वादा न तोड़: हर घर को बिजली देने के मोदी के वादे में करंट नहीं

Written by सबरंग इंडिया स्टाफ | Published on: October 16, 2017
2022 तक हर घर तक बिजली पहुंचाने का वादा। मोदी सरकार के बड़े वादों में यह भी शामिल है। दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना, सौभाग्य और उदय योजना से देश के बिजली सेक्टर की कायापलट कर हर घर तक बिजली पहुंचाने के सपने दिखाए जा रहे हैं। लेकिन क्या ये सपने हकीकत की जमीन पर उतर रहे हैं। क्या मोदी सरकार हर घर को बिजली देने के अपने वादे पर खरा उतर रही है। सबरंगइंडिया की पड़ताल की इस कड़ी मे पेश है हर घर तक बिजली पहुंचाने के दावे और हकीकत का जायजा।


  
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2014 की चुनावी रैलियों में अक्सर लोगों से एक सवाल पूछते थे। अपने खास अंदाज में वह पूछते थे - आपके यहां पिछले 70 साल में बिजली आई क्या? आपके यहां बिजली कब आती है और कब जाती है, पता है क्या? बिजली के खंभों को दिखा कर वे कहते थे हमने गुजरात में गांवों, शहरों और किसानों के खेतों को चौबीस घंटे बिजली मुहैया कराने का अपना वादा पूरा किया है। मित्रो, बीजेपी की सरकार आई तो आपको 24 घंटे बिजली के लिए तरसना नहीं पड़ेगा। हर गांव और हर घर रोशनी से जगमगा उठेगा। यह हमारा आपसे वादा है।

सत्ता में आने के बाद नवंबर 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन 18,452 गांवों में 1000 दिनों यानी 1 मई, 2018 तक बिजली पहुंचाने का वादा किया, जो आजादी के 68 साल बाद भी बिजली से महरूम थे। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक दीनदयाल ग्राम ज्योति योजना के तहत 19 मई 2017 तक 13,511 गांवों में बिजली पहुंचाई जा चुकी है। इसके बाद इस साल सितंबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘सहज बिजली हर घर योजना’ यानी ‘सौभाग्य’ योजना के तहत गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले हर ग्रामीण और शहरी परिवार तक मुफ्त बिजली पहुंचाने का वादा किया। पीएम ने इस पर 16,000 करोड़ रुपये खर्च करने का वादा किया है। पीएम ने वादा किया कि उनकी सरकार 14 महीनों में गरीब परिवारों तक बिजली पहुंचा देगी।

मुश्किल मोर्चा बिजली का

सवाल अब यह है हर गांव तक बिजली पहुंचाने का यह वादा कहां तक पूरा हुआ है। देश में बिजलीकरण का सफर कहां तक पहुंचा है। जहां बिजली पहुंची है, वहां सप्लाई की स्थिति क्या है। जहां पहले से बिजली है वहां बिजली की सप्लाई की क्या हालत है। वहां लोगों को रात-दिन मिला कर कितने घंटे बिजली मिल रही है।

क्या हर घर में बिजली पहुंचाने का जो काम 70 साल में नहीं हुआ, वो महज 14 महीने में पूरा हो जाएगा? क्या भारत में बिजली उत्पादन, वितरण और सप्लाई का मोर्चा इतना आसान है कि मोदी का वादा अपने नीयत वक्त पर पूरा हो जाएगा?

सरकार के दावे

मोदी सरकार के तीन साल पूरे होने के मौके पर कहा गया ग्रामीण इलाकों में दीनदयाल ग्राम ज्योति योजना के तहत 18,000 से अधिक बिजली रहित गांवों में बिजली पहुंचाने का लक्ष्य तीन चौथाई पूरा हो चुका है। बिजली उत्पादन के लिए कोयले की सप्लाई को और आसान बना दिया है। सरकार ने उज्जवल डिस्कॉम एश्योरेंस योजना (UDAY – उदय) के जरिये राज्य बिजली बोर्डों की बिजली वितरण कंपनियों का कर्ज टेकओवर करने का रास्ता निकाला है। पूर्व बिजली मंत्री पीयूष गोयल ने अंग्रेजी अखबार ‘द मिंट’ को दिए गए एक इंटरव्यू में इस योजना को गेम चेंजर करार दिया था। उनका कहना था कि राज्य बिजली बोर्ड जरूरत पड़ने पर भी बिजली नहीं खरीदते हैं।

