मुस्लिम विरोधी बयानों में महाराष्ट्र अव्वल, 80% मामले भाजपा शासित राज्यों में दर्ज- हिंदुत्व वॉच

Written by AARUSHI SRIVASTAVA ABHYUDAYA TYAGI RAQIB HAMEED NAIK | Published on: September 30, 2023
देश भर में और ख़ास तौर से भाजपा शासित राज्यों में तेज़ी से बढ़ती नफ़रत के आंकड़ों के कारण भारतीय अल्पसंख्यकों के जीवन पर ख़तरा गहरा हो गया है.


Original Illustration: https://www.apc.org
 
भारत में 2014 से हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आने का बाद नफ़रती बयानों का दौर पूरे उफान पर है. नफ़रती बयानों पर रोक लगाने के बजाय सरकारी अधिकारियों ने ख़ुद ही नफ़रत की राह चुनी है. ये रिपोर्ट मुसलमान विरोधी नफ़रती बयान की घटनाओं का संज्ञान लेती है जिसमें मुख्यमंत्री, लेजिस्टेटर और भाजपा के कुछ बड़े नेताओं का नाम भी शामिल हैं. इस दौर में लव-जिहाद, व्यापार जिहाद और व्यापार जिहाद जैसी कांस्पिरेसी थ्योरीज़ सीधे तौर पर चुनावी फ़ायदे के लिए हिंदुत्ववादी राष्ट्रवाद को अपनाने का प्रयास करती हैं. अमेरिका बेस्ड एक ग़ैर सरकारी प्लेटफ़ार्म हिंदुत्व वॉच की रिपोर्ट के अनुसार भारत ने 2023 की पहली छमाही में नफ़रती बयान की 255 घटनाएं देखीं हैं.

ऐसे राज्य जिनमें भाजपा का शासन नहीं है वहां के मुक़ाबले भाजपा शासित राज्यों में नफ़रती घटनाओं का आंकड़ा काफ़ी ऊंचा है. नफ़रती बयान की 80% घटनाएं भाजपा शासित राज्यों और इलाक़ों में हुई हैं जिनमें से क़रीब 75% घटनाओं में जनता को हिंसा के लिए उकसाया गया है. इसमें से 60% घटनाओं में हथियारबंद होने की अपील की गई है. इसी तरह 81% घटनाओं में कांस्पिरेसी थ्योरी को बढ़ावा दिया गया और 78% घटनाएं भाजपाशासित ऐसे राज्यों में हुईं जहां मुसलमानों का बॉयकाट करने के लिए हिंदू अवाम को भड़काया गया था. जबकि ऐसी घटनाएं जिसमें हिंसा करने या हथियारबंद होने की अपील नहीं की गई थी, एक अलग आंकड़ा पेश करती हैं.  इस सूची में ऐसी घटनाएं शामिल हैं जिनमें सिर्फ़ कांस्पिरेसी थ्योरी को तूल दी गई या भाजपा नेताओं ने भाषण दिए और मुसलमानों के बॉयकाट की अपील की. इन घटनाओं के आंकड़े भाजपाशासित राज्यों और अन्य राज्यों में क़रीब क़रीब समान हैं.
 

इस रिपोर्ट के अनुसार 2014 से 2020 के बीच इंडियन पीनल कोड के सेक्शन 153(A) के तहत दर्ज मामलों में क़रीब 50% उछाल आया है.  हिंदुत्व वॉच की रिसर्च के मुताबिक़ 2023 के पहले 6 महीनों में (181 दिन) में भारत के 17 राज्यों में नफ़रती बयान की क़रीब 255 घटनाएं दर्ज की गईं जिसमें राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और संघीय क्षेत्र जम्मू कश्मीर भी शामिल हैं. आंकड़ों के हिसाब से औसत रूप से क़रीब एक नफ़रती बयान की घटना रोज़ होती है.

नीचे दिए गए विश्लेषण में बताया गया है कि नफ़रती बयान की ज़्यादातर घटनाएं भाजपाशासित राज्यों में हुई थीं जबकि जिन राज्यों में 2023-24 के बीच चुनाव होना तय है वहां ये सक्रियता कहीं ज़्यादा थी. ज़ाहिर है इन नफ़रती बयानों से मतदाताओं को प्रभावित करने की कोशिश की जाती है. इनमें से अधिकतर नफ़रती बयान मुसलमानों को शिकार बनाती नफ़रती साज़िशी चाल, हिंसा और हथियार उठाने की अपील और अल्पसंख्यक समुदाय के सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार पर आधारित होते हैं.

