'द टेलीग्राफ' का पहला पन्ना
अखबार ने अमेरिकी राष्ट्रपति को अंग्रेजी में डेमोक्रेसीजीवी कहा है जो प्रधानमंत्री के शब्द आंदोलनजीवी से बना है। हिन्दी में यह 'लोकतंत्रजीवी' होगा। अखबार ने अपनी इस पहली खबर के जरिए बताया है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से फोन पर उनकी बातचीत का जो विवरण सरकारी तौर पर जारी किया गया उसमें असहज करने वाली उनकी बातों की चर्चा नहीं थी। अखबार ने इसे फ्लैग शीर्षक में बताया है और 'असहज शब्दों को छोड़ देने की कला' कहा है।
मुख्य शीर्षक हिन्दी में लिखा जाता तो, लोकतंत्रजीवी भारत को परेशान कर रहा है - हो सकता था। लेकिन इसमें परेशान करने के लिए स्पूकिंग शब्द का इस्तेमाल किया गया है। जाहिर है, इसकी जगह डराने या परेशान करने वाले दूसरे आसान व प्रचलित शब्दों का उपयोग नहीं किया गया है तो स्पूकिंग का कुछ खास मतलब है। मेरी समझ से यह भूत जैसा हो सकता है। यानी लोकतंत्रजीवी भारत को भूत की तरह डरा रहा है।
खबर में बताया गया है कि फोन पर बातचीत के बाद प्रधानमंत्री ने ट्वीट किया और फिर व्हाइट हाउस ने बयान जारी किया। अमेरिकी बयान में कहा गया था कि बातचीत में अमेरिकी राष्ट्रपति ने दुनिया भर में लोकतांत्रिक संस्थाओं और नियमों की रक्षा करने की अपनी इच्छा को रेखांकित किया और यह साझा किया कि लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति कटिबद्धता भारत अमेरिकी संबंध का मुख्य आधार है। बेशक, अगर उन्होंने कहा है तो यह मुख्य बात है लेकिन सरकारी विज्ञप्ति में इसका नहीं होना सामान्य नहीं है। अखबार ने बताया है कि इसे छोड़कर भारत ने किन बातों को महत्व दिया है।
अखबार के पहले पन्ने पर आज भी आधे से ज्यादा विज्ञापन है। इस एक खबर के अलावा अखबार ने एक बॉक्स में बताया है कि कल राज्य सभा में बोलते हुए प्रधानमंत्री का गला रुंध गया। इस खबर के साथ उसने पाठकों से पूछा है कि उसका कारण क्या रहा होगा और 12 विकल्प दिए हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि अखबार के अनुसार, ये वो कारण हैं जिनकी वजह से प्रधानमंत्री का गला रुंध सकता है। इसके बाद अखबार ने खुद ही बताया है कि कारण था, कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद का राज्यसभा से रिटायर होना। इस मौके पर उन्होंने बताया कि जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो आजाद कांग्रेस के मुख्यमंत्री थे।
मोदी ने देश को बताया कि कश्मीर में गुजरात के तीर्थयात्रियों के आतंकवादी हमले में मारे जाने की सूचना देते हुए रोए थे। और यही बताते हुए उनका गला रुंध गया। अखबार ने लिखा नहीं है पर मुझे याद आया कि गुजरात दंगे के समय केंद्र से भेजे गए सुरक्षा बलों को घंटों हवाई अड्डे पर इंतजार करवाया गया था। पर नहीं, गला रुंधने का संबंध इस तथ्य से है या आजाद की भलमनसाहत को ही याद कर उनका गला रुंध गया।
तीसरी खबर के शीर्षक में ही बताया गया है कि कल जिस समाचार पोर्टल, न्यूजक्लिक के दफ्तर पर ईडी ने छापा मारा उसपर अडानी ने मुकदमा कर रखा है। अखबार ने लिखा है कि ऐसा कुछ नहीं है जिससे लगे कि छापे का संबंध अवमानना के मुकदमे से है। चौथी खबर में बताया गया है कि यूजीसी से पैसे नहीं मिलने के कारण देश के कई विश्वविद्यालयों में शिक्षकों को वेतन देर से मिल रहा है।
अखबार में पहले पन्ने पर छपने वाला आज का 'कोट' कांग्रेस नेता अधीर चौधरी का बयान है। उन्होंने आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार के मातहत शक्तियों ने अपराधियों को लाल किले पर भेजा ताकि किसानों को बदनाम किया जा सके। कोट हिन्दी में कुछ इस तरह होता, अमित शाह जैसे मजबूत गृहमंत्री के रहते कैसे कुछ लोग लाल किला पहुंच सकते हैं वह भी 26 जनवरी को। हो सकता है आपको पहले पन्ने के लिहाज से ये खबरें कम लगें पर देखिए आपके अखबार आपको क्या सूचना दे रहे हैं और ये सूचनाएं अंदर के पन्ने पर भी हैं या नहीं।
