पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को भ्रष्टाचारी नंबर वन कहकर प्रधानमंत्री ने जो किया सो किया अखबारों ने क्या किया यह देखने लायक है। मेरा साफ मानना है कि नरेन्द्र मोदी जैसे नेताओं का झूठ इसीलिए चल जाता है कि वो अखबारों में छप जाता है। अखबार अगर खबर के साथ ही वास्तविक स्थिति बता रहे होते तो झूठ बोलने की आदत पड़ती ही नहीं। यह काम अंग्रेजी अखबार द टेलीग्राफ सबसे अच्छे से करता है। आज भी किया है। पर वह अलग मुद्दा है। प्रधानमंत्री पूर्व प्रधानमंत्री के बारे में कुछ कहे तो वह निश्चित रूप से खबर है। लेकिन वह तथ्य नहीं है तो इसे खबर के साथ ही बताना अखबारों का दायित्व है या फिर ऐसी खबर छपनी ही नहीं चाहिए।
आज कई अखबारों में यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है। दैनिक भास्कर, हिन्दुस्तान और नवभारत टाइम्स ने लीड बनाया है। नवभारत टाइम्स का बचकाना शीर्षक इस खबर की महत्ता को खत्म कर देता है और खबर की प्रस्तुति ऐसी नहीं है कि उसपर चर्चा की जाए। कहने का अर्थ यह है कि रंगे हाथ दिखाने पर मोदी का जोर शीर्षक के बाद यह खबर ही बदल गई है। ना सच जानने की जरूरत है ना नहीं बताना कोई मुद्दा। वैसे भी, आजकल अखबारों ने आसान तरीका ढूंढ़ लिया है - पलटवार के नाम पर उसका दूसरा पक्ष छाप देते हैं। यह पाठकों का ज्ञानवर्धन नहीं है। गंदगी फैलाना है।
इस लिहाज से इंडियन एक्सप्रेस में यह खबर पहले पन्ने पर है ही नहीं और टाइम्स ऑफ इंडिया ने ऐसी ही दूसरी खबर, (बिजनेस पार्टनर को पनडुब्बी का ठेका) पहले पन्ने पर दो कॉलम में छापा है और इसके साथ राहुल गांधी का वह जवाब है जो उन्होंने अपने पिता को भ्रष्टाचारी नंबर वन कहने पर दिया है। हिन्दुस्तान टाइम्स ने खबर तो पहले पन्ने पर रखी है लेकिन शीर्षक है, हृदय प्रदेश में प्रमुख सीटों के लिए मतदान, प्रचार पूरा। और इसमें मोदी के बयान से ज्यादा महत्व उसपर प्रतिक्रिया को दिया गया है। वैसे तो यह भी ठीक नहीं है पर एक गलत या झूठे आरोप को महत्व देने से बेहतर है। इंडियन एक्सप्रेस ने यही तरीका प्रधानमंत्री के दूसरे आरोप को छापने के लिए अपनाया है।
दैनिक भास्कर ने मोदी के आरोप पर मजे लेने जैसा काम किया है और फ्लैग शीर्षक है, राजीव गांधी पर मोदी का तंज, राहुल प्रियंका ने दिया सोशल मीडिया पर जवाब। दो लाइन के शीर्षक की पहली लाइन है, मोदी - राजीव गांधी भ्रष्टाचारी नंबर -1 और दूसरी लाइन है, राहुल - आपके कर्म कर रहे हैं इंतजार। अखबार ने इस खबर को जिस सामान्य अंदाज में छापा है वह तब सही होता जब राजीव गांधी चुनाव लड़ रहे होते। एक शहीद प्रधानमंत्री जिसे देश ने मरणोपरांत भारत रत्न दिया हो उसे मरने के 28 साल बाद, अदालत द्वारा बरी किए जाने बावजूद भ्रष्टाचारी कहना सामान्य चुनावी आरोप नहीं है। और जवाब में राहुल ने जो ट्वीट किया वह उस स्तर पर गए बिना दिया गया है और इसकी तारीफ होनी चाहिए। रही सही कसर, पीएम मोदी के बयान का बचाव करने उतरे जावेडकर – जैसे बचाव का कोई मतलब नहीं है।