इस रिपोर्ट के कुछ ख़ास बिंदुओं को यहां पढ़ा जा सकता है.  

·        नफ़रती बयान की दर्ज 255 घटनाएं 2023 की पहली छमाही में हुईं जिनमें मुसलमानों को निशाना बनाया गया.

·        इनमें से क़रीब 205 (80%) घटनाएं भाजपा शासित राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में हुईं.

·        महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, राजस्थान और गुजरात में ये आंकड़ा सबसे अधिक था जबकि 29% घटनाओं के साथ महाराष्ट्र नफ़रती बयान की घटनाओं में अव्वल है.

·        नफ़रती बयानों के प्रसार के लिहाज़ से टॉप 8 राज्यों में भाजपा या भाजपा के गठबंधन का शासन है.

·        भाजपा-शासित इन राज्यों और संघीय क्षेत्रों में ऐसे क़रीब 52% सम्मेलन राष्ट्रीय स्वंयसेवा संघ, विश्व हिंदू परिषद्, बजरंग दल, सकल हिंदू समाज और भारतीय जनता पार्टी द्वारा आयोजित किए गए थे. इन नफ़रती बयानों का 42% हिस्सा 2 केंद्रशासित प्रदेशों सहित 17 राज्यों में राष्ट्रीय स्वंयसेवा संघ के जुड़े समूहों द्वारा आयोजित किया गया था.

·        भाजपा-शासित राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में ऐसे 64% आयोजनों में दक्षिणपंथी हिंदुत्ववादी समूहों की मुसलमानविरोधी कांस्पीरेसी थ्योरीज़ को तूल दी गई थी.

·        इनमें से क़रीब 33% सम्मेलनों में सीधे तौर पर मुसलमान वर्ग के खिलाफ़ हिंसा के लिए उकसाया गया.

·        इसमें से 11% घटनाओं में हिंदुओं को मुसलमानों का बॉयकाट करने को कहा गया.

·        इनमें से क़रीब 4% घटनाओं में मुसलमान औरतों पर निशाना साधते हुए नफ़रती और सेक्सिस्ट बयान जारी किए गए.

·        इनमें से 12% घटानाओं में हथियार उठाने को कहा गया.

·        ग़ौरतलब है कि इनमें से 33% नफ़रती बयान उन राज्यों में हुए जहां 2023 में राज्य विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं, जबकि 36% घटनाएं उन राज्यों में हुईं जहां 2024 में लोकसभा का चुनाव होना है. कुल मिलाकर क़रीब 70% घटनाएं उन राज्यों में दर्ज की गईं जहां 2023 या 2024 में चुनाव होने हैं.  

नफ़रती बयान की घटनाओं का भौगोलिक प्रसार

2023 के पहले हिस्से में देश में पश्चिम में गुजरात से लेकर पूर्व में असम तक नफ़रती बयान की अनेक घटानएं दर्ज की गईं. मैप के अनुसार हर राज्य में नफ़रती बयान की घटनाओं की तादाद में एक तरह की भौगोलिक असमानता है.

इस समूह ने 15 राज्यों और 2 केंद्रशासित प्रदेशों में एंटीमुस्लिम नफ़रती बयानों का परीक्षण किया है जहां पुलिस और लॉ एनफ़ोर्समेंट सीधे तौर पर भाजपा शासित केंद्र सरकार के दायरे में आते हैं. ऐसे भी कुछ राज्य हैं जहां किसी नफ़रती घटना ने अंजाम नहीं हुई या उनकी तादाद सीमित थी, लेकिन वो अधिकतर देश के दक्षिणी या पूर्वी किनारों पर बसे राज्य हैं जहां भाजपा का चुनावी प्रभाव सबसे कम है. इसके विपरीत नफ़रती बयान की ज़्यादातर घटनाएं भारत के उत्तर, पश्चिम या केंद्रीय क्षेत्रों में हुईं जहां चुनावी रूप से भाजपा का गहरा प्रभाव है.

