इसी हफ्ते मध्य प्रदेश के गुना जिले में एक आदिवासी महिला को जमीन विवाद में जिंदा जलाने की खबर आई।
पिछले माह मध्यप्रदेश में 2 आदिवासी युवकों को पीट पीट कर मौत के घाट उतार दिया था। पिछले हफ्ते बहराइच उत्तर प्रदेश के ककरहा क्षेत्र में वन विभाग द्वारा एक आदिवासी के घर/छपरी को अतिक्रमण बताते हुए ढहा दिया गया जबकि वनाधिकार कानून जो वन भूमि पर आदिवासियों/वनाश्रितों के कब्जे को मान्यता देता है, के तहत दावा फार्म विचाराधीन है। कुल मिलाकर आदिवासियों पर जुल्म बढ़ता जा रहा है। यह भी उस वक्त जब देश एक आदिवासी महिला को राष्ट्रपति चुनने की तैयारी कर रहा है। संभव है कि कुछ ही दिनों में भारत को पहली आदिवासी राष्ट्रपति मिल जाए, लेकिन सच्चाई है कि धरातल पर आदिवासियों पर अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं। मध्य प्रदेश इस मामले में सबसे आगे है जहां 2020 में इस तरह के मामले 30% बढ़ गए हैं।
इसी 2 जुलाई को मध्यप्रदेश के गुना में सहरिया आदिवासी महिला रामप्यारी बाई को एक ज़मीन विवाद में जिंदा जलाने की कोशिश की गई है। आरोप है कि दबंगों ने महिला पर डीज़ल डाल कर आग लगा दी। दावा किया जा रहा है कि आग लगाने के दौरान अभियुक्तों ने महिला का वीडियो भी बनाया, जो वायरल है।
बीबीसी हिंदी की खबर के अनुसार, लगभग 80% जल चुकी महिला को ज़िला अस्पताल लाया गया, जहां से उसे भोपाल लाया जा रहा है। अभी महिला कुछ भी बयान देने की स्थिति में नहीं है। मामला शनिवार का बमोरी के धनोरिया गाँव का है। रामप्यारी बाई उनके पति अर्जुन सहरिया को खेत में जली हुई अवस्था में मिली थीं। अर्जुन के मुताबिक़, जब वह अपने खेत जा रहे थे, तब वहां अभियुक्त प्रताप, हनुमत, श्याम किरार और उनकी पत्नियां टैक्टर से भाग रहे थे जबकि उनकी पत्नी खेत में जली हालात में मिलीं। अर्जुन ने बताया, "रामप्यारी के सारे कपड़े जल चुके थे।" विवाद की असली वजह 6 बीघा ज़मीन है। कहा जा रहा है कि इस पर दबंगों ने कब्ज़ा कर लिया था। स्थानीय प्रशासन ने मई महीने में इस मामलें पर फ़ैसला करते हुए ज़मीन पर अर्जुन को कब्ज़ा दिलवा दिया था।
दरअसल, अर्जुन सहरिया को यह ज़मीन दिग्विजय सिंह सरकार के समय सरकारी योजना के तहत आवंटित हुई थी लेकिन उन्हें इसका मालिकाना हक़ नहीं मिल पाया था। अभियुक्तों के परिवार का इस खेत पर लंबे समय से कब्ज़ा था
बंधुआ मुक्ति मोर्चा, गुना के ज़िला संयोजक नरेंद्र भदौरिया के अनुसार, इस गाँव की आबादी लगभग 600 लोगों की है। इसमें आदिवासी ज़्यादा है लेकिन कम होते हुए भी धाकड़ और किरार जाति के लोगों का दबदबा है। उनका कहना है कि इस क्षेत्र में ऐसे सैकड़ों मामले मिल जाएंगे जिसमें ज़मीन आदिवासियों के नाम है लेकिन कब्ज़ा दबंगों का है। यह ज़मीन इस परिवार को दिग्विजय सिंह के शासन काल में मिली थी। कुछ समय उनके पास रहने के बाद यह ज़मीन पर इन लोगों ने कब्ज़ा कर लिया था। लेकिन मई में इसे फिर से प्रशासन ने सौंप दी थी। तभी से अभियुक्त उन पर दबाव बना रहे थे।
शनिवार को महिला को पता चला कि ज़मीन को दबंग जोत रहे हैं तो वह फ़ौरन खेत की तरफ भागीं। उस समय उनके पति घर पर नहीं थे। बाद में खेत से धुंआ उठता देख वो उस तरफ़ भागे तो पता चला कि उनकी पत्नी को जलाया गया है। नरेंद्र भदौरिया आरोप लगाते है कि ऐसे मामलों में प्रशासन कुछ दिन सख्त दिखता है लेकिन कुछ दिनों के बाद वो फिर से दबंगों को बचाने लग जाता है। इसी का नतीजा है कि इस तरह की घटनाओं पर लगाम नहीं लग रही है। मामले में 5 लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है। इसमें 