बच्चों के जवाब में बच्चों का ही बचाव होना चाहिए था। नहीं है तो कैसा बचाव? वह भी तब जब प्रधानमंत्री अपनी यही विशेषता बताते हैं कि उनका परिवार नहीं है वे किसके लिए भ्रष्टाचार करेंगे? अगर ऐसा ही है तो यह माना जा सकता है कि प्रधानमंत्री प्रकाश जावेडकर जैसे को मंत्री बनाने या बनाए रखने के लिए इस तरह की राजनीति कर रहे हैं। ऐसे में प्रकाश जावेडकर का बचाव स्वार्थ लगता है उसमें बच्चों वाली भावना आ ही नहीं सकती। इसे ठीक से समझने के लिए प्रधानमंत्री के शब्दों पर गौर कीजिए, मोदी ने प्रतापगढ़ में बोफोर्स घोटाले की तरफ इशारा करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का नाम लिए बिना कहा था, "आपके (राहुल गांधी) पिताजी को आपके राज दरबारियों ने गाजे-बाजे के साथ मिस्टर क्लीन बना दिया था। देखते ही देखते भ्रष्टाचारी नम्बर वन के रूप में उनका जीवनकाल समाप्त हो गया। नामदार यह अहंकार आपको खा जाएगा।"
अखबारों का काम अगर यही माना जाए कि तथ्यों को जस का तस परोस देना है– निर्णय पाठक करे तो यह काम आज हिन्दुस्तान ने कायदे से किया है। अखबार ने इस खबर को लीड बनाया है और शीर्षक भी तथ्य परोसने वाला ही है - राजीव गांधी पर भी राजनीतिक रार यहां सिर्फ 'भी' से अखबार ने बता दिया है कि यह रार असामान्य है। इसमें प्रधान मंत्री के मूल आरोप के साथ राहुल गांधी का ट्वीट है, "लड़ाई समाप्त हो चुकी है। आपके कर्म आपका इंतजार कर रहे हैं। आप अपनी धारणा को मेरे पिता पर थोप कर बच नहीं सकते हैं।" अखबार ने इसके साथ प्रियंका गांधी की भी प्रतिक्रिया छापी है, "प्रधानमंत्री ने एक नेक इंसान की शहादत का निरादर किया। जवाब अमेठी की जनता देगी जिनके लिए राजीव गांधी ने अपनी जान दी।"
हिन्दुस्तान ने अरुण जेटली का बयान छापा है, राहुल क्यों परेशान। मेरे ख्याल से यह भी वैसे अनुचित है जैसे भास्कर में प्रकाश जावेडकर का बयान। अखबार ने अपनी खबर के साथ विपक्ष का वार भी छापा है इसलिए संतुलन बनाने के लिए जेटली के बयान की जरूरत महसूस की गई होगी। पर मेरा मानना है कि किसी देश रत्न की हत्या के 28 साल पर उसपर आरोप लगाना एक मानसिकता है और इसका समर्थन करने वाले कुछ नया नहीं कह सकते। नवोदय टाइम्स ने पहले पन्ने पर विज्ञापन नहीं होने के बावजूद इसे पहले पन्ने पर नहीं लिया है। मुझे लगता है अखबारों को ऐसे बयान के साथ ऐसा ही करना चाहिए।
अमर उजाला में हिन्दुस्तान टाइम्स और इंडियन एक्सप्रेस जैसे अंग्रेजी अखबारों की शैली में लीड का शीर्षक है, "राजनाथ, सोनिया, राहुल, स्मृति की परीक्षा आज यूपी की 14 सहित देश की 51 सीटों पर मतदान"। अखबार ने इसके साथ मोदी के आरोप और राहुल व प्रियंका के जवाब लगाए हैं। पर यहां भी आरोप बदल गया है जवाब वही है। कहा जा सकता है कि अमर उजाला में शनिवार का बयान सोमवार को नहीं है जो दूसरे अखबारों में है। दैनिक जागरण में भी यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है।
