घाटी में लक्षित हत्याओं के बाद कश्मीरी पंडित कर्मचारी जम्मू में 204 दिनों से अधिक समय से विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन अब तक इसका कोई हल नहीं निकला है।
फ़ोटो साभार: पीटीआई
श्रीनगर: गोवा में भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव (आईएफ़एफ़आई) के जूरी प्रमुख द्वारा हाल ही में एक फ़िल्म की आलोचना ने जम्मू शहर में कश्मीरी पंडित समुदाय के विरोध करने वाले सरकारी कर्मचारियों के बीच चिंताओं को फिर से बढ़ा दिया है।
इस समुदाय द्वारा किया जा रहा विरोध-प्रदर्शन गुरुवार को 204 दिन पूरा कर लिया। इसको लेकर सोशल मीडिया पर लोग मुखर हैं। वे कश्मीर घाटी से बाहर स्थानांतरित करने की मांग करने वाले सरकारी कर्मचारियों के मुद्दे उठा रहे है।
ये विरोध प्रदर्शन इस साल मई में तब शुरू हुआ था जब एक राजस्व अधिकारी राहुल भट को उनके कार्यालय के अंदर संदिग्ध आतंकियों द्वारा मार दिया गया था। इस घटना से अल्पसंख्यक समुदाय के बीच भय का माहौल पैदा बन गया है। 2010 से भर्ती और घाटी में तैनात केपी कर्मचारी हड़ताल पर हैं और तब से वे कार्यालय में नहीं आ रहे हैं।
फ़िल्म निर्माता और दक्षिणपंथी कार्यकर्ता अशोक पंडित ने बुधवार को कश्मीरी पंडित कर्मचारियों के स्थानांतरण की मांग की वकालत करते हुए प्रदर्शनकारियों का समर्थन किया। उन्होंने फ़िल्म द कश्मीर फ़ाइल्स को प्रख्यात फ़िल्म निर्देशक इजरायली जूरी के प्रमुख नादव लापिड द्वारा प्रोपगैंडा फ़िल्म बताए जाने पर निशाना साधा।
पंडित ने संवाददाताओं से कहा, "हम अपने समुदाय को आतंकियों के निशाने पर नहीं रख सकते। हम और हत्याएं नहीं चाहते। हमें उम्मीद है कि अधिकारी हमारी समस्या का समाधान निकालने और उन्हें स्थानांतरित करने के लिए क़दम उठाएंगे।"
लापिड ने गुरुवार को पीटीआई को बताया कि जूरी प्रमुख के रूप में उनकी टिप्पणी का "ग़लत अर्थ" निकाला गया था।
उन्होंने कहा कि, "मेरे मन में त्रासदी, पीड़ितों और जो कोई भी वहां पीड़ित है, उनके लिए बहुत सम्मान है। यह (मेरी टिप्पणी) इस बारे में बिल्कुल नहीं थी। मैं इन शब्दों को हज़ारों-हज़ार बार दोहराऊंगा अगर मुझे यह कहना पड़े कि मैं राजनीतिक मुद्दे, ऐतिहासिक समीकरण या कश्मीर में हुई त्रासदी के अपमान के बारे में बात नहीं कर रहा था।" उन्होंने आगे कहा कि, "मैं फ़िल्म के बारे में बात कर रहा था और इस तरह के गंभीर विषय मेरी राय में एक गंभीर फ़िल्म के लायक हैं...।"
इसकी रिलीज के बाद इस फ़िल्म को नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और कई अन्य क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ने उत्तेजक "सांप्रदायिक" बताया है।
पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती ने ट्वीट किया, “आख़िरकार, किसी ने एक ऐसी फ़िल्म का नाम लिया जो और कुछ नहीं बल्कि सत्ताधारी पार्टी द्वारा मुसलमानों विशेष रूप से कश्मीरियों को राक्षसी बनाने और पंडितों और मुसलमानों के बीच की खाई को चौड़ा करने के लिए प्रचारित किया गया प्रोपागैंडा था। दुख की बात है कि अब सच को चुप कराने के लिए कूटनीतिक माध्यमों का इस्तेमाल किया जा रहा है।”
कश्मीरी पंडित प्रवासी कर्मचारियों ने लक्षित हत्याओं के 200 दिनों के विरोध-प्रदर्शन के बाद पिछले सप्ताह जम्मू में पैदल मार्च निकाला था। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक़, जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35ए को हटाए जाने के बाद पांच कश्मीरी पंडितों सहित 118 से अधिक नागरिक मारे गए हैं।
इस वर्ष, 20 से अधिक लोगों की लक्षित हत्या की गई और कई घायल हुए। इनमें कम से कम दो कश्मीरी पंडित शामिल थे। इसके बाद प्रधानमंत्री राहत और पुनर्वास योजना के तहत नौकरी पाने वाले कर्मचारियों ने विरोध प्रदर्शन शुरू किया।
