केंद्र (मोदी) सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ वाम संगठनों से जुड़े मज़दूर-किसान और खेत मज़दूर यूनियनों द्वारा सोमवार को साझे तौर से राष्ट्रीय अधिवेशन का आयोजन किया।
दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में हुए अधिवेशन को ‘मजदूर-किसान अधिकार महाधिवेशन’ का नाम दिया गया जिसमें मज़दूरों, किसानों और खेत मज़दूरों (मेहनतकशों) का, एक दूसरे के स्वतंत्र संघर्षों को हर संभव तरीके से समर्थन व एकजुटता प्रदान करते हुए, संयुक्त रूप से मजबूत प्रतिरोधात्मक कार्रवाई करने का आह्वान किया गया। यही नहीं, अगले साल 2023 में प्रस्तावित 'मज़दूर संघर्ष रैली 2.0' में मजदूरों, किसानों और खेतिहर मजदूरों की भारी लामबंदी करने का भी ऐलान किया गया।
5 सितंबर, 2018 को आयोजित ऐतिहासिक 'मजदूर किसान संघर्ष रैली' की चौथी वर्षगांठ पर दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में आयोजित महाधिवेशन में भावी कार्यक्रमों को लेकर रणनीति तैयार की गई। मज़दूर संगठन, सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीटू), किसान संगठन, अखिल भारतीय किसान सभा (एआईकेएस) और खेत मज़दूर संगठन, अखिल भारतीय खेत मज़दूर यूनियन (एआईएडब्ल्यूयू) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित इस महाधिवेशन में संसद के बजट सत्र 2023 के दौरान 'मज़दूर संघर्ष रैली 2.0' में मजदूरों, किसानों और खेतिहर मजदूरों की भारी लामबंदी करने का ऐलान किया। महाधिवेशन में जोर देकर कहा गया कि रैली के दिन राष्ट्रीय राजधानी, स्वतंत्र भारत के इतिहास में मेहनतकश वर्गों की अब तक की सबसे बड़ी लामबंदी की गवाह बनेगी। इस संयुक्त अधिवेशन ने सर्वसम्मति से अक्टूबर 2022 से फरवरी 2023 तक व्यापक संयुक्त अभियान चलाने का फैसला किया ताकि मजदूरों, किसानों और खेतिहर मजदूरों को नव उदारवादी नीति के हमलों के खिलाफ आक्रामक प्रत्यक्ष प्रतिरोध संघर्ष शुरू करने के लिए तैयार किया जा सके।
प्रेसीडियम में कॉमरेड के हेमलता, अध्यक्ष सीटू, कॉमरेड अशोक धवले, अध्यक्ष, एआईकेएस और कॉमरेड ए विजय राघबन, अध्यक्ष एआईएडब्ल्यूयू शामिल रहे। कॉमरेड तपन सेन, महासचिव सीटू, कॉमरेड हन्नानमोल्ला महासचिव एआईकेएस और कॉमरेड बी वेंकट, महासचिव, एआईएडब्ल्यूयू ने इन तीनों संगठनों की संयुक्त घोषणा का समर्थन करते हुए संयुक्त सम्मेलन को संबोधित किया। कॉमरेड देबाशीष बसु (BEFI), कॉमरेड अभिमन्यु (BSNLEU), कॉमरेड पाराशर (CCGEW), कॉमरेड श्रीकुमार (AISGEF), कॉमरेड भटनागर (AIIEA), कॉमरेड अमराराम, कॉमरेड प्रकाशन मास्टर, कॉमरेड डी रवींद्रन, एआईकेएस के कॉमरेड सुमित दलाल और सुनील अधिकारी और कॉमरेड ललिता बालन, कॉमरेड वेंकटेश्वरन, कॉमरेड अमिय पात्रा, कॉमरेड बृजलाल भारती और एआईएडब्ल्यूयू के कॉमरेड विक्रम सिंह ने संयुक्त सम्मेलन को संबोधित किया। बैंक, बीमा, बीएसएनएल, केंद्र और राज्य सरकार के कर्मचारी संघों और अन्य किसानों और कृषि संगठनों के नेताओं ने भी सम्मेलन को संबोधित किया।
मेहनतकश ही लगाएंगे बेलगाम सत्ता पर लगाम!
