अघोषित राजतंत्र में सिसकती पत्रकारिता! ...अब मध्यप्रदेश में चौथे स्‍तंभ का चीरहरण!"

Written by Navnish Kumar | Published on: April 8, 2022
यूपी के बलिया में पेपर लीक मामले में खबर छापने पर 3 पत्रकारों को जेल भेजने का मामला चर्चाओं में बना ही था कि कल दिन भर सोशल मीडिया पर मध्यप्रदेश के सीधी जिले के थाने में बंद पत्रकारों की, बदन पर मात्र अंडरवियर पहनी हुई, अर्द्धनग्न तस्वीरें वायरल होती रहीं। आरोप है कि बीजेपी विधायक केदारनाथ शुक्ला के खिलाफ खबर लिखने के चलते पत्रकारों को नंगा किया गया है। यही नहीं, आज ओडिशा के बालासोर जिले में पुलिस द्वारा पत्रकार को जंजीरों में जकड़ने की घटना सामने आई है। पीड़ित पत्रकार लोकनाथी डेलाई का दावा है कि भ्रष्टाचार की उनकी रिपोर्टिंग के जवाब में उन्हें गिरफ्तार किया गया और अस्पताल के बिस्तर से पैर बांध दिया। 



पत्रकारों के खिलाफ बढ़ते उत्पीड़न को लेकर एडिटर्स गिल्ड सहित पत्रकार संगठनों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और विपक्षी दलों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है और अमानवीय बर्ताव की निंदा की है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसे "लॉकअप में लोकतंत्र के चौथे स्‍तंभ का चीरहरण!" करार दिया है। राहुल गांधी ने ट्वीट किया "लॉकअप में लोकतंत्र के चौथे स्‍तंभ का चीरहरण!, या तो सरकार की गोद में बैठकर उनके गुणगान गाओ, या जेल के चक्कर काटो। 'नए भारत' की सरकार, सच से डरती है।" चौतरफा आलोचना के बाद मध्य प्रदेश के थाने में पत्रकारों के कपड़े उतरवाने के मामले ने तूल पकड़ लिया है। आरोपी अफसरों पर निलंबन की कार्रवाई भी की गई है लेकिन इससे मामला शांत होता नहीं दिख रहा। एडिटर्स गिल्ड ने पत्रकारों के साथ इस तरह के अमानवीय बर्ताव को अस्वीकार्य बताते हुए, निंदा की है। 

खास है कि मध्य प्रदेश के सीधी जिले के कोतवाली थाने में स्थानीय यूट्यूब पत्रकार की 8 अन्य लोगों के साथ अर्धनग्न तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई, इसके बाद पत्रकार जगत और नागरिक कार्यकर्ताओं ने पुलिसिया कार्रवाई की निंदा करते हुए, सरकार से दोषियों पर कार्रवाई की मांग की। सोशल मीडिया पर वायरल फोटो कथित तौर पर 2 अप्रैल को ली गई और इसे सोशल मीडिया पर वायरल किया गया। इस तस्वीर में एक खबरिया चैनल के पत्रकार कनिष्क तिवारी भी नजर आ रहे हैं। तिवारी के मुताबिक उन्हें अन्य लोगों के साथ गिरफ्तार किया गया था, जब वे एक थिएटर कलाकार नीरज कुंदर के बारे में पूछताछ करने पुलिस थाने गए थे।



