इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि गोहत्या निषेध कानून-1956 के तहत जीवित गाय/बैल को अपने पास रखना अपराध करने, उकसाने या अपराध करने का प्रयास नहीं हो सकता है। उत्तर प्रदेश की सीमा के भीतर गाय को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना इसके दायरे में नहीं आता।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि उत्तर प्रदेश की सीमा के भीतर जीवित गाय/बैल रखना या उनका परिवहन करना उत्तर प्रदेश गोवध निवारण अधिनियम 1955 के तहत अपराध करने, अपराध के लिए उकसाने या अपराध करने का प्रयास नहीं माना जा सकता है।
बार एंड बेंच की एक रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस विक्रांत डी। चौहान ने कहा, ‘गोहत्या निषेध कानून-1956 के अधिनियम संख्या 1 के तहत केवल जीवित गाय/बैल को अपने पास रखना अपराध करने, उकसाने या अपराध करने का प्रयास नहीं हो सकता है। उत्तर प्रदेश की सीमा के भीतर गाय को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना अधिनियम संख्या 1 की धारा 5 के दायरे में नहीं आएगा।’
अदालत ने एक व्यक्ति की जमानत याचिका पर यह आदेश पारित किया, जिसे गिरफ्तार किया गया था और यूपी गोवध निवारण अधिनियम, 1956 और पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 के तहत अपराधों के लिए लगभग तीन महीने तक जेल में रखा गया था।
पुलिस ने एक वाहन में छह गायों को ले जाने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार किया था। अदालत ने उन्हें यह देखते हुए जमानत दे दी कि पुलिस ऐसा कोई सबूत पेश नहीं कर सकी, जिससे पता चले कि गायों को ले जाने पर उन्हें शारीरिक चोट लगी हो।
अदालत ने कहा, ‘यह साबित करने के लिए कोई गवाह नहीं है कि आवेदक ने किसी गाय या उसके बछड़े को किसी तरह की चोट पहुंचाई गई है, जिससे उसके जीवन को खतरा हो। गाय या बैल के शरीर पर किसी चोट को प्रदर्शित करने के लिए सक्षम प्राधिकारी की कोई रिपोर्ट नहीं लगाई गई है। कथित बरामदगी का कोई स्वतंत्र गवाह नहीं है।’
अदालत ने आगे यह भी कहा कि चूंकि राज्य कोई सबूत पेश करने में सक्षम नहीं था कि आरोपी ने जांच में सहयोग नहीं किया या उसका कोई आपराधिक इतिहास रहा है, इसलिए वह जमानत का हकदार है। आरोपी को कुछ शर्तों पर जमानत दी गई, जिसमें एक निजी मुचलका और इतनी ही राशि के दो प्रतिभूतियां शामिल हैं।
उत्तर प्रदेश गोवध निवारण (संशोधन) अध्यादेश, 2020 के कानून के तहत अभियुक्तों को अधिकतम 10 साल के कठोर कारावास और 5 लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है। कानून का घोषित उद्देश्य गोहत्या का रोकथाम करना है।
2020 में जारी एक आधिकारिक बयान के अनुसार, योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा लाए गए 1955 के कानून में 2020 के संशोधन का उद्देश्य मौजूदा कानून को अधिक मजबूत और प्रभावी बनाना और गोहत्या से संबंधित घटनाओं को पूरी तरह से रोकना है।
2020 में संशोधित कानून के लागू होने के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने गायों को चोट पहुंचाने, उन्हें मारने और अवैध रूप से राज्य से बाहर ले जाने जैसे आरोपों में कई लोगों को गिरफ्तार किया और उनके खिलाफ मामला दर्ज किया था, जिनमें मुख्य रूप से मुस्लिम शामिल रहे हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कई मौकों पर कानून का ‘दुरुपयोग’ करने के लिए आदित्यनाथ सरकार को फटकार लगा चुकी है। हिंदुत्ववादी समूहों द्वारा गायों के साथ दुर्व्यवहार करने का आरोप लगाते हुए मुसलमानों के खिलाफ शारीरिक हिंसा का सहारा लेने के कई उदाहरण सामने आए हैं।
