बढ़ती बेरोजगारी और आयकर देने वालों की संख्या को लेकर प्रधानमंत्री की चिन्ता

Written by संजय कुमार सिंह | Published on: February 17, 2020
उत्तर प्रदेश में पंजीकृत बेरोजगारों की संख्या बढ़कर 33,93,530 हो गई है। साल 2018 में यह संख्या 21,39811 थी। दो साल में बेरोजगारों की संख्या डेढ़ गुना हो जाना साधारण नहीं है। लेकिन अखबारों में यह खबर क्या इसी प्रमुखता से छपी है? मुझे ऐसा नहीं लगता है। अखबार अपने पाठकों को सच बताने की जगह भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने में लगे हैं। और यह काम पूरी बेशर्मी से हो रहा है। एक ही खबर भाजपा के पक्ष में हो तो फैलाकर छापना और खिलाफ हो तो गोल कर जाना और इसी तरह भाजपा के विरोधी दल के खिलाफ हो तो फैला देना और पक्ष में होतो गोल कर देना साधारण बात है। आजकल दिल्ली में भाजपा की हार का विश्लेषण भी इसी शैली में किया जा रहा है। यह नहीं कहा जा रहा है कि भाजपा अमुक क्षेत्रों में फेल रही इसलिए जनता की उम्मीद कम हुई है। यह बताया जा रहा है कि दूसरी पार्टी को वोट क्यों मिले। इसमें यह चिन्ता कम नहीं है कि कांग्रेस को एक सीट भी नहीं मिली।



आप समझ सकते हैं कि कांग्रेस को वोट मिले होते तो आम आदमी पार्टी के कटते और तब दिल्ली में भाजपा के जीतने की संभावना बनती। इसलिए बहुत सारे राजनीतिक विश्लेषकों को 56 ईंची हार की समीक्षा से ज्यादा महत्वपूर्ण यह लग रहा है कि कांग्रेस को एक सीट भी नहीं आई। बेशक यह महत्वपूर्ण है। लेकिन इससे ज्यादा नहीं कि भाजपा हिन्दू-मुसलमान करती रही और बेरोजगारी डबल इंजन वाले उत्तर प्रदेश में दो साल में डेढ़ गुनी हो गई। पहले बैंक में पांच साल में पैसे दूने हो जाते थे। फिर सात साल में होते थे। अब तो सात साल में वहीं के वहीं हैं। डॉलर से मुकाबला करें तो आधा हो जाएगा। पर चर्चा इस बात की हो रही है कि अरविन्द केजरीवाल हिन्दू वोटों के लिए हनुमान मंदिर गए। तथ्य यह है कि देश भर में शायद ही कोई हिन्दू उम्मीदवार बिना मंदिर गए चुनाव प्रचार करता होगा। अरविन्द केजरीवाल भी नहीं करते थे। मंदिर जाते थे। पर इसका प्रचार कौन करता है? इस बार जरूरत लगी तो कर दिया और जो मुद्दा नहीं है उसी को मुद्दा बनाया जा रहा है।

आज अखबारों में बेरोजगारों की संख्या बढ़ने का आंकड़ा देखकर मुझे याद आया कि भाजपा के लोग मुसलमानों की आबादी बढ़ने का डर फैलाते रहते हैं और बेरोजगारों में मुसलमान भी होंगे ही। पर क्या उसी अनुपात में हैं? जिस अनुपात में उनकी आबादी है या आबादी बढ़ने की खबर फैलाई जा रही है। इसे जांचने के लिए मैंने ढूंढ़ना शुरू किया कि किस भाजपा नेता ने कहा था कि मुसलमानों की आबादी बढ़ रही है। 27 जुलाई 2018 की एक खबर के अनुसार, उस समय के भाजपा सांसद (अंबेडकर नगर, उत्तर प्रदेश) हरिओम पांडे ने कहा था, मुसलमानों की बढ़ती आबादी से हो सकता है देश का बंटवारा, फिर बनेगा नया पाकिस्तान। उनके खिलाफ कोई कार्रवाई हुई कि नहीं - उसकी जानकारी मुझे नहीं है। पर उनका आरोप, टिकट के बदले लड़की और पैसा मांगते हैं बड़े नेता ... चर्चित हुआ था। भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया इसलिए वे अभी सांसद नहीं हैं। उन्होंने बसपा प्रत्यशी राकेश पांडे को 139,429 वोटों से हराया था। आंबेडकर नगर सीट से लोकसभा चुनाव जीतने वाले वे पहले भाजपा उम्मीदवार थे। फिर भी टिकट नहीं मिलना और उनका आरोप अपने आप में महत्वपूर्ण है। भाजपा ने उस आरोप पर कुछ किया कि नहीं उसकी भी जानकारी नहीं है।