3 अभियुक्त हैं और प्रताप की पत्नी और मां हैं। तीन अभियुक्तों में से दो सगे भाई हैं और एक ताउ का बेटा है। गुना पुलिस अधीक्षक, पंकज श्रीवास्तव ने बताया, "इस मामले में सभी को पकड़ लिया गया है. पूरा विवाद ज़मीन को लेकर था जिसमें अभियुक्तों के पास से ज़मीन को ख़ाली कराया गया था इसलिए उन्होंने इस घटना को अंजाम दिया।" इस घटना का जो वीडियो सामने आया है उसमें पीड़ित महिला रो रही हैं और बता रही हैं कि उन्हें जलाया गया है। वीडियो बनाने वाला शख़्स कह रहा है कि महिला ने ख़ुद ही अपने आप को आग लगाई है।
घटना के बाद ज़िला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक भी गाँव में पहुंचे और घटना का पूरा विवरण लिया। अर्जुन का आरोप है कि उन्हें और परिवार को लगातार धमकियां मिल रही थीं।उन्होंने पुलिस अधीक्षक कार्यालय में भी आवेदन दिया था लेकिन किसी ने भी उस पर कारवाई नहीं की। उसी का नतीजा है कि अभियुक्त घटना को अंजाम देने में कामयाब रहे। पहली धमकी की शिकायत स्थानीय बामोरी थाने में भी की गई थी।
पहले भी हुई है जलाने की घटना
मध्य प्रदेश के इस क्षेत्र में आदिवासियों का शोषण आम बात है। दबंगों की ओर से आदिवासियों के साथ इस तरह की घटना पहली बार नहीं हुई है। 2020 में इसी ज़िले में एक मज़दूर को कथित तौर पर महज़ पाँच हज़ार रुपये की उधारी नहीं चुका पाने की वजह से केरोसिन डालकर ज़िंदा जला दिया गया था।
खास है कि सहरिया जनजाति राज्य की सबसे पिछड़ी जनजातियों में आती है। हर चुनाव से पहले सरकार और राजनीतिक दल इस समुदाय के लिए तरह-तरह के वादे करते हैं लेकिन इनकी स्थिति में बहुत अंतर नहीं आया है। अब मामले को लेकर राजनीति भी शुरू हो गई है।
ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस ने मामले में भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा है कि आख़िर कब तक यह बर्बरता चलती रहेगी। ट्वीट के ज़रिये पार्टी ने कहा, "आप इस मामले पर चुप्पी क्यों साधे हुए हैं।" पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने आरोप लगाया कि शिवराज सिंह चौहान सरकार में आदिवासियों पर अत्याचार रुकने का नाम नहीं ले रहा है। आंकड़े बताते आदिवासियों के साथ अत्याचार के मामले में मध्य प्रदेश, देश में नंबर एक पर है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की पिछले साल जारी की गई 2020 की रिपोर्ट बताती है कि प्रदेश में अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत कुल 2,401 मामले दर्ज किए गए। यही नहीं, मध्य प्रदेश 3 साल से पहले पायदान पर बना हुआ है. इस साल के आंकड़े बताते हैं कि यह संख्या पिछले साल से लगभग 20% अधिक है।
अब अगर एनडीए सरकार राष्ट्रपति पद के लिए अपने उम्मीदवार को जिताने के आंकड़े जुटा लेती है तो संभव है कि भारत को द्रौपदी मुर्मू के रूप में उसकी पहली आदिवासी राष्ट्रपति मिल जाए। लेकिन दूसरी तरफ धरातल पर सच्चाई यह है कि देश में आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार बढ़ता ही जा रहा है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो दलितों और आदिवासियों के खिलाफ अपराध के अलग से आंकड़े इकठ्ठा करता है और ब्यूरो की रिपोर्टें दिखाती हैं कि इस तरह के मामलों में कोई कमी नहीं आ रही है।
विभिन्न मीडिया रिपोर्ट बताती हैं कि मध्य प्रदेश में हालत ज्यादा खराब है। NCRB की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक 2020 में देश में अनुसूचित जनजाति के लोगों के साथ अत्याचार के 8,272 मामले दर्ज किए गए, जो 2019 के मुताबिक 9.3% का उछाल है। इन मामलों में सबसे आगे रहा मध्य प्रदेश जहां कुल मामलों में से 29 प्रतिशत मामले (2,401) दर्ज किए गए।
