कमला दास और इस्लाम

Written by प्रमोद रंजन | Published on: July 3, 2023
भारत में इन दिनों हिंदू पोंगापंथ और प्रगतिशीलता के बीच जो वैचारिक संघर्ष जारी है, उसमें कमला दास की याद आना स्वाभाविक है। हम सब जानते हैं कि हिंदू पोंगापंथ को सत्ता का संरक्षण हासिल है। वे इस्लाम को अपने शत्रु के रूप में देखते हैं तथा उन्हें सबक सिखाना चाहते हैं। हालिया मामला समान नागरिक संहिता का है, जिसे पूरे देश पर थोपा जाना है।



समान नागरिक संहिता सिर्फ एक कानून का मसला नहीं है, बल्कि यह उस खतरनाक विचार से जुड़ा हुआ है, जिसमें मजबूत पक्ष अपने सौंदर्यबोध और सांस्कृतिक- नैतिक मूल्यों के हिसाब से  कमजोर पक्ष को जबरन ढालना चाहता है। 

ऐसा ही एक मामला था, 2022 के शुरुआती महीनों में कर्नाटक में उठा हिजाब विवाद। कर्नाटक के उडुपी कस्बे में मुस्लिम लड़कियों को उनके शिक्षण संस्थान में हिजाब पहनकर आने देने से रोक दिया गया। इसे लेकर देश भर में खूब हंगामा हुआ। जून, 2023 में कश्मीर के एक स्कूल द्वारा भी हिजाब पर प्रतिबंध लगाने की खबर आई है। वहां भी मुस्लिम छात्राएं स्कूल प्रशासन के इस फैसले का विरोध कर रही हैं।   प्रगतिशील पक्ष इसे धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला मानता है तो हिंदूवादी पक्ष राष्ट्रवाद के प्रसार की दिशा में उठा अनिवार्य कदम कहता है। 

इन मुद्दों पर कमला दास के विचारों को समझने से पहले उनके बारे में संक्षेप में जान लेना उचित होगा।

अंग्रेजी और मलयालम की लेखिका माधविकुट्टी उर्फ कमला दास  (31 मार्च, 1934 -31 मई, 2009) उपन्यासकार, कहानीकार और कवयित्री थीं। उन्हें ‘आधुनिक भारतीय अंग्रेजी कविता की जननी’ माना जाता है। साहित्य और विचार की दुनिया में उनका स्थान वैश्विक है। यही कारण है कि वर्ष 2018 में गूगल ने उन्हें सम्मान देने के लिए एक दिन के लिए अपना डूडल उनके नाम किया था। 1973 में प्रकाशित उनकी आत्मकथा ‘मेरी कहानी’  हिंदी की दुनिया में भी बहुचर्चित रही थी। 


Google Doodle on Kamala Das Honours ‘Mother of Modern Indian English Poetry.’” The Indian Express, 1 Feb. 2018, https://indianexpress.com/article/india/google-doodle-honours-the-mother....

कमला दास का जन्म केरल के एक संपन्न हिंदू परिवार में हुआ था। इस परिवार की एक साहित्यिक और प्रगतिशील पहचान भी थी। उनकी मां मलयालम की प्रतिष्ठित कवयित्री थीं और उनसे पहले की पीढ़ियों में भी परिवार में कई लेखक हो चुके थे। उनके परिवार में धार्मिक परंपराओं और कर्मकांड के लिए भी उतनी ही जगह थी, जितनी प्रगतिशीलता और साहित्य के लिए। उनकी आत्मकथा से भी उनकी धर्म-परायणता का पता लगता है। 

आत्मकथा में वे अपनी समलैंगिक इच्छाओं को सामने रखती हैं तथा अपनी यौनिकता के द्वंद्व से जुझती हुई पितृसत्ता के कटु विरोधी के रूप में सामने आती हैं। जिस समय उन्होंने आत्मकथा लिखी, उस समय उनकी उम्र 42 साल की थी। वर्ष 1999 में  68 साल की उम्र में उन्होंने इस्लाम कबूल कर लिया और कमला सुरैया बन गईं। उस समय वे और अधिक चर्चा में आई थीं।

बहरहाल, कमला दास ने धर्म परिवर्तन के बाद विभिन्न साक्षात्कारों में इस्लाम को लेकर जो बातें कही थीं, उन्हें मौजूद दौर में में देखा जाना प्रासंगिक है, चाहे हम उनसे असहमत ही क्यों न हों।

मसलन, हिजाब के बारे में कमला दास ने कहा था :

‘‘बुरक़े ने मुझे बहुत प्रभावित किया अर्थात वह लिबास जो मुसलमान औरतें आमतौर पर पहनती हैं। हक़ीक़त यह है कि बुरक़ा बड़ा ही ज़बरदस्त लिबास और असाधारण चीज़ है। यह औरत को मर्द की चुभती हुई नज़रों से सुरक्षित रखता है और एक ख़ास क़िस्म की सुरक्षा की भावना प्रदान करता है।” 

