सरकारी आंकड़ों के अनुसार कोरोना वायरस का संक्रमण बेक़ाबू रफ़्तार के साथ आगे बढ़ रहा है. कोरोना की दूसरी लहर नें जनता में भय और कहर पैदा कर दिया है हालाँकि कुछ विशेष स्थानों तक अभी भी कोरोना वायरस की पँहुच नहीं है. ऐसे हालात में 11 अप्रैल रविवार को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा ‘टीका उत्सव’ शुरू किया गया है जो चार दिनों तक चलेगा. इस ‘टीका उत्सव’ पर समाजवादी पार्टी के नेता ने कहा कि “लाशों के ढेर पर उत्सव मनाने वाले पहले प्रधानमंत्री हैं नरेंद्र मोदी”. देश के लिए यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आपदा को अवसर में बदलने की बात करने वाली सरकार द्वारा आपदा को उत्सव में बदला जा रहा है. हमारी सभ्यता भी आपदा को उत्सव के रूप में मनाने की इजाज़त नहीं देता है.
कोरोना के बढ़ते मामले और वैक्सीन की कमी पर कई राज्यों के द्वारा सवाल उठाए गए हैं हालाँकि सरकार वैक्सीन की कमी के सवाल को सिरे से ख़ारिज करती रही है. वैक्सीन के ख़रीद और इसके वितरण का एकाधिकार केंद्र सरकार के पास है. भारत में दो प्रमुख वैक्सीन कोविशिल्ड और कोवैक्सीन लगाई जा रही है. इसके उत्पादनकर्ता कंपनी द्वारा एक दिन में 24 लाख कोरोना के टीकों का उत्पादन किया जाता है जबकि वर्तमान में एक दिन में लगभग 37 लाख वैक्सीन की जरुरत है. जब देश कोरोना वैक्सीन की कमी से जूझ रहा है ऐसे समय में ‘टीका उत्सव’ की बात करना जनता को बरगलाने जैसा प्रतीत होता है.
विडंबना यह है कि ज्यादातर राज्यों के पास वैक्सीन का स्टाक ख़त्म हो रहा है और वो इसकी शिकायत केंद्र सरकार से भी कर चुके हैं. अपोलो ग्रुप की संगीता रेड्डी ने एनडीटीवी को बताया है कि आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में जिला स्तर पर भी वैक्सीन की कमी पड़ रही है. राजनीतिक उठापटक के दौर के बीच महाराष्ट्र, छतीसगढ़ उड़ीसा समेत कई राज्यों द्वारा वैक्सीन की कमी होने की बात कही गयी है. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि देश में उत्पादन कर रहे सिर्फ़ दो मैन्यूफैक्चर्स कम्पनी की मौजूदा उत्पादन क्षमता अगले कुछ हफ्ते में देश भर में होने वाली मांग की आपूर्ति कर पाएगी. प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का टीका उत्सव कार्यक्रम इस बात पर निर्भर करेगा कि कितनी तेजी से सीरम इंस्टिट्यूट द्वारा कोविशील्ड और भारत बायोटेक द्वारा कोवैक्सीन का उत्पादन बढाया जाता है.
कोरोना संक्रमण की दूसरी और तेज लहर के बीच अलग-अलग राज्यों में छोटे-बड़े स्तर पर चुनाव हो रहे हैं, हिन्दू धर्म में प्रसिद्द कुम्भ मेले का आयोजन हरिद्वार में किया जा रहा है. आईपीएल मैच भी शुरू किया जा चुका है ऐसी कुछ विशेष जगहों तक कोरोना वायरस की पहुँच नहीं है और वे कार्यक्रम सुरक्षित तरीके से संपन्न करवाए जा रहे हैं? भारत में किसान आन्दोलन भी अब कई ऐतिहासिक पड़ावों को पार करते हुए आगे बढ़ रहा है. जहाँ एक बार फिर से सरकार द्वारा बातचीत शुरू करने के प्रस्ताव की बात सामने आई है. हालाँकि यह आन्दोलन अब सिर्फ़ किसानों का नहीं रह गया है बल्कि आम आवाम व मेहनतकश का आन्दोलन भी बन गया है. किसानों द्वारा यह भी दावा किया जा रहा है कि कोरोना की आड़ में केंद्र सरकार किसान आन्दोलन को ख़त्म करने के फ़िराक में है. सरकार इस आन्दोलन को ख़त्म करने की साजिश कर रही है जिसमें कोरोना को बहाना बनाया जा रहा है. किसान आन्दोलन के 4 महीने बीत जाने के बाद भी किसानों का हौसला मजबूत है. सरकारी तानाशाही फरमान के ख़िलाफ़ खड़े हुए किसानों के द्वारा लगातार आन्दोलन को तेज किया जा रहा है. किसान आन्दोलन में शामिल लोगों का मानना है कि सरकार किसान आन्दोलन को ख़त्म करने के लिए कोरोना को मुद्दा बना रही है.