पहले से ही भारी घाटे के बोझ में दबे बोर्ड बिजली खरीद कर अपना बोझ और नहीं बढ़ाना चाहते। लेकिन उदय इन स्थितियों को बदल देगा। राज्यों में डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियों पर 4 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है। अब तक 27 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश ने उदय योजना को अपनाया है। जो राज्य इसमें शामिल होंगे वे पहले साल बिजली वितरण कंपिनयों का 50 फीसदी कर्ज टेकओवर कर सकते हैं। अगले साल इसका 25 फीसदी टेकओवर हो सकता है। इससे डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियों को कर्ज मुक्त होकर नए सिरे से ऑपरेट करने में मदद मिलेगी। बाकी बचे कर्ज के लिए राज्यों की गारंटी पर उदय बांड जारी किए जाएंगे।

कामयाबी के दावे में कितना दम

गोयल ने अपने इंटरव्यू में कहा था कि पावर सेक्टर में सुधार सिर्फ बिजली उत्पादन और वितरण तक सीमित नहीं है। इसके लिए बड़ी ओवरहॉलिंग और सुधारों की जरूरत है। गोयल ने दावा किया कि इसके लिए वे बिजली सेक्टर से जुड़े सभी पक्षों - राज्य सरकारों, केंद्र के अलग-अलग मंत्रालयों, ऋण देने वाली एजेंसियों, निवेशकों, उपकरण सप्लायरों, उपभोक्ता संगठनों, पावर यूटिलिटीज, बिजली उत्पादकों, बिजली प्राधिकरणों, कोल सप्लायर्स, अंतरराष्ट्रीय गैस आयातकों, कोयला सप्लायरों और ऊर्जा का बेहतरीन इस्तेमाल करने वाले उपकरण निर्माताओं - को एक मंच पर ले आए। खुद उन्होंने इनके साथ 200 बैठकें की। मंत्रालय के अधिकारियों ने 1000 से ज्यादा बैठकें कीं। इस इंटरव्यू के जरिये गोयल यह बताना चाहते थे कि मोदी सरकार बिजली सेक्टर की कायापलट करने का गंभीर इरादा रखती है और इस दिशा में काफी हद तक कामयाब भी हो चुकी है।

कनेक्शन नहीं सप्लाई अहम

यह पता करना जरूरी है कि वास्तविकताओं की धरातल पर ये वादे और इरादे कहां तक टिकते हैं। दरअसल देश में बिजली की पहुंच (access) होना ज्यादा महत्वपूर्ण बात नहीं है। महत्वपूर्ण बात यह है कि लोगों को कितनी बिजली मिल रही है। जो बिजली मिल रही है उसकी गुणवत्ता कैसी है। क्या सप्लाई की जाने वाली बिजली का खर्च लोग उठा सकते हैं। अगर बिजली की सप्लाई हो रही है तो लोगों को कितने घंटे बिजली मिलती है। पीक आवर (व्यस्त समय) में कितने घंटे की बिजली सप्लाई और ऑफ पीक पावर में कितने घंटे बिजली सप्लाई होती है। मोदी सरकार के सबको बिजली मुहैया कराने के वादों को इन्हीं कसौटियों पर कसना होगा।

पावर सरप्लस देश की हकीकत

सरकार ने हाल में ऐलान किया थी कि देश अब पावर सरप्लस है और हम पड़ोसी देशों को बिजली निर्यात कर रहे हैं। लेकिन सरप्लस बिजली का मतलब यह नहीं है कि भारत अब अपनी जरूरत से ज्यादा बिजली पैदा कर रहा है। इसका मतलब यह है कि भारत में जितनी बिजली की मांग है उससे ज्यादा पैदा करने की क्षमता है। लेकिन बिजली की मांग इस बात पर निर्भर करती है कि कितने लोगों तक बिजली की पहुंच है। अगर बिजली तक लोगों की सीमित पहुंच है और इसकी कीमत ज्यादा है तो भी मांग रहते हुए भी लोग बिजली नहीं ले पाएंगे। ऐसे में बिजली सरप्लस हो जाएगी। भले ही उत्पादन से मांग ज्यादा हो। या फिर यह मांग से ज्यादा पैदा की जा रही हो।
पिछले तीन साल में बिजली उत्पादन में औसतन 6 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। उत्पादन क्षमता में 8 फीसदी अधिक की बढ़ोतरी हुई है जबकि मांग में लगभग 4.5 फीसदी की। यूपीए शासन के दस साल के दौरान बिजली की मांग में सालाना 6 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी।

