कितना प्रभावी होगा हाथी-पंजे का साथ

Written by जावेद अनीस | Published on: September 23, 2018
मध्यप्रदेश में कांग्रेस इस बार वापसी के इरादे से विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी करती हुई दिखाई पड़ रही है, सूबे में पार्टी सभी बड़े नेताओं के जिम्मेदारी तय कर दी गयी है लेकिन शिवराज के मुकाबले पार्टी की तरफ से किसी को चेहरा धोषित नहीं किया गया है. 



लम्बे समय के बाद पार्टी की कमान एक ऐसे नेता के हाथों में है जो वरिष्ठ है और जो सभी गुटों को नाधने में सक्षम नजर आता है, प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किये जाने के बाद से कमलनाथ ज्यादातर समय भोपाल में ही बने रहे हैं इस दौरान उसका पूरा फोकस संगठन और गठबंधन पर रहा है. 

संगठन का काम तो उन्होंने पूरा कर लिया है लगभग सभी सांगठनिक नियुक्तियां पूरी हो चुकी हैं लेकिन गठबंधन का सवाल अभी भी बना हुआ है. कमलनाथ का सबसे ज्यादा जोर बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन पर रहा है शरुआत से ही वे बसपा से साथ गठबंधन को लेकर बहुत उतावले दिखाई पड़े हैं शायद उनकी इस अधीरता और मजबूरी को बसपा ने भांप लिया और अब वो अपनी शर्तों पर कांग्रेस के साथ मोल भाव की स्थिति में आ गयी है. 

मध्यप्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस गठबंधन के सहारे अपने वापसी का रास्ता देख रही है उसे शायद एहसास हो गया है कि पिछले तीन चुनावों में उसकी हार एक एक प्रमुख वजह क्षेत्रीय पार्टियों द्वारा वोट विभाजन रहा है. 
 
मध्यप्रदेश में यह शायद पहला चुनाव होगा जिसमें क्षेत्रीय पार्टियों की भूमिका को इतना महत्त्व दिया जा रहा है. परम्परागत रूप से यहां हमेशा से ही दो पार्टियों का वर्चस्व रहा है लेकिन इस बार क्षेत्रीय पार्टियों भी पूरी आक्रमकता के साथ अपने तेवर दिखा रही हैं. ऐसा मान जा रहा है कि किसी एक पार्टी के पक्ष में लहर ना होने के कारण इस बार हार-जीत तय करने में सपा, बसपा और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी जैसे पार्टियों की अहम भूमिका रहने वाली है इधर आदिवासी संगठन “जयस” और आम आदमी पार्टी जैसे नये खिलाडी में मैदान में ताल ठोकते हुये नजर आ रहे हैं, आम आदमी पार्टी तो अपने बूते सरकार बनाने का दावा भी कर रही है.
 
लेकिन इन सबमें सबसे बड़ा खिलाड़ी बहुजन समाज पार्टी को माना जा रहा है, मध्यप्रदेश में 15 फीसदी से अधिक दलित आबादी है जो कि परम्परागत रूप से कांग्रेस के वोटबैंक रहे हैं लेकिन अब इसका एक बड़ा हिस्सा भाजपा और बसपा के हिस्से में जा चूका है. मध्यप्रदेश में अनुसूचित जाति के लिए 35 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं जिसमें से वर्तमान में 27 सीट भाजपा के पास हैं. कांग्रेस एकबार फिर अपने इस पुराने वोट बैंक को साधना चाहती है इसी सन्दर्भ में कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया ने यह बयान दिया था कि “अगर कांग्रेस की सरकार बनी तो वर्तमान कार्यकारी अध्यक्ष सुरेंद्र चौधरी भी उपमुख्यमंत्री हो सकते हैं”. 

लेकिन कांग्रेस ये भी समझ रही है कि दलित वोटरों को दोबरा साधने में उसे बसपा के मदद की जरूरत है पिछले तीन विधानसभा चुनावों के आंकड़े बताते हैं कि किस तरह से बसपा ने लगातार कांग्रेस की संभावित जीत वाली सीटों पर खेल बिगड़ने का काम किया है, बुन्देलखण्ड, विंध्य और ग्वालियर चंबल संभाग में बसपा का अच्छा प्रभाव माना जाता है. 

पिछले चार विधानसभा चुनाव के दौरान बसपा के लगातार करीब सात प्रतिशत वोट शेयर बनाये रखा है, 2013 विधानसभा चुनाव के दौरान उसे 6.29 फीसदी वोट मिले थे. जाहिर है मध्य प्रदेश में कांग्रेस की संभावनाओं को प्रभावित करने के लिये बसपा के पास पर्याप्त वोट बैंक है इसलिये इसबार कांग्रेस पहले से ही कोई जोखिम ना लेते हुये बसपा के साथ गठबंधन को आतुर नजर आ रही है.
 
लेकिन लम्बे समय से किये जा रहे प्रयासों के बावजूद दोनों पार्टियों में गठबंधन को लेकर अभी तक सहमति नहीं बन सकी है और लगातार अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है बीच-बीच में बयानबाजी जरूर सामने आ जाती है जिसमें बसपा ये कहकर कांग्रेस पर दबाव बनाने की कोशिश करती है कि वो मध्य प्रदेश में अपने दम पर चुनाव लड़ने का मन बना रही है. कांग्रेस के साथ गठबंधन की चर्चाओं के बीच पिछले दिनों प्रदेश बसपा अध्यक्ष प्रदीप अहिरवार का एक बयान सामने आया था जिसमें उन्होंने कहा था कि “हम सभी सीटों पर तैयारी कर रहे हैं,प्रदेश भर में लगातार सभाएं हो रही हैं,बसपा की इस बार निर्णायक भूमिका होगी”.
 
