तुमने अर्णब के बहाने भी कश्मीरी पत्रकारों पर कलम नहीं चलाई

Written by Uttam Kumar | Published on: April 29, 2020
अर्णब के खिलाफ विपक्ष और मुख्यधारा की मीडिया आसूं बहा रहा है। उनका न्यायालय, उनकी सरकार और उनकी पुलिस के सामने उनकी 12 घँटे की पूछताछ की कहानी को ग्लोरीफाई किया जा रहा है। कोई कहता वह अपने पेंट में पूछताछ के दौरान पेसाब कर दिया था। लेकिन अर्णब इन सब से परे जीत पर इठला रहा था। मेरे लिए अर्णब सत्ताधारी पार्टी का भाट और चारण के अलावा कुछ भी नहीं है। जब अर्णब प्रसिद्व मानवाधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज पर माओवादी होने का साजिश फ्रेम कर रहा था तब उस समय अर्णब विरोधी चुप थे।



अर्णब विरोधी गौरव गाथा से इतर क्या वे कश्मीर के उन बहादुर पत्रकारों का दर्द समझ पाएंगे जिनके ऊपर यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया है, जिन्हें इस कानून के तहत आतंकवादी घोषित किया जा सकता है। सात साल तक जेल में रखा जा सकता है और जिसकी जमानत अर्जी भी दाखिल नहीं हो सकती है। जबकि वे वाशिंगटन पोस्ट, अल जजीरा और द हिन्दू जैसे विश्वसनीय और नामचीन मीडिया के लिए काम कर रहे हैं। उनकी पत्रकारिता भारत के अन्य क्षेत्र में किये जा रहे पत्रकारिता से बहुत अलग है। कश्मीर के पत्रकार वास्तव में युद्धरत जमीन की पत्रकारिता कर रहे हैं।

आपको उन बहादुर पत्रकारों पर खबर बनानी चाहिये। मैं बात कर रहा हूं उन तीन पत्रकारों का, जिनके ऊपर यूएपीए लगाया गया है। कश्मीर की 26 साल की फोटोग्राफर जर्नलिस्ट मशरत जहरा की रिपोर्ट वाशिंगटन पोस्ट, अल जजीरा में प्रकाशित हो चुकी हैं। वे गेटी इमेजेज के लिए भी काम करती हैं। उनकी सभी रिपोर्ट कश्मीर के महिलाओं और बच्चों पर केंद्रित रहती है। वह महिलाओं पर सरकारी दमन को दुनिया के सामने लाती है। हिंसाग्रस्त क्षेत्र में जान हथेली पर रखकर काम पर जाती है। ट्विटर पर उन्होंने कुछ ही दिनों पहले अपनी ही खींची एक ऐसी महिला की तस्वीर डाली थी जिसके पति को सेना के जवानों ने आज से बीस साल पहले आतंकवादी समझ कर 18 गोलियां मार दी थीं । महिला को आज भी घबराहट के दौरे पड़ते हैं। उनकी एक और रिपोर्ट पहले आईं थीं जिसमें पुलवामा केमिस्ट की दुकान में 10 साल तक कि बच्चियां अवसाद की मेडिसिन लेने जाती है। जिनके पिता क्रॉसफायर या पैलेट गन के अटैक में मारे गए हैं। केमिस्ट के यह पूछने पर कि तुम यह दवाई कैसे खाती हो बच्ची कहती है, अलार्म लगा रखी है। वह केमिस्ट और उनकी माँ भी एंटीडिप्रेसेंट की दवाइयां खाते हैं। उनके दो भाई महीनों से लापता हैं। जिस बहादुरी से वह काम करती है उनसे पत्रकारिता सीखी जाती है।