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि उत्तर प्रदेश की सीमा के भीतर जीवित गाय/बैल रखना या उनका परिवहन करना उत्तर प्रदेश गोवध निवारण अधिनियम 1955 के तहत अपराध करने, अपराध के लिए उकसाने या अपराध करने का प्रयास नहीं माना जा सकता है।
बार एंड बेंच की एक रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस विक्रांत डी। चौहान ने कहा, ‘गोहत्या निषेध कानून-1956 के अधिनियम संख्या 1 के तहत केवल जीवित गाय/बैल को अपने पास रखना अपराध करने, उकसाने या अपराध करने का प्रयास नहीं हो सकता है। उत्तर प्रदेश की सीमा के भीतर गाय को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना अधिनियम संख्या 1 की धारा 5 के दायरे में नहीं आएगा।’
अदालत ने एक व्यक्ति की जमानत याचिका पर यह आदेश पारित किया, जिसे गिरफ्तार किया गया था और यूपी गोवध निवारण अधिनियम, 1956 और पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 के तहत अपराधों के लिए लगभग तीन महीने तक जेल में रखा गया था।
पुलिस ने एक वाहन में छह गायों को ले जाने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार किया था। अदालत ने उन्हें यह देखते हुए जमानत दे दी कि पुलिस ऐसा कोई सबूत पेश नहीं कर सकी, जिससे पता चले कि गायों को ले जाने पर उन्हें शारीरिक चोट लगी हो।
अदालत ने कहा, ‘यह साबित करने के लिए कोई गवाह नहीं है कि आवेदक ने किसी गाय या उसके बछड़े को किसी तरह की चोट पहुंचाई गई है, जिससे उसके जीवन को खतरा हो। गाय या बैल के शरीर पर किसी चोट को प्रदर्शित करने के लिए सक्षम प्राधिकारी की कोई रिपोर्ट नहीं लगाई गई है। कथित बरामदगी का कोई स्वतंत्र गवाह नहीं है।’
अदालत ने आगे यह भी कहा कि चूंकि राज्य कोई सबूत पेश करने में सक्षम नहीं था कि आरोपी ने जांच में सहयोग नहीं किया या उसका कोई आपराधिक इतिहास रहा है, इसलिए वह जमानत का हकदार है। आरोपी को कुछ शर्तों पर जमानत दी गई, जिसमें एक निजी मुचलका और इतनी ही राशि के दो प्रतिभूतियां शामिल हैं।
उत्तर प्रदेश गोवध निवारण (संशोधन) अध्यादेश, 2020 के कानून के तहत अभियुक्तों को अधिकतम 10 साल के कठोर कारावास और 5 लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है। कानून का घोषित उद्देश्य गोहत्या का रोकथाम करना है।
2020 में जारी एक आधिकारिक बयान के अनुसार, योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा लाए गए 1955 के कानून में 2020 के संशोधन का उद्देश्य मौजूदा कानून को अधिक मजबूत और प्रभावी बनाना और गोहत्या से संबंधित घटनाओं को पूरी तरह से रोकना है।
2020 में संशोधित कानून के लागू होने के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने गायों को चोट पहुंचाने, उन्हें मारने और अवैध रूप से राज्य से बाहर ले जाने जैसे आरोपों में कई लोगों को गिरफ्तार किया और उनके खिलाफ मामला दर्ज किया था, जिनमें मुख्य रूप से मुस्लिम शामिल रहे हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कई मौकों पर कानून का ‘दुरुपयोग’ करने के लिए आदित्यनाथ सरकार को फटकार लगा चुकी है। हिंदुत्ववादी समूहों द्वारा गायों के साथ दुर्व्यवहार करने का आरोप लगाते हुए मुसलमानों के खिलाफ शारीरिक हिंसा का सहारा लेने के कई उदाहरण सामने आए हैं।
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