सीटू, एआईकेएस व एआईएडब्ल्यूयू के तपन सेन, हन्नान मोल्ला व बी वेंकट ने संयुक्त रूप से जारी बयान में कहा, "आज देश के पूंजीपति अटूट संपत्ति जमा कर रहे हैं जबकि दूसरी तरफ़ आम आदमी लगातार गरीब हो रहा है। सरकार आज़ादी का अमृतकाल मना रही हैं लेकिन दूसरी तरफ मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार पिछले 75 वर्षों के दौरान जो कुछ भी हम लोगों ने अपने श्रम के माध्यम से ईंट से ईंट जोड़कर जो थोड़ा-थोड़ा कर निर्माण किया है और अपने संघर्षों और बलिदानों के माध्यम से हासिल किया है, उसे नष्ट कर रही है।" यह न केवल ब्रिटिश उपनिवेशवाद से, बल्कि अपने वर्ग, जाति, पंथ, धर्म या लिंग के आधार पर सभी प्रकार के उत्पीड़न और भेदभाव से मुक्त भारत के हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के सपने को भी कुचल रहा है।'
कहा, "मजदूर किसान एक हो जाएगा तो कोई भी इन्हें हरा नहीं सकता है। यही देश का उत्पादक वर्ग है। ये एक हो जाए तो सरकार को इनकी बात माननी ही पड़ेगी। इसी एकता ने किसान कानूनों को वापस कराया है। इसी एकता के डर से लेबर कोड को नोटिफाई नहीं किया जा सका है जबकि लगातार निजीकरण पर सरकार को पीछे हटना पड़ा है।" सभी ट्रेड यूनियनों के सदस्यों की मांग है कि मोदी सरकार तत्काल श्रम संहिताओं को वापस ले। संगठनों ने चेतावनी दी है कि अगर सरकार चारों संहिताओं के कार्यान्वयन को आगे बढ़ती है तो वे विरोध कार्रवाई का सहारा लेंगे। वे कृषि कानूनों को वापस लेने की तरह ही लेबर कोड को वापस लेने की मांग कर रहे हैं।
हन्नान मोल्ला ने कहा, "मोदी सरकार में न केवल मेहनतकश वर्गों पर हमला बढ़ा है बल्कि सांप्रदायिक उन्माद, नफरत और हिंसा अपने चरम पर है"। उन्होंने कहा कि आज का संघर्ष न केवल हमारी आजीविका, रहन-सहन और काम की परिस्थितियों से जुड़ी तात्कालिक मांगों के लिए है बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए, हमारे समाज के धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक चरित्र को इस सांप्रदायिक और अधिनायकवादी भाजपा-आरएसएस शासन से बचाने के लिए भी है।
अखिल भारतीय किसान सभा अध्यक्ष डॉ. अशोक धवले ने कहा, 'हमें इस देश के मेहनतकश लोगों की बुनियादी मांगों के लिए लड़ना होगा, जैसे कि न्यूनतम मजदूरी 26,000 रुपये और सभी श्रमिकों को 10,000 रुपये की पेंशन सुनिश्चित करना, सभी कृषि उपज के लिए सी-2 + 50% के फॉर्मूले के साथ कानूनी रूप से एमएसपी सुनिश्चित करना, गारंटीकृत उपज खरीद के साथ चारों श्रम संहिताओं और बिजली संशोधन विधेयक 2020 को खत्म करने, मनरेगा के तहत शहरी क्षेत्रों में विस्तार करते हुए प्रतिदिन 600 रूपये की मजदूरी पर 200 कार्य दिवस प्रदान करने तथा गरीब और मध्यम किसानों और कृषि श्रमिकों को एकमुश्त ऋण माफी करना है।'
उन्होंने कहा कि 'संयुक्त अधिवेशन में सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण को रोकने, एनएमपी और अग्निपथ योजना को वापस लेने, मूल्य वृद्धि को रोकने तथा पीडीएस को मजबूत और सार्वभौमिक बनाने, सभी श्रमिकों के लिए 10,000 रुपये की पेंशन देने तथा सुपर रिच पर टैक्स लगाने की मांग भी उठाई गई।'
अपनी इन सभी मांगों को देश भर के मजदूरों, किसानों और खेतिहर मजदूरों तक पहुंचाने के लिए, तीनों संगठनों ने अपनी सभी इकाइयों से अक्टूबर 2022 से फरवरी 2023 तक पर्चे, पोस्टर, दीवार लेखन, समूह के वितरण के माध्यम से व्यापक अभियान चलाने का आह्वान किया है। अगले चार महीनों के दौरान स्थानीय मांगों सहित मुद्दों और मांगों पर बैठकें, जत्थे, जुलूस आदि निकालने का लक्ष्य रखा गया है। महाधिवेशन के अंत में देश के सभी प्रगतिशील, लोकतांत्रिक और देशभक्त लोगों से राष्ट्र और लोगों को बचाने के लिए इस राष्ट्रव्यापी अभियान और कार्यक्रमों के समर्थन में एकजुटता का आह्वान किया गया!
दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में हुए अधिवेशन को ‘मजदूर-किसान अधिकार महाधिवेशन’ का नाम दिया गया जिसमें मज़दूरों, किसानों और खेत मज़दूरों (मेहनतकशों) का, एक दूसरे के स्वतंत्र संघर्षों को हर संभव तरीके से समर्थन व एकजुटता प्रदान करते हुए, संयुक्त रूप से मजबूत प्रतिरोधात्मक कार्रवाई करने का आह्वान किया गया। यही नहीं, अगले साल 2023 में प्रस्तावित 'मज़दूर संघर्ष रैली 2.0' में मजदूरों, किसानों और खेतिहर मजदूरों की भारी लामबंदी करने का भी ऐलान किया गया।
5 सितंबर, 2018 को आयोजित ऐतिहासिक 'मजदूर किसान संघर्ष रैली' की चौथी वर्षगांठ पर दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में आयोजित महाधिवेशन में भावी कार्यक्रमों को लेकर रणनीति तैयार की गई। मज़दूर संगठन, सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीटू), किसान संगठन, अखिल भारतीय किसान सभा (एआईकेएस) और खेत मज़दूर संगठन, अखिल भारतीय खेत मज़दूर यूनियन (एआईएडब्ल्यूयू) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित इस महाधिवेशन में संसद के बजट सत्र 2023 के दौरान 'मज़दूर संघर्ष रैली 2.0' में मजदूरों, किसानों और खेतिहर मजदूरों की भारी लामबंदी करने का ऐलान किया। महाधिवेशन में जोर देकर कहा गया कि रैली के दिन राष्ट्रीय राजधानी, स्वतंत्र भारत के इतिहास में मेहनतकश वर्गों की अब तक की सबसे बड़ी लामबंदी की गवाह बनेगी। इस संयुक्त अधिवेशन ने सर्वसम्मति से अक्टूबर 2022 से फरवरी 2023 तक व्यापक संयुक्त अभियान चलाने का फैसला किया ताकि मजदूरों, किसानों और खेतिहर मजदूरों को नव उदारवादी नीति के हमलों के खिलाफ आक्रामक प्रत्यक्ष प्रतिरोध संघर्ष शुरू करने के लिए तैयार किया जा सके।
प्रेसीडियम में कॉमरेड के हेमलता, अध्यक्ष सीटू, कॉमरेड अशोक धवले, अध्यक्ष, एआईकेएस और कॉमरेड ए विजय राघबन, अध्यक्ष एआईएडब्ल्यूयू शामिल रहे। कॉमरेड तपन सेन, महासचिव सीटू, कॉमरेड हन्नानमोल्ला महासचिव एआईकेएस और कॉमरेड बी वेंकट, महासचिव, एआईएडब्ल्यूयू ने इन तीनों संगठनों की संयुक्त घोषणा का समर्थन करते हुए संयुक्त सम्मेलन को संबोधित किया। कॉमरेड देबाशीष बसु (BEFI), कॉमरेड अभिमन्यु (BSNLEU), कॉमरेड पाराशर (CCGEW), कॉमरेड श्रीकुमार (AISGEF), कॉमरेड भटनागर (AIIEA), कॉमरेड अमराराम, कॉमरेड प्रकाशन मास्टर, कॉमरेड डी रवींद्रन, एआईकेएस के कॉमरेड सुमित दलाल और सुनील अधिकारी और कॉमरेड ललिता बालन, कॉमरेड वेंकटेश्वरन, कॉमरेड अमिय पात्रा, कॉमरेड बृजलाल भारती और एआईएडब्ल्यूयू के कॉमरेड विक्रम सिंह ने संयुक्त सम्मेलन को संबोधित किया। बैंक, बीमा, बीएसएनएल, केंद्र और राज्य सरकार के कर्मचारी संघों और अन्य किसानों और कृषि संगठनों के नेताओं ने भी सम्मेलन को संबोधित किया।
मेहनतकश ही लगाएंगे बेलगाम सत्ता पर लगाम!