आदिवासी मध्य प्रदेश की आबादी का करीब 22% हैं और सभी राजनीतिक पार्टियों के बीच आदिवासियों के वोट हासिल करने की होड़ लगी रहती है। इसके बावजूद आम आदिवासियों को शोषण और अत्याचार से निजात नहीं मिल पा रही है। दो जुलाई को प्रदेश में गुना जिले में रहने वाली रामप्यारी सहरिया पर जमीन के विवाद को लेकर कुछ लोगों ने उनके खेत में हमला कर दिया और उनके शरीर पर डीजल छिड़क कर आग लगा दी। उसके बाद हमलावरों ने दर्द से कराहती रामप्यारी का वीडियो भी बनाया जो अब सोशल मीडिया तक पहुंच चुका है। सहरिया के पति ने किसी तरह से उन्हें बचाया और अस्पताल पहुंचाया। स्थानीय मीडिया रिपोर्टों के अनुसार रामप्यारी 80% जल चुकी हैं। उनका भोपाल के एक अस्पताल में इलाज चल रहा है और उनकी हालत गंभीर बताई जा रही है। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह उन्हें देखने अस्पताल पहुंचे और सरकार से उनका इलाज मुफ्त कराने की मांग की है।
यही नहीं, ऐक्टिविस्टों का कहना है कि यह घटना प्रदेश में आदिवासियों के हाल की कहानी बयां करती है। ना सिर्फ आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं, बल्कि प्रदेश में इस तरह के मामलों का अदालतों में लंबित रहना भी बढ़ता जा रहा है। NCRB के मुताबिक अदालतों में आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार के कम से कम 10,302 मामले लंबित हैं। जिन मामलों में सुनवाई पूरी हुई उन्हें कन्विक्शन या सजा होने की दर महज 36%,है। मतलब साफ है आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार के मामलों में पुलिस की जांच में कमी रह जाती है जिसकी वजह से आरोपितों को सजा नहीं हो पाती है।
पिछले माह मध्यप्रदेश में 2 आदिवासी युवकों को पीट पीट कर मौत के घाट उतार दिया था। पिछले हफ्ते बहराइच उत्तर प्रदेश के ककरहा क्षेत्र में वन विभाग द्वारा एक आदिवासी के घर/छपरी को अतिक्रमण बताते हुए ढहा दिया गया जबकि वनाधिकार कानून जो वन भूमि पर आदिवासियों/वनाश्रितों के कब्जे को मान्यता देता है, के तहत दावा फार्म विचाराधीन है। कुल मिलाकर आदिवासियों पर जुल्म बढ़ता जा रहा है। यह भी उस वक्त जब देश एक आदिवासी महिला को राष्ट्रपति चुनने की तैयारी कर रहा है। संभव है कि कुछ ही दिनों में भारत को पहली आदिवासी राष्ट्रपति मिल जाए, लेकिन सच्चाई है कि धरातल पर आदिवासियों पर अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं। मध्य प्रदेश इस मामले में सबसे आगे है जहां 2020 में इस तरह के मामले 30% बढ़ गए हैं।
इसी 2 जुलाई को मध्यप्रदेश के गुना में सहरिया आदिवासी महिला रामप्यारी बाई को एक ज़मीन विवाद में जिंदा जलाने की कोशिश की गई है। आरोप है कि दबंगों ने महिला पर डीज़ल डाल कर आग लगा दी। दावा किया जा रहा है कि आग लगाने के दौरान अभियुक्तों ने महिला का वीडियो भी बनाया, जो वायरल है।
बीबीसी हिंदी की खबर के अनुसार, लगभग 80% जल चुकी महिला को ज़िला अस्पताल लाया गया, जहां से उसे भोपाल लाया जा रहा है। अभी महिला कुछ भी बयान देने की स्थिति में नहीं है। मामला शनिवार का बमोरी के धनोरिया गाँव का है। रामप्यारी बाई उनके पति अर्जुन सहरिया को खेत में जली हुई अवस्था में मिली थीं। अर्जुन के मुताबिक़, जब वह अपने खेत जा रहे थे, तब वहां अभियुक्त प्रताप, हनुमत, श्याम किरार और उनकी पत्नियां टैक्टर से भाग रहे थे जबकि उनकी पत्नी खेत में जली हालात में मिलीं। अर्जुन ने बताया, "रामप्यारी के सारे कपड़े जल चुके थे।" विवाद की असली वजह 6 बीघा ज़मीन है। कहा जा रहा है कि इस पर दबंगों ने कब्ज़ा कर लिया था। स्थानीय प्रशासन ने मई महीने में इस मामलें पर फ़ैसला करते हुए ज़मीन पर अर्जुन को कब्ज़ा दिलवा दिया था।
