अपने विधायक होने पर गुस्सा आता है

Written by Navnish Kumar | Published on: August 27, 2020
एनकाउंटर प्रदेश बन चुके उप्र में अपनी 'ठोको' नीति के सहारे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भले अपराध घटने और कानून व्यवस्था दुरस्त होने जैसे लाख दावे करें लेकिन उनकी पोल खुद उनके अपने सांसद और विधायक ही खोल दे रहे हैं। वह भी अंतरराष्ट्रीय चौराहे सोशल मीडिया पर।



प्रदेश में क्राइम कम होने के अपने दावों के पक्ष में योगी आदित्यनाथ 9 साल के तुलनात्मक आंकड़े लेकर आते हैं। जिसके मुताबिक, उनकी सरकार में हत्या, फिरौती, लूट-डकैती और बलात्कार के मामलों में अलग-अलग सालों के सापेक्ष 25 से 75 फीसदी तक की कमी आईं है। राहजनी में 100% की कमी है। आंकड़ों के सही-झूठ में न भी जाएं तो हालिया महीनों में जिस तरह हत्या-बलात्कार की ताबड़तोड़ वारदातें सामने आईं है। एक एक दिन में 15-15 हत्या के आंकड़े विपक्ष गिना रहा हैं, तो नि:संदेह अच्छी स्थिति नहीं कही जा सकती है। लेकिन इस सब से इतर खतरनाक स्थिति अपराधों पर नियंत्रण करने के मनमाने तौर-तरीकों को लेकर सामने आईं है। अफसरों की मनमानी इस कदर बढ़ चली हैं कि आम आदमी तो दूर, सांसद-विधायक तक बेबसी का रोना रो रहे हैं। सबका एक ही कहना हैं कि प्रदेश में अफसर-राज और भ्रष्टाचार दोनों चरम पर है। 

बेबसी व घुटन का आलम यह हैं कि खुद मुख्यमंत्री के गृह ज़िले गोरखपुर से भाजपा विधायक डॉ राधा मोहन दास अग्रवाल यह कहने (ट्वीट करने) को मजबूर हुए कि 'उन्हें अपने विधायक होने पर ग़ुस्सा आता हैं। पूरी तरह ईमानदार राजनीति पर भ्रष्ट अधिकारियों का नियंत्रण बर्दाश्त नहीं कर सकता हूं'। 2 महीने से पुलिस के संरक्षण में फल फूल रहे हत्यारे को गिरफ्तार कराने के लिए इस हद तक जाना पड़े, शर्म की बात है।

राधा मोहन अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश कुमार अवस्थी व डीजीपी हितेश चंद्र अवस्थी तक पर सवाल खड़े कर चुके हैं। उन्होंने ट्वीट कर कहा था कि 'पुलिस का इकबाल खत्म होता जा रहा है। अपर मुख्य सचिव गृह व डीजीपी अपने दायित्व के निर्वहन में पूरी तरह से असफल सिद्ध हुए हैं।' इतना ही नहीं, उन्होंने ट्वीट में सरकार को अपनी छवि बचाने के लिए दोनों अफसरों को पद से हटाने की नसीहत तक दे डाली थी। हालांकि बाद में ट्वीट को डिलीट कर दिया था।

डॉ राधा मोहन दास अकेले नहीं हैं। पूर्व मंत्री से लेकर असंतुष्ट सांसद विधायकों की फेहरिस्त लंबी हैं। मसलन मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, हरदोई से बीजेपी सांसद जयप्रकाश ने फेसबुक पर अपने गुस्से को जताते हुए लिखा "मैंने अपने 30 साल के राजनीतिक जीवन में अधिकारियों की ओर से ऐसी बेरुख़ी कभी नहीं देखी।" 

सांसद आगे लिखते हैं कि उन्होंने सांसद निधि को कोरोना के लिए दान में दिया लेकिन उनके बार-बार लिखने के बावजूद सरकारी अस्पताल में वेंटिलेटर नहीं खरीदे गए। 

सांसद ने लिखा था, "मेरी निधि की राशि कहां गई, मुझे ही नहीं मालूम। प्रदेश में भ्रष्टाचार चरम पर है।" अलीगढ़ के गोंडा थाने में इगलास सीट से भाजपा विधायक राजकुमार सहयोगी के साथ मारपीट की घटना के बाद मामला काफी गर्माया। गोपामऊ से भाजपा विधायक श्याम प्रकाश ने  पुलिस पर सीधा हमला बोलते हुए सोशल मीडिया पर यहां तक कह दिया कि 'लगता है कि अब अपराधियों के साथ विधायकों को भी यूपी छोड़ना पड़ेगा। डेढ़ साल ही बचा है, नेक सलाह के लिए शुक्रिया। अभी तक था ठोंक देंगे, अब आया तोड़ देंगें'। 