अब मैं आपको बताऊं कि इस मामले में द टेलीग्राफ ने क्या लिखा है। इससे पता चलेगा कि तथ्य क्या हैं और हिन्दी के अखबार उनसे कितनी दूर हैं। दूसरी ओर, प्रधानमंत्री आरोप लगाएं तो वे छोड़ भी नहीं पाते हैं। द टेलीग्राफ ने इस खबर को लीड बनाया है और राजीव गांधी की श्वेत श्याम तस्वीर छापी है। शीर्षक है, फॉरगिव हिम, फादर (पिताजी, उन्हें माफ कर दीजिए)। उपशीर्षक है, वन स्टूप्स टू कॉन्कर, द सन ऑफर्स अ हग (जीतने के लिए एक आदमी नीचे गिरता है, बेटा झप्पी देने की पेशकश करता है)।
खबर की शुरुआत प्रधानमंत्री के शनिवार के बयान से होती है फिर बयान का अंग्रेजी अनुवाद है। मैं मूल हिन्दी में ऊपर लिख चुका हूं। इसके बाद लिखा है, "अगर यह भारतीय राजनीति की नई नीचता थी तो इससे राहुल गांधी की एक चौंकाने वाली प्रतिक्रिया भी सामने आई जो अपने उल्लेखनीय संयम और लाजवाब कर देने वाली शालीनता के लिए खास है। चुनाव अभियान के जोश और गंदगी में आरोप प्रत्यारोप चलते रहते हैं पर शायद ही कभी किसी ने हत्या के शिकार हुए पूर्व प्रधानमंत्री के लिए ऐसे शब्द कहे हों। खासकर तब जब अदालत ने उन्हें निर्दोष करार दिया हो।
दिल्ली हाईकोर्ट ने अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में उन्हें बोफर्स मामले में ससम्मान बरी किया था और तब की सरकार ने इस फैसले के खिलाफ अपील नहीं करने का निर्णय किया था। मोदी सरकार ने इस केस को फिर शुरू करने की कोशिश की थी पर सुप्रीम कोर्ट से अनुकूल प्रतिक्रिया नहीं मिली और इस अपील पर सुनवाई से मना कर दिया गया। अखबार ने लिखा है कि भाजपा के कुछ समर्थकों ने मोदी का बचाव करने की कोशिश की और कहा कि वे प्रधानमंत्री को चोर कहने का जवाब उसी भाषा में दे रहे थे। इनमें से कुछ लोगों ने यह स्पष्ट करने का ख्याल रखा कि भारतीय संस्कृति की दुहाई देने वाला कोई व्यक्ति राजनीतिक हिसाब बराबर करने के लिए कैसे अपने विपक्षी के दिवंगत पिता को गाली दे सकता है।
इनमें से किसी ने यह नहीं बताया कि कैसे कोई व्यक्ति अदालत से बरी होने के बाद भ्रष्टाचारी नंबर वन कहा जा सकता है। कई लोगों ने प्रधानमंत्री के बयान की खुलकर निन्दा की। अखबार ने ऐसे कई बयान छापे हैं। इनमें राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, पूर्व विदेश सचिव, निरुपमा मेनन राव, अमेरिका में रहने वाले इतिहासकार और लेखक ऑड्रे त्रुसके, कनाडा में रहने वाले मार्केटर सोलोमन व्हीलर, अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी के पूर्व सहायक सुधीन्द्र कुलकर्णी, कलकत्ता के पत्रकार आरएन सिन्हा, ऐक्टर सिद्धार्थ और कांग्रेस नेता पी चिदंबरम शामिल हैं। आरएन सिन्हा ने कहा है कि राजीव गांधी जिन्दा होते तो आप उनसे शऊर (मैनर्स) सीख सकते थे।