तथ्य यह है 2019 के चुनाव में योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री मुकुट बिहारी को आंबेडकर नगर से भाजपा का टिकट मिला और वे बसपा के रितेश पांडे से 95880 वोट से हार गए। बसपा को हराने वाले, हिन्दू-मुसलमान करने वाले का टिकट काटकर एक राज्यमंत्री को देना और उसका चुनाव हार जाना भी गंभीर मुद्दा है। खासकर तब जब पुलवामा के शोर में तमाम चौकीदार चुनाव जीत गए तब। लेकिन यह भाजपा का आंतरिक मामला है। पर भाजपा की राजनीति का गौरतलब मुद्दा है। भले ही अभी चर्चा का विष भाजपा की राजनीति नहीं है। मुसलमानों की आबादी से संबंधित बयान और भ्रम हैं जिसे अभी तक स्वीकार नहीं किया गया है। जो तथ्य स्वीकार किया गया है वह यह है कि उत्तर प्रदेश में पंजीकृत बेरोजगारों की संख्या बहुत बढ़ गई है। हरिओम पांडे भाजपा सांसद होते तो उनसे पूछा जाता कि मुसलमानों की आबादी के संबंध में उनके आंकड़े का स्रोत क्या था। पर अब उनसे पूछना हो तो यह पूछा जाएगा कि टिकट बांटने के संबंध में उनके आरोप का क्या हुआ? देश को आरटीआई कानून देने वाली पार्टी को भ्रष्ट बताने वाली पार्टी के अपने काम में पारदर्शिता का यह हाल है और उसने प्रचारित कर दिया है कि गड़बड़ सिर्फ कांग्रेस में है। लोग मानने भी लगे हैं।

बेरोजगारी दूर करने के लिए पहली जरूरत है कि सरकारी रिक्तियां भरी जाएं। यह सबसे आसान उपाय भी है। पर भाजपा सरकारें इतना भी नहीं कर पा रही हैं। इसी तरह, प्रधानमंत्री यह नहीं सोचते कि जो बेरोजगार हैं वे किस परेशानी में होंगे। उनकी चिन्ता यह है कि देश में 1.5 करोड़ (टीओआई के अनुसार, असल में 1.46 करोड़) लोग ही आयकर देते हैं। यह भारत की आबादी के एक प्रतिशत से थोड़ा ही ज्यादा है। यह देश की वयस्क (20 साल से ऊपर) आबादी का सिर्फ 1.6 प्रतिशत है। अगर यह चिन्ता की बात है कि एक प्रतिशत आबादी ही आयकर देती है तो साफ है कि एक प्रतिशत आबादी ही उतना कमाती है। भ्रष्टचार खत्म करने के दावे पर सरकार बनाने और छह साल सरकार चलाने के बाद प्रधानमंत्री यह तो नहीं सोच रहे होंगे कि भ्रष्टाचार के कारण आयकर देने वालों की संख्या कम है। और अगर ऐसा सोचते भी हों तो चिन्ता की बात यह है कि नोटबंदी से लेकर टैक्स आतंकवाद के बावजूद यह स्थिति क्यों है। प्रधानमंत्री की इस चिन्ता के बाद टाइम्स ऑफ इंडिया ने बताया कि सच यह है कि आयकर देने वालों की संख्या में कमी आई है। और यह 55 प्रतिशत है। अखबार के अनुसार इसका कारण आयकर में कमी है। आप समझ सकते हैं कि प्रधानमंत्री एक ऐसे मुद्दे पर चिन्ता जता रहे हैं जो मुद्दा है ही नहीं।

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