द हिंदू' अखबार के श्रीनगर संवाददाता पीरजादा आशिक के खिलाफ़ भी यूएपीए लगाया गया है। पीरजादा के संबंध में पुलिस का दावा है कि उसे 19 अप्रैल को सूचना मिली कि शोपियां एनकाउंटर और उसके बाद के घटनाक्रमों पर पीरजादा आशिक नाम के पत्रकार ने द हिंदू अखबार में ‘फेक न्यूज' प्रकाशित किया था। एफआईआर में पुलिस ने दावा किया कि न्यूज में दी गई जानकारी तथ्यात्मक रूप से गलत है । इस खबर से लोगों के मन में डर बैठ सकता है। यह भी कहा गया कि खबर में पत्रकार ने जिला के अधिकारियों से इसकी पुष्टि नहीं कराई। जबकि उन्होंने समाचार से जुड़े सारे संबंधित लोगों से सम्पर्क किया था। उनका दावा है कि शोपियां के डीसी के आधिकारिक बयान के लिए एसएमएस, व्हाट्सऐप और ट्विटर से संपर्क किया था। उन्होंने हैरानी जताई कि उस खबर को फेक न्यूज करार दिया जा रहा है। यही नहीं आशिक कहते हैं इस एफआईआर में ना तो इनका और ना ही अखबार के नाम का कोई जिक्र है। पीरजादा कहते हैं आज सरकार चाहती है कश्मीर से वही छपे जो वो चाहती है। अगर आप ग्राउंड रिपोर्ट या परिवार से बात करके कोई स्टोरी करेंगे तो फिर आप पर मामला दर्ज कर लिया जाएगा। यानी सेन्सरशिप का सामना करना पड़ेगा। जब नामचीन अखबार और उनके पत्रकारों की यह हालत बाकी की कल्पना मात्र से सिहरन होती है।

सुप्रसिद्ध पत्रकार, लेखक और टीवी एक्सपर्ट गौहर गिलानी के ख़िलाफ़ भी यूएपीए क़ानून के तहत कार्रवाई की गई । पुलिस हैंडआउट में कहा गया कि उनके ख़िलाफ़ सोशल मीडिया पर ऐसे पोस्ट लिखने पर मामला दर्ज किया गया जो भड़काऊ और शांति-व्यवस्था के लिए ख़तरा थे, आरोप यह भी लगाया गया कि है कि उनकी सोशल मीडिया पोस्ट राष्ट्रीय एकता, अखंडता और भारत की सुरक्षा के लिए पूर्वाग्रह से प्रेरित हैं। पुलिस का कहना है गिलानी की गैर-क़ानूनी गतिविधियों और कश्मीर में आतंकवाद का महिमामंडन करने की वजह से प्रदेश की सुरक्षा के लिए ख़तरा पैदा हो सकता है। इस पर गिलानी कहते हैं कि वे कहने के लिए कुछ भी कह सकते हैं। यहां जो भी प्रशासन और सरकार से सवाल पूछता है तो ऐसे आरोप लगाए जाते हैं। एक पत्रकार लिखेगा नहीं तो क्या करेगा? ये हमला मुझ पर या मसरत पर नहीं है बल्कि पूरी पत्रकारिता पर हमला है। अगस्त के बाद से जिस तरह से तीन पूर्व मुख्यमंत्री के साथ साथ हजारों लोगों को जेल में डाल दिया गया हो उनसे आप क्या उम्मीद कर सकते हैं? उन्होंने कहा कि कश्मीर में पत्रकारिता में इस तरह के जोखिम उठाने ही है।

कश्मीर हाल वक्त में पूरी तरह से जेल में कैद है। किसी भी रूप से सत्ता समर्थकों ने और साफ साफ यह भी की अर्णब विरोधियों ने इन तीन पत्रकारों पर यूएपीए लगाये जाने पर अपनी कलम चलाई है? वे नहीं लिखेंगे क्योंकि ये कश्मीरी के पत्रकार हैं, और कश्मीर पर इनके मुँह में टुकड़े फेंकने वालों ने एक अक्षर भी लिखने से मना किया है। अखंड भारत में कश्मीर हमारा है, लेकिन कश्मीरी और कश्मीरी पत्रकार बिल्कुल भी हमारे नहीं हैं।

(लेखक मासिक पत्रिका दक्षिण कोशल के संपादक हैं।)

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