मोदी सरकार ने देश के खुदरा व्यापार में रोजगार पा रहे छोटे बड़े व्यापारियों के व्यापार पर गहरी चोट की है। कल उन्होंने बड़ी विदेशी कम्पनियों की बड़ी मुराद पूरी कर दी है अब सिंगल ब्रांड रिटेल में विदेशी कंपनियां फिजिकल आउटलेट से खोलने से पहले ही ऑनलाइन स्टोर शुरू कर सकेंगी फिलहाल, फिजिकल आउटलेट खोलने के बाद ही ऑनलाइन बिक्री की इजाजत थी अब फिजिकल स्टोर को 2 साल बाद खोलने की बात की गई है। यानी विदेशी कम्पनियों को यह सुविधा दी गई है कि पहले धंधा आराम से जमा लो उसके बाद फिजिकल रूप में स्टोर खोलना।
इसके अलावा सिंगल ब्रांड रिटेल में विदेशी कंपनियों के लिए 30% लोकल सोर्सिंग के नियम भी आसान कर दिए गए हैं अब एक्सपोर्ट के लिए खरीद भी लोकल सोर्सिंग में शामिल की जाएगी। इसका अर्थ यह है कि यह जरूरी नही है कि जो सामान आप इंडियन मार्केट में बेच रहे हो वह यही से खरीदा जाए आप यहाँ के सिर्फ 30% माल को खरीद कर एक्सपोर्ट कर दो और सौ प्रतिशत माल अब इम्पोर्ट कर भारतीय बाजार में खपा सकते हो ओर लोकल सोर्सिंग की समीक्षा साल दर साल नहीं बल्कि 5 साल में की जाएगी।
सिंगल-ब्रांड रिटेलर 'वैश्विक कामकाज के लिए इंडिया से जो माल उठाएंगे, उसे वे भारत में अपने पहले स्टोर की शुरुआत वाले साल की पहली अप्रैल से लेकर पांच वर्षों के दौरान भारत से 30% लोकल सोर्सिंग की शर्त पूरी करने में इस्तेमाल कर सकते हैं।'
पहले जो 30% लोकल सोर्सिंग खासकर एमएसएमई, ग्रामीण उद्योगों और कारीगरों से अनिवार्य की गई थी उससे लोकल मार्केट में उत्पादक वो ही उत्पाद बनाकर सप्लाई करता था जो लोकल मार्केट में आसानी से खप जाए अब छोटे उत्पादकों को ऐसे उत्पाद बनाने होंगे जिनकी विदेशों में मांग हो यानी अब इस नीति से उत्पादक लोकल मार्केट से कट जाएगा यह कुछ कुछ चम्पारण में नील की खेती करवाने जैसी ही बात है जिसके लिए महात्मा गांधी को आंदोलन करना पड़ा था
एक ओर महत्वपूर्ण बात यह है कि विदेशी निवेश की छूट देने के बावजूद सरकार को ये अब तक समझ में नहीं आया है कि सिंगल ब्रांड रिटेल होता क्या है? दरअसल एफडीआई के मौजूदा नियमों के मुताबिक एक कंपनी की ओर से अलग-अलग ब्रांड के प्रोडक्ट भी एक स्टोर में नहीं बेचे जा सकते। लेकिन सब ब्रांड और लेबल्स के मुद्दे पर एफडीआई के नियम में कोई सफाई नहीं है। कम्पनियां सब ब्रांड के नाम पर अपने स्टोर में दूसरी कम्पनियों से माल लेकर बेचने लग जाती है यह बात मार्क्स एंड स्पेंसर (एमएंडएम) पर एफडीआई के नियम तोड़ने के आरोप की जांच के दौरान भी सामने आई लेकिन कोई कड़े कदम नही उठाए गए।
इस सिंगल ब्रांड में FDI नीति में बदलाव का सबसे बड़ा फायदा मल्टीनेशनल कम्पनियों को मिलेगा, भारत के रिटेल ट्रेड में बहुराष्ट्रीय कंपनियों की एंट्री अब ओर आसानी के साथ हो जाएगी और स्थानीय व्यापारियों के लिए उनके सामने टिकना ओर मुश्किल हो जाएगा।
इसके अलावा सिंगल ब्रांड रिटेल में विदेशी कंपनियों के लिए 30% लोकल सोर्सिंग के नियम भी आसान कर दिए गए हैं अब एक्सपोर्ट के लिए खरीद भी लोकल सोर्सिंग में शामिल की जाएगी। इसका अर्थ यह है कि यह जरूरी नही है कि जो सामान आप इंडियन मार्केट में बेच रहे हो वह यही से खरीदा जाए आप यहाँ के सिर्फ 30% माल को खरीद कर एक्सपोर्ट कर दो और सौ प्रतिशत माल अब इम्पोर्ट कर भारतीय बाजार में खपा सकते हो ओर लोकल सोर्सिंग की समीक्षा साल दर साल नहीं बल्कि 5 साल में की जाएगी।
सिंगल-ब्रांड रिटेलर 'वैश्विक कामकाज के लिए इंडिया से जो माल उठाएंगे, उसे वे भारत में अपने पहले स्टोर की शुरुआत वाले साल की पहली अप्रैल से लेकर पांच वर्षों के दौरान भारत से 30% लोकल सोर्सिंग की शर्त पूरी करने में इस्तेमाल कर सकते हैं।'
पहले जो 30% लोकल सोर्सिंग खासकर एमएसएमई, ग्रामीण उद्योगों और कारीगरों से अनिवार्य की गई थी उससे लोकल मार्केट में उत्पादक वो ही उत्पाद बनाकर सप्लाई करता था जो लोकल मार्केट में आसानी से खप जाए अब छोटे उत्पादकों को ऐसे उत्पाद बनाने होंगे जिनकी विदेशों में मांग हो यानी अब इस नीति से उत्पादक लोकल मार्केट से कट जाएगा यह कुछ कुछ चम्पारण में नील की खेती करवाने जैसी ही बात है जिसके लिए महात्मा गांधी को आंदोलन करना पड़ा था
एक ओर महत्वपूर्ण बात यह है कि विदेशी निवेश की छूट देने के बावजूद सरकार को ये अब तक समझ में नहीं आया है कि सिंगल ब्रांड रिटेल होता क्या है? दरअसल एफडीआई के मौजूदा नियमों के मुताबिक एक कंपनी की ओर से अलग-अलग ब्रांड के प्रोडक्ट भी एक स्टोर में नहीं बेचे जा सकते। लेकिन सब ब्रांड और लेबल्स के मुद्दे पर एफडीआई के नियम में कोई सफाई नहीं है। कम्पनियां सब ब्रांड के नाम पर अपने स्टोर में दूसरी कम्पनियों से माल लेकर बेचने लग जाती है यह बात मार्क्स एंड स्पेंसर (एमएंडएम) पर एफडीआई के नियम तोड़ने के आरोप की जांच के दौरान भी सामने आई लेकिन कोई कड़े कदम नही उठाए गए।
इस सिंगल ब्रांड में FDI नीति में बदलाव का सबसे बड़ा फायदा मल्टीनेशनल कम्पनियों को मिलेगा, भारत के रिटेल ट्रेड में बहुराष्ट्रीय कंपनियों की एंट्री अब ओर आसानी के साथ हो जाएगी और स्थानीय व्यापारियों के लिए उनके सामने टिकना ओर मुश्किल हो जाएगा।