कुंदर को बीजेपी विधायक और उनके बेटे के खिलाफ अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। तिवारी के अलावा बाकी लोग रंगकर्मी हैं। मध्य प्रदेश के एनडीटीवी के पत्रकार अनुराग द्वारी ने अपने ट्वीट में बताया कि तस्वीर में जो लोग दिख रहे हैं उनमें-आशीष सोनी-सामाजिक कार्यकर्ता, शिव नारायण कुंदेर-रंगकर्मी, सुनील चौधरी-सचिव, राष्ट्रीय दलित अधिकार मंच, उज्जवल कुंदर-चित्रकार हैं। तिवारी समेत अन्य लोगों को कुंदर की गिरफ्तारी का विरोध करने पर धारा 151 के तहत गिरफ्तार किया गया था। एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि विरोध के दौरान वे सड़क पर बैठ गए थे जिससे लोगों की आवाजाही बाधित हो रही थी। तिवारी ने दावा किया कि वह अपने कैमरापर्सन के साथ थिएटर कलाकार कुंदर की गिरफ्तारी के बारे में पूछने पुलिस स्टेशन गए थे। तिवारी ने दावा किया कि पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और 18 घंटे से अधिक समय तक लॉकअप में रखा और बुरी तरह पीटा। तिवारी का कहना है, "वो एक स्वतंत्र पत्रकार (यूट्यूबर) के रूप में भी काम कर रहे हैं और हाल ही में मैंने एक रिपोर्ट फाइल की थी, जिसे विधायक केदारनाथ शुक्ला के खिलाफ माना गया और उसके कारण मुझे निशाना बनाया गया।"



इस बीच थाने में पत्रकारों के कपड़े उतरवाने के मामले में रीवा जोन के आईजी ने कार्रवाई की है। आईजी ने ट्वीट कर बताया, "सीधी जिले से संबंधित एक फोटो सोशल मीडिया पर प्रसारित हुआ है। इसको गंभीरता से लेते हुए थाना प्रभारी कोतवाली सीधी और एक उपनिरीक्षक को तत्काल हटा कर पुलिस लाइन संबद्ध किया गया है। प्रकरण की जांच अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक से कराने के निर्देश जारी किए गए हैं।" सीधी के पुलिस अधीक्षक मुकेश श्रीवास्तव ने पत्रकारों से कहा है कि केदारनाथ शुक्ला ने नीरज कुंदर के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि वह फर्जी खबरें साझा कर रहा था और उनके और उनके परिवार के खिलाफ अभद्र भाषा का इस्तेमाल कर रहा था। श्रीवास्तव ने कहा कि प्राथमिकी 16 मार्च को दर्ज की गई थी और उनकी शिकायत के आधार पर मामले की जांच की गई थी। 



उन्होंने कहा कि जांच के दौरान पाया गया कि कुंदर ने फेसबुक पर नकली पहचान के साथ एक खाता बनाया था। उन्होंने पत्रकारों से कहा, "हमने फेसबुक से एक जांच रिपोर्ट भी मांगी है और हमें बताया गया कि खाता एक नकली आईडी का इस्तेमाल करके बनाया गया था। इसके बाद उन्हें 2 अप्रैल को गिरफ्तार किया गया था और अदालत में पेश किया।" उधर, द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, सीधी एसपी मुकेश श्रीवास्तव ने बताया कि सीओ गायत्री तिवारी को जांच का आदेश दिया गया है और इसकी जांच के बाद जो भी दोषी पाया जाएगा उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने कहा कि अपराधियों द्वारा किए गए अपराध के बावजूद, ऐसी कार्रवाई स्वीकार्य नहीं है। 

थाने में कपड़े क्यों उतारे गए? की बाबत एसपी ने बताया कि जांच के दौरान पुलिस ने फेसबुक पोस्ट और आईपी एड्रेस की जानकारी मांगी और जांच में नीरज कुंदर से संबंध पाए जाने पर उसे गिरफ्तार कर लिया गया था। इस गिरफ्तारी का विरोध करने के लिए लगभग 40 लोगों के एक समूह, जिसमें कुंदर के रिश्तेदार और दोस्त और एक यूट्यूबर ने शाम को पुलिस स्टेशन का घेराव किया और नारेबाजी शुरू कर दी। एसपी ने कहा कि इस मामले में उन्हें हिरासत में लिया गया था। लेकिन उनके कपड़े क्यों उतारे गए और ये किसने किया, इसकी जांच की जा रही है। पुलिस के मुताबिक, जिन लोगों को हिरासत में लिया गया था, उनके खिलाफ धारा 151 के तहत मामला दर्ज किया गया और कुछ घंटों बाद रिहा कर दिया गया।