खबर के साथ प्रकाशित फोटो के नीचे लिखा है 1995 में जब वे प्रधानमंत्री थे तब की तस्वीर है और फिर दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति जेडी कपूर का 4 फरवरी 2004 का कोट है, ".... जहां तक लोकसेवक - राजीव गांधी और एसके भटनागर का संबंध है, सीबीआई की 16 वर्षों की लंबी जांच में उनके लिए सबूत का एक कतरा भी नहीं मिला कि उन्होंने एबी बोफर्स को ठेका देने में रिश्वत / अवैध लाभ लिया था .... ।"
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक व मीडिया समीक्षक हैं)
आज कई अखबारों में यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है। दैनिक भास्कर, हिन्दुस्तान और नवभारत टाइम्स ने लीड बनाया है। नवभारत टाइम्स का बचकाना शीर्षक इस खबर की महत्ता को खत्म कर देता है और खबर की प्रस्तुति ऐसी नहीं है कि उसपर चर्चा की जाए। कहने का अर्थ यह है कि रंगे हाथ दिखाने पर मोदी का जोर शीर्षक के बाद यह खबर ही बदल गई है। ना सच जानने की जरूरत है ना नहीं बताना कोई मुद्दा। वैसे भी, आजकल अखबारों ने आसान तरीका ढूंढ़ लिया है - पलटवार के नाम पर उसका दूसरा पक्ष छाप देते हैं। यह पाठकों का ज्ञानवर्धन नहीं है। गंदगी फैलाना है।
इस लिहाज से इंडियन एक्सप्रेस में यह खबर पहले पन्ने पर है ही नहीं और टाइम्स ऑफ इंडिया ने ऐसी ही दूसरी खबर, (बिजनेस पार्टनर को पनडुब्बी का ठेका) पहले पन्ने पर दो कॉलम में छापा है और इसके साथ राहुल गांधी का वह जवाब है जो उन्होंने अपने पिता को भ्रष्टाचारी नंबर वन कहने पर दिया है। हिन्दुस्तान टाइम्स ने खबर तो पहले पन्ने पर रखी है लेकिन शीर्षक है, हृदय प्रदेश में प्रमुख सीटों के लिए मतदान, प्रचार पूरा। और इसमें मोदी के बयान से ज्यादा महत्व उसपर प्रतिक्रिया को दिया गया है। वैसे तो यह भी ठीक नहीं है पर एक गलत या झूठे आरोप को महत्व देने से बेहतर है। इंडियन एक्सप्रेस ने यही तरीका प्रधानमंत्री के दूसरे आरोप को छापने के लिए अपनाया है।
दैनिक भास्कर ने मोदी के आरोप पर मजे लेने जैसा काम किया है और फ्लैग शीर्षक है, राजीव गांधी पर मोदी का तंज, राहुल प्रियंका ने दिया सोशल मीडिया पर जवाब। दो लाइन के शीर्षक की पहली लाइन है, मोदी - राजीव गांधी भ्रष्टाचारी नंबर -1 और दूसरी लाइन है, राहुल - आपके कर्म कर रहे हैं इंतजार। अखबार ने इस खबर को जिस सामान्य अंदाज में छापा है वह तब सही होता जब राजीव गांधी चुनाव लड़ रहे होते। एक शहीद प्रधानमंत्री जिसे देश ने मरणोपरांत भारत रत्न दिया हो उसे मरने के 28 साल बाद, अदालत द्वारा बरी किए जाने बावजूद भ्रष्टाचारी कहना सामान्य चुनावी आरोप नहीं है। और जवाब में राहुल ने जो ट्वीट किया वह उस स्तर पर गए बिना दिया गया है और इसकी तारीफ होनी चाहिए। रही सही कसर, पीएम मोदी के बयान का बचाव करने उतरे जावेडकर – जैसे बचाव का कोई मतलब नहीं है।
