साधो, साध्वी प्रज्ञा को भाजपा ने भोपाल की लोकसभा सीट से अपना उम्मीदवार बनाया तो कुछ लोगों को बुरा लगा। कुछ लोगों को बहुत आश्चर्य हुआ। पर मुझे कुछ नहीं हुआ। साधो, मैंने भाजपा के फैसले पर हैरान होना तब से छोड़ दिया था जब मैंने माया कोडनानी को भाजपा से विधायकी के लिए टिकट मिलते और जीतकर विधानसभा पहुंचते देखा था। बाद में उन्होंने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय संभाला। माया कोडनानी कौन हैं और उनपर किस तरह के आरोप थे और वे चुनाव जीतकर कौन सा मंत्रालय संभाल रही थी यह सब जानने वाले अपने जीवन मे इससे बड़ी विडंबना न देखे होंगे!
साधो, अब बात चली है तो दूर तलक जायेगी। एक वह दौर भी था जब मस्जिद तोड़ने के लिए आडवाणी जी रथ यात्रा लेकर पूरे देश में भ्रमण पर निकले थे। उमा भारती, शत्रुधन सिन्हा यह सब उसी दौर से उभरे हैं और आज भाजपा में उनकी क्या पोजिशन है सब जानते हैं। यह बात अलग है कि आज शत्रुधन सिन्हा कांग्रेसी हो गए। कांग्रेसी तो आज उदित राज भी हो गए। पर साधो, उदित राज और शत्रुघ्न सिन्हा में फर्क है। उदित राज भाजपा में भले थे पर साम्प्रदायिक नहीं लगते। आनंद पटवर्धन की डॉक्युमेंट ' राम के नाम ' में शत्रुघ्न सिन्हा को जब जय श्री राम के नारे लगाते देखता हूँ तो आत्मा कांपने लगती है।
साधो, बात साध्वी की चली थी। सोचता हूँ, क्या भाजपा के पास कोई ऐसा स्वच्छ छवि का चेहरा न था जिसे भोपाल से वह कैंडीडेट बना देती। पर फिर मैं भाजपा की रणनीति को देखता हूँ। इस चुनाव में उनके तौर तरीकों को देखता हूँ तो समझ आता है कि यह भाजपा की महज चुनाव की एक चाल है।
साधो, जब से साध्वी को उम्मीदवार घोषित किया गया है वह हर दिन एक न एक विवादित या हास्यास्पद बयान दे रही हैं। अभी हाल ही में उन्होंने कहा कि बाबरी मस्जिद को ढहाने के लिए वे गुम्बद पर चढ़ गई थी। यह बयान सुनते ही देश का गोदी मीडिया साध्वी की जन्मतिथि और मस्जिद गिराए जाने के वक्त उनकी उम्र निकालने लगा और उन्हें झूठा करार देने लगा। साधो, मैं डियर गोदी मीडिया से पूछता हूँ कि तुम इतने भोले क्यों हो जाते हो! सबको पता हैं यह सब चीजें। साध्वी की उम्र से लोगों को क्या लेना देना! असली मुद्दे पर आओ। मुद्दा ये नहीं कि मस्जिद गिराए जाने के वक्त उनकी उम्र क्या थी। मुद्दा तो यह है कि चुनाव आयोग अभीतक इस बयान पर एक्शन में क्यों नहीं आया था। आडवाणी, अटल, उमा पर तो भीड़ के उकसाने के आरोप थे और वे बरी हो गए। यहां तो ये सीधे तौर पर साध्वी मान रही हैं कि उन्होंने मस्जिद गिराने में भूमिका निभाई है। साधो, मैं चुनाव आयोग से कहता हूं- यह लोकतांत्रिक देश है। थोड़ा तो लोकतंत्र जैसा कुछ कर लो। इतने गंभीर बयान पर क्या उनके चुनाव लड़के पर रोक नहीं लगाई जा सकती!
साधो, भारत एक हिन्दू बहुसंख्यक देश है। यदि कोई मुस्लिम जो लोकसभा के लिए किसी सीट से उम्मीदवार हो और वह यह कह दे कि उसने फला मंदिर गिराने में साथ दिया था तो क्या यही व्यवहार उसके साथ भी किया जाएगा। शायद नहीं। मैं प्रधानमंत्री की तरह देखता हूँ, जो आये दिनों अपने भाषणों में लोकतंत्र, आतंकवाद मिटाने, दागियों, अपराधियों को संसद से बाहर भेजने की बात करते थे, साध्वी जैसे लोगों को टिकट दिए जाने पर मौन क्यों हैं ?
