झारखंड में भूख से 45 वर्षीय व्यक्ति की मौत

Written by Sabrangindia Staff | Published on: March 11, 2020
बोकारो: झारखंड के बोकारो में एक 42 साल के शख्स की कथित तौर पर खाना न मिलने से मौत हो गई। मृतक का नाम भूखल घासी था। भूखल के परिवार का दावा है कि उनके घर में कई दिनों से खाना नहीं था। खाना न मिलने पर भूखल की मौत हो गई। वहीं इसके उलट बोकारो प्रशासन कुछ और ही दावे कर रहा है। प्रशासन का कहना है कि भूखल की मौत भूख से नहीं बल्कि बीमारी से हुई है। वह कई महीनों से बीमार था।



भूखल घासी के परिवार के पास न ही राशन कार्ड था और न ही आयुष्मान कार्ड। मृतक की पत्नी रेखा देवी ने बताया कि पिछले कई दिनों से उनके घर में खाने के लिए कुछ नहीं था। पत्नी के दावे को गलत बताते हुए बोकारो जिले के आयुक्त मुकेश कुमार ने कहा, 'भूखल रक्तहीनता से पीड़ित था और डॉक्टरों की निगरानी में था। वो बेंगलुरु में काम करता था और बीमार पड़ने के बाद 6 महीने पहले ही यहां लौटा था। भूखल की मौत बीमारी से हुई है।'

उन्होंने आगे कहा, 'भूखल का पूरा परिवार रक्तहीनता की बीमारी से ग्रसित है। बीडीओ को निर्देश दिए गए हैं कि उसके परिवार को तत्काल विधवाओं के लिए भीमराव अंबेडकर आवास योजना के तहत लाभ दिए जाएं। उसकी पत्नी भी गंभीर रूप से बीमार है। सरकारी फंड से उनका इलाज किया जाएगा। पूरे परिवार का इलाज कराया जाएगा।'

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए ट्विटर के जरिए अधिकारियों को पीड़ित परिवार की मदद के निर्देश दिए हैं। मुख्यमंत्री के ट्वीट के बाद अधिकारी हरकत में आए और जिले के डिप्टी कमिश्नर अपनी टीम के साथ भूखल घासी के गांव पहुंचे।

इस मामले पर जनज्वार पर छपी ग्राउंड रिपोर्ट की बात की जाए तो झारखंड के बोकारो जिला मुख्यालय से लगभग 50 किमी दूर है कसमार प्रखंड अंतर्गत सिंहपुर पंचायत का करमा शंकरडीह टोला। अगल-बगल में बसे इस दो टोले में लगभग 35 घर दलितों के हैं। लगभग भूमिहीन इन दलितों के पास रोजगार का कोई स्थायी साधन न होने के कारण बरसात को छोड़कर दूसरे अन्य मौसम में ये लोग रोजगार के लिए देश के अन्य राज्यों मेंं पलायन करने को मजबूर होते हैं। जहां बरसात में ये लोग गांव के आस-पास के अन्य किसानों के खेतों में मजदूरी करते हैं, वहीं अन्य मौसम में हाथ-आरी से लकड़ी चीरने का काम, मिट्टी काटने का काम तथा आस-पास के क्षेत्रों में मकान निर्माण में दैनिक मजदूरी का काम करते हैं, वहीं कुछ लोग अन्य राज्यों में पलायन कर जाते हैं।

भूखल घासी उर्फ लुधू घासी (42 वर्ष) भी एक साल पहले तक बैंगलोर में काम करता था। एक साल पहले उसके मां-पिता का एक सप्ताह के अंतराल में देहांत हो गया। वह बैंगलोर से घर आया। सामाजिक रीति-रिवाज के अनुसार उसे ही मुखाग्नि देनी पड़ी। जब वह बैंगलौर से लौटकर आया था तब उसकी तबियत ठीक नहीं थी। सामाजिक रीति रिवाज के चक्कर में उसे रोज नहाने और बिना वस्त्र के रहने के कारण उसकी तबियत और बिगड़ती चली गई।

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