अब असम जातीय परिषद ने 'त्रुटि रहित' एनआरसी की मांग उठाई

Written by sabrang india | Published on: May 12, 2022
असम जातीय परिषद ने एक बार फिर से असम में एरर फ्री (त्रुटि रहित) एनआरसी की मांग उठाई और दावा किया है कि भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार  'सही' एनआरसी के प्रकाशन को सुनिश्चित करने के अपने चुनावी वादे से मुकर गयी है। 



एजेपी अध्यक्ष लुरिनज्योति गोगोई ने गुवाहाटी में द टेलीग्राफ के हवाले से कहा,  “हमारी मांग एक अपडेटेड एरर फ्री एनआरसी (त्रुटि मुक्त एनआरसी) की है क्योंकि सूची में अवैध विदेशियों की मौजूदगी की रिपोर्ट या सबूत हैं। हालांकि, राज्य सरकार ने एक एरर फ्री, विदेशी मुक्त एनआरसी सुनिश्चित करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है। गोगोई के साथ एजेपी महासचिव जगदीश भुइयां भी थे। एक जातीय भाषायी रूप में संचालित राजनीतिक समहू का गठन 17 दिसंबर, 2020 को किया गया था।
 
नई अपडेटेड एनआरसी को 31 अगस्त, 2019 को एक विशाल अभ्यास के बाद प्रकाशित किया गया था, जिसमें असम के 3.2 करोड़ लोगों ने 6 करोड़ से अधिक दस्तावेज जमा किए थे, जिनके नाम एनआरसी में शामिल होने से पहले सात लेवल की जांच की गई थी। अंतत: 19,06,657 लोगों को इस सूची से बाहर कर दिया गया।

इनमें वे लोग शामिल थे जिन्हें या तो फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल (एफटी) द्वारा विदेशी घोषित किया गया और असम सीमा पुलिस द्वारा संदिग्ध विदेशी के रूप में चिह्नित किया गया था। इसके अलावा इस सूची में वे लोग भी शामिल थे जिन्हें चुनाव आयोग द्वारा 'संदिग्ध' या डी वोटर के रूप में चिह्नित किया गया था। उनके भाई-बहनों और बच्चों को भी एनआरसी से बाहर कर दिया गया था।

हालांकि असम सरकार और अन्य जातीय भाषाई समूह जैसे ऑल असम स्टुडेंट्स यूनियन से खुश नहीं थे क्योंकि उसमें दावा किया गया था कि सूची में 'विदेशियों' के नाम शामिल किए गए थे। 

दरअसल एनआरसी के प्रकाशित होने से पहले उन्होंने सीमावर्ती इलाकों में फिर से वेरिफिकेशन की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। लेकिन 23 जुलाई 2019 को इसे यह कहते हुए खारिज कर दिया गया कि हमने श्री हेजेला की प्रतिक्रिया को भी पढ़ा है और उनकी 18.7.2019 की रिपोर्ट में उनके द्वारा उठाए गए रूख पर विचार किया है कि 27 प्रतिशत सीमावर्ती इलाकों में दोबारा वेरिफिकेशन पहले ही किया जा चुका है।

तब से सरकार एक और याचिका दायर करने की दिशा में काम कर रही है और यहां तक ​​कि राज्य विधानसभा में इस आशय की घोषणा भी की है।

मई 2021 में एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट ने एनआरसी के पुन: सत्यापन की मांग (एनआरसी कॉर्डिनेटर) करते हुए कहा था कि बड़ी अनियमितता के कारण अपात्र लोगों के कई नामों ने सूची में जगह बनाई है और मतदाता सूची के बैकएंड सत्यापन और कार्यालय की प्रक्रिया का अभाव था। आवेदनों की जांच के लिए उपयोग किए जा रहे फील्ड सत्यापन "हेरफेर या बना गए दस्तावेजों" का पता लगाने में असमर्थ थे।

पाठकों को याद होगा कि मूल मामला जिसके कारण सुप्रीम कोर्ट ने एनआरसी अपडेट प्रोसेस की मॉनिटरिंग की थी, वह असम लोक निर्माण (एपीडब्ल्यू) नामक समूह द्वारा दायर किया गया था।

APW के अध्यक्ष अभिजीत शर्मा ने भी द टेलीग्राफ को बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में पुन: सत्यापन अपील का उल्लेख किया और कहा कि राज्य सरकार केवल पुन : सत्यापन और नई एनआरसी जैसे शब्दों के साथ खेल रही है। संवेदनशील मुद्दों पर परेशानी होने पर यह नागरिक समाज संगठनों को बुलाती है। इसे आगे आना चाहिए और सुप्रीम कोर्ट का रुख करना चाहिए ताकि प्रक्रिया में तेजी आए।

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