कांग्रेस ने कल साबरमती आश्रम से अपने चुनाव अभियान की शुरुआत की। गांधी के गुजरात में कल तीन गांधी थे। दैनिक भास्कर ने लिखा है कि 58 साल बाद कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक गुजरात में हुई। अमर उजाला ने लिखा है कि महासचिव बनने के बाद प्रियंका गांधी ने पहली सभा मोदी के गढ़ में की और कहा कि आजादी की लड़ाई से कम नहीं है यह चुनाव, सही मुद्दे उठाएं .... जागरूकता ही देशभक्ति है। हिन्दुस्तान के मुताबिक प्रियंका ने कहा कि देश में फैलाई जा रही नफरत की हवाएं प्रेम से बदलेंगी और वोट आपका हथियार है। नवोदय टाइम्स ने भी यही लिखा है कि प्रियंका ने कहा कि नफरत फैलाई जा रही है।
प्रियंका गांधी का यह पहला सार्वजनिक राजनीतिक भाषण था। इसमें उन्होंने बहुत सारी बातें कहीं। नरेन्द्र मोदी का या किसी पार्टी का नाम नहीं लिया और कहा कि वोट हथियार है और ऐसा हथियार जिससे आप किसी को तकलीफ नहीं देंगे। सोच समझकर निर्णय लें जागरूक बनें और जागरूकता ही देश भक्ति है। ऊपर मैंने लिखा कि उन्होंने कहा कि देश में नफरत फैलाई जा रही है और हिन्दी के दो अखबारों ने इसे शीर्षक बनाया है। यही नहीं, अपने पहले भाषण में प्रियंका ने लोगों से जागरूक बनने की अपील की और कहा कि इससे आप उन मुद्दों को आगे ला सकते हैं जो चुनाव के मुद्दे होने चाहिए। उन्होंने चुनाव के मुद्दों में रोजगार, महिलाओं की सुरक्षा और 15 लाख की भी बात की।
कहने की जरूरत नहीं है कि सभी अखबारों ने अपने हिसाब से रिपोर्टिंग की है। इसमें दैनिक जागरण और नवभारत टाइम्स के शीर्षक अलग है। नवभारत टाइम्स ने लिखा है, बीजेपी के टॉप फॉर्म्यूले से ही हिसाब बराबर करेगी कांग्रेस। उपशीर्षक है, राष्ट्रवाद के मुद्दे पर अपने नजरिए को जनता तक ले जाएगी पार्टी। इसी तरह दैनिक जागरण का मुख्य शीर्षक है, भाजपा के राष्ट्रवाद पर प्रियंका का देशभक्ति का दांव। हिन्दी के ज्यादातर अखबारों में यह खबर लीड है पर जागरण में यह टॉप दो कॉलम में है। जागरण ने “मतदान से पहले ही महागठबंधन फेल”। उपशीर्षक - “लोकसभा चुनाव से कांग्रेस के लिए बढ़ी चुनौतियां, मायावती और ममता बनर्जी ने पकड़ी अलग राह”। शीर्षक खबर को लीड बनाया है।
इसमें दिलचस्प यह है कि मायावती और ममता का अलग राह पकड़ना भी खबर है। तीनों गांधी या तीन गांधी का एक साथ होना भी खबर है पर चार मोदी अलग-अलग हैं यह खबर नहीं है (अकेले नीरव मोदी एक विदेशी अखबार की बदौलत खबर में रहे)। वंशवाद तो खबर है, महागठबंधन भी खबर है, महामिलावट तो है ही पर यह कोई नहीं कहता कि देश में चार मोदी हैं और चारो कैसे एक या अलग हैं या अलग रास्ते पर हैं। या दो एक रास्ते पर दो अलग रास्ते पर हैं या ऐसा ही कुछ। कांग्रेस के प्रचार अभियान की रिपोर्टिंग का बात करूं तो दैनिक भास्कर में सूचना सबसे ज्यादा है। नभाटा और जागरण के शीर्षक परस्पर विरोधी। ध्यान देने वाली बात है कि नभाटा ने लिखा है, कांग्रेस हिसाब बराबर करेगी और जागरण का शीर्षक ऐसा है जैसे भाजपा के राष्ट्रवाद जैसे सदाबहार और अकाट्य मुद्दे पर प्रियंका ने देशभक्ति का दांव चला है जो कामयाब होगा कि नहीं पता नहीं।