एक प्रदर्शनकारी ने कह, “हम 204 दिनों से विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। डर इतना है कि हम जम्मू आ गए। हमारी एकमात्र मांग यह है कि हमें कश्मीर से बाहर स्थानांतरित किया जाना चाहिए। हमारी समस्या का समाधान कश्मीर के भीतर नहीं बल्कि बाहर है। मेरा मानना है कि इसके अलावा कोई दूसरा हल नहीं है।”
विरोध-प्रदर्शन के दौरान पीएम पैकेज कर्मचारी संघ ने नारेबाज़ी की और उनकी मांगों की अनदेखी करने के लिए प्रशासन की आलोचना की। एक प्रदर्शनकारी ने न्यूज़क्लिक को बताया कि कर्मचारी हर समय "चिंताओं" में नहीं रह सकते हैं और इस डर में काम नहीं कर सकते हैं।
कई लोगों ने इस क्षेत्र में कश्मीरी हिंदू अल्पसंख्यकों के सामने आने वाली समस्याओं को "ग़लत तरीके से निपटाने" के लिए प्रशासन की कड़ी आलोचना की। विरोध-प्रदर्शन करने वाले कर्मचारियों को समर्थन मिलने की कमी के बीच इस समुदाय के कुछ सदस्यों ने द कश्मीर फ़ाइल्स के लिए ऑनलाइन समर्थन को "बेकार" बताया है।
लेखक सिद्धार्थ गिगू ने ट्वीट किया, “कश्मीर फ़ाइल्स पर जूरी के एक सदस्य के बयान ने हज़ारों लोगों को चौंका दिया है। वे अब कश्मीरी पंडित की भावनाओं को आहत करने के लिए उनसे माफ़ी की मांग कर रहे हैं। आप पिछले 6 महीनों से कहां हैं जबसे जम्मू में 100 कश्मीरी पंडित विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं, सरकार से उनकी बात पर ध्यान देने की बात कर रहे हैं। उनका वेतन रोक दिया गया है।”
इस बीच, जम्मू में जिस स्थान विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं वहीं पूर्व मंत्री और डोगरा स्वाभिमान संगठन पार्टी के अध्यक्ष चौधरी लाल सिंह ने प्रशासन में "जवाबदेही की कमी" के लिए अधिकारियों की निंदा की।
सिंह ने पार्टी के बयान में कहा, “जम्मू को राजनीतिक सशक्तिकरण का वादा करने वाली पार्टी ने सचमुच इसे पूरी अराजकता, भ्रष्टाचार और चारों ओर डर के माहौल में छोड़ दिया है। इतना ही नहीं जनता को जनता की सरकार से ही वंचित कर दिया गया है। भारत का संविधान लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार को मान्यता देता है। विभिन्न प्रशासनिक इकाइयों के कामकाज को करने के लिए खुले तौर पर अवज्ञा की जा रही है।”
Courtesy: Newsclick
फ़ोटो साभार: पीटीआई
श्रीनगर: गोवा में भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव (आईएफ़एफ़आई) के जूरी प्रमुख द्वारा हाल ही में एक फ़िल्म की आलोचना ने जम्मू शहर में कश्मीरी पंडित समुदाय के विरोध करने वाले सरकारी कर्मचारियों के बीच चिंताओं को फिर से बढ़ा दिया है।
इस समुदाय द्वारा किया जा रहा विरोध-प्रदर्शन गुरुवार को 204 दिन पूरा कर लिया। इसको लेकर सोशल मीडिया पर लोग मुखर हैं। वे कश्मीर घाटी से बाहर स्थानांतरित करने की मांग करने वाले सरकारी कर्मचारियों के मुद्दे उठा रहे है।
ये विरोध प्रदर्शन इस साल मई में तब शुरू हुआ था जब एक राजस्व अधिकारी राहुल भट को उनके कार्यालय के अंदर संदिग्ध आतंकियों द्वारा मार दिया गया था। इस घटना से अल्पसंख्यक समुदाय के बीच भय का माहौल पैदा बन गया है। 2010 से भर्ती और घाटी में तैनात केपी कर्मचारी हड़ताल पर हैं और तब से वे कार्यालय में नहीं आ रहे हैं।
फ़िल्म निर्माता और दक्षिणपंथी कार्यकर्ता अशोक पंडित ने बुधवार को कश्मीरी पंडित कर्मचारियों के स्थानांतरण की मांग की वकालत करते हुए प्रदर्शनकारियों का समर्थन किया। उन्होंने फ़िल्म द कश्मीर फ़ाइल्स को प्रख्यात फ़िल्म निर्देशक इजरायली जूरी के प्रमुख नादव लापिड द्वारा प्रोपगैंडा फ़िल्म बताए जाने पर निशाना साधा।
पंडित ने संवाददाताओं से कहा, "हम अपने समुदाय को आतंकियों के निशाने पर नहीं रख सकते। हम और हत्याएं नहीं चाहते। हमें उम्मीद है कि अधिकारी हमारी समस्या का समाधान निकालने और उन्हें स्थानांतरित करने के लिए क़दम उठाएंगे।"
लापिड ने गुरुवार को पीटीआई को बताया कि जूरी प्रमुख के रूप में उनकी टिप्पणी का "ग़लत अर्थ" निकाला गया था।