इनमें से 29% नफ़रती बयान अकेले महाराष्ट्र में दर्ज किए गए जबकि भारत की कुल आबादी में इसका योगदान महज़ 9% है. महाराष्ट्र इसका उदाहरण है कि कैसे भाजपा कमज़ोर चुनावी ज़मीन वाले राज्यों में मुसलमान विरोधी बयानों को तूल देने के लिए राज्य की शक्ति का इस्तेमाल करती है. यहां जून 2022 में भाजपा ने सत्ताधीन गठबंधन को इलेक्टोरल मेंडेट के बिना शक्ति सौंपी थी. राज्य में 2024 में होने वाले चुनावों के मद्देनज़र राज्य में मुसलमान विरोधी ताक़तों को तूल देने की भरपूर कोशिश की जा रही है.

इसी तरह भाजपा-शासित राज्यों जैसे कर्नाटक (जिसपर  अधिकतर समय भाजपा का ही शासन रहा है.), मध्य प्रदेश और गुजरात में नफ़रती बयानों के एवज़ अनेक सम्मेलन हुए हैं. इस अवधि में तीनों राज्यों में अलग-अलग क़रीब 20 से अधिक नफ़रती बयान वाले सम्मेलन हुए हैं.

इनमें से राजस्थान अपवाद है. यहां कांग्रेस का शासन है जहां वर्ष के अंत में चुनाव होने हैं. जबकि उत्तराखंड जैसे छोटे से राज्य में महज़ 6 महीने के भीतर 13 नफ़रती बयान की घटनाएं काफ़ी चिंताजनक हैं. इसका अर्थ है कि 2023 की पहली छमाही में सिर्फ़ उत्तराखंड में 5% नफ़रती घटनाएं हुईं जबकि देश की आबादी में इस राज्य का हिस्सा सिर्फ़ 1% है. नफ़रती बयान में इस भारी उछाल के कारण उत्तराखंड से बड़े पैमाने पर मुसलमान विस्थापित हो गए हैं.

नफ़रती बयान की घटनाओं को श्रेणीबद्ध करना

विभाजित श्रेणियों के अनुसार दक्षिणपंथी हिंदू संगठनों और व्यक्तिगत तौर पर नेताओं द्वारा जारी नफ़रती बयानों को परखा जा सकता है. इनमें से क़रीब 131 घटनाएं या 51.3% का आंकड़ा मुसलमान विरोधी कांस्पिरेसी थ्योरीज़ को तूल देता है. इनमें से कुछ सबसे अहम थ्योरी के तौर पर लव-जिहाद, लैंड जिहाद, मज़ार जिहाद आदि को गिना जा सकता है. हिंदुत्व के नाम पर ध्रुवीकरण करने के ये प्रयास मूल रूप से ‘अन्य’ यानि मुसलमान समुदाय का डर पैदा करने की कोशिश पर आधारित हैं.

ऐसी घटनाओं में क़रीब 83 घटनाओं (क़रीब 33%) में हिंदुत्ववादी समूहों द्वारा सीधे तौर पर हिंसा के लिए उकसाया गया है. इसमें मुसलमानों के जातीय संहार, नरसंहार और उनकी प्रार्थना की जगहों को उजाड़ने की अपील प्रमुख है. इस तरह की घटनाओं के बाद दण्ड के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई जिससे कि हिंसा को बढ़ावा मिला. इनमें से 30 घटनाओं (12%) में हथियारबंद होने की अपील की गई जहां हिंदुत्ववादी नेताओं ने बहुसंख्यक आबादी को हथियार ख़रीदने और रखने के लिए भड़काया. त्रिशूल बंटने की घटनाएं भी इसी कड़ी का हिस्सा थीं जिसमें हिंदुत्ववादी नेताओं ने युवा आबादी को त्रिशूल बांटे थे.

इनमें से नफ़रती बयान की 27 घटनाओं (11%) में मुसलमानों के सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार की अपील की गई. इसमें मुसलमानों को राज्य से बेदख़ल करने और मुसलमानों से सेवा और उत्पाद की ख़रीदारी बंद करने की अपील भी शामिल है. क़रीब 34 घटनाओं (13%) में भाजपा के नेताओं ने नफ़रती बयान दिए जिनमें कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री केएस. ईश्वरप्पा, दिल्ली भाजपा के उपाध्यक्ष कपिल मिश्रा, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा शर्मा और सांसद प्रज्ञा ठाकुर प्रमुख हैं.  

इनमें से ज़्यादातर घटनाएं (70%) उन राज्यों में हुईं जहां 2023-2024 में चुनाव होने वाले हैं

कुल घटनाओं में से 85 (33%) आयोजन राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, तेलांगाना यानि उन राज्यों में हुए जहां इस साल चुनाव होना तय है. इसी तर्ज़ पर क़रीब 93 घटनाएं उन राज्यों में हुईं जहां 2024 में चुनाव होना तय है.