बच्चों के जवाब में बच्चों का ही बचाव होना चाहिए था। नहीं है तो कैसा बचाव? वह भी तब जब प्रधानमंत्री अपनी यही विशेषता बताते हैं कि उनका परिवार नहीं है वे किसके लिए भ्रष्टाचार करेंगे? अगर ऐसा ही है तो यह माना जा सकता है कि प्रधानमंत्री प्रकाश जावेडकर जैसे को मंत्री बनाने या बनाए रखने के लिए इस तरह की राजनीति कर रहे हैं। ऐसे में प्रकाश जावेडकर का बचाव स्वार्थ लगता है उसमें बच्चों वाली भावना आ ही नहीं सकती। इसे ठीक से समझने के लिए प्रधानमंत्री के शब्दों पर गौर कीजिए, मोदी ने प्रतापगढ़ में बोफोर्स घोटाले की तरफ इशारा करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का नाम लिए बिना कहा था, "आपके (राहुल गांधी) पिताजी को आपके राज दरबारियों ने गाजे-बाजे के साथ मिस्टर क्लीन बना दिया था। देखते ही देखते भ्रष्टाचारी नम्बर वन के रूप में उनका जीवनकाल समाप्त हो गया। नामदार यह अहंकार आपको खा जाएगा।"
अखबारों का काम अगर यही माना जाए कि तथ्यों को जस का तस परोस देना है– निर्णय पाठक करे तो यह काम आज हिन्दुस्तान ने कायदे से किया है। अखबार ने इस खबर को लीड बनाया है और शीर्षक भी तथ्य परोसने वाला ही है - राजीव गांधी पर भी राजनीतिक रार यहां सिर्फ 'भी' से अखबार ने बता दिया है कि यह रार असामान्य है। इसमें प्रधान मंत्री के मूल आरोप के साथ राहुल गांधी का ट्वीट है, "लड़ाई समाप्त हो चुकी है। आपके कर्म आपका इंतजार कर रहे हैं। आप अपनी धारणा को मेरे पिता पर थोप कर बच नहीं सकते हैं।" अखबार ने इसके साथ प्रियंका गांधी की भी प्रतिक्रिया छापी है, "प्रधानमंत्री ने एक नेक इंसान की शहादत का निरादर किया। जवाब अमेठी की जनता देगी जिनके लिए राजीव गांधी ने अपनी जान दी।"
हिन्दुस्तान ने अरुण जेटली का बयान छापा है, राहुल क्यों परेशान। मेरे ख्याल से यह भी वैसे अनुचित है जैसे भास्कर में प्रकाश जावेडकर का बयान। अखबार ने अपनी खबर के साथ विपक्ष का वार भी छापा है इसलिए संतुलन बनाने के लिए जेटली के बयान की जरूरत महसूस की गई होगी। पर मेरा मानना है कि किसी देश रत्न की हत्या के 28 साल पर उसपर आरोप लगाना एक मानसिकता है और इसका समर्थन करने वाले कुछ नया नहीं कह सकते। नवोदय टाइम्स ने पहले पन्ने पर विज्ञापन नहीं होने के बावजूद इसे पहले पन्ने पर नहीं लिया है। मुझे लगता है अखबारों को ऐसे बयान के साथ ऐसा ही करना चाहिए।
अमर उजाला में हिन्दुस्तान टाइम्स और इंडियन एक्सप्रेस जैसे अंग्रेजी अखबारों की शैली में लीड का शीर्षक है, "राजनाथ, सोनिया, राहुल, स्मृति की परीक्षा आज यूपी की 14 सहित देश की 51 सीटों पर मतदान"। अखबार ने इसके साथ मोदी के आरोप और राहुल व प्रियंका के जवाब लगाए हैं। पर यहां भी आरोप बदल गया है जवाब वही है। कहा जा सकता है कि अमर उजाला में शनिवार का बयान सोमवार को नहीं है जो दूसरे अखबारों में है। दैनिक जागरण में भी यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है।
अब मैं आपको बताऊं कि इस मामले में द टेलीग्राफ ने क्या लिखा है। इससे पता चलेगा कि तथ्य क्या हैं और हिन्दी के अखबार उनसे कितनी दूर हैं। दूसरी ओर, प्रधानमंत्री आरोप लगाएं तो वे छोड़ भी नहीं पाते हैं। द टेलीग्राफ ने इस खबर को लीड बनाया है और राजीव गांधी की श्वेत श्याम तस्वीर छापी है। शीर्षक है, फॉरगिव हिम, फादर (पिताजी, उन्हें माफ कर दीजिए)। उपशीर्षक है, वन स्टूप्स टू कॉन्कर, द सन ऑफर्स अ हग (जीतने के लिए एक आदमी नीचे गिरता है, बेटा झप्पी देने की पेशकश करता है)।
