मुद्रा योजना से कितने रोजगार पैदा हुए? चुनाव से पहले रिपोर्ट दबाकर बैठी मोदी सरकार

Written by sabrang india | Published on: March 14, 2019
नई दिल्ली। केंद्र की मोदी सरकार ने नौकरियों और रोजगार का आंकड़ा बताने वाली एक और रिपोर्ट को दबा लिया है। इस बार मुद्रा योजना के तहत पैदा नौकरियों और रोजगार के आंकड़ों को सार्वजनिक करने को दो महीने के लिए टाल दिया गया है। इससे पहले श्रम मंत्रालय के आंकड़ों को भी छिपाने की कोशिश की गई थी।

लेबर ब्यूरो द्वारा इकट्ठा किए गए वह आंकड़े अब चुनाव के बाद ही सामने आएंगे जिनसे पता चल सकता है कि मोदी सरकार की योजना माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनांस एजेंसी – मुद्रा के तहत कितनी नौकरियां या रोजगार पैदा हुए। सूत्रों का कहना है कि इन आंकड़ों को 2 महीने यानी चुनाव पूरे होने तक टाल दबा दिया गया है।

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक इस रिपोर्ट के साथ ही नौकरियों और रोजगार से जुड़ी यह तीसरी रिपोर्ट है जिसे सार्वजनिक होने से पहले ही दबा दिया गया है। इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि विशेषज्ञ समिति को ये आंकड़े जमा करने की पद्धति में कुछ अनियमितताएं नजर आईं और इसके बाद इस रिपोर्ट को सार्वजनिक न करने का फैसला ले लिया गया।

गौरतलब है कि पिछले महीने ही मोदी सरकार ने नैशनल सैंपल सर्वे ऑफिस यानी एनएसएसओ की रिपोर्ट को खारिज करने के बाद लेबर ब्यूरो के सर्वे के निष्कर्षों को इस्तेमाल करने की योजना बनाई थी। लेकिन, पिछले शुक्रवार को हुई बैठक में विशेषज्ञ समिति ने लेबर ब्यूरो की रिपोर्ट में ‘कुछ गड़बड़ियों को दुरुस्त’ करने के लिए कहा। इसके लिए ब्यूरो ने 2 महीने का वक्त मांगा है।

समिति के इस फैसले को अभी केंद्रीय श्रम मंत्री की मंजूरी नहीं मिली है। सूत्रों का कहना है कि रविवार से चुनावी आचार संहिता लागू होने के बाद अनौपचारिक तौर पर अब यही फैसला हुआ है कि इस रिपोर्ट को चुनाव के दौरान सार्वजनिक न किया जाए।

ध्यान रहे कि सीएमआईई की रिपोर्ट के मुताबिक देश में बेरोजगारी की दर अपने शीर्ष पर है। लेकिन मोदी सरकार ने अभी तक एनएसएसओ की बेरोजगारी पर और श्रम ब्यूरों की नौकरियों और बेरोजगारी से जुड़ी छठी सालाना रिपोर्ट भी सार्वजनिक नहीं की है। इन दोनों ही रिपोर्ट में नरेंद्र मोदी के शासनकाल में नौकरियों में गिरावट आने की बात सामने आई थी।

नौकरियों और बेरोजगारी से जुड़ी लेबर ब्यूरो की छठी सालाना रिपोर्ट में बताया गया था कि 2016-17 में बेरोजगारी चार साल के सर्वोच्च स्तर 3.9 फीसदी पर थी। वहीं, एनएसएसओ की रिपोर्ट में कहा गया था कि बेरोजगारी 2017-18 में 42 साल के सर्वोच्च स्तर 6.1 फीसदी पर थी।

यहां यह भी गौरतसब है कि नीति आयोग ने पिछले महीने लेबर ब्यूरो से कहा था कि वे सर्वे को पूरा करके अपने निष्कर्ष 27 फरवरी को पेश करें ताकि उन्हें आम चुनाव से पहले घोषित किया जा सके।

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