कोरोना की इस बेतहाशा वृद्धि से कई सारे सवाल खड़े होते हैं. जब देश में कोरोना के टीकाकरण की समुचित व्यवस्था नहीं थी तो कोरोना के केस घटने शुरू हो गए थे लेकिन जब टीका आ गया देश में तो कोरोना के केस बढ़ने शुरू हो गए और सिर्फ़ कोरोना के मामले ने रफ़्तार ही नहीं पकड़ी, कोरोना का मामला उस मुकाम पर पहुच गया जहाँ तक पिछले साल भर में टीका आने के पहले भी कभी नहीं पंहुचा था. कोविड-19 से लेकर कोविड-21 तक पर ‘राजेन्द्र शर्मा’ ने विस्तृत व्यंगात्मक टिप्पणी करते हुए कहा है कि...
“अब मोदी जी ने टीका उत्सव का ऐलान किया, तो समझ में आया कि माजरा क्या है. टीका तो आ गया, टीका लगने भी लगा, पर उत्सव नहीं आया. स्वास्थ्यकर्मियों को टीका लग गया, तब तक कोरोना रुका रहा. फ्रंटलाइन वर्करों को टीका लग गया, तब भी कोरोना ने सोचा अब उत्सव का नंबर आएगा. बुजुर्गों को टीका लगा तब भी कोरोना बुजुर्गों का ख्याल कर के शांत रहा. पर जैसे ही पैंतालीस साल तक के अधेड़ों का नंबर आया, कोरोना का धैर्य छूट गया. फिर क्या था, ‘टीका डाल-डाल, तो कोरोना पात-पात’ हर रोज के केसों में इंडिया अख्खा दुनिया में नंबर वन. तब मोदी जी को ख्याल आया कि इस साल कोरोना के लिए उत्सव तो किया ही नहीं. चुनावों के लिए रोड शो किए, सभाएं कीं. अहमदाबाद स्टेडियम का नाम बदलने के लिए क्रिकेट मैच किए. आस्था के लिए कुंभ भी किया, पर कोरोना के लिए एक बार ताली-थाली तक नहीं बजायी. याद आने की देर थी कि मोदी जी ने ताबड़तोड़ चार दिन के टीका उत्सव का ऐलान कर दिया. टीका भी और उत्सव भी. कोरोना टीके से डरने को राजी नहीं है तो क्या हुआ, हम उसे उत्सव से पटा लेंगे.