दरअसल, अर्जुन सहरिया को यह ज़मीन दिग्विजय सिंह सरकार के समय सरकारी योजना के तहत आवंटित हुई थी लेकिन उन्हें इसका मालिकाना हक़ नहीं मिल पाया था। अभियुक्तों के परिवार का इस खेत पर लंबे समय से कब्ज़ा था
बंधुआ मुक्ति मोर्चा, गुना के ज़िला संयोजक नरेंद्र भदौरिया के अनुसार, इस गाँव की आबादी लगभग 600 लोगों की है। इसमें आदिवासी ज़्यादा है लेकिन कम होते हुए भी धाकड़ और किरार जाति के लोगों का दबदबा है। उनका कहना है कि इस क्षेत्र में ऐसे सैकड़ों मामले मिल जाएंगे जिसमें ज़मीन आदिवासियों के नाम है लेकिन कब्ज़ा दबंगों का है। यह ज़मीन इस परिवार को दिग्विजय सिंह के शासन काल में मिली थी। कुछ समय उनके पास रहने के बाद यह ज़मीन पर इन लोगों ने कब्ज़ा कर लिया था। लेकिन मई में इसे फिर से प्रशासन ने सौंप दी थी। तभी से अभियुक्त उन पर दबाव बना रहे थे।
शनिवार को महिला को पता चला कि ज़मीन को दबंग जोत रहे हैं तो वह फ़ौरन खेत की तरफ भागीं। उस समय उनके पति घर पर नहीं थे। बाद में खेत से धुंआ उठता देख वो उस तरफ़ भागे तो पता चला कि उनकी पत्नी को जलाया गया है। नरेंद्र भदौरिया आरोप लगाते है कि ऐसे मामलों में प्रशासन कुछ दिन सख्त दिखता है लेकिन कुछ दिनों के बाद वो फिर से दबंगों को बचाने लग जाता है। इसी का नतीजा है कि इस तरह की घटनाओं पर लगाम नहीं लग रही है। मामले में 5 लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है। इसमें 3 अभियुक्त हैं और प्रताप की पत्नी और मां हैं। तीन अभियुक्तों में से दो सगे भाई हैं और एक ताउ का बेटा है। गुना पुलिस अधीक्षक, पंकज श्रीवास्तव ने बताया, "इस मामले में सभी को पकड़ लिया गया है. पूरा विवाद ज़मीन को लेकर था जिसमें अभियुक्तों के पास से ज़मीन को ख़ाली कराया गया था इसलिए उन्होंने इस घटना को अंजाम दिया।" इस घटना का जो वीडियो सामने आया है उसमें पीड़ित महिला रो रही हैं और बता रही हैं कि उन्हें जलाया गया है। वीडियो बनाने वाला शख़्स कह रहा है कि महिला ने ख़ुद ही अपने आप को आग लगाई है।
घटना के बाद ज़िला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक भी गाँव में पहुंचे और घटना का पूरा विवरण लिया। अर्जुन का आरोप है कि उन्हें और परिवार को लगातार धमकियां मिल रही थीं।उन्होंने पुलिस अधीक्षक कार्यालय में भी आवेदन दिया था लेकिन किसी ने भी उस पर कारवाई नहीं की। उसी का नतीजा है कि अभियुक्त घटना को अंजाम देने में कामयाब रहे। पहली धमकी की शिकायत स्थानीय बामोरी थाने में भी की गई थी।
पहले भी हुई है जलाने की घटना
मध्य प्रदेश के इस क्षेत्र में आदिवासियों का शोषण आम बात है। दबंगों की ओर से आदिवासियों के साथ इस तरह की घटना पहली बार नहीं हुई है। 2020 में इसी ज़िले में एक मज़दूर को कथित तौर पर महज़ पाँच हज़ार रुपये की उधारी नहीं चुका पाने की वजह से केरोसिन डालकर ज़िंदा जला दिया गया था।
खास है कि सहरिया जनजाति राज्य की सबसे पिछड़ी जनजातियों में आती है। हर चुनाव से पहले सरकार और राजनीतिक दल इस समुदाय के लिए तरह-तरह के वादे करते हैं लेकिन इनकी स्थिति में बहुत अंतर नहीं आया है। अब मामले को लेकर राजनीति भी शुरू हो गई है।
ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस ने मामले में भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा है कि आख़िर कब तक यह बर्बरता चलती रहेगी। ट्वीट के ज़रिये पार्टी ने कहा, "आप इस मामले पर चुप्पी क्यों साधे हुए हैं।" पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने आरोप लगाया कि शिवराज सिंह चौहान सरकार में आदिवासियों पर अत्याचार रुकने का नाम नहीं ले रहा है। आंकड़े बताते आदिवासियों के साथ अत्याचार के मामले में मध्य प्रदेश, देश में नंबर एक पर है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की पिछले साल जारी की गई 2020 की रिपोर्ट बताती है कि प्रदेश में अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत कुल 2,401 मामले दर्ज किए गए। यही नहीं, मध्य प्रदेश 3 साल से पहले पायदान पर बना हुआ है. इस साल के आंकड़े बताते हैं कि यह संख्या पिछले साल से लगभग 20% अधिक है।
अब अगर एनडीए सरकार राष्ट्रपति पद के लिए अपने उम्मीदवार को जिताने के आंकड़े जुटा लेती है तो संभव है कि भारत को द्रौपदी मुर्मू के रूप में उसकी पहली आदिवासी राष्ट्रपति मिल जाए। लेकिन दूसरी तरफ धरातल पर सच्चाई यह है कि देश में आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार बढ़ता ही जा रहा है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो दलितों और आदिवासियों के खिलाफ अपराध के अलग से आंकड़े इकठ्ठा करता है और ब्यूरो की रिपोर्टें दिखाती हैं कि इस तरह के मामलों में कोई कमी नहीं आ रही है।
विभिन्न मीडिया रिपोर्ट बताती हैं कि मध्य प्रदेश में हालत ज्यादा खराब है। NCRB की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक 2020 में देश में अनुसूचित जनजाति के लोगों के साथ अत्याचार के 8,272 मामले दर्ज किए गए, जो 2019 के मुताबिक 9.3% का उछाल है। इन मामलों में सबसे आगे रहा मध्य प्रदेश जहां कुल मामलों में से 29 प्रतिशत मामले (2,401) दर्ज किए गए।
आदिवासी मध्य प्रदेश की आबादी का करीब 22% हैं और सभी राजनीतिक पार्टियों के बीच आदिवासियों के वोट हासिल करने की होड़ लगी रहती है। इसके बावजूद आम आदिवासियों को शोषण और अत्याचार से निजात नहीं मिल पा रही है। दो जुलाई को प्रदेश में गुना जिले में रहने वाली रामप्यारी सहरिया पर जमीन के विवाद को लेकर कुछ लोगों ने उनके खेत में हमला कर दिया और उनके शरीर पर डीजल छिड़क कर आग लगा दी। उसके बाद हमलावरों ने दर्द से कराहती रामप्यारी का वीडियो भी बनाया जो अब सोशल मीडिया तक पहुंच चुका है। सहरिया के पति ने किसी तरह से उन्हें बचाया और अस्पताल पहुंचाया। स्थानीय मीडिया रिपोर्टों के अनुसार रामप्यारी 80% जल चुकी हैं। उनका भोपाल के एक अस्पताल में इलाज चल रहा है और उनकी हालत गंभीर बताई जा रही है। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह उन्हें देखने अस्पताल पहुंचे और सरकार से उनका इलाज मुफ्त कराने की मांग की है।
यही नहीं, ऐक्टिविस्टों का कहना है कि यह घटना प्रदेश में आदिवासियों के हाल की कहानी बयां करती है। ना सिर्फ आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं, बल्कि प्रदेश में इस तरह के मामलों का अदालतों में लंबित रहना भी बढ़ता जा रहा है। NCRB के मुताबिक अदालतों में आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार के कम से कम 10,302 मामले लंबित हैं। जिन मामलों में सुनवाई पूरी हुई उन्हें कन्विक्शन या सजा होने की दर महज 36%,है। मतलब साफ है आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार के मामलों में पुलिस की जांच में कमी रह जाती है जिसकी वजह से आरोपितों को सजा नहीं हो पाती है।