खबर की शुरुआत प्रधानमंत्री के शनिवार के बयान से होती है फिर बयान का अंग्रेजी अनुवाद है। मैं मूल हिन्दी में ऊपर लिख चुका हूं। इसके बाद लिखा है, "अगर यह भारतीय राजनीति की नई नीचता थी तो इससे राहुल गांधी की एक चौंकाने वाली प्रतिक्रिया भी सामने आई जो अपने उल्लेखनीय संयम और लाजवाब कर देने वाली शालीनता के लिए खास है। चुनाव अभियान के जोश और गंदगी में आरोप प्रत्यारोप चलते रहते हैं पर शायद ही कभी किसी ने हत्या के शिकार हुए पूर्व प्रधानमंत्री के लिए ऐसे शब्द कहे हों। खासकर तब जब अदालत ने उन्हें निर्दोष करार दिया हो।
दिल्ली हाईकोर्ट ने अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में उन्हें बोफर्स मामले में ससम्मान बरी किया था और तब की सरकार ने इस फैसले के खिलाफ अपील नहीं करने का निर्णय किया था। मोदी सरकार ने इस केस को फिर शुरू करने की कोशिश की थी पर सुप्रीम कोर्ट से अनुकूल प्रतिक्रिया नहीं मिली और इस अपील पर सुनवाई से मना कर दिया गया। अखबार ने लिखा है कि भाजपा के कुछ समर्थकों ने मोदी का बचाव करने की कोशिश की और कहा कि वे प्रधानमंत्री को चोर कहने का जवाब उसी भाषा में दे रहे थे। इनमें से कुछ लोगों ने यह स्पष्ट करने का ख्याल रखा कि भारतीय संस्कृति की दुहाई देने वाला कोई व्यक्ति राजनीतिक हिसाब बराबर करने के लिए कैसे अपने विपक्षी के दिवंगत पिता को गाली दे सकता है।
इनमें से किसी ने यह नहीं बताया कि कैसे कोई व्यक्ति अदालत से बरी होने के बाद भ्रष्टाचारी नंबर वन कहा जा सकता है। कई लोगों ने प्रधानमंत्री के बयान की खुलकर निन्दा की। अखबार ने ऐसे कई बयान छापे हैं। इनमें राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, पूर्व विदेश सचिव, निरुपमा मेनन राव, अमेरिका में रहने वाले इतिहासकार और लेखक ऑड्रे त्रुसके, कनाडा में रहने वाले मार्केटर सोलोमन व्हीलर, अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी के पूर्व सहायक सुधीन्द्र कुलकर्णी, कलकत्ता के पत्रकार आरएन सिन्हा, ऐक्टर सिद्धार्थ और कांग्रेस नेता पी चिदंबरम शामिल हैं। आरएन सिन्हा ने कहा है कि राजीव गांधी जिन्दा होते तो आप उनसे शऊर (मैनर्स) सीख सकते थे।
खबर के साथ प्रकाशित फोटो के नीचे लिखा है 1995 में जब वे प्रधानमंत्री थे तब की तस्वीर है और फिर दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति जेडी कपूर का 4 फरवरी 2004 का कोट है, ".... जहां तक लोकसेवक - राजीव गांधी और एसके भटनागर का संबंध है, सीबीआई की 16 वर्षों की लंबी जांच में उनके लिए सबूत का एक कतरा भी नहीं मिला कि उन्होंने एबी बोफर्स को ठेका देने में रिश्वत / अवैध लाभ लिया था .... ।"
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक व मीडिया समीक्षक हैं)