जाहिर है कि कोरोना को उत्सव से पटाने का मोदी जी का भरोसा कोई चुनावी जुमले का मामला नहीं है. पिछले साल की ही तो बात है. केन्द्रीय मंत्री अठावले के ‘‘गो कोरोना गो’’ में प्राचीन भारतीय संस्कृति का तडक़ा लगाते हुए, मोदी जी ने कोरोना के स्वागत में ताली-थाली पीटो उत्सव करा दिया था. पर अनजाने में पश्चिमी ‘‘गो कोरोना’’ यानी कोरोना जाओ से थाली बजाओ की तुक मिल गयी और कोरोना मिस-अडरस्टेंड कर गया. अब मोदी जी को बाकायदा ‘‘दीया-बाती’’ से स्वागत कराना पड़ा और उससे भी बात पूरी तरह नहीं बनी तो देवताओं के आशीर्वाद की शैली में, बाकायदा आकाश से पुष्प-वर्षा करानी पड़ी. कुछ लोग अब भी टीका उत्सव का विरोध कर रहे हैं। कह रहे हैं कि मोदी जी का उत्सवों में तो स्पेशलाइजेशन है, पर टीका कहां है? इधर उत्सव की तैयारी है, उधर जहां भी देखो टीके की मारा-मारी है. वहां टीके की कमी से टीकाकरण केंद्र बंद हो रहे हैं और मोदी जी चार दिन के उत्सव की तैयारी कर रहे हैं. पर ये लोग जान-बूझकर, कोविड को संभालने की देश की कोशिशों में पलीता लगा रहे हैं. वर्ना चार दिन के उत्सव पर इतना हाय-हल्ला करने की क्या जरूरत है. पहली लहर गवाह है कि कोरोना न गोबर-गोमूत्र से मानता है, न रामदेव की दवाओं और काढ़े से और न एलोपैथी की दवाओं से. हमारे चौतीस करोड़ देवी-देवताओं की तरह कोरोना खुश होता है तो पूजा-आरती से, उत्सव से. कोई कवि कह गया है—‘बिन उत्सव सब सून.”
पूरा देश एक बार फिर से पूर्ण रूप से तालाबंदी की तरफ़ बढ़ रहा है. पिछले साल लॉक डाउन की घोषणा के समय मोदी सरकार ने अतिउत्साह में आकर और अत्यधिक आशावादीपन दिखाते हुए कहा था कि जिस तरह से महाभारत की लड़ाई 18 दिन में जीती गयी थी उसी तरह से हम कोरोना की लड़ाई को भी जीतेंगे. उनका यह दावा आज सिर्फ़ इतिहास की बात है. कोरोना के शुरूआती काल से ही इससे निबटने का सरकारी तौर तरीका त्रुटिपूर्ण रहा है.
हमारे देश में कुम्भ उत्सव, क्रिकेट उत्सव, चुनाव उत्सव और टीका उत्सव एक साथ चलाया जाता है. मृत्यु में उत्सवधर्मिता ढूंढने वाले नायाब सरकार के तरीके से कोरोना का खात्मा किया जा रहा है. असल बात यह है कि हर वो काम जिससे सत्ता, धर्म और बड़े पूंजीपतियों का स्वार्थ जुड़ा है उन पर कोई रोक टोक नहीं है लेकिन शिक्षा, रोजगार और रोजी-रोटी की जुगत करने भर पर भी रोक है. इससे समझ लेनी चाहिए कि सत्ता किसके लिए काम कर रही है.
कोरोना के बढ़ते मामले और वैक्सीन की कमी पर कई राज्यों के द्वारा सवाल उठाए गए हैं हालाँकि सरकार वैक्सीन की कमी के सवाल को सिरे से ख़ारिज करती रही है. वैक्सीन के ख़रीद और इसके वितरण का एकाधिकार केंद्र सरकार के पास है. भारत में दो प्रमुख वैक्सीन कोविशिल्ड और कोवैक्सीन लगाई जा रही है. इसके उत्पादनकर्ता कंपनी द्वारा एक दिन में 24 लाख कोरोना के टीकों का उत्पादन किया जाता है जबकि वर्तमान में एक दिन में लगभग 37 लाख वैक्सीन की जरुरत है. जब देश कोरोना वैक्सीन की कमी से जूझ रहा है ऐसे समय में ‘टीका उत्सव’ की बात करना जनता को बरगलाने जैसा प्रतीत होता है.
विडंबना यह है कि ज्यादातर राज्यों के पास वैक्सीन का स्टाक ख़त्म हो रहा है और वो इसकी शिकायत केंद्र सरकार से भी कर चुके हैं. अपोलो ग्रुप की संगीता रेड्डी ने एनडीटीवी को बताया है कि आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में जिला स्तर पर भी वैक्सीन की कमी पड़ रही है. राजनीतिक उठापटक के दौर के बीच महाराष्ट्र, छतीसगढ़ उड़ीसा समेत कई राज्यों द्वारा वैक्सीन की कमी होने की बात कही गयी है. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि देश में उत्पादन कर रहे सिर्फ़ दो मैन्यूफैक्चर्स कम्पनी की मौजूदा उत्पादन क्षमता अगले कुछ हफ्ते में देश भर में होने वाली मांग की आपूर्ति कर पाएगी. प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का टीका उत्सव कार्यक्रम इस बात पर निर्भर करेगा कि कितनी तेजी से सीरम इंस्टिट्यूट द्वारा कोविशील्ड और भारत बायोटेक द्वारा कोवैक्सीन का उत्पादन बढाया जाता है.
