date) और शर्तों के मुताबिक लाभ पाने के लिए "योग्य" है या नहीं। और इस सब में अफसर की चलती है, कौनसे कागज़ात को मानेगा, किस तारीख को पास करेगा, इत्यादि।
और जब "योग्य" परिवारों की सूची छप जाती है, तब आरम्भ होता है CAA का वक़्त। जिसमें जितने भी अयोग्य घोषित किये गए हैं, वे सरकारी दफ्तरों का चक्कर लगाना शुरू करते हैं - कभी इस अफसर को वो कागज़ दिखाते हैं, कभी उस अफसर को ये कागज़ दिखाते हैं। कुछ अदालत में अपनी अर्ज़ी डालते हैं तो मान्यवर जज साहब वापस उन्हें अफसर के पास की भेज देते हैं, यह कहकर कि, "नीति के अनुसार उचित कार्यवाही करो"! और आखिर में गरीब को यही समझ में आता है कि "उचित" का मतलब होता है अफसर को वो कागज़ दिखाने का जो सब जानते हैं, मानते भी हैं - गांधीजी का नोट।
और जो भी इस व्यवस्था के खिलाफ बोलने की, आवाज़ उठाने की, सामने अड़े रहने की, कोशिश करता है उसे लाठी मार कर, बुलडोज़र से घर गिराकर, गिरफ्तार कर, झूठे केसों में बरसों उलझाकर, काम से निकाल कर, कभी कभी गैस और गोली का कड़वा प्रसाद देकर, रास्ते से हटा दिया जाता है। तब कुछ पढ़े लिखे लोग साथ खड़े होने आते हैं, बाकी अखबार का पन्ना पलट जाते हैं।
यही है NPR-NRC-CAA की अनदेखी दास्ताँ। पढ़े लिखे मध्यम वर्ग को पहले कभी इसका अभ्यास नही हुआ है, आज शायद पहली बार अपनी ज़िन्दगी में हो रहा है।
इसलिए गरीबों, शोषितों को समझाने के पहले, क्या बेहतर नहीं होगा खुद ही समझ लें कि इसके पहले गरीबों ने, खास तौर से महिलाओं ने, कैसे इन हमलों को झेला है और बार बार टूटी हुई ज़िन्दगी को कैसे दोबारा संवारा है?