बिजली पहुंचने की धीमी रफ्तार

दीनदयाल ग्राम ज्योति योजना के तहत साढ़े चार करोड़ परिवारों तक दिसंबर 2018 तक बिजली पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है लेकिन अब तक इस आबादी के दो फीसदी को ही कवर किया गया है। गांवों में चौबीसों घंटे बिजली सप्लाई अब भी सपना बना हुआ है। इस बीच इकोनॉमी की स्थिति खराब होने की वजह से बिजली की कॉमर्शियल मांग भी कम हो गई है।

बिजली की कमी की वजह से हुआ नुकसान देश की जीडीपी के सात फीसदी के बराबर है। 2012 में भारत ने ग्रिड फेल होने की वजह से अपने इतिहास का सबसे बड़ा ब्लैकआउट देखा था। अब लगभग देश में पांच करोड़ परिवार ऐसे हैं, जिन्होंने बिजली देखी ही नहीं है। देश में दुनिया की सबसे बड़ी कोयला खनन मौजूद हैं लेकिन यह अपनी बिजली उत्पादन क्षमता का आधा ही इस्तेमाल कर पाता है।

बिजली खपत में बेहद पिछड़े  

वर्ल्ड बैंकिंग की इलेक्ट्रिसिटी रैंकिंग में भारत 137 देशों की सूची में 109वें नंबर पर है। देश में प्रति व्यक्ति 806 किलोवाट बिजली की खपत करता है जबकि अल्जीरिया 1,356 और लिथुआनिया 3,821 किलोवाट बिजली की खपत करता है। यानी अल्जीरिया जैसा छोटा देश भारत से डेढ़ गुना और लिथुवानिया साढ़े चार गुना बिजली की खपत करता है।

काउंसिल ऑफ एनर्जी, एनवायरमेंट और एनर्जी की ओर से 2015 में किए गए एक सर्वे में बताया गया था कि किस राज्य में कितने फीसदी लोगों को 20 घंटे बिजली मिलती है। इनमें से यूपी में 5 फीसदी, झारखंड में 2 फीसदी, बिहार में 8 फीसदी, ओडिशा में 23 फीसदी और मध्य प्रदेश में 26 फीसदी लोगों को 20 घंटे बिजली मिलती है। 

इन्फ्रास्ट्रक्चर मौजूद लेकिन सप्लाई नहीं

देश में हर घर तक बिजली पहुंचाने के दावों के बीच बड़ा सवाल यह है कि क्या जहां बिजली के इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार हैं, वहां लोगों को यह मुहैया हो रही है। इन इलाकों के लोगों को कितनी बिजली मिलती है? जिन इलाकों के बारे में कहा जा रहा है कि उनका बिजलीकरण हो चुका है, वहां हालात क्या हैं? सरकार के बिजलीकरण का पैमाना क्या है? क्या सरकारी एजेंसियों के पास बिजली सप्लाई की वास्तविक स्थिति जानने के लिए कोई फूल प्रूफ मशीनरी हैं? इन तमाम सवालों के जवाब जानने के लिए आपको यूपी के दो इलाकों में बिजली सप्लाई की स्थिति पर नजर दौड़ानी होगी। मीडिया ने इन दोनों इलाकों की व्यापक रिपोर्टिंग की है और बिजली सप्लाई की जमीनी हालात की जानकारी दी है।