‘‘मैंने अब बाक़ायदा पर्दा अपना लिया है और ऐसा लगता है कि जैसे बुरक़ा बुलेटप्रूफ़ जैकेट है जिसमें औरत मर्दों की हवस भरी नज़रों से भी सुरक्षित रहती है और उनकी शरारतों से भी। इस्लाम ने नहीं, बल्कि सामाजिक अन्यायों ने औरतों के अधिकार छीन लिए हैं। इस्लाम तो औरतों के अधिकारों का सबसे बड़ा रक्षक है।’’  

कमला दास ने यह भी बताया कि बुरक़े के प्रति उनका आकर्षण नया नहीं है। बल्कि धर्मांतरण करने से चौबीस बर्ष पहले से ही वे बुरक़ा पहनती रही थीं।

एक साक्षात्कार में कमला ने कहा था कि :

“मैं पिछले चौबीस वर्षों से समय-समय पर बुरक़ा ओढ़ रही हूँ, शॉपिंग के लिए जाते हुए, सांस्कृतिक समारोहों में भाग लेते हुए, यहां तक कि विदेशों की यात्राओं में भी अक्सर बुरक़ा पहन लिया करती थी और एक ख़ास क़िस्म की सुरक्षा की भावना से आनन्दित होती थी। मैंने देखा कि पर्देदार औरतों का आदर-सम्मान किया जाता है और कोई उन्हें अकारण परेशान नहीं करता।’’ 
 
भारत में एक और विवाद, मई, 2023 में उस समय शुरु हुआ, जब ‘द केरला स्टोरी’ फिल्म का ट्रेलर जारी हुआ। इस फिल्म में दिखाया गया है कि एक विदेशी साजिश के तहत केरल में हिंदू लड़कियों को ‘लव जेहाद’ में फंसा कर उनका धर्मांतरण किया जा रहा है। 

इस विवाद से भी कमला दास का मामला सीधे तौर पर जुड़ता है। उन्होंने 1999 में इस्लाम कबूल किया था। वे भी उसी केरल में पैदा हुईं थी, जो इस फिल्म की पृष्ठभूमि में है। हालांकि उस समय तक ‘लव जिहाद’ जैसी अवधारणा प्रचलन में नहीं आई थी।

लेकिन उस समय भी संघ परिवार के लोगों ने कमला को फोन पर धमकियां दी थीं। उनका आरोप था कि उन्होंने धर्मांतरण कर हिंदू धर्म को अपमानित किया है।  कमला दास ने अपने जीवन में उन आरोपों का खंडन किया था कि उन्होंने किसी के दबाव में धर्मांतरण किया है। 

कमला दास की मृत्यु 2009 में 75 वर्ष की अवस्था में हुई। उनकी मृत्यु के बाद हिंदूवादी ताकतों ने जोर-शोर से फैलाना शुरू किया कि कमला दास को मुस्लिम लीग के एक नेता अब्दुस्समद समदानी ने प्यार का झांसा देकर इस्लाम की ओर धकेल दिया था और यह सब कुछ एक अंतरराष्ट्रीय साजिश का हिस्सा था।  इन आरोपों का  उत्तर देने के लिए वे मौजूद नहीं थीं। अब्दुस्समद समदानी स्वयं भी लेखक हैं और जिस समय कमला दास ने धर्मांतरण किया था, उस समय वे राज्यसभा के सदस्य थे। अभी वे केरल के मलप्पुरम निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा के सदस्य हैं। अब्दुस्समद समदानी ने कमला दास से अपने संबंधों को याद करते हुए बताया है कि उनका रिश्ता मां-बेटे जैसा था। कमला दास ने उन्हें अपनी जितनी किताब भेंट की हैं, उन सभी को उन्होंने ‘तुम्हारी मां’ लिखकर हस्ताक्षिरत किया है। 2016 में केरल मूल की तेजतर्रार पत्रकार मीनू इत्यीपी ने इस संबंध में एक पड़ताल की, जो आऊटलुक (अंग्रेजी) में प्रकाशित हुई थी। इस पड़ताल से  सामने आया कि न सिर्फ ये अफवाहें झूठी थीं, बल्कि इसने फैलाने में भारतीय जनता पार्टी से जुड़े मलयाली अखबार 'जन्मभूमि' की प्रधान संपादक लीला मेनन की मुख्य भूमिका थी।  

कमला दास दबाव में इस्लाम कबूल करने के आरोपों पर कहा था :
‘‘दुनिया सुन ले कि मैंने इस्लाम क़बूल कर लिया है,  इस्लाम जो मुहब्बत, अमन और शान्ति का दीन है, इस्लाम जो सम्पूर्ण जीवन-व्यवस्था है, और मैंने यह फै़सला भावुकता या सामयिक आधारों पर नहीं किया है, इसके लिए मैंने एक अवधि तक बड़ी गंभीरता और ध्यानपूर्वक गहन अध्ययन किया है और मैं अंत में इस नतीजे पर पहुंची हूँ कि अन्य असंख्य ख़ूबियों के अतिरिक्त इस्लाम औरत को सुरक्षा का एहसास प्रदान करता है और मैं इसकी बड़ी ही ज़रूरत महसूस करती थी, इसका एक अत्यंत उज्ज्वल पक्ष यह भी है कि अब मुझे अनगिनत ख़ुदाओं के बजाय एक और केवल एक ख़ुदा की उपासना करनी होगी।” 