इस हवा को देखते हुए अनुमान लगाया जा सकता है कि इन बयानों और आयोजनों से हिंदू आबादी का ध्रुवीकरण होगा. इससे भाजपा के चुनावी खाते को बहाल करने के मक़सद से हिंदुत्ववादी दक्षिणपंथी समूहों द्वारा नफ़रत और हिंसा को बढ़ावा देने की संभवाना भी गहरी होती है.     

नोट- नफ़रती बयान की एक घटना को अनेक श्रेणियों में रखा जा सकता है. मिसाल के तौर पर एक ही घटना में लव-जिहाद या लंड जिहाद का भी ज़िक्र हो सकता है और इसके साथ ही इसमें हिंसा और हथियार उठाने के लिए भी उकसाया जा सकता है.  

नफ़रती बयानों के पीछे संगठनों की भूमिका

चार्ट के अनुसार नफ़रती बयान की अनेक घटानाएं विश्व हिंदू परिषद् या बजरंग दल द्वारा आयोजित की गई हैं. उन्होंने 2023 के पहले 6 महीनों के भीतर क़रीब 62 मुसलमान विरोधी नफ़रती बयानों वाले आयोजन कराए हैं. इन्हें एक ही संगठन माना जाना चाहिए क्योंकि बजरंग दल विहिप की ही यूथ विंग है. दोनों ही संगठनों का मुसलमान-विरोधी ज़हरीले भाषणों के प्रसार और हिंसा का इतिहास रहा है. ये संगठन बड़े पैमाने पर कार्यरत संघ परिवार का हिस्सा हैं. संघ परिवार राष्ट्रवादी हिंदू संगठनों का एक समूह है जिसमें राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ अगुवा की भूमिका निभाता है. इसमें RSS, भाजपा, विहिप और बजरंग दल सहित अनेक संगठन शामिल हैं. इन स्वतंत्र संगठनों का होना ये सुनिश्चित करता है कि भाजपा के नेता अपनी गतिविधियों से बिना जबावदेही के साथ बच सकते हैं. कर्नाटक में कांग्रेस द्वारा बजरंग दल के इलेक्शन कैंपेन पर पाबंदी लगाने की मांग के बाद ख़ुद प्रधानंत्री मोदी ने इसकी पैरवी की थी. भाजपा के शासन में बजरंग दल और विहिप ने पुलिस के साथ मिलकर इंटरफ़ेथ जोड़ों को अलग करने और लव-जिहाद जैसे मुसलमान-विरोधी षड्यंत्र को हवा देने में ख़ास रोल निभाया है. कर्नाटक चुनावों के दौरान भाजपा ख़ुद नफ़रती बयान की अनेक घटनाओं के लिए ज़िम्मेदार है.

इसके अलावा महाराष्ट्र में नफ़रती बयान के आयोजन करने में सकल हिंदू समाज नामक अन्य संगठन सक्रिय रहा है. ये संगठन मूल रूप से महाराष्ट्र आधारित है और राज्य के अनेक हिंदू राष्ट्रवादियों का गठबंधन है. इसके नेता संघ परिवार और संबंधित संगठनों जैसे RSS, भाजपा, विहिप और बजरंग दल आदि से जुड़े हुए हैं. लव-जिहाद और लैंड-जिहाद जैसी कांस्पिरेसी थ्योरी फैलाने में इसका ख़ास रोल है.  इसके आयोजनों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने वाले सुरेश च्वाहाणके सुदर्शन न्यूज़ का प्रमुख और एक जाना-पहचाना नफ़रती चेहरा है. आंकड़ों के मुताबिक़ उन्होंने अनेक नफ़रती बयान दिए हैं.

सकल हिंदू समाज के सम्मेलनों का मोर्चा संभालने वालों में टी. राजा सिंह भी एक प्रमुख नाम हैं.  सिंह को शुरूआत में तेलंगाना राज्य में भाजपा विधायक के तौर पर चुना गया था लेकिन बाद में पैग़म्बर मुहम्मद पर नफ़रती टिप्पणी के कारण उन्हें पार्टी से सस्पेंड कर दिया गया. सस्पेंड होने के बाद भी वो भाजपा से जुड़े हुए हैं. मंत्री किशन रेड्डी ने कहा कि उनका सस्पेंशन जल्द ही रद्द कर दिया जाएगा. हालिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ सिंह ने भाजपा के टॉप नेताओं के साथ मीटिंग रखी थी. काफ़ी संभावना है कि वो तेलंगाना  में आने वाले चुनावों में प्रत्याशी के तौर पर नामित किए जा सकते हैं.

