नई दिल्ली। ग़रीबी की परिभाषा क्या होती है इस विषय पर पिछली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार ने काफी माथापच्ची की? यहां तक तब के योजना आयोग और अब के नीति आयोग ने ग़रीबी को परिभाषित भी किया। उस समय के योजना आयोग की इस परिभाषा से ज्यादातर लोग सहमत नहीं हुए। आने वाले समय में ग़रीबी की नई परिभाषा क्या होगी इसे तय करने के लिए मोदी सरकार ने कमर कस ली है।
दरअसल मौजूदा सरकार के थिंक टैंक माने जाने वाले नीति आयोग ने अब फैसला किया है कि देश में नई तरह से ग़रीबी रेखा का निर्धारण किया जाए। सरकार का मानना है इससे ग़रीबी दूर करने में सरकार की ओर से उठाए गए कदमों में मदद मिलेगी। ग़रीबी रेखा का निर्धारण कैसे किया जाए इस पर गठित किए गए टास्क फोर्स ने साल भर मंथन किया लेकिन कोई एकमत नहीं हो पाया। ये टास्क फोर्स नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया के नेतृत्व में डेढ़ साल पहले गठित किया गया था जिसमें 16 सदस्य थे। नीति आयोग के एक आला अफसर के मुताबिक 'हम ग़रीबी रेखा मसले पर एक जल्द ही एक्सपर्ट कमिटी बनाई जायेगी, जिसका उद्देश्य देश में कितने ग़रीब हैं पता लगाना होगा।'
सरकार द्वारा गठित टास्क फोर्स ने सोशल सेक्टर के आंकड़ों का जायजा लेने के लिए कुछ आंकड़ों के इस्तेमाल को लेकर कुछ दिशा-निर्देश दिए। टास्क फोर्स के दिए इन सुझावों में देश की आबादी के निचले तबके के 40 फीसद लोगों को ग़रीब करार देना था।
पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाले नीति आयोग की रणनीति में उस समय फेर-बदल हुआ जब अधिकतर राज्यों ने ग़रीबी के तय न्यूनतम स्तर को मानने से मना कर दिया। राज्यों के मुताबिक जो आंकड़े ग़रीबी के दिए जाते हैं वे जमीनी आंकड़ों से मेल नहीं खाते। इसलिए ऐसा माना जा रहा है इस तरह के आंकड़े योजनाओँ की प्रगति का आंकलन करने में कारगर नहीं होंगे।
किसी भी देश में ग़रीबी रेखा अहम होती है। ग़रीबी रेखा का सीधा असर देश की आर्थिक प्रगित पर भी पड़ता है। सरकार द्वारा बनाई जाने वाली बहुत सारी योजनाएं ग़रीबों के कल्याण के लिए होती हैं। अगर ये योजनाएं ग़रीबों तक सीधे नहीं पहुंचती उन्हें इनके लाभ से वंचित होना पड़ता है। अगर ग़रीबी रेखा को नीचे कर दिया जाता है तो बहुत से ग़रीबों को उन योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाएगा। अगर ग़रीबी रेखा को ऊपर उठा दिया जाता है तो सबसे ज्यादा लाभ सबसे ऊपर वाले लोगों को ही होगा।
यूपीए सरकार के दूसरे चरण में रंगराजन कमिटी ने आखिरी सालों में 29.6 फीसद आबादी यानी 36.3 करोड़ लोंगों को ग़रीबी की रेखा के नीचे करार दिया था। तेंदुल्कर समिति की रिपोर्ट के मुताबिक ग़रीबी रेखा को ग्रामीण इलाकों में प्रतिदिन प्रतिव्यक्ति खर्च को 27 रुपये से बढ़ाकर 32 रुपये और शहरी इलाकों में 33 से बढ़ाकर 49 रुपये कर दी थी।
Courtesy: National Dastak
दरअसल मौजूदा सरकार के थिंक टैंक माने जाने वाले नीति आयोग ने अब फैसला किया है कि देश में नई तरह से ग़रीबी रेखा का निर्धारण किया जाए। सरकार का मानना है इससे ग़रीबी दूर करने में सरकार की ओर से उठाए गए कदमों में मदद मिलेगी। ग़रीबी रेखा का निर्धारण कैसे किया जाए इस पर गठित किए गए टास्क फोर्स ने साल भर मंथन किया लेकिन कोई एकमत नहीं हो पाया। ये टास्क फोर्स नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया के नेतृत्व में डेढ़ साल पहले गठित किया गया था जिसमें 16 सदस्य थे। नीति आयोग के एक आला अफसर के मुताबिक 'हम ग़रीबी रेखा मसले पर एक जल्द ही एक्सपर्ट कमिटी बनाई जायेगी, जिसका उद्देश्य देश में कितने ग़रीब हैं पता लगाना होगा।'
सरकार द्वारा गठित टास्क फोर्स ने सोशल सेक्टर के आंकड़ों का जायजा लेने के लिए कुछ आंकड़ों के इस्तेमाल को लेकर कुछ दिशा-निर्देश दिए। टास्क फोर्स के दिए इन सुझावों में देश की आबादी के निचले तबके के 40 फीसद लोगों को ग़रीब करार देना था।
पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाले नीति आयोग की रणनीति में उस समय फेर-बदल हुआ जब अधिकतर राज्यों ने ग़रीबी के तय न्यूनतम स्तर को मानने से मना कर दिया। राज्यों के मुताबिक जो आंकड़े ग़रीबी के दिए जाते हैं वे जमीनी आंकड़ों से मेल नहीं खाते। इसलिए ऐसा माना जा रहा है इस तरह के आंकड़े योजनाओँ की प्रगति का आंकलन करने में कारगर नहीं होंगे।
किसी भी देश में ग़रीबी रेखा अहम होती है। ग़रीबी रेखा का सीधा असर देश की आर्थिक प्रगित पर भी पड़ता है। सरकार द्वारा बनाई जाने वाली बहुत सारी योजनाएं ग़रीबों के कल्याण के लिए होती हैं। अगर ये योजनाएं ग़रीबों तक सीधे नहीं पहुंचती उन्हें इनके लाभ से वंचित होना पड़ता है। अगर ग़रीबी रेखा को नीचे कर दिया जाता है तो बहुत से ग़रीबों को उन योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाएगा। अगर ग़रीबी रेखा को ऊपर उठा दिया जाता है तो सबसे ज्यादा लाभ सबसे ऊपर वाले लोगों को ही होगा।
यूपीए सरकार के दूसरे चरण में रंगराजन कमिटी ने आखिरी सालों में 29.6 फीसद आबादी यानी 36.3 करोड़ लोंगों को ग़रीबी की रेखा के नीचे करार दिया था। तेंदुल्कर समिति की रिपोर्ट के मुताबिक ग़रीबी रेखा को ग्रामीण इलाकों में प्रतिदिन प्रतिव्यक्ति खर्च को 27 रुपये से बढ़ाकर 32 रुपये और शहरी इलाकों में 33 से बढ़ाकर 49 रुपये कर दी थी।
Courtesy: National Dastak