उन्होंने यह भी कहा कि : 
‘‘मैंने किसी दवाब में आकर इस्लाम क़बूल नहीं किया है, यह मेरा स्वतंत्र फै़सला है और मैं इस पर किसी आलोचना की कोई परवाह नहीं करती।... इस्लाम क़बूल करने के बाद मुझे जो इत्मीनान और सुकून हासिल हुआ है और ख़ुशी की जिस कैफ़ियत से मैं अवगत हुई हूं, उसे बयान करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। इसके साथ ही मुझे सुरक्षा का एहसास भी प्राप्त हुआ है। मैं बड़ी उम्र की एक औरत हूं और सच्ची बात यह है कि इस्लाम क़बूल करने से पहले जीवन भर बेख़ौफ़ी का ऐसा ख़ास अंदाज़ मेरे तजुर्बे में नहीं आया। सुकून, इत्मीनान, ख़ुशी और बेख़ौफ़ी की यह नेमत धन-दौलत से हरगिज़ नहीं मिल सकती। इसीलिए दौलत मेरी नज़रों में तुच्छ हो गयी है।’’ 

कमला दास का कहना था कि :
‘‘इस्लाम ने औरतों को विभिन्न पहलुओं से बहुत-सी आज़ादियां दे रखी हैं, बल्कि जहां तक बराबरी की बात है इतिहास के किसी युग में दुनिया के किसी समाज ने मर्द और औरत की बराबरी का वह एहतिमाम नहीं किया जो इस्लाम ने किया है। इसको मर्दों के बराबर अधिकारों से नवाज़ा गया है। मां, बहन, बीवी और बेटी अर्थात इसका हर रिश्ता गरिमापूर्ण और सम्मानीय है। इसको बाप, पति और बेटों की जायदाद में भागीदार बनाया गया है और घर में वह पति की  प्रतिनिधि और कार्यवाहिका है।” 

2016 में मलयालम सिनेमा के चर्चित निर्देशक कमालुद्दीन मोहम्मद मजीद, जिन्हें कमल नाम से जाना जाता है, ने कमला दास के जीवन पर फिल्म बनानी शुरु की थी। उन्होंने फिल्म में कमला दास के किरदार के लिए हिंदी फिल्म अभिनेत्री विद्या बालन के साथ अनुबंध किया था। विद्या बालन इस फिल्म को लेकर उत्साहित थीं और उन्होंने इसे लेकर ट्वीट भी किया था। लेकिन हिंदूवादी ताकतों ने हंगामा करना शुरू किया कि यह फिल्म ‘लव जेहाद’ का समर्थन करने के लिए बनाई जा रही है। इसके बाद विद्या बालन ने यह फिल्म करने से इंकार कर दिया था।  बाद में इस फिल्म में कमला दास का किरदार बाद में मलयालम सिनेमा की अभिनेत्री मंजू वारियार ने निभाया। आऊलुक में प्रकाशित उस रिपोर्ट में, जिसका जिक्र ऊपर किया गया है, मीनू इत्यीपी ने यह भी लक्षित किया था कि कमला दास को लेकर 2016 में अफवाहों के अचानक तेजी से फैलने कारण संभवत: कमला दास के जीवन पर बनने जा रही यह फिल्म थी। 

एक वकील ने इस फिल्म का प्रसारण रोकने के लिए केरल हाईकोर्ट में याचिका लगाई, जिसमें दावा किया गया कि “माधविकुट्टी (कमला दास) का इस्लाम में धर्मांतरण केरल में लव जिहाद की शुरुआत थी।”   लेकिन कोर्ट  ने फिल्म पर रोक लगाने से इंकार कर दिया। 2018 में यह फिल्म रिलीज हुई, जिसे फिल्म फेयर समेत अनेक पुरस्कारों से नवाजा गया।

जैसा कि मैंने पहले कहा हिजाब, बुर्का और इस्लाम से संबंधित कमला दास की स्थापनाओं से सभी सहमत नहीं होंगे। लेकिन इतिहास के ये प्रसंग बताते हैं कि परंपरा-परिपाटी, धर्म-संस्कृति के मसले उतने एकरेखीय नहीं होते हैं जितना कि इन दिनों प्रचारित किए जा रहे हैं। इनकी जटिलताओं को संपूर्णता में ही समझने की कोशिश करनी चाहिए। 

(प्रमोद रंजन असम विश्वविद्यालय में हिंदी के सहायक-प्रोफेसर हैं)

बाकी ख़बरें