आरोपी एसएचओ ने मामले में बहुत ही हास्यस्पद सफाई दी है। सीधी थाने के एसएचओ ने कहा कि पकड़े गए लोग पूरे नग्न नहीं थे। सुरक्षा की दृष्टि से उन्हें हवालात में डालने से पहले अंडरवियर में इसलिए रखते हैं ताकि कोई व्यक्ति अपने कपड़ों से खुद को फांसी ना लगा ले। पत्रकारों को अर्धनग्न रखने के पीछे एसएचओ ने सुरक्षा की बात की। इस पर सोशल मीडिया यूजर्स ने भी तीखे कमेंट्स किए हैं। प्रभाकर मिश्रा नाम के यूजर ने कमेंट किया कि इस तस्वीर में केवल कुछ लोग नंगे नहीं दिख रहे हैं, मुझे तो इसमें मध्यप्रदेश की पूरी व्यवस्था नंगी दिख रही है। विनोद कापड़ी ने कमेंट किया कि थोड़ी लाज बची है शिवराज सिंह चौहान? अमरीश गुप्ता नाम की एक टि्वटर हैंडल से कमेंट किया कि पत्रकारों को नग्न करने के मामले में इन साहब का बयान सुनेंगे तो कसम से आपको स्प्रिंग लग जाएगी। सत्यम ज्योति नाम के यूजर लिखते हैं, ‘यह बयान सुनने के बाद लॉजिक भी फांसी लगाकर ना मर जाए।’ आलोक रंजन लिखते हैं- वाह रे सुरक्षा। क्या तर्क गढ़ा है साहब ने .. मतलब कुछ भी? रितेश मिश्रा नाम के यूजर द्वारा कमेंट किया गया कि इन्होंने पता नहीं कौन सा अपराध किया था लेकिन कोई अपराध इतना भी गंभीर नहीं हो सकता। यह मानवाधिकारों का खुला मजाक है।



सीधी में पत्रकारों के साथ इस तरह के अमानवीय बर्ताव को लेकर एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने भी बयान जारी किया है। गिल्ड ने अपने बयान में कहा, "जिस तरीके से सीधी पुलिस ने स्थानीय पत्रकार को गिरफ्तार किया, निर्वस्त्र किया और अपमानित किया उससे वह चकित है, साथ ही साथ ओडिशा के बालासोर में एक अन्य पत्रकार को जंजीर से बांधने पर भी रोष जाहिर करता है।" गिल्ड ने गृह मंत्रालय से तत्काल व सख्त कार्रवाई करने का आग्रह किया है। एडिटर्स गिल्ड के महासचिव संजय कपूर ने मीडिया को बताया, "यह पत्रकारिता की जो हमारे यहां स्थिति है उसके बारे में भी बताती है, काफी पत्रकार ऐसे हैं जो फ्रीलांस काम करते हैं और उन्हें वेतन तक नहीं मिलता है।" वे कहते हैं, "ऐसे पत्रकारों की प्रशासन भी परवाह नहीं करता है। उन्हें खामोश करके रखने की कोशिश होती है और अगर कोई भी सवाल उठाए तो वे सोचते हैं उन्हें इसका अधिकार नहीं है। स्थिति चारों तरफ बहुत खराब हो गई है।" 