अभी तक आपने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रैली, भाषण और सूत्रों के हवाले से छपने वाली सरकारी खबरों को देखा है। मैंने लिखा है कि अक्सर खबरें एक सी होती और खबर एक होना तो आसान है क्योंकि एक जगह से दी या लीक की जाती है। पर मैंने देखा है कि डिसप्ले भी कई बार एक होता है। लीड है तो सब जगह लीड या फिर फोटो सभी अखबारों में पहले पन्ने पर है। लेकिन कांग्रेस का चुनाव अभियान शुरू होने और प्रियंका गांधी के भाषण में विविधता है। यही जरूरी है। औऱ यह प्रधानमंत्री के भाषण से लेकर भाजपा और सरकार की खबरों में नहीं होता है या बहुत कम होता है। आज दैनिक भास्कर में शीर्षक है, “मोदी नाकामियां छिपाने को राष्ट्रवाद की आड़ ले रहे हैं : प्रियंका”। नरेन्द्र मोदी के भाषण से ऐसे शीर्षक खूब निकलते हैं पर भाजपा या मोदी के खिलाफ भाषण से ऐसे शीर्षक निकले?
हिन्दी अखबारों के शीर्षक में इतनी विविधता बहुत दिनों बाद दिख रही है। लेकिन अभी भी वे अपनी ही बनाई सीमा में हैं। द टेलीग्राफ का शीर्षक आज भी अनूठा और अलग है। अखबार ने लिखा है, बड़ी-बड़ी बातें करने वाले से बचिए, जागरुक बनिए, इससे ज्यादा देशभक्ति कुछ और नहीं हो सकती। हिन्दुस्तान टाइम्स ने इस खबर का शीर्षक लगाया है, कांग्रेस ने प्रचार अभियान की शुरुआत मोदी के गढ़ से की। इंडियन एक्सप्रेस में यह खबर लीड नहीं है। शीर्षक है, राहुल ने पार्टी से कहा, भाजपा से लड़ना है, बालाकोट के बाद बने राष्ट्रवाद के माहौल से डरना नहीं है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से बातचीत को लीड बनाया है। शीर्षक है, "सिर्फ मोदी को बहुमत ही राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है : शाह।" कांग्रेस के चुनाव अभियान की खबर यहां तीन कॉलम में टॉप पर है। शीर्षक वही है, सिर्फ कांग्रेस की जगह गांधीज कर दिया गया है। हिन्दी में इसके करीब होगा गांधी परिवार। यानी अखबार ने लिखा है गांधी परिवार ने मोदी के गढ़ से चुनाव का बिगुल फूंका।
द हिन्दू ने सुप्रीम कोर्ट में एनआरसी से संबंधित मामले को लीड बनाया है। खबर के मुताबिक चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वस्त किया है कि असम की मतदाता सूची से ड्राफ्ट एनआरसी के आधार पर नाम नहीं हटाए गए हैं। आप जानते हैं कि नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स का ड्राफ्ट गए साल जुलाई में आया था और पाया गया कि 40 लाख से ज्यादा लोगों के नाम इसमें नहीं हैं। माना जा रहा है कि जिनके नाम इस ड्राफ्ट में नहीं हैं इसमें अधिकतर लोग वह हैं जो अल्पसंख्यक और अवैध बांग्लादेशी हैं।सरकार ने इस बात का भरोसा दिया है कि जो भारतीय हैं उनका नाम इसमें जुड़ जाएगा। अगर अखबार वाकई आजाद होते, पत्रकारिता कर रहे होते और खबरों में विविधता होती तो किसी अखबार में सुप्रीम कोर्ट की खबर भी लीड होती जिसमें अदालत ने सरकार से पूछा है कि चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की परिसंपत्तियों के खुलासे से संबंधित कानून क्यों नहीं है?