खंभे, तार और बिजली ट्रैकिंग एप की कहानी

15 अगस्त, 2016 को पीएम नरेंद्र मोदी ने लालकिले से अपने भाषण में कहा कि हाथरस जिले का नगला फतेला गांव, जहां पहुंचने में तीन घंटे लगते हैं वहां 70 साल से बिजली नहीं पहुंची। लेकिन उनकी सरकार की दीनदयाल ग्राम ज्योति योजना की बदौलत आज इसका हरेक घर बिजली से रोशन है। लेकिन गांव में बिजली की हालत क्या है इसका पता तब चला जब मीडिया ने इसे रिपोर्ट किया। गांव के अधिकतर घर बिजली से महरूम थे और वे प्रधानमंत्री के इस ऐलान से अचरज में थे कि पूरा गांव बिजली से रोशन हो चुका है। हकीकत यह थी कि गांव के 600 में 450 में बिजली नहीं थी और जो बाकी 150 घर थे वे ‘कटिया कनेक्शन’ से बिजली ले रहे थे। इन लोगों ने अपने घरों को एक ट्रांसफॉर्मर से जोड़ दिया था, जिससे 22 ट्यूबवेल चलते थे। गांव के प्रधान ने ‘इंडियन एक्सप्रेस’ को बताया कि यह सच है कि गांव में दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना के तहत बिजली के खंभे गड़ गए हैं। वायर और मीटर भी लग गए हैं लेकिन बिजली की सप्लाई दूर की कौड़ी है। दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड के अलीगढ़ डिवीजन के चीफ इंजीनियर वी एस गंगवार के मुताबिक गांव में बिजली काफी पहले आ गई है। लेकिन लोगों को बिजली सिर्फ कटिया कनेक्शन के जरिये मिली है। आश्चर्य यह है लोगों को इस बिजली के लिए बिल भी जारी किया जाता है। यानी सरकार ने कटिया के जरिये बिजली लेने को कानूनी भी किया हुआ है।

चीफ इंजीनियर ने कहा कि गांव में बिजली 1985 से है। यह बिजली ट्यूबवेल के लिए लगाए गए ट्रांसफॉर्मर के जरिये दी जाती है। पीएम ने अपने भाषण में जैसे ही नगला फतेला का जिक्र किया आला अधिकारियों के होश उड़ गए। उन्हें मालूम था कि नगला फतेला में बिजली नहीं है। फिर बिजली होने की बात कैसे उठी? इस बीच, सरकार के पत्र सूचना कार्यालय ने स्पष्टीकरण जारी किया जिसमें कहा गया कि डीवीवीएनएल आगरा की रिपोर्ट के आधार पर गांव के बिजलीकरण का दावा किया गया था। यही वजह है कि सरकार की और से बिजलीकरण को ट्रैक करने वाले एप जीएआरवी यानी ‘गर्व’ में गांव में बिजली दिखाई गई। पीआईबी की ओर से जारी रिलीज में कहा गया कि डीवीवीएनल आगरा ने अक्तूबर 2015 में एक रिपोर्ट भेज कर कहा था कि नगला फतेला में बिजलीकरण के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर का काम पूरा हो चुका है। लिहाजा गांव का बिजलीकरण हो गया है। गर्व की ट्रैकिंग के हिसाब से गांव में बिजलीकरण पूरा होना दिखाया गया। यह मोदी सरकार के बिजलीकरण का तरीका है जो वास्तविक हालातों को नजरअंदाज कर हर घर तक बिजली पहुंचाने का दावा करता है।

गांवों में बिजली सप्लाई की क्या स्थिति है इसकी पुष्टि हिन्दुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट से भी हो जाती है। इस रिपोर्ट में यूपी के सीतापुर जिले का जिक्र किया गया है और घरों में बिजली सप्लाई के मामले में इसे देश का सबसे पिछड़ा जिला बताया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2015-16 के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे  (एनएचएफएस) के ताजा आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक इस जिले में प्रति 10 घरों में सिर्फ 2 घरों में बिजली की सप्लाई थी। गांवों में बिजलीकरण को ट्रैक करने वाले सरकार के मोबाइल एप जीएआरवी के मुताबिक 2015 में जिले का सिर्फ एक गांव भरथा बिजली से महरूम था। आखिर यह यह कैसे हो सकता है कि जिस जिले में हर दस घर में सिर्फ दो में बिजली कनेक्शन हो, उसे सौ फीसदी बिजलीकरण से पूर्ण जिला मान लिया जाए?