कपूर उत्तर प्रदेश के बलिया के उस पत्रकार का भी जिक्र करते हैं जिन्हें पुलिस द्वारा पेपर लीक मामले में गिरफ्तार किया गया था। बलिया के पत्रकार अजीत ओझा के परिवार का कहना है उन्होंने पेपर लीक मामले का भंडाफोड़ किया था और प्रशासन ने बदले की कार्रवाई में उन्हें ही गिरफ्तार कर लिया। ओझा के अलावा प्रशासन ने दो और पत्रकारों को गिरफ्तार किया था। कपूर कहते हैं, "पूरे देश और खासकर हिंदी भाषी क्षेत्रों में पत्रकारों के लिए स्थिति बहुत भयावह हो गई है और जो प्रशासन है उसकी हिम्मत इसलिए भी बढ़ गई है क्योंकि जो सरकार है, इस समय वह पत्रकारिता को दुश्मन के तौर पर समझती है।" कपूर कहते हैं कि लोकतांत्रिक जवाबदेही पत्रकार ही शुरू करता है और जो भी लिखा या बोला जाता है वह हमारे संविधान से प्रेरित होता है। वे कहते हैं, "यहां सबसे बड़ी लड़ाई संविधान को बचाने की है और पत्रकार उसका सबसे पहला प्रहरी होता है और जब पत्रकार आजादी से लिखता है या बोलता है तो जो लोग सत्ता में हैं, इससे सहमत नहीं होने पर पुलिस-प्रशासन के माध्यम से पत्रकारों पर अंकुश लगाने की कोशिश करते हैं।"

यही नहीं, सोशल मीडिया पर कई वरिष्ठ पत्रकारों, साहित्यकारों और सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने भी भाजपा सरकारों में चल रहे पुलिसिया राज पर तीखी प्रतिक्रिया की है। भड़ास पर छपी कुछ टिप्पणी निम्न है। अजय शुक्ला लिखते हैं कि "बलिया के बाद सीधी से सीधा संदेश… पत्रकारिता स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है: यह संदेश और यह फोटो सभी पत्रकारिता सिखाने वाले स्कूलों के गेट पर लगा देनी चाहिए।" शीतल पी सिंह लिखते हैं कि सीधी, मध्य प्रदेश : एक बीजेपी विधायक के बारे में आलोचनात्मक खबरें चलाने के कारण मध्यप्रदेश पुलिस ने इन पत्रकारों को वस्त्रहीन करके थाने में परेड लगाई है। ये सभी यूट्यूब चैनल चलाने वाले पत्रकार हैं। बीजेपी के रामराज में लोकतंत्र को सऊदी अरब की न्याय पद्धति से जोड़ दिया गया है। कहीं बुलडोजर का बखान हो रहा तो कहीं लोगों को वस्त्रहीन किया जा रहा है।



धर्मवीर लिखते हैं कि इंसाफ़ का बंटाधार… अब सारे फैसले पुलिस या बुलडोजर के जरिए ही होंगे। मध्यप्रदेश में यह पुलिस ने किया है। यह सीधी जिले के पत्रकार हैं। ज्यादातर यूट्यूब चैनलों के। इनके खिलाफ बीजेपी विधायक ने शिकायत की है कि उनके खिलाफ खबर चलाई है। पुलिस ने सजा देने की शुरुआत कपड़े उतार कर की है। क़ानून का इससे बड़ा मज़ाक़ क्या होगा कि जो शिकायतकर्ता है वही जाँचकर्ता और वही अदालत और सज़ा तामील करने वाला।

संजय झा लिखते हैं कि ये लाइन में खड़े पत्रकार हैं। मध्यप्रदेश के सीधी जिले की पुलिस ने इन्हें थाने में अर्धनग्न अवस्था में खड़ा कर दिया है। बताया गया है कि इन पत्रकारों ने भाजपा विधायक केदारनाथ शुक्ला के खिलाफ यूट्यूब पर फर्जी खबरें चलाई थीं जिससे शुक्ला नाराज थे। उनके कहने पर सीधी पुलिस ने इनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली है। पुलिस का कहना है कि ये लोग फर्जी आईडी से भाजपा सरकार और विधायकों के खिलाफ लिखते और खबरें दिखाते हैं। इस तस्वीर को देखने के बाद मुझे मेरे विधायक और सांसद घनघोर लोकतांत्रिक लगने लगे हैं। भले ही मेरे इलाके के नेता कितने ही बड़े झूठे, मक्कार, पतित, हवाबाज, भ्रष्टाचारी क्यों न हों कभी हमारी आवाज दबाने की कोशिश नहीं की।