Braggarts मतलब शेखी बघारने वाला, आत्मश्लाघी होता है। प्रियंका ने जो बड़ी-बड़ी बातें करते हैं कहा था।
प्रियंका गांधी का यह पहला सार्वजनिक राजनीतिक भाषण था। इसमें उन्होंने बहुत सारी बातें कहीं। नरेन्द्र मोदी का या किसी पार्टी का नाम नहीं लिया और कहा कि वोट हथियार है और ऐसा हथियार जिससे आप किसी को तकलीफ नहीं देंगे। सोच समझकर निर्णय लें जागरूक बनें और जागरूकता ही देश भक्ति है। ऊपर मैंने लिखा कि उन्होंने कहा कि देश में नफरत फैलाई जा रही है और हिन्दी के दो अखबारों ने इसे शीर्षक बनाया है। यही नहीं, अपने पहले भाषण में प्रियंका ने लोगों से जागरूक बनने की अपील की और कहा कि इससे आप उन मुद्दों को आगे ला सकते हैं जो चुनाव के मुद्दे होने चाहिए। उन्होंने चुनाव के मुद्दों में रोजगार, महिलाओं की सुरक्षा और 15 लाख की भी बात की।
कहने की जरूरत नहीं है कि सभी अखबारों ने अपने हिसाब से रिपोर्टिंग की है। इसमें दैनिक जागरण और नवभारत टाइम्स के शीर्षक अलग है। नवभारत टाइम्स ने लिखा है, बीजेपी के टॉप फॉर्म्यूले से ही हिसाब बराबर करेगी कांग्रेस। उपशीर्षक है, राष्ट्रवाद के मुद्दे पर अपने नजरिए को जनता तक ले जाएगी पार्टी। इसी तरह दैनिक जागरण का मुख्य शीर्षक है, भाजपा के राष्ट्रवाद पर प्रियंका का देशभक्ति का दांव। हिन्दी के ज्यादातर अखबारों में यह खबर लीड है पर जागरण में यह टॉप दो कॉलम में है। जागरण ने “मतदान से पहले ही महागठबंधन फेल”। उपशीर्षक - “लोकसभा चुनाव से कांग्रेस के लिए बढ़ी चुनौतियां, मायावती और ममता बनर्जी ने पकड़ी अलग राह”। शीर्षक खबर को लीड बनाया है।
इसमें दिलचस्प यह है कि मायावती और ममता का अलग राह पकड़ना भी खबर है। तीनों गांधी या तीन गांधी का एक साथ होना भी खबर है पर चार मोदी अलग-अलग हैं यह खबर नहीं है (अकेले नीरव मोदी एक विदेशी अखबार की बदौलत खबर में रहे)। वंशवाद तो खबर है, महागठबंधन भी खबर है, महामिलावट तो है ही पर यह कोई नहीं कहता कि देश में चार मोदी हैं और चारो कैसे एक या अलग हैं या अलग रास्ते पर हैं। या दो एक रास्ते पर दो अलग रास्ते पर हैं या ऐसा ही कुछ। कांग्रेस के प्रचार अभियान की रिपोर्टिंग का बात करूं तो दैनिक भास्कर में सूचना सबसे ज्यादा है। नभाटा और जागरण के शीर्षक परस्पर विरोधी। ध्यान देने वाली बात है कि नभाटा ने लिखा है, कांग्रेस हिसाब बराबर करेगी और जागरण का शीर्षक ऐसा है जैसे भाजपा के राष्ट्रवाद जैसे सदाबहार और अकाट्य मुद्दे पर प्रियंका ने देशभक्ति का दांव चला है जो कामयाब होगा कि नहीं पता नहीं।
अभी तक आपने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रैली, भाषण और सूत्रों के हवाले से छपने वाली सरकारी खबरों को देखा है। मैंने लिखा है कि अक्सर खबरें एक सी होती और खबर एक होना तो आसान है क्योंकि एक जगह से दी या लीक की जाती है। पर मैंने देखा है कि डिसप्ले भी कई बार एक होता है। लीड है तो सब जगह लीड या फिर फोटो सभी अखबारों में पहले पन्ने पर है। लेकिन कांग्रेस का चुनाव अभियान शुरू होने और प्रियंका गांधी के भाषण में विविधता है। यही जरूरी है। औऱ यह प्रधानमंत्री के भाषण से लेकर भाजपा और सरकार की खबरों में नहीं होता है या बहुत कम होता है। आज दैनिक भास्कर में शीर्षक है, “मोदी नाकामियां छिपाने को राष्ट्रवाद की आड़ ले रहे हैं : प्रियंका”। नरेन्द्र मोदी के भाषण से ऐसे शीर्षक खूब निकलते हैं पर भाजपा या मोदी के खिलाफ भाषण से ऐसे शीर्षक निकले?