नफ़रती घटनाओं को गठित करने में हिंदू जनजागृति समिति  (HJS) और अंतर्राष्ट्रीय हिंदू परिषद् (AHP) भी प्रमुख नाम हैं.  HJS ने गोवा में ऑल इंडिया हिंदू राष्ट्र कनवेंशन का आयोजन किया था जिसमें नफ़रती बयानों और कांस्पिरेसी थ्योरी की बुनियाद पर संविधान से समानता का अधिकार हटाने की मांग की गई थी.  जबकि AHP की बागडोर प्रवीण तोगड़िया के हाथों में है, जिन्होंने 2023 के शुरूआती चरण में मुसलमानों की जनसंख्या के बारे में मनगढंत और नक़ली आंकड़े पेश करके नफ़रत फैलाने में योगदान दिया है.  

2023 की शुरूआत में नफ़रती बयानों का उफान

भारतीय राजनीति में 2023 के शुरूआती 6 महीनों में मुसलमान-विरोधी नफ़रती बयान लगातार हावी रहे हैं. इस बीच क़रीब हर महीने नफ़रती बयान की एक घटना पेश हुई है. सबसे ज़्यादा नफ़रती घटनाएं मार्च माह में इत्तेफ़ाक़ से 30 मार्च के आस-पास हुई हैं. मार्च के अंतिम सप्ताह में देश भर में नफ़रती बयान की क़रीब 18 आयोजन हुए. ऐसा प्रतीत होता है कि रामनवमी के नाम पर हिंसा भड़काना इनका मक़सद था. दुर्भाग्य से ये आयोजन सफल भी हुए और नतीजे में क़रीब 6 राज्यों ने हिंसक झड़पों का  सामना किया. दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा रामनवमी के नाम पर हिंसा भड़काने की कोशिश के एवज़ दो लोगों की मौत हुई और अनेक लोग घायल हो गए.  

भाजपा शासित राज्यों में नफ़रती बयान की घटनाओं में इज़ाफ़ा

ग्राफ़ के मुताबिक़ भाजपा शासित राज्यों में नफ़रती घटनाओं का उफान सबसे तेज़ रहा है. ये रिपोर्ट भाजपा शासित राज्यों में कुल 205 ऐसी घटनाओं का उल्लेख करती है जिसमें  NCT दिल्ली और यूनियन टेरीटरी जम्मू-कश्मीर की क़रीब 15 घटनाएं शामिल हैं जहां पुलिस, क़ानून और व्यवस्था भाजपा शासित केंद्र सरकार के दायरे में है. नफ़रती बयान की क़रीब 80% घटनाएं भाजपा की केंद्र सरकार की अगुवाई में भाजपा शासित राज्यों या क्षेत्रों में हुईं. आंकड़ों के मुताबिक़ भारत की 45% आबादी भाजपा के शासन क्षेत्र में आती है.  नफ़रती बयान की घटनाओं के लिहाज़ से 8 अग्रणी राज्यों में से 7 में भाजपा सरकार का शासन है. सबूतों से साबित होता है कि भाजपा से मुक्त राज्यों में ऐसी नफ़रती घटनाएं होने की गुंजाइश बेहद कम होती है. भाजपा मुक्त राज्य नफ़रती बयानों पर कारवाई करने की आकांक्षा रखते हैं जबकि भाजपा शासित राज्य ऐसे आयोजनों के लिए राज्य की शक्ति का उपयोग करते हैं. कांग्रेस-शासित राजस्थान इस क्रम में एक ज़रूरी उदाहरण है जहां 2023 के अंत में विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र नफ़रती बयान की क़रीब 25 घटनाएं दर्ज की गई हैं.

[ राक़िब हमीद नाइक एक कश्मीरी अमेरिकन पत्रकार और हिंदुत्व वॉच के संस्थापक हैं. आरूषि श्रीवास्तव पेरिस में पत्रकारिता के प्रारंभिक दौर में हैं जबकि अभ्युदय त्यागी कोलंबिया विश्विद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग में पीएचडी के शोधार्थी हैं.]   

बाकी ख़बरें