इलाहाबाद HC ने मांगी रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब की गिरफ्तारी की फुटेज

Written by Sabrangindia Staff | Published on: January 2, 2020
नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ लखनऊ में प्रदर्शन से पहले ही हाउस अरेस्ट कर घर से ही गिरफ्तार किए गए सामाजिक कार्यकर्ता व रिहाई मंच के अध्यक्ष 76 वर्षीय मोहम्मद शुएब के मामले में हैबियस कार्पस याचिका पर इलाहाबाद हाई कोर्ट में आज सुनवाई हुई। इस मामले में न्यायालय ने सरकारी वकील से उनकी गिरफ्तारी की फुटेज सहित सबूत मांगे हैं। 



बता दें कि लखनऊ पुलिस द्वारा 19 दिसंबर 2019 को यूपी पुलिस ने उनके ही घर में हाउस अरेस्ट कर लिया था। इसके बाद पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर अपने साथ ले गई थी। इस मामले में उच्च न्यायालय में हैबियस कार्पस याचिका लगाई गई थी। इस पर 21 दिसंबर 2019 को पहली सुनवाई के लिए आई थी। इस तारीख पर सरकारी वकील को उत्तर (काउंटर एफिडेविट) और याचिकाकर्ता को प्रतिउत्तर (रीजोइंडर) करने कि हिदायत दी गई थी। मामला 2 जनवरी 2020 के लिए रखा गया था।

2 तारीख को जब मामला सुनवाई के लिए आया तो अपने उत्तर में सरकारी वकील ने कहा कि मो. शुऐब को 20.12.19 को क्लार्क्स अवध तिराहा से सुबह 8.45 बजे गिरफ्तार किया गया था, जबकि अपने प्रतिउत्तर में मो. शुऐब ने कहा है कि उन्हें उन्हीं के घर से 19.12.19 को रात 11.45 बजे, कई घंटे हाउस अरेस्ट में रखने के बाद, बिना कारण उठाया गया था। इसके समर्थन में उन्होंने तस्वीरें और कॉल रिकार्ड्स जैसे कुछ दस्तावेज़ प्रस्तुत किये हैं। कोर्ट ने गिरफ्तारी के वक़्त का सार्वजनिक सीसीटीवी फुटेज को उपलब्ध कराने को कहा है। इस पर सरकारी वकील ने पुलिस से सलाह करने के लिए समय माँगा है। मामला 03.01.2020 को फिर सुना जाएगा।

छात्र जीवन से समाजवादी आदर्शों के लिए संघर्ष करने वाले एडवोकेट शुऐब को पहली बार गिरफ्तार नहीं किया गया। जाति सम्प्रदाय से ऊपर उठकर पीड़ित व हाशिये की जनता की पक्षधरता के कारण वे हमेशा सत्तासीनों की आंख की किरकिरी रहे थे और कई बार फर्जी मुकदमों में उन्हें फंसाया गया था। लेकिन उन्होंने कभी अपने आदर्शों से समझौता नहीं किया। 1975 में आपातकाल के दौरान भी उन्हें डी०आई०आर० के तहत गोंडा में दो महीने तक जेल काटनी पड़ी थी।

लखनऊ में वकालत शुरू करने के बाद भी उन्होंने अपने पेशे से अपने आदर्शों को जोड़े रखा। समाज के दबे कुचले वर्ग के पीड़ितों के मुकदमों की निःशुल्क पैरवी ही नहीं करते थे बल्कि उनकी आर्थिक मदद भी करते थे। कानून की मर्यादा के मुताबिक उन्होंने कभी फीस के लिए किसी मुवक्किल को वापस नहीं किया। आतंकवाद के नाम पर गिरफ्तार किए गए यवकों के मुकदमें लड़ने के खिलाफ जब बार असोसिएशनों के फरमान जारी हो रहे थे तब भी उन्होंने उनके मुकदमे लिए। उनके ऊपर लखनऊ कचहरी में वकीलों ने हमला भी किया लेकिन उन्होंने अंत तक हार नहीं मानी और 14 बेकसूरों को रिहाई दिलवाई। 

इस मामले पर रिहाई मंच ने विज्ञप्ति जारी कर कहा कि संविधान और कानून में अटूट आस्था और उसकी मर्यादा कायम रखने वाले शुऐब एडवोकेट ने हिंसक हमलों तक का सामना किया लेकिन किसी के खिलाफ बदले की भावना से कुछ नहीं किया। यह देश और समाज के लिए बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिसे उत्तर प्रदेश सरकार ने लोकतंत्र की रक्षा के लिए स्वंय लोकतंत्र सेनानी का दर्जा दिया हो उस पर संविधान की परिधि से बाहर जाकर हिंसा का सहारा लेने का आरोप लगाकर जेल में डाल दिया जाए।

 

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