कोरोना संक्रमण की दूसरी और तेज लहर के बीच अलग-अलग राज्यों में छोटे-बड़े स्तर पर चुनाव हो रहे हैं, हिन्दू धर्म में प्रसिद्द कुम्भ मेले का आयोजन हरिद्वार में किया जा रहा है. आईपीएल मैच भी शुरू किया जा चुका है ऐसी कुछ विशेष जगहों तक कोरोना वायरस की पहुँच नहीं है और वे कार्यक्रम सुरक्षित तरीके से संपन्न करवाए जा रहे हैं? भारत में किसान आन्दोलन भी अब कई ऐतिहासिक पड़ावों को पार करते हुए आगे बढ़ रहा है. जहाँ एक बार फिर से सरकार द्वारा बातचीत शुरू करने के प्रस्ताव की बात सामने आई है. हालाँकि यह आन्दोलन अब सिर्फ़ किसानों का नहीं रह गया है बल्कि आम आवाम व मेहनतकश का आन्दोलन भी बन गया है. किसानों द्वारा यह भी दावा किया जा रहा है कि कोरोना की आड़ में केंद्र सरकार किसान आन्दोलन को ख़त्म करने के फ़िराक में है. सरकार इस आन्दोलन को ख़त्म करने की साजिश कर रही है जिसमें कोरोना को बहाना बनाया जा रहा है. किसान आन्दोलन के 4 महीने बीत जाने के बाद भी किसानों का हौसला मजबूत है. सरकारी तानाशाही फरमान के ख़िलाफ़ खड़े हुए किसानों के द्वारा लगातार आन्दोलन को तेज किया जा रहा है. किसान आन्दोलन में शामिल लोगों का मानना है कि सरकार किसान आन्दोलन को ख़त्म करने के लिए कोरोना को मुद्दा बना रही है.
कोरोना की इस बेतहाशा वृद्धि से कई सारे सवाल खड़े होते हैं. जब देश में कोरोना के टीकाकरण की समुचित व्यवस्था नहीं थी तो कोरोना के केस घटने शुरू हो गए थे लेकिन जब टीका आ गया देश में तो कोरोना के केस बढ़ने शुरू हो गए और सिर्फ़ कोरोना के मामले ने रफ़्तार ही नहीं पकड़ी, कोरोना का मामला उस मुकाम पर पहुच गया जहाँ तक पिछले साल भर में टीका आने के पहले भी कभी नहीं पंहुचा था. कोविड-19 से लेकर कोविड-21 तक पर ‘राजेन्द्र शर्मा’ ने विस्तृत व्यंगात्मक टिप्पणी करते हुए कहा है कि...
“अब मोदी जी ने टीका उत्सव का ऐलान किया, तो समझ में आया कि माजरा क्या है. टीका तो आ गया, टीका लगने भी लगा, पर उत्सव नहीं आया. स्वास्थ्यकर्मियों को टीका लग गया, तब तक कोरोना रुका रहा. फ्रंटलाइन वर्करों को टीका लग गया, तब भी कोरोना ने सोचा अब उत्सव का नंबर आएगा. बुजुर्गों को टीका लगा तब भी कोरोना बुजुर्गों का ख्याल कर के शांत रहा. पर जैसे ही पैंतालीस साल तक के अधेड़ों का नंबर आया, कोरोना का धैर्य छूट गया. फिर क्या था, ‘टीका डाल-डाल, तो कोरोना पात-पात’ हर रोज के केसों में इंडिया अख्खा दुनिया में नंबर वन. तब मोदी जी को ख्याल आया कि इस साल कोरोना के लिए उत्सव तो किया ही नहीं. चुनावों के लिए रोड शो किए, सभाएं कीं. अहमदाबाद स्टेडियम का नाम बदलने के लिए क्रिकेट मैच किए. आस्था के लिए कुंभ भी किया, पर कोरोना के लिए एक बार ताली-थाली तक नहीं बजायी. याद आने की देर थी कि मोदी जी ने ताबड़तोड़ चार दिन के टीका उत्सव का ऐलान कर दिया. टीका भी और उत्सव भी. कोरोना टीके से डरने को राजी नहीं है तो क्या हुआ, हम उसे उत्सव से पटा लेंगे.