अमृत तिवारी लिखते हैं कि अइयैया!! सुक्कू सुक्कू… साहेबान! देखिए बुलंद डेमोक्रेसी की बुलंद तस्वीर। ये किसी कॉलेज के फ्रेशर नहीं बल्कि मध्य प्रदेश के पत्रकार हैं। सीधी जिले में कनिष्क तिवारी (दाढ़ी वाले शख्स) यू ट्यूब चैनल चलाते हैं। बीजेपी विधायक केदारनाथ शुक्ला के खिलाफ स्टोरी चलाई थी। जलील किए गए हैं। 18 घंटे अंडरवियर में ही थाने के भीतर रखने के अलावा परिसर में परेड भी कराया। कनिष्क तिवारी का कहना है कि उनके सत्ताधारी दल के विधायक के खिलाफ खबर चलाने से विधायक का बेटा सबसे ज्यादा नाराज था। थानेदार साहब भी नाराज ज्यादा थे क्योंकि, कुछ दिन पहले थाने के भीतर नशे को लेकर भी खबर तिवारी की टीम ने ही चलाई थी। लिहाजा, 18 घंटे गैरकानूनी कैद और तिवारी के साथ उनके साथियों को जमकर थाने में पिटाई की गई। खैर! सबका नंबर आएगा।

रवींद्र श्रीवास्तव कहते हैं कि शिवराज मामा के सूबे में सीधी जिले की टेढ़ी पुलिस की मेहरबानी रही कि इन्हें पूरी तरह नंगा नहीं किया। बताया जा रहा है कि ये पत्रकार हैं और इनका यह हाल पुलिस ने इसलिए किया है क्योंकि इन्होंने विधायक के खिलाफ बोलने जुर्रत की थी। जुर्म जितना संगीन था, उसके मुकाबले पुलिस ने बहुत रहम किया। अब इन्हें तौबा कर लेनी चाहिए कि आइंदा से ऐसी हिमाकत नहीं करेंगे। लेकिन अगर इनकी रीढ़ इत्तेफाक से सलामत है, और निगाहें झुकाने जैसी कोई करतूत नहीं की है तो इनके लिए तब तक चैन हराम है जब खुद को अधनंगा करने वालों को पूरा नंगा नहीं कर दें। विधायक हो, पुलिस हो या पत्रकार। ग़लत तो ग़लत ही होता है। मूलतः वह कायर, कमजोर और नपुंसक होता है। सच हो, हौसला हो तो हक़ भी मिलता ही है। अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी होती है। कहते हैं नंग बड़े परमेश्वर। पुलिस ने नंगा कर दिया है, तो अब परमेश्वर बनकर दिखाइए। लड़ेंगे तभी जीतेंगे। हम चाहते हैं कि आप जीतें बशर्ते आप सच्चे हों। थाने में हनक दिखाने वालों की इतनी औकात नहीं होती कि सच से देर तक पंजा लड़ा सकें। रही बात सत्ता प्रतिष्ठान की, तो उससे कोई भी उम्मीद बेमानी है। अलबत्ता, इस करतूत के लिए इन्हें कोर्ट में जरूर घसीटिए।

सौरभ यादव लिखते हैं कि वैसे तो ये पत्रकार हैं जिन्हें मध्यप्रदेश पुलिस ने नंगा किया है लेकिन मुझे इनमें ‘जनता’ दिखाई दे रही है…जो अगले नंबर पर है और फिलहाल खामोशी से देख रही है। चंद्र भूषण कहते हैं कि पत्रकारों के लिए सुझाव। थाने में नंगा न खड़ा करने और बांधकर पिटाई न करने के लिए मोदी सरकार और राज्य भाजपा सरकारों को व्यक्तिगत धन्यवाद ज्ञापित करें। जिनके साथ ऐसा हो चुका है वे थोड़ा रुक जाएं।

