सपा बसपा गठबंधन से जनता के बीच योगी आदित्यनाथ की साख बचना मुश्किल

Written by विद्या भूषण रावत | Published on: March 25, 2018
उत्तर प्रदेश में भाजपा की जातीय और प्रभुत्ववादी खेल में राज्य सभा में चुनाव जीतकर योगी आदित्यनाथ ने अपनी गिरती साख को पार्टी के अन्दर भले ही बचा लिए हो लेकिन जनता के समक्ष उनकी सरकार को अपनी साख बचाना इतना आसान नहीं होगा. राज्य सभा में जिस दबंगई और अनैतिकता से भाजपा ने साम दाम दंड भेद का सहारा लेकर चुनाव जीता है उसके सन्देश अच्छे नहीं गए है. राज्य सभा में आप सबसे बड़े दल के रूप में जरुर उभर गए हो लेकिन जनतंत्र में अपने विरोधियों को दुश्मन की तरह ट्रीट करने वाली पार्टी को सोच लेना पड़ेगा के कल वो भी विरोध पक्ष में बैठ सकती है और उसे कोई सहायक नहीं मिलेगा.


ऐसी खबरें है कि राज्य सभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ ने अपना ठाकुर ब्रह्मास्त्र चलाया और सभी दलों के ठाकुर नेताओं को तोड़ कर अपनी 'ताकत' का एहसास करवाया. योगी को दरअसल खतरा पार्टी के अन्दर से ही है क्योंकि पार्टी में उनकी ठाकुर-शाही के चलते असंतोष बढ़ रहा है. लेकिन इस प्रदर्शन से पार्टी के अन्दर के विरोध को तो उन्होंने फिलहाल टाल दिया है लेकिन जनता में जो सन्देश गया है वह साफ़ है कि जातिवादी विधायकों ने पैसे और जातीय अस्मिता की ताकत को कायम रखने ने लिए अपनी पार्टियों को छोड़कर भाजपा को वोट दिया. ये घटना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि जब हम विचारधारा की बात करते हैं तो अलग अलग पार्टियों में होते है क्योंकि हमारी पहचान हमारी विचारधारा बनता है. हम बसपा, सपा पे आरोप लगाते हैं के ये पार्टिया जाति-बिरादरियों की पार्टियाँ है और जब खुद इस घटिया खेल को करके चुनाव निकलते हैं तो टी वी के पालतू पिल्लों के जरिये इसको मैनेजमेंट कहलवाते हैं.

लेकिन इस घटनाक्रम के बाद जो सबसे बड़ी बात हुई है वह है बसपा प्रमुख सुश्री मायावती जी के प्रेस कांफ्रेंस ने देश भर के वंचित समाज के लोगों, बहुजन आन्दोलन से जुड़े साथियों में जबरदस्त उत्साह भर दिया है. लखनऊ की प्रेस कांफ्रेंस में जिस साफगोई और राजनैतिक कौशल से सुश्री मायावती ने मीडिया को साफ़ कर दिया के उत्तर प्रदेश में सपा बसपा गठबंधन बनकर साथ साथ चुनाव लड़ेंगे और उसमें कांग्रेस और अन्य छोटे दलों को भी शामिल करेंगे वो देश के इतिहास में बहुत बड़े बदलाव को ला सकती है. भाजपा का प्रयास था के इस चुनाव में बसपा के प्रत्याशी को हराकर वह समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में दरार पैदा करवा देगी तो उनको अब इस गलतफहमी में नहीं रहना चाहिए. 1992 में मान्यवर कांशीराम और मुलायम सिंह यादव ने एक साथ चुनाव लड़कर देश की राजनीति में भूचाल पैदा कर दिया था लेकिन उस गठबंधन को पूंजी परस्त ब्राहमणवादी ताकतों ने बिगाड़कर जो दरार पैदा करी उसने बहुजन समाज का बहुत नुक्सान किया. आज मायावती जी ने उत्तर प्रदेश में जमीन पर दलित बहुजन समाज के कार्यकर्ताओं की भावनाओं को समझ कर निर्णय ले लिया जो ऐतिहासिक है और इसके लिए उनकी जितनी सराहना की जाए वो कम है.

सबसे बड़ी बात यह है जिस साफगोई से उन्होंने भ्रष्ट संघी मीडिया द्वारा दोनों पार्टियों में स्टेट गेस्ट हाउस कांड को लेकर मतभेद करवाने की कोशिश को नाकामयाब बनाया है उससे हम सभी को सबक सीखने की जरुरत है. उन्होंने साफ़ किया के अखिलेश का उस घटना से कोई लेना देना नहीं है हालाँकि वह अभी भी उसे घटना को कभी न भूलने वाली मानती है. इसलिए योगी आदित्यनाथ के लिए उत्तर प्रदेश की चुनौती बहुत बड़ी है और रास्ता बहुत कठिन. भाजपा प्रदेश में जातीय विभाजन करने की कोशिश करेगी लेकिन हमें उम्मीद है कि उत्तर प्रदेश के प्रबुद्ध नागरिक इस बात को समझेंगे.