जाहिर है दबाव कांग्रेस पर है क्योंकि इस समय उसे बसपा के साथ की ज्यादा जरूरत है विशेषकर उप्र की सीमा से लगे बुंदेलखंड, विंध्याचल और ग्वालियर-चंबल की सीटों पर . साल 2013 के विधानसभा चुनाव में बसपा को चार सीटें मिली थी जबकि 11 सीटों पर उसके प्रत्याशी दूसरे नंबर पर रहे थे और करीब डेढ़ दर्जन सीटों पर वो तीसरे नंबर पर रही थी. इसलिये कांग्रेस अगर सत्ता में वापस लौटना चाहती है तो वो चाहकर कि इसमें बसपा की भूमिका से इनकार नहीं कर सकती है. 

अगर मध्यप्रदेश में कांग्रेस के वोट शेयर में बसपा के करीब सात प्रतिशत के करीब वोट शेयर को जोड़ दिया जाये तो फिर यह गठजोड़ भाजपा के लिए मुश्किल पैदा कर सकता है. आंकड़े बताते हैं की अगर 2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बसपा मिलकर चुनाव लड़ते तो वे करीब 131 सीटें जीत कर सरकार बना सकते थे इसी तरह से अगर दोनों पार्टियाँ 2013 में मिलकर चुनाव लड़तीं तो मुकाबला काफी करीबी हो सकता था.

मध्यप्रदेश में पिछले तीन विधानसभा चुनाव के दौरान तीनों पार्टियों का वोट प्रतिशत
 
 
                    2003            2008        2013
भाजपा        45.50            37.64        44.88
कांग्रेस        31.61            32.39         36.38
बसपा          7.26             8.97            6.29

अगर इस बार कांग्रेस और बीएसपी एकसाथ मिल कर चुनाव लड़े तो पंद्रह साल से सत्ता में बैठी भाजपा को कड़ी चुनौती मिल सकती है क्योंकि दोनों को मिलकर मिलने वाले कुल वोट भाजपा को मिलने वाले वोटों के बहुत करीब बैठते हैं. कांग्रेस को इस एहसास हो गया है कि भाजपा की सत्ता उखाड़ने की मुहिम में उसे बसपा का साथ ज़रूरी है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने स्वीकार किया है कि कि “आगामी मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टीके साथ चुनाव पूर्व गठबंधन करने से कांग्रेस को मदद मिलेगी”.

चुनाव बहुत नजदीक हैं लेकिन कांग्रेस और बसपा के बीच अभी भी गठबंधन को लेकर स्थिति साफ नहीं हो सकी है. अगर इन दोनों पार्टियों के बीच समझौता नहीं हुआ तो इसका सबसे ज्यादा नुक्सान कांग्रेस पार्टी को होगा और इससे भाजपा को बहुत राहत मिलेगी. कांग्रेस से जुड़े अखबार नेशनल हेराल्ड द्वारा मध्यप्रदेश चुनाव को लेकर जुलाई माह में स्पीइक मीडिया नेटवर्क के जिस सर्वे प्रकाशित किया था उसमें बताया गया है कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस और बीएसपी के बीच गठबंधन नहीं हुआ तो कांग्रेस के लिये मध्यप्रदेश में भाजपा को  सत्ता से हटाना बहुत मुश्किल होगा. 

कांग्रेस के साथ गठबंधन को लेकर बसपा लगातार कड़ा रुख अपनाये हुये है दरअसल पेंच इस बात पर अड़ा बुआ है कि बसपा चाहती है कि उसका मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ तीनों ही राज्‍यों में कांग्रेस के साथ तालमेल हो जाये लेकिन राजस्थान में कांग्रेस की इकाई विशेषकर सचिन पायलट का खेमा इसके लिये तैयार नहीं हैं इस सम्बन्ध में वे सावर्जनिक बयान भी दे चुके हैं कि राजस्थान में कांग्रेस को किसी गठबंधन की आवश्यकता नहीं है और  कांग्रेस अकेले ही चुनाव में उतरना चाहिये. इधर बसपा यह कह क्र दबाव बना रही है कि वो या तो इन तीनों ही चुनावी राज्‍यों में कांग्रेस के साथ तालमेल करेगी, अन्‍यथा वह अपने दम पर चुनाव लड़ेगी. 

एक दूसरा पेंच सीटों के बंटवारे को लेकर है इस सम्बन्ध में खुद मायावती ने बयान दिया है कि “कांग्रेस के साथ गठबंधन तभी होगा जब हमें सम्मानजनक सीटें मिलेंगी”. मध्यप्रदेश में कांग्रेस बसपा को 15 सीटें देना चाहती है लेकिन बसपा 30 सीटें मांग रही है. दरअसल मध्यप्रदेश में कांग्रेस अन्य पार्टियों के साथ भी गठबंधन के फिराक में है ऐसे में वो चाहकर भी बसपा को ज्यादा सीटें नहीं दे सकती है. 

मध्यप्रदेश में इस बार कांग्रेस अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिये चुनाव लड़ रही है और जीत के लिये वो कोई कसर बाकि नहीं रखना चाहती, इसीलिये वोटों का बिखराव रोकना उसकी प्राथमिकता में शामिल है. बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन होगा अथवा नहीं अभी इस पर अभी तक फैसला नहीं हो सका है शायद अगले महीने तक इस संबंध में दोनों पार्टियां निर्णय पर पहुंच सकें कि मध्य प्रदेश में बसपा कांग्रेस के बीच गठबंधन होगा अथवा नहीं. फैसला जो भी हो इसका असर विधानसभा चुनाव के नतीजों पर पड़ना तय है.

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