उन्होंने कहा कि, "मेरे मन में त्रासदी, पीड़ितों और जो कोई भी वहां पीड़ित है, उनके लिए बहुत सम्मान है। यह (मेरी टिप्पणी) इस बारे में बिल्कुल नहीं थी। मैं इन शब्दों को हज़ारों-हज़ार बार दोहराऊंगा अगर मुझे यह कहना पड़े कि मैं राजनीतिक मुद्दे, ऐतिहासिक समीकरण या कश्मीर में हुई त्रासदी के अपमान के बारे में बात नहीं कर रहा था।" उन्होंने आगे कहा कि, "मैं फ़िल्म के बारे में बात कर रहा था और इस तरह के गंभीर विषय मेरी राय में एक गंभीर फ़िल्म के लायक हैं...।"
इसकी रिलीज के बाद इस फ़िल्म को नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और कई अन्य क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ने उत्तेजक "सांप्रदायिक" बताया है।
पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती ने ट्वीट किया, “आख़िरकार, किसी ने एक ऐसी फ़िल्म का नाम लिया जो और कुछ नहीं बल्कि सत्ताधारी पार्टी द्वारा मुसलमानों विशेष रूप से कश्मीरियों को राक्षसी बनाने और पंडितों और मुसलमानों के बीच की खाई को चौड़ा करने के लिए प्रचारित किया गया प्रोपागैंडा था। दुख की बात है कि अब सच को चुप कराने के लिए कूटनीतिक माध्यमों का इस्तेमाल किया जा रहा है।”
कश्मीरी पंडित प्रवासी कर्मचारियों ने लक्षित हत्याओं के 200 दिनों के विरोध-प्रदर्शन के बाद पिछले सप्ताह जम्मू में पैदल मार्च निकाला था। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक़, जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35ए को हटाए जाने के बाद पांच कश्मीरी पंडितों सहित 118 से अधिक नागरिक मारे गए हैं।
इस वर्ष, 20 से अधिक लोगों की लक्षित हत्या की गई और कई घायल हुए। इनमें कम से कम दो कश्मीरी पंडित शामिल थे। इसके बाद प्रधानमंत्री राहत और पुनर्वास योजना के तहत नौकरी पाने वाले कर्मचारियों ने विरोध प्रदर्शन शुरू किया।
एक प्रदर्शनकारी ने कह, “हम 204 दिनों से विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। डर इतना है कि हम जम्मू आ गए। हमारी एकमात्र मांग यह है कि हमें कश्मीर से बाहर स्थानांतरित किया जाना चाहिए। हमारी समस्या का समाधान कश्मीर के भीतर नहीं बल्कि बाहर है। मेरा मानना है कि इसके अलावा कोई दूसरा हल नहीं है।”
विरोध-प्रदर्शन के दौरान पीएम पैकेज कर्मचारी संघ ने नारेबाज़ी की और उनकी मांगों की अनदेखी करने के लिए प्रशासन की आलोचना की। एक प्रदर्शनकारी ने न्यूज़क्लिक को बताया कि कर्मचारी हर समय "चिंताओं" में नहीं रह सकते हैं और इस डर में काम नहीं कर सकते हैं।
कई लोगों ने इस क्षेत्र में कश्मीरी हिंदू अल्पसंख्यकों के सामने आने वाली समस्याओं को "ग़लत तरीके से निपटाने" के लिए प्रशासन की कड़ी आलोचना की। विरोध-प्रदर्शन करने वाले कर्मचारियों को समर्थन मिलने की कमी के बीच इस समुदाय के कुछ सदस्यों ने द कश्मीर फ़ाइल्स के लिए ऑनलाइन समर्थन को "बेकार" बताया है।
लेखक सिद्धार्थ गिगू ने ट्वीट किया, “कश्मीर फ़ाइल्स पर जूरी के एक सदस्य के बयान ने हज़ारों लोगों को चौंका दिया है। वे अब कश्मीरी पंडित की भावनाओं को आहत करने के लिए उनसे माफ़ी की मांग कर रहे हैं। आप पिछले 6 महीनों से कहां हैं जबसे जम्मू में 100 कश्मीरी पंडित विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं, सरकार से उनकी बात पर ध्यान देने की बात कर रहे हैं। उनका वेतन रोक दिया गया है।”
इस बीच, जम्मू में जिस स्थान विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं वहीं पूर्व मंत्री और डोगरा स्वाभिमान संगठन पार्टी के अध्यक्ष चौधरी लाल सिंह ने प्रशासन में "जवाबदेही की कमी" के लिए अधिकारियों की निंदा की।
सिंह ने पार्टी के बयान में कहा, “जम्मू को राजनीतिक सशक्तिकरण का वादा करने वाली पार्टी ने सचमुच इसे पूरी अराजकता, भ्रष्टाचार और चारों ओर डर के माहौल में छोड़ दिया है। इतना ही नहीं जनता को जनता की सरकार से ही वंचित कर दिया गया है। भारत का संविधान लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार को मान्यता देता है। विभिन्न प्रशासनिक इकाइयों के कामकाज को करने के लिए खुले तौर पर अवज्ञा की जा रही है।”
Courtesy: Newsclick