हिन्दी अखबारों के शीर्षक में इतनी विविधता बहुत दिनों बाद दिख रही है। लेकिन अभी भी वे अपनी ही बनाई सीमा में हैं। द टेलीग्राफ का शीर्षक आज भी अनूठा और अलग है। अखबार ने लिखा है, बड़ी-बड़ी बातें करने वाले से बचिए, जागरुक बनिए, इससे ज्यादा देशभक्ति कुछ और नहीं हो सकती। हिन्दुस्तान टाइम्स ने इस खबर का शीर्षक लगाया है, कांग्रेस ने प्रचार अभियान की शुरुआत मोदी के गढ़ से की। इंडियन एक्सप्रेस में यह खबर लीड नहीं है। शीर्षक है, राहुल ने पार्टी से कहा, भाजपा से लड़ना है, बालाकोट के बाद बने राष्ट्रवाद के माहौल से डरना नहीं है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से बातचीत को लीड बनाया है। शीर्षक है, "सिर्फ मोदी को बहुमत ही राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है : शाह।" कांग्रेस के चुनाव अभियान की खबर यहां तीन कॉलम में टॉप पर है। शीर्षक वही है, सिर्फ कांग्रेस की जगह गांधीज कर दिया गया है। हिन्दी में इसके करीब होगा गांधी परिवार। यानी अखबार ने लिखा है गांधी परिवार ने मोदी के गढ़ से चुनाव का बिगुल फूंका।
द हिन्दू ने सुप्रीम कोर्ट में एनआरसी से संबंधित मामले को लीड बनाया है। खबर के मुताबिक चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वस्त किया है कि असम की मतदाता सूची से ड्राफ्ट एनआरसी के आधार पर नाम नहीं हटाए गए हैं। आप जानते हैं कि नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स का ड्राफ्ट गए साल जुलाई में आया था और पाया गया कि 40 लाख से ज्यादा लोगों के नाम इसमें नहीं हैं। माना जा रहा है कि जिनके नाम इस ड्राफ्ट में नहीं हैं इसमें अधिकतर लोग वह हैं जो अल्पसंख्यक और अवैध बांग्लादेशी हैं।सरकार ने इस बात का भरोसा दिया है कि जो भारतीय हैं उनका नाम इसमें जुड़ जाएगा। अगर अखबार वाकई आजाद होते, पत्रकारिता कर रहे होते और खबरों में विविधता होती तो किसी अखबार में सुप्रीम कोर्ट की खबर भी लीड होती जिसमें अदालत ने सरकार से पूछा है कि चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की परिसंपत्तियों के खुलासे से संबंधित कानून क्यों नहीं है?
Braggarts मतलब शेखी बघारने वाला, आत्मश्लाघी होता है। प्रियंका ने जो बड़ी-बड़ी बातें करते हैं कहा था।