किसके लिए चल रहे हैं ये संस्कृत महाविद्यालय

Written by Mahendra Narayan Singh Yadav | Published on: July 31, 2018
राजस्थान ही नहीं, पूरे देश के तमाम स्थानों पर चलने वाले संस्कृत महाविद्यालय और विद्यापीठ एक जाति और विचारधारा विशेष को संरक्षण देने के अड्डे मात्र बन चुके हैं। इनमें पढ़ने वाले छात्रों की संख्या लगातार घटती जा रही है और खुद को संस्कृतप्रेमी कहने वाले लोग भी अपने बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाना पसंद करते हैं।

Cultural schools

संस्कृत के नाम पर सरकारें करोड़ों रुपए खर्च करती हैं, लेकिन उसका फायदा केवल गिने-चुने संस्कृत अध्यापकों और अधिकारियों को होता है। संस्कृत महाविद्यालयों में छात्र-छात्राओं की संख्या में गिरावट का मुख्य कारण रोजगार के अवसरों की कमी और उसमें आधुनिकता का अभाव है। वास्तव में संस्कृत भाषा ही देश में एक जाति के रोजगार का साधन बनी हुई है, और वे लोग भी अपनी अगली पीढ़ी को संस्कृत के फेर में नहीं फंसाना चाहते।

अब बात करें, अलवर जिले के संस्कृत महाविद्यालयों की। जिले में दो संस्कृत महाविद्यालय हैं, जिनमें से एक कोटकासिम में स्थित है, और दूसरा जिला मुख्यालय में। दोनों ही कॉलेजों में छात्रों की संख्या लगातार घटती जा रही है और हो सकता है, आने वाले सालों में इनमें एक भी छात्र न रह जाए।
फिलहाल जिला मुख्यालय के संस्कृत महाविद्यालय में केवल 50 छात्र बचे हैं, जबकि व्याख्याता पूरे हैं, लेकिन प्राचार्य का पद खाली है। शास्त्री प्रथम वर्ष में इस साल 40 सीटों पर मात्र 21 ही प्रवेश हुए हैं। पांच वर्ष पहले इस महाविद्यालय में छात्र-छात्राओं की संख्या 250 से ज्यादा थी।

इसी तरह से कोटकासिम का कलादेवी राजकीय संस्कृत महाविद्यालय है। इसमें गांवों से आने वाले छात्र ज्यादा पढ़ते हैं, लेकिन यहां पर पढ़ाने वाले अध्यापक ही नहीं हैं। पांच सालों से यहां स्टाफ की कमी चल रही है। व्याख्याताओं के तीन पद, खाली हैं, तो क्लर्क और पुस्तकालयाध्यक्ष जैसे पद खाली पड़े हैं।

कलादेवी संस्कृत महाविद्यालय में सीटों की संख्या तो 160 है, लेकिन प्रथम वर्ष में छात्र केवल 60 बचे हैं। पिछले दो सालों से छात्रों की संख्या में भारी गिरावट आई है।
 
 

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