जाहिर है कि कोरोना को उत्सव से पटाने का मोदी जी का भरोसा कोई चुनावी जुमले का मामला नहीं है. पिछले साल की ही तो बात है. केन्द्रीय मंत्री अठावले के ‘‘गो कोरोना गो’’ में प्राचीन भारतीय संस्कृति का तडक़ा लगाते हुए, मोदी जी ने कोरोना के स्वागत में ताली-थाली पीटो उत्सव करा दिया था. पर अनजाने में पश्चिमी ‘‘गो कोरोना’’ यानी कोरोना जाओ से थाली बजाओ की तुक मिल गयी और कोरोना मिस-अडरस्टेंड कर गया. अब मोदी जी को बाकायदा ‘‘दीया-बाती’’ से स्वागत कराना पड़ा और उससे भी बात पूरी तरह नहीं बनी तो देवताओं के आशीर्वाद की शैली में, बाकायदा आकाश से पुष्प-वर्षा करानी पड़ी. कुछ लोग अब भी टीका उत्सव का विरोध कर रहे हैं। कह रहे हैं कि मोदी जी का उत्सवों में तो स्पेशलाइजेशन है, पर टीका कहां है? इधर उत्सव की तैयारी है, उधर जहां भी देखो टीके की मारा-मारी है. वहां टीके की कमी से टीकाकरण केंद्र बंद हो रहे हैं और मोदी जी चार दिन के उत्सव की तैयारी कर रहे हैं. पर ये लोग जान-बूझकर, कोविड को संभालने की देश की कोशिशों में पलीता लगा रहे हैं. वर्ना चार दिन के उत्सव पर इतना हाय-हल्ला करने की क्या जरूरत है. पहली लहर गवाह है कि कोरोना न गोबर-गोमूत्र से मानता है, न रामदेव की दवाओं और काढ़े से और न एलोपैथी की दवाओं से. हमारे चौतीस करोड़ देवी-देवताओं की तरह कोरोना खुश होता है तो पूजा-आरती से, उत्सव से. कोई कवि कह गया है—‘बिन उत्सव सब सून.”
पूरा देश एक बार फिर से पूर्ण रूप से तालाबंदी की तरफ़ बढ़ रहा है. पिछले साल लॉक डाउन की घोषणा के समय मोदी सरकार ने अतिउत्साह में आकर और अत्यधिक आशावादीपन दिखाते हुए कहा था कि जिस तरह से महाभारत की लड़ाई 18 दिन में जीती गयी थी उसी तरह से हम कोरोना की लड़ाई को भी जीतेंगे. उनका यह दावा आज सिर्फ़ इतिहास की बात है. कोरोना के शुरूआती काल से ही इससे निबटने का सरकारी तौर तरीका त्रुटिपूर्ण रहा है.
हमारे देश में कुम्भ उत्सव, क्रिकेट उत्सव, चुनाव उत्सव और टीका उत्सव एक साथ चलाया जाता है. मृत्यु में उत्सवधर्मिता ढूंढने वाले नायाब सरकार के तरीके से कोरोना का खात्मा किया जा रहा है. असल बात यह है कि हर वो काम जिससे सत्ता, धर्म और बड़े पूंजीपतियों का स्वार्थ जुड़ा है उन पर कोई रोक टोक नहीं है लेकिन शिक्षा, रोजगार और रोजी-रोटी की जुगत करने भर पर भी रोक है. इससे समझ लेनी चाहिए कि सत्ता किसके लिए काम कर रही है.