अखबार ने अमेरिकी राष्ट्रपति को अंग्रेजी में डेमोक्रेसीजीवी कहा है जो प्रधानमंत्री के शब्द आंदोलनजीवी से बना है। हिन्दी में यह 'लोकतंत्रजीवी' होगा। अखबार ने अपनी इस पहली खबर के जरिए बताया है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से फोन पर उनकी बातचीत का जो विवरण सरकारी तौर पर जारी किया गया उसमें असहज करने वाली उनकी बातों की चर्चा नहीं थी। अखबार ने इसे फ्लैग शीर्षक में बताया है और 'असहज शब्दों को छोड़ देने की कला' कहा है।
मुख्य शीर्षक हिन्दी में लिखा जाता तो, लोकतंत्रजीवी भारत को परेशान कर रहा है - हो सकता था। लेकिन इसमें परेशान करने के लिए स्पूकिंग शब्द का इस्तेमाल किया गया है। जाहिर है, इसकी जगह डराने या परेशान करने वाले दूसरे आसान व प्रचलित शब्दों का उपयोग नहीं किया गया है तो स्पूकिंग का कुछ खास मतलब है। मेरी समझ से यह भूत जैसा हो सकता है। यानी लोकतंत्रजीवी भारत को भूत की तरह डरा रहा है।
खबर में बताया गया है कि फोन पर बातचीत के बाद प्रधानमंत्री ने ट्वीट किया और फिर व्हाइट हाउस ने बयान जारी किया। अमेरिकी बयान में कहा गया था कि बातचीत में अमेरिकी राष्ट्रपति ने दुनिया भर में लोकतांत्रिक संस्थाओं और नियमों की रक्षा करने की अपनी इच्छा को रेखांकित किया और यह साझा किया कि लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति कटिबद्धता भारत अमेरिकी संबंध का मुख्य आधार है। बेशक, अगर उन्होंने कहा है तो यह मुख्य बात है लेकिन सरकारी विज्ञप्ति में इसका नहीं होना सामान्य नहीं है। अखबार ने बताया है कि इसे छोड़कर भारत ने किन बातों को महत्व दिया है।
अखबार के पहले पन्ने पर आज भी आधे से ज्यादा विज्ञापन है। इस एक खबर के अलावा अखबार ने एक बॉक्स में बताया है कि कल राज्य सभा में बोलते हुए प्रधानमंत्री का गला रुंध गया। इस खबर के साथ उसने पाठकों से पूछा है कि उसका कारण क्या रहा होगा और 12 विकल्प दिए हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि अखबार के अनुसार, ये वो कारण हैं जिनकी वजह से प्रधानमंत्री का गला रुंध सकता है। इसके बाद अखबार ने खुद ही बताया है कि कारण था, कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद का राज्यसभा से रिटायर होना। इस मौके पर उन्होंने बताया कि जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो आजाद कांग्रेस के मुख्यमंत्री थे।
मोदी ने देश को बताया कि कश्मीर में गुजरात के तीर्थयात्रियों के आतंकवादी हमले में मारे जाने की सूचना देते हुए रोए थे। और यही बताते हुए उनका गला रुंध गया। अखबार ने लिखा नहीं है पर मुझे याद आया कि गुजरात दंगे के समय केंद्र से भेजे गए सुरक्षा बलों को घंटों हवाई अड्डे पर इंतजार करवाया गया था। पर नहीं, गला रुंधने का संबंध इस तथ्य से है या आजाद की भलमनसाहत को ही याद कर उनका गला रुंध गया।
तीसरी खबर के शीर्षक में ही बताया गया है कि कल जिस समाचार पोर्टल, न्यूजक्लिक के दफ्तर पर ईडी ने छापा मारा उसपर अडानी ने मुकदमा कर रखा है। अखबार ने लिखा है कि ऐसा कुछ नहीं है जिससे लगे कि छापे का संबंध अवमानना के मुकदमे से है। चौथी खबर में बताया गया है कि यूजीसी से पैसे नहीं मिलने के कारण देश के कई विश्वविद्यालयों में शिक्षकों को वेतन देर से मिल रहा है।
अखबार में पहले पन्ने पर छपने वाला आज का 'कोट' कांग्रेस नेता अधीर चौधरी का बयान है। उन्होंने आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार के मातहत शक्तियों ने अपराधियों को लाल किले पर भेजा ताकि किसानों को बदनाम किया जा सके। कोट हिन्दी में कुछ इस तरह होता, अमित शाह जैसे मजबूत गृहमंत्री के रहते कैसे कुछ लोग लाल किला पहुंच सकते हैं वह भी 26 जनवरी को। हो सकता है आपको पहले पन्ने के लिहाज से ये खबरें कम लगें पर देखिए आपके अखबार आपको क्या सूचना दे रहे हैं और ये सूचनाएं अंदर के पन्ने पर भी हैं या नहीं।