सीटू, एआईकेएस व एआईएडब्ल्यूयू के तपन सेन, हन्नान मोल्ला व बी वेंकट ने संयुक्त रूप से जारी बयान में कहा, "आज देश के पूंजीपति अटूट संपत्ति जमा कर रहे हैं जबकि दूसरी तरफ़ आम आदमी लगातार गरीब हो रहा है। सरकार आज़ादी का अमृतकाल मना रही हैं लेकिन दूसरी तरफ मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार पिछले 75 वर्षों के दौरान जो कुछ भी हम लोगों ने अपने श्रम के माध्यम से ईंट से ईंट जोड़कर जो थोड़ा-थोड़ा कर निर्माण किया है और अपने संघर्षों और बलिदानों के माध्यम से हासिल किया है, उसे नष्ट कर रही है।" यह न केवल ब्रिटिश उपनिवेशवाद से, बल्कि अपने वर्ग, जाति, पंथ, धर्म या लिंग के आधार पर सभी प्रकार के उत्पीड़न और भेदभाव से मुक्त भारत के हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के सपने को भी कुचल रहा है।'
कहा, "मजदूर किसान एक हो जाएगा तो कोई भी इन्हें हरा नहीं सकता है। यही देश का उत्पादक वर्ग है। ये एक हो जाए तो सरकार को इनकी बात माननी ही पड़ेगी। इसी एकता ने किसान कानूनों को वापस कराया है। इसी एकता के डर से लेबर कोड को नोटिफाई नहीं किया जा सका है जबकि लगातार निजीकरण पर सरकार को पीछे हटना पड़ा है।" सभी ट्रेड यूनियनों के सदस्यों की मांग है कि मोदी सरकार तत्काल श्रम संहिताओं को वापस ले। संगठनों ने चेतावनी दी है कि अगर सरकार चारों संहिताओं के कार्यान्वयन को आगे बढ़ती है तो वे विरोध कार्रवाई का सहारा लेंगे। वे कृषि कानूनों को वापस लेने की तरह ही लेबर कोड को वापस लेने की मांग कर रहे हैं।
हन्नान मोल्ला ने कहा, "मोदी सरकार में न केवल मेहनतकश वर्गों पर हमला बढ़ा है बल्कि सांप्रदायिक उन्माद, नफरत और हिंसा अपने चरम पर है"। उन्होंने कहा कि आज का संघर्ष न केवल हमारी आजीविका, रहन-सहन और काम की परिस्थितियों से जुड़ी तात्कालिक मांगों के लिए है बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए, हमारे समाज के धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक चरित्र को इस सांप्रदायिक और अधिनायकवादी भाजपा-आरएसएस शासन से बचाने के लिए भी है।
अखिल भारतीय किसान सभा अध्यक्ष डॉ. अशोक धवले ने कहा, 'हमें इस देश के मेहनतकश लोगों की बुनियादी मांगों के लिए लड़ना होगा, जैसे कि न्यूनतम मजदूरी 26,000 रुपये और सभी श्रमिकों को 10,000 रुपये की पेंशन सुनिश्चित करना, सभी कृषि उपज के लिए सी-2 + 50% के फॉर्मूले के साथ कानूनी रूप से एमएसपी सुनिश्चित करना, गारंटीकृत उपज खरीद के साथ चारों श्रम संहिताओं और बिजली संशोधन विधेयक 2020 को खत्म करने, मनरेगा के तहत शहरी क्षेत्रों में विस्तार करते हुए प्रतिदिन 600 रूपये की मजदूरी पर 200 कार्य दिवस प्रदान करने तथा गरीब और मध्यम किसानों और कृषि श्रमिकों को एकमुश्त ऋण माफी करना है।'
उन्होंने कहा कि 'संयुक्त अधिवेशन में सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण को रोकने, एनएमपी और अग्निपथ योजना को वापस लेने, मूल्य वृद्धि को रोकने तथा पीडीएस को मजबूत और सार्वभौमिक बनाने, सभी श्रमिकों के लिए 10,000 रुपये की पेंशन देने तथा सुपर रिच पर टैक्स लगाने की मांग भी उठाई गई।'
अपनी इन सभी मांगों को देश भर के मजदूरों, किसानों और खेतिहर मजदूरों तक पहुंचाने के लिए, तीनों संगठनों ने अपनी सभी इकाइयों से अक्टूबर 2022 से फरवरी 2023 तक पर्चे, पोस्टर, दीवार लेखन, समूह के वितरण के माध्यम से व्यापक अभियान चलाने का आह्वान किया है। अगले चार महीनों के दौरान स्थानीय मांगों सहित मुद्दों और मांगों पर बैठकें, जत्थे, जुलूस आदि निकालने का लक्ष्य रखा गया है। महाधिवेशन के अंत में देश के सभी प्रगतिशील, लोकतांत्रिक और देशभक्त लोगों से राष्ट्र और लोगों को बचाने के लिए इस राष्ट्रव्यापी अभियान और कार्यक्रमों के समर्थन में एकजुटता का आह्वान किया गया!