साधो, प्रधानमंत्री की चुप्पी तो यही दर्शाती है कि यह सब मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए किया जा रहा है। साध्वी से जानबूझकर बयान दिलवाए जा रहे हैं ताकि देश का ध्यान बयानों पर जाए और विकास के मुद्दे रोजगार के मुद्दे, गरीबी, भुखमरी, के मुद्दे चुनाव से गायब रहें। बेगूसराय से कन्हैया कुमार की बढ़त की चर्चा गायब रहे। पर साधो, ध्यान रहे जनता जानती है काठ की हांड़ी बार बार नहीं चढ़ती। भाजपा ऐसे ही मुद्दों से भटकाने में लगी रही तो 23 मई को जब नतीजे घोषित होंगे तो प्रधानमंत्री समझ ही नहीं पाएंगे कि कैसे जनता ने उन्हें संसद जाने से भटका दिया।
साधो, अब बात चली है तो दूर तलक जायेगी। एक वह दौर भी था जब मस्जिद तोड़ने के लिए आडवाणी जी रथ यात्रा लेकर पूरे देश में भ्रमण पर निकले थे। उमा भारती, शत्रुधन सिन्हा यह सब उसी दौर से उभरे हैं और आज भाजपा में उनकी क्या पोजिशन है सब जानते हैं। यह बात अलग है कि आज शत्रुधन सिन्हा कांग्रेसी हो गए। कांग्रेसी तो आज उदित राज भी हो गए। पर साधो, उदित राज और शत्रुघ्न सिन्हा में फर्क है। उदित राज भाजपा में भले थे पर साम्प्रदायिक नहीं लगते। आनंद पटवर्धन की डॉक्युमेंट ' राम के नाम ' में शत्रुघ्न सिन्हा को जब जय श्री राम के नारे लगाते देखता हूँ तो आत्मा कांपने लगती है।
साधो, बात साध्वी की चली थी। सोचता हूँ, क्या भाजपा के पास कोई ऐसा स्वच्छ छवि का चेहरा न था जिसे भोपाल से वह कैंडीडेट बना देती। पर फिर मैं भाजपा की रणनीति को देखता हूँ। इस चुनाव में उनके तौर तरीकों को देखता हूँ तो समझ आता है कि यह भाजपा की महज चुनाव की एक चाल है।
साधो, जब से साध्वी को उम्मीदवार घोषित किया गया है वह हर दिन एक न एक विवादित या हास्यास्पद बयान दे रही हैं। अभी हाल ही में उन्होंने कहा कि बाबरी मस्जिद को ढहाने के लिए वे गुम्बद पर चढ़ गई थी। यह बयान सुनते ही देश का गोदी मीडिया साध्वी की जन्मतिथि और मस्जिद गिराए जाने के वक्त उनकी उम्र निकालने लगा और उन्हें झूठा करार देने लगा। साधो, मैं डियर गोदी मीडिया से पूछता हूँ कि तुम इतने भोले क्यों हो जाते हो! सबको पता हैं यह सब चीजें। साध्वी की उम्र से लोगों को क्या लेना देना! असली मुद्दे पर आओ। मुद्दा ये नहीं कि मस्जिद गिराए जाने के वक्त उनकी उम्र क्या थी। मुद्दा तो यह है कि चुनाव आयोग अभीतक इस बयान पर एक्शन में क्यों नहीं आया था। आडवाणी, अटल, उमा पर तो भीड़ के उकसाने के आरोप थे और वे बरी हो गए। यहां तो ये सीधे तौर पर साध्वी मान रही हैं कि उन्होंने मस्जिद गिराने में भूमिका निभाई है। साधो, मैं चुनाव आयोग से कहता हूं- यह लोकतांत्रिक देश है। थोड़ा तो लोकतंत्र जैसा कुछ कर लो। इतने गंभीर बयान पर क्या उनके चुनाव लड़के पर रोक नहीं लगाई जा सकती!
साधो, भारत एक हिन्दू बहुसंख्यक देश है। यदि कोई मुस्लिम जो लोकसभा के लिए किसी सीट से उम्मीदवार हो और वह यह कह दे कि उसने फला मंदिर गिराने में साथ दिया था तो क्या यही व्यवहार उसके साथ भी किया जाएगा। शायद नहीं। मैं प्रधानमंत्री की तरह देखता हूँ, जो आये दिनों अपने भाषणों में लोकतंत्र, आतंकवाद मिटाने, दागियों, अपराधियों को संसद से बाहर भेजने की बात करते थे, साध्वी जैसे लोगों को टिकट दिए जाने पर मौन क्यों हैं ?
साधो, प्रधानमंत्री की चुप्पी तो यही दर्शाती है कि यह सब मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए किया जा रहा है। साध्वी से जानबूझकर बयान दिलवाए जा रहे हैं ताकि देश का ध्यान बयानों पर जाए और विकास के मुद्दे रोजगार के मुद्दे, गरीबी, भुखमरी, के मुद्दे चुनाव से गायब रहें। बेगूसराय से कन्हैया कुमार की बढ़त की चर्चा गायब रहे। पर साधो, ध्यान रहे जनता जानती है काठ की हांड़ी बार बार नहीं चढ़ती। भाजपा ऐसे ही मुद्दों से भटकाने में लगी रही तो 23 मई को जब नतीजे घोषित होंगे तो प्रधानमंत्री समझ ही नहीं पाएंगे कि कैसे जनता ने उन्हें संसद जाने से भटका दिया।