सुलतानपुर की लंभुआ सीट से भाजपा विधायक देवमणि द्विवेदी सरकार के 3 साल के कार्यकाल में ब्राह्मण उत्पीड़न को लेकर सवाल से सरकार को असहज कर चुके हैं। मोहनलालगंज (लखनऊ) से बीजेपी सांसद कौशल किशोर ने लखनऊ एसएसपी की कार्यप्रणाली की आलोचना करते हुए कहा कि पुलिस के नकारात्मक रवैये के चलते अपराधियों के हौसले बुलंद हैं। बस्ती में तो बीजेपी एमपी और एमएलए के ख़िलाफ़ ही "फर्जी" मुक़दमे कर देने के आरोप हैं। 

यही नहीं, कुछ दिन पूर्व बरेली के विधायक राजेश मिश्रा उर्फ पप्पू भरतौल ने डीआइजी को पत्र लिखकर टॉप 10 अपराधियों के साथ टॉप 10 कुख्यात पुलिसकर्मियों की सूची तक जारी करने की मांग कर डाली थी। बागपत में पूर्व भाजपा जिलाध्यक्ष की हत्या के बाद सांसद डॉ सत्यपाल सिंह के साथ विधायक तक कानून व्यवस्था के बेड़ागर्क होने की बात कह चुके हैं। नाखुश विधायक सांसद ही नहीं, मंत्रीगण तक कह चुके हैं कि अधिकारी मनमानी कर रहे हैं। उनकी तक नहीं सुन रहे। लेकिन मुख्यमंत्री लगातार मौन साधे हैं।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सीएम  की चुप्पी ज्यादा कचोटती हैं, यह महाना की बात से भी स्पष्ट हैं। विधायकों की मौजूदगी में औद्योगिक विकास मंत्री सतीश महाना भर्राये गले से कहते है कि कैबिनेट मंत्री होने के बावजूद मुझे सीएम से अपॉइंटमेंट नहीं मिलता है जबकि अखिलेश सरकार में, बीजेपी का विधायक होते हुए भी, क्षेत्र की समस्याओं के लिए जब चाहा, न सिर्फ़ समय दिया बल्कि मुख्यमंत्री के रूप में अखिलेश यादव समस्याओं को सुनते थे और उनके निदान के प्रयास करते थे। और अंत में चाय पिलाकर भेजते थे। सतीश महाना लगातार 7 बार के विधायक हैं। 

उपेक्षा ही कारण थीं जो दिसंबर शीतकालीन सत्र में 100 से ज्यादा विधायकों ने विधानसभा की कार्रवाई को घंटों तक चलने नहीं दिया था। हुआ यूं था कि लोनी (गाज़ियाबाद) के विधायक नंदकिशोर गुर्जर ने अपने क्षेत्र के फ़ूड इंस्पेक्टर द्वारा उन्हें अपमानित किये जाने के सवाल को उठाना चाहा। विधायक की शिकायत थी कि उल्टे फ़ूड इंस्पेक्टर की शिकायत पर थाना पुलिस ने विधायक को बुलाकर पांच घंटे तक थाने में बैठाये रखा था। 

अब लॉकडाउन और कोरोना काल का आलम यह है कि प्रशासनिक मशीनरी जिस तरह बेपरवाह हो गई हैं और जनप्रतिनिधियों के प्रति उनके दायित्व काफ़ूर हो गये, उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।उदाहरण लें तो आगरा में कोरोना के बिगड़ते हाल पर मेयर नवीन जैन (बीजेपी) ने मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिखकर ज़िलाधिकारी को तुरंत हटाने की मांग करते हुए प्रार्थना की कि “आगरा को वुहान होने से बचाइए।” इस चिट्ठी के पक्ष में आगरा के सभी भाजपा विधायक व सांसद आदि थे मगर ज़िलाधिकारी को बदलना तो दूर, मुख्यमंत्री ने मेयर, विधायकों और सांसदों को सरकार को बदनाम करने का आरोप लगाते हुए उल्टे फटकार लगा दी थीं। 

इसी सब से कानून व्यवस्था से नाखुश विधायक-सांसद मजबूरी में सोशल मीडिया पर भड़ास निकाल रहे हैं जो राम राज्य के लिए अच्छी स्थिति तो कतई नहीं कही जा सकती हैं। विपक्षी भी इसी को लेकर निशाना साध रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव गोरखपुर के गुनाहपुर बन जाने को लेकर हमलावर हैं तो कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी बढ़ते अपराधों को तांडव की संज्ञा से नवाज चुकी हैं।


 

बाकी ख़बरें