ये गठबंधन यदि मज़बूत हुआ तो देश में दलित पिछड़े समाज में एक बहुत बड़े राजनैतिक बदलाव का संकेत देगा. लेकिन इसके लिए ग्राउंड वर्क करने की जरुरत भी है और ये भी ध्यान रखना जरुरी होगा कि संघ परिवार और उसके खिलाडी अभी से सोशल मीडिया से लेकर जमीन पर उतारकर अपनी तैयारी कर रहे होंगे. आज के दौर की चुनौतियों के लिए रणनीति भी अभी के हिसाब से करनी पड़ेगी और सभी पार्टियों को टेक्नोलॉजी का सहारा भी लेना पड़ेगा.

जो लोग राजनीती में होते है उनसे हम ये नहीं कह सकते कि वे अपनी प्रतिबद्धताएं छोड़ दें लेकिन मैं अम्बेडकरी बहुजन आन्दोलन के साथियो से अनुरोध करूँगा कि वे राजनैतिक समझदारी दिखाते हुए उत्तर प्रदेश में अभी कम से कम वोट कटुआ का काम करने का प्रयास न करें. मुझे पता है आन्दोलनों में बहुत से मतभेद होते हैं और मनभेद भी लेकिन अगर हम जानते हैं कि 2019 हम सभी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है तो वोट विभाजन को न्यूनतम स्तर पर रकने के सभी प्रयास करने पड़ेंगे. सभी दलों का मिलना ही जरुरी नहीं है, उनके काडर को साथ काम करने के प्रयास करने पड़ेंगे और समाजवादी आन्दोलन को आंबेडकर, फुले, पेरियार, ललई सिंह यादव, राम स्वरूप वर्मा, बाबु जगदेव प्रसाद आदि लोगों की सांस्कृतिक बदलाव की लड़ाई को आगे कर बदलाव की सांस्कृतिक ताकतों को मजबूत करना होगा. ब्राह्मणवाद के सांस्कृतिक विकल्प के बिना हम कामयाब नहीं हो सकते. इसलिए हमें तो इस संघर्ष में अभी से उतरना चाहिए और बहुजन सांस्कृतिक दल गाँव गाँव में जाए और आज के प्रश्नों पर अपनी बात रखें. भूख, रोजगार, शिक्षा, स्वस्थ्य, अर्थव्यवस्था आदि के प्रश्नों को रोचक बनाकर रखने का प्रयास करें .

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव जी को भी इस गठबंधन को मज़बूत करने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने पड़ेंगे और अपने पार्टी के उन नेताओं को आगे बतायें जिन्हें दलित बहुजन आन्दोलन के इतिहास की जानकारी हो और जो कपटी पत्रकारों के चालाक सवालों के ठीक से उत्तर दे सके. पार्टी काडर को अधिक से अधिक लोगों को वोटिंग करवाने का प्रयास करना चाहिए. अखिलेश जी मान्यवर कांशीराम जी सामाजिक बदलाव के मूल्यों को समझेंगे तो अच्छा रहेगा.

दोनों पार्टियों में आपसी समझ बनाने के लिए ये भी जरुरी है कि इन पार्टियों के जो नेता एन वक्त पर पार्टियां छोड़कर पैसों के लिए विरोधियों से मिले, उनका परमानेंट बहिष्कार कर दिया जाना चाहिए. दोनों पार्टियों को चाहिए के वे एक दूसरे के अवसरवादी नेताओं को मज़बूत होने का मौका न दें.

बिहार में तेजस्वी यादव ने बेहतरीन तरीके से महागठबंधन संभाला है और अब उत्तर प्रदेश भी महागठबंधन की दिशा में बढ़ रहा है. ये देश के लिए अच्छे संकेत है. जिनको रात में इस गठबंधन के सत्ता में आने पर भयावह सपने आ रहे हैं वे देखते रहें लेकिन देश के विशाल गरीब, मजदूर, वंचित आबादी विशेषकर जो आज की सरकारी नीतियों का शिकार हुई है, वह इस घटनाक्रम का तहे दिल से स्वागत करेगी.

हम उम्मीद करते हैं कि देश के अन्य सभी हिस्सों में गठबंधन बनेंगे ताकि अगले आम चुनाव में देश के स्थिति बदले ताकि संविधान का सम्मान करने वाली शक्तिया सत्ता में आये और देशी साम्राज्यवादी शक्तियों को पुर्णतः परास्त किया जा सके.
 

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