रवींद्र त्रिपाठी लिखते हैं कि मुझे यह तस्वीर सीधी से एक मित्र ने भेजी है। मैंने इसकी प्रमाणिकता भी पुष्ट की है और मुझे मिली जानकारी के मुताबिक ये मध्य प्रदेश के सीधी थाने के एक हवालात की है। इस तस्वीर में सीधी के पत्रकार कनिष्क तिवारी और कुछ रंगकर्मी शामिल है। पता नहीं पुलिस ने किस आरोप के तहत ऐसा किया है। पर जो भी आरोप है उसके तहत ऐसा करना कानूनन जुर्म है। अगर इन पर किसी तरह के कानून भंग करने का आरोप है तो उसका फैसला अदालत को करना चाहिए ना कि पुलिस को। मैं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से अनुरोध करूंगा कि जिस पुलिसकर्मी ने या जिस अधिकारी ने ऐसा किया है उसके खिलाफ अविलंब कानूनी कार्रवाई करें। मैं मध्य प्रदेश के पत्रकारों और रंग कर्मियों से भी अनुरोध करूंगा कि वह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर इसके बारे में बताएं और उन से अनुरोध करें कि इस सिलसिले में कार्रवाई करें। यह भी पता लगाना चाहिए और पुलिस ऐसा कर सकती है कि जिस व्यक्ति ने अपने मोबाइल से ये फोटो लिया है और इसे वायरल किया है उसकी भी पड़ताल करें और कानून के तहत उसके ऊपर भी मुकदमा दर्ज करें।

कमल शुक्ला कहते हैं कि सीधी में पत्रकारों के साथ हुए दुर्व्यवहार के खिलाफ मैं देशभर के पत्रकारों का आह्वान करता हूं कि सीधी पहुंचे, तिथि तय हो, और हम सब अपने कपड़े भी थाने में जमा करें, थाने और विधायक का घेराव करें। हिमांशु कुमार लिखते हैं 'मेरा कहना यह है कि पुलिस को पत्रकारों को नंगा करने का कौन सा अधिकार है। अगर कोई व्यक्ति फर्जी नाम से यूट्यूब चैनल चलाता भी है तो कोर्ट उसका फैसला करेगी और उसको सजा देगी। पुलिस को किसी को सजा देने का अधिकार कब से मिल गया कौन से कानून के अंतर्गत मिल गया? इस देश में कोई अदालत कोई कानून कोई संविधान बचा है या सिर्फ भाजपा की गुंडागर्दी बची है। विपक्षी पार्टियां कहां भांग पीकर सो रही हैं। पत्रकार संगठन क्या कर रहे हैं?

अतुल तिवारी आक्रोश में लिखते हैं कि चड्ढी_गैंग..? अरे न न न.. ये लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है जिसे अघोषित राजतंत्र ने नंगा कर बीच बाजार नुमाइश की है.. अर्ध नंगे खड़े ये सब के सब मध्यप्रदेश के पत्रकार बताए जा रहे हैं (सोशल मीडिया वायरल).. और इन पर आरोप है कि इन्होंने भाजपा नेताओं के खिलाफ खबरें चलाई हैं.. किसी राजनैतिक पार्टी या व्यक्ति के खिलाफ खबर चलाने पर कपड़े उतरवाकर खड़ा कर फोटो सोशल मीडिया पर वायरल करवाना.. राजतंत्र शानदार उदाहरण है.. सोच रहा हूँ बॉडी शॉडी बना लूं क्यों कि क्या पता कब ऐसे ही प्रदर्शन करवा दे प्रशासन..और हां, तेवर वाले पत्रकारों, छेद वाली चड्ढी तो गलती से भी न पहनना.. कुछ राजनैतिक @#$ बताते फिरते हैं कि देश बदल रहा है..वैसे बदल तो रहा है..! सिसकती_पत्रकारिता 

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