बिजलीकरण की परिभाषा में ही गड़बड़ी

दरअसल इसे समझने के लिए यह देखना पड़ेगा कि सरकार के बिजलीकरण के मानक क्या हैं। सरकार की परिभाषा के मुताबिक अगर किसी गांव के दस फीसदी घरों और सार्वजनिक स्कूलों, स्वास्थ्य केंद्रों, पंचायत घरों तक बिजली की पहुंच है तो मान लिया जाएगा कि गांव का बिजलीकरण हो चुका है। सरकार अपनी इसी परिभाषा के मुताबिक मान रही है कि वह 2022 तक हर घर में बिजली पहुंचा देगी।

अगर गांवों में बिजली की सप्लाई देखनी हो तो इसके लिए किसी खास मशक्कत की जरूरत नहीं है। यूपी, बिहार, झारखंड या देश के किसी भी राज्य के किसी गांव में चले जाइए। आपको कहीं भी ये हालात दिख सकते हैं - खंभे गड़े हुए हैं। कहीं तार हैं, कहीं चोरों ने काट लिए हैं। कहीं ट्रांसफॉर्मर बुरी हालत में है। ट्रांसफार्मर हैं भी तो इनमें तेल नहीं है। सरकारी एप और कागजों में बिजली है लेकिन जमीन पर बिजली कहीं नहीं दिखती। घंटों बिजली नहीं आती है। आती है तो रहती नहीं है। गांव वालों को बिजली का करारा झटका तब लगता है जब बिल पहुंच जाता है। यूपी के सीतापुर जिले में ही भरथापुर से 40 किलोमीटर दूर है महेशपुर गांव। हिन्दुस्तान टाइम्स के रिपोर्ट के मुताबिक यहां की मिश्रानपुरवा टोले में गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों को आठ कनेक्शन दिए गए थे। टोले में घुसते ही बिजली के खंभे से एक बल्ब लटकता दिखता है। लेकिन गांव वाले बताते हैं कि गांव में बिजली के लिए खंभे गड़ने और तार बिछने के बावजूद यह बल्ब कभी नहीं जला। वजह यह थी कि ट्रांसफारमर लगने के एक दिन बाद ही इसका तेल रिस गया। कांट्रेक्टर का कहना है कि गांव वालों ने इसका तेल चुरा लिया। उसने इसके लिए अनाम गांव वालों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज करा दी। अब गांव वालों के पैसे नहीं हैं कि इसके लिए तेल खरीदें। जबकि गर्व एप के मुताबिक यहां के 42 घरों में से 32 घर बिजली से रोशन है।

बड़ा फासला है दावों और हकीकत में

देश भर में आपको बिजली पहुंचने और इससे घर रोशन होने की सैकड़ों कहानियां मिल जाएंगी। ऐसे तमाम इलाके हैं जहां कागजों में बिजली पहुंच चुकी है। लेकिन बिजली की सप्लाई बेहद बुरी है। बिजली के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर की बहाली के बावजूद बिजली नहीं मिलती। मिलती भी है तो नाम मात्र को। कई गांवों में लोग बिजली न होने की वजह से मोबाइल तक चार्ज नहीं कर पाते। बिजली न होने से गांवों के लड़के-लड़कियों के रिश्ते नहीं आते। मगर इन हालातों के बावजूद मोदी सरकार बड़े जोर-शोर से कह रही है कि वह हर घर में बिजली पहुंचाएगी। ऐसा करके वह बिजली सप्लाई की हकीकत पर पर्दा डालने की ही कोशिश करेगी। कागजों पर बिजली की पहुंच दिखाना और हर घर को ज्यादा से ज्यादा घंटे तक बिजली देना अलग-अलग बातें हैं। सरकार इस हकीकत को नजरअंदाज कर रही है। उसे हर घर को बिजली से रोशन करने का अपना झूठा दावा पेश करने से परहेज करना चाहिए। इसके बावजूद वह अपने झूठे दावों पर अड़ी रहती है तो 2019 के चुनाव में वे वोटर उसे करारा झटका देंगे जो हर रोज इस फरेब के